चलो कविता सुनाऊँ Neeraj Pandey द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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चलो कविता सुनाऊँ

नीरज पाण्डेय

जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान

लखनऊ

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चलो गाँव की ओर

स्वर्ग देखना है तो आओ गांवो के चौबारों में
हरियाली और सुंदरता बसती है जिसके द्वारों में
प्यार परोसा जाता मेरे गांवों के गलियारों में
कृष्ण सुदामा की जैसी यारी होती मेरे यारों में नारी का सम्मान दिखेगा पायल की झंकारों में
बड़े बुजुर्गों की इज़्ज़त मिलती इनके व्यवहारों में
सेवा और सत्कार बसा है इनके स्वच्छ विचारों में
स्वर्ग देखना है तो आओ गांवों के चौबारों में
सुबह का सूरज नतमस्तक है खेतों और खलिहानों में
भूख मिटा देने की ताकत जिनके अन्न के दानों में
गांव की खुशियाँ कहाँ मिलेगी शहरों के गलियारों में
स्वर्ग देखना है तो आओ गांवों के चौबारों में
फूल कमल का दस्तक देता तालाबों के किनारों में
सरसों के खेतों से बहती हवा चले घर बारों में
नहीं मिलेंगी ऐसी खुशियाँ शहरों में और कारों में
स्वर्ग देखना है तो आओ गांवों के चौबारों में

घर हैं कच्चे ,पर प्यार बसा इनकी मजबूत दीवारों में
प्यार मुहब्बत साथ मिलेंगे गांवो के त्योहारों में लोकगीत हैं गाये जाते गांवों के गलियारों में
स्वर्ग देखना है तो आओ गांवों के चौबारों में

सड़क की व्यथा

मैं असहाय सड़क हूँ मेरी अजीब सी कहानी है
लोग आये गए पर मेरी बीती यहीं जवानी है ।।
सुबह सवेरे लोगों को मेरे तन पे दौड़ लगानी है
सबकी सेहत बना कर मुझे अपनी सेहत गंवानी है
अभी अभी एक बेरोजगार ने मुझ पर दौड़ लगाने की ठानी है
लगता है शुरू हुई पुलिस भर्ती की नयी कहानी है
मुझे रौंद कर उसको मंजिल अपनी पानी है
पर अफ़सोस उसकी मेहनत भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जानी है
मैं असहाय सड़क हूँ मेरी अजीब सी कहानी हैै
लोग आये गए पर मेरी बीती यहीं जवानी है ।।
रिक्शे वाला गुजरे मुझसे उनकी भी अजब कहानी है
अपने भूखे बच्चों के लिए रोटी उन्हें लानी है
पसीना से डूब गया पर मिलती न मेहनतानी है
थक कर सो जाता मुझ पर आखिर रात भी तो यहीं बितानी है
मैं असहाय सड़क हूँ मेरी अजीब सी कहानी है

लोग आये गए पर मेरी बीती यहीं जवानी है ।।
अभी अभी एक एम्बुलेंस को अस्पताल की राह दिखानी है
बच जाए कोई जान इसमें न मेरी कोई हानि है
पर मुश्किल मेरे लिए अपने ऊपर से भीड़ हटानी है
इन संवेदनहीन मानवों को शिष्टता थोड़ी सिखानी है
मैं असहाय सड़क हूँ मेरी अजीब सी कहानी है
लोग आये गए पर मेरी बीती यहीं जवानी है ।।
सुनने में आ रहा की मेरा पुनरुद्धार करने की किसी ने ठानी है
खुश हूँ बहुत मैं भी आखिर लौटने वाली मेरी भी जवानी है
पर ये क्या घोटालों ने छीन ली मुझसे मेरी रवानी है
नकली अंग लगा कर किया इन्होंने कारस्तानी है
असहाय पड़ी मैं बेबस हूँ क्योंकि धंधा इनका खानदानी है
मैं असहाय सड़क हूँ मेरी अजीब सी कहानी है
लोग आये गए पर मेरी बीती यहीं जवानी है ।।
अभी अभी एक महिला को मुझ पर झाड़ू लगानी है
मेरे सारे अंगों को उसने फिर से चमकाने की ठानी है
उस ने कम से कम मेरी कद्र पहचानी है
इसलिए मैं उसकी और वो मेरी दीवानी है
मैं असहाय सड़क हूँ मेरी अजीब सी कहानी है
लोग आये गए पर मेरी बीती यहीं जवानी है ।।
कोई दफ्तर से लौट रहा तो किसी को रात में ड्यूटी निभानी है
मेरे ऊपर जाम लगा पर मुझे उनकी लाज़ बचानी है
थक कर वो लौटे हैं अब भी ज़ाम (शराब )ही गले लगानी है
फिर तो मेरा जाम ही अच्छा है ये बात मैंने मानी है
मैं असहाय सड़क हूँ मेरी अजीब सी कहानी है
लोग आये गए पर मेरी बीती यहीं जवानी है ।।
सब कुछ झेलकर भी मुझे खुशियाँ फैलानी हैं
खुद को भी अब सामंजस्य की भाषा सीखानी है
जो भी हो मेरी व्यथा तो बहुत ही पुरानी है
और सारी जिंदगी इन्ही इंसानों के बीच बितानी है
मैं असहाय सड़क हूँ मेरी अजीब सी कहानी है
लोग आये गए पर मेरी बीती यहीं जवानी है ।।

गरीबी और इच्छाशक्ति

क्यों भेजा मुझको दुनिया में जब मेरी यहाँ जगह न थी
क्यों दिया मुझे ऐसी किस्मत जो मेरे लिए सजा सी थी
न खाना है न दाना है जीवन मेरा अनजाना है
न खोना है न पाना है ये ही मेरा अफ़साना है
अब रात हुई कहाँ जाऊं तुम ही बतलाओ क्या खाऊँ
एक वक़्त की रोटी भी मुश्किल यहाँ जुटाना है
मैं तो एक छोटा बच्चा हूँ निर्भीक मगर कच्चा सा हूँ
मेरा क्या अपराध रहा मैं नन्हा सा सच्चा सा हूँ
वो बड़े महल में रहने वाले बच्चे हैं किस्मत वाले
उनको तुमने सब कुछ दिया मुझको ये गंदे नाले
हे भगवन ऐसा क्या है उनमें जो मुझमें तुझे दिखी न थी
क्यों भेजा मुझको दुनिया में जब मेरी यहाँ जगह न थी
क्यों दिया मुझे ऐसी किस्मत जो मेरे लिए सजा सी थी
रुष्ट हूँ तुमसे हे भगवन अब खुद ही राह बनाऊंगा
नहीं चाहिए तेरी कृपा अब बड़ा होकर दिखालाऊँगा
मेहनत करके खुद से लड़के मैं दुनिया जीत ले आऊंगा
रोटी नहीं तो भूखा ही सही पर किस्मत से लड़ जाऊंगा

इन जटिल परिस्थितियों में भी मैं ऐसी राह बनाऊंगा
उस तीन रंग के झंडे को मैं लालकिले पे फहराऊंगा
भगवन बोले जो तुममे है वो और किसी में दिखी न थी
जो तुझमे है इच्छाशक्ति वो उन बच्चों में भी न थी
इस दुनिया को जिसकी है जरूरत वो महलों में मिलती न थी
इसलिए तुझे भेजा बच्चे दुनिया को तेरी जरूरत थी
दिया तुझे इच्छाशक्ति यही तो मेरी ख्वाहिश थी ।

नीरज पाण्डेय

बचपन की यादें

कुछ याद हैं पुरानी अनजान सी कहानी

बचपन की वो यादें ख्वाबों की ये जवानी

दिन रात सोचता हूँ क्या सच थीं वो कहानी

वो अजनबी से राजा अनजान सी वो रानी

वो झूठ के सिपाही इज्ज़त की मेहनतानी

वो कल्पना के किस्से सुनते थे हम जुबानी

पर आज देखता हूँ झूठीं थी वो कहानी

सच्चे थे उनमे राजा सच्ची थीं उनकी रानी

फौलाद थे सिपाही जन्नत थी जिंदगानी

पर आज लूटता है अस्मत ही ये सिपाही

क्या ख़ाक बचायेंगे किसी की जिंदगानी

राजा भी लूटता है जनता को मुफलिसों में

न दधीचि जैसा दाता न कर्ण जैसा दानी

इन सब से तो अच्छी थी वो काल्पनिक कहानी

मकसदों में जिनकी खुशियाँ थी सिर्फ लानी

कुछ याद हैं पुरानी अनजान सी कहानी

बचपन की वो यादें ख्वाबों की ये जवानी

विजय पथ

विजय उसी की होती है जो रणनाद बजाते हैं

जो लथपथ मुस्कुराते हैं

विजय नहीं उनकी होती जो युद्ध प्रहर में सोते हों

जो सुख निद्रा के भोगी हों

विजय नहीं उनकी होती जो तम में भय के रोगी हों

विजय उसी की होती है जो अपने लक्ष्य के जोगी हों

विजय पथ पर हर जगह होंगे कांटें और शूल यहाँ

पर सफल राह के मिलने पर रह जायेंगे याद कहाँ

काम क्रोध भय त्याग करो तुम

और लक्ष्य का हरदम जाप करो तुम

गिरकर भी उठा है जो मानव इतिहास वही बनाते हैं

विजय उसी की होती है जो रणनाद बजाते हैं

जो लथपथ मुस्कुराते हैं ||

जिगीषा

हार नहीं वह सकता है जिसके अन्दर है अमित जिगीषा

जीत छीन ला सकता है हर ताकत हो हनुमान सरीखा

द्वन्द मंद न पड़ने पाए मन भी विचलित न होने पाए

गीता रामायण का है उपदेश यही जो हमने सीखा

जीत छीन ला सकता है हर ताकत हो हनुमान सरीखा

मन में भक्ति और इच्छाशक्ति

लक्ष्य साधने की है युक्ति

लगे रहे गर डेट रहे दुर्व्यसनों से हेट रहे

लक्ष्य आपका आप लक्ष्य पर गर ताकत से मर मिटे रहे

दुनिया की हर चीज मिलेगी इतिहास आपके नाम बनेगा

हार नहीं वह सकता है जिसके अन्दर है अमित जिगीषा

जीत छीन ला सकता है हर ताकत हो हनुमान सरीखा

मैं क्यूँ साम्प्रदायिक

गर टोपी न पहनूं मैं सर पे न है किसी दंगे से सारोकार

मदमस्त रहूँ मैं अपनी धुन में कभी किसी पर करूँ न वार
ईश्वर की अपने पूजा करूँ मैं किसी धर्म को कहूँ न बेकार
फिर भी तुम कहते हो साम्प्रदायिक मेरे विचार ||
नहीं जाऊंगा मैं मस्जिद में तुमको न मंदिर में बुलाता हूँ यार
अपने अपने ढंग से जीने का हर एक प्राणी है हकदार
राहत से है मतलब है पाकिस्तान की हो या हिंदुस्तान की बयार
फिर भी तुम कहते हो साम्प्रदायिक मेरे विचार ||
तुम लड़ते रहते हो हमसे और चाहते हो हम जाएँ हार
बहक जाते हो तुम भी और हो जाते हैं हम भी शिकार
तुम्हे अपने धर्म पे जानिशार तो हमें अपने धर्म से है प्यार
फिर भी तुम कहते हो साम्प्रदायिक मेरे विचार ||
हमारे तुम्हारे बीच में नफरत की जो है दीवार
उसके लिए काफी हद तक हम और तुम हैं जिम्मेदार
खुश रहो और रहने दी इसी पर तो टिका है संसार
अगर मुझे दोष देकर ढह सकती है ये नफरत की दीवार
तो मैं भी कहता हूँ हाँ साम्प्रदायिक हैं मेरे विचार ||
नीरज पाण्डेय

कश्मकश

जब आग लगी हो इस दिल में
जज्बात बुझे से रहते हैं
इस हश्र का शिकवा किस से करें
अब रात सदी सी लगती है
वो कल की बीती हुई रातें
सपनो और खुशियों की बातें
ऊँचे उड़ने की ख़्वाहिश थी
जददोजहद और आजमाइश थी
पर आज यहाँ पर रुक सा जाता हूँ
अपनी ही कमियों को खुद से छुपाता हूँ
गम के अँधेरे में खुद को बचाता हूँ
डूबने के डर से सहम सा जाता हूँ
इन सब दुविधाओं में मैं खुद को खोजा करता हूँ
इस हश्र का शिकवा किस से करें
जब रात सदी सी लगती हो
मैं क्या हूँ अब खुद को समझाता हूँ
अपने अंदर के डर को मिटाता हूँ

मैं खुद में हूँ पूर्ण खुद को सिखाता हूँ
अपनी इच्छाशक्ति को फिर से जगाता हूँ
खोई हुई सारी शक्ति अब खुद के अंदर मिलती है
अब जाग रहा हूँ मैं फिर से अब रात नयी सी लगती है

नीरज पाण्डेय

आतंकवाद

सुगबुगाहटें हैं मन में द्वंद है प्रचंड
कौन सा गुरुर इन्हें कौन सा घमंड
मारते हैं निर्बलों को कायरता के ये दास
सीख लेते कुछ नसीहत खुद भी ये पिचाश
छुप छुप के वार करें निशक्तों पे प्रहार करे
सृस्टि को विनष्ट करे सब पे अत्याचार करें
जो खुद का न संभाल सके वो औरों में क्या सुधार करे
प्यार ममता सुखी जीवन इनके समझ से है परे
पुष्प की सुगंध इन्हें लगती है दुर्गन्ध
सुगबुगाहटें हैं मन में द्वंद है प्रचंड ||
कौन सा गुरुर इन्हें कौन सा घमंड
इनका साथ देने वाले देशद्रोही हमने भी पाले
आतंक के पैसों से जो रोज पीतें सोम प्याले
जघन्य है अपराध जो ये कर रहे हैं आज
बेच रहे देश को ये तोड़ रहे समाज
इन देशद्रोहियों की आवाज़ जिस दिन हो जायेगी बंद

आतंकवादियों का हो जायेगा फिर अंत
तोड़ देंगे गुरुर इनका कर देंगे खंड विखण्ड
सुगबुगाहटें हैं मन में द्वंद है प्रचंड
कौन सा गुरुर इन्हें कौन सा घमंड ||

गुणसूत्र और समाज

कोशिका के अन्दर झाँक कर देखा धागे जैसी संरचना

क्या ये धागे ही तय करते हैं मानव समाज की रचना

आज के विज्ञान ने धागों को कहा गुणसूत्र

कोशिका के केंद्र में उलझे हुए चरित्र

गुणसूत्र ही तय करते हैं मानव का स्वभाव

तो क्यूँ मनाव रखता है आपस में भेदभाव

क्यूँ कोई गोरा है क्यूँ कोई काला

क्यूँ कोई मोटा है चपटी नाक वाला

आज के विज्ञान ने सुलझा लिए रहस्य

भविष्य में दिखेगा फैक्ट्री मेड मनुष्य

विज्ञान अब तय करेगा कौन क्या करेगा

मुर्गी देगी कितने अंडे दूध कितना बनेगा

गुणसूत्र में परिवर्तन करके बदला जायेगा लक्षण

बुरे व्यक्तियों का अब होगा इस समाज में भक्षण

धागों से ही जुड़ा हुआ है हम सबका परिवार

धागों का होता महत्व है इसका एक त्यौहार

आदमी बनता बिगड़ता है अपने अपने कर्मों से

इल्जाम गुणसूत्रों पे आते मनुष्य के कुकर्मों से

धागे से तो प्रेम भी होता धागे से सद्भाव

धागे को मजबूत तुम रखो पार होगी नाव

गुणसूत्र को दोष न देकर बदलो अपना अंदाज

फिर हर तरफ खुशियाँ होंगी और उत्कृष्ट समाज

जो तुम समझ न सकोगे

जो तुम समझ न सकोगे वो राज हूँ मैं
दिल की दरियादिली का आगाज हूँ मैं
मेरे दिल में है सिर्फ मुहब्बत की तक़सीम
हम का अहम् मिटा दे वो अल्फाज हूँ मैं
जब से ऱब से हुई मेरी वाबस्तगी
खुद ही जीना सीखा आई शाइस्तगी
ग़म का सूरज डूबा दे वो जज्बात हूँ मैं
रौशनी से नहा दे वो चिराग हूँ मैं
जो तुम समझ न सकोगे वो राज हूँ मैं
दिल की दरियादिली का आगाज हूँ मै
गर जो दिल में रही तेरे संजीदगी
तुझको मिल जायेगी सारी आसूदगी
तेरी दुनिया सजा दूं वो ताज़ हूँ मैं
बुराइयों को डुबा दूं वो सैलाब हूँ मैं
जो तुम समझ न सकोगे वो राज हूँ मैं
दिल की दरियादिली का आगाज हूँ मैं

प्रकृति की संसद

देख कर मानवों का अत्याचार
प्रकृति के मन में आया के विचार
क्यूँ न बैठायी जाये एक अनोखी संसद
जिसमे मृदा,पृथ्वी,नदी,और हवा की हो पंगत
संसद में रखा जाए अपना अपना सन्देश
फिर मिलजुल कर लाया जाए एक अध्यादेश||
शुरू हुआ वार्ता सत्र नदी ने पहले बोला
मनुष्य के खिलाफ उसने अपने मुख को खोला
मस्ती से मैं चलती थी,और शान से थी मैं विचरती
निर्मल जल के साथ थी बहती हरदम कलकल करती
पर अब शहरी नालों की गंदगी और कीचड के उफान में फंसी हूँ
पूजना तो दूर मनुष्य की राजनीति में धंसी हूँ||
ये सब सुनकर हवा ने स्पीकर को दिया जवाब
अपने ऊपर अत्याचारों पर डाला प्रकाश
मैं अल्हड-अलमस्त विचरती थी,स्वछंद ही फिरती थी,
न किसी का दर था हरदम सर-सर करके बहती थी
किन्तु मानवों ने कर दिया मुझे कलुषित
फैक्ट्रीयों और गाड़ियों के धुएं से मैं हो गयी प्रदूषित
इतना कहते ही हवा बिलख कर रोने लगी
मनुष्य के सुधारने का बाट जोहने लगी||
इतने में ओजोन परत ने झटपट मुख को खोला
अपने ऊपर अत्याचारों से उसका सिंघासन डोला
मैं तो अपना दिल लगाकर पराबैगनी किरणों को था हटाता
मनुष्य जैसे बच्चों को स्किन कैंसर से था बचाता
पर मानवों ने आज मेरे दिल में ही कर दिया सुराख़
ग्रीनहाउस गैसें मुझको कर रही बरबाद||
मृदा का नंबर आया तो उसने दिखाई बेबाक तस्वीर
कैसे मनुष्य तडपा रहा उसका सीना चीर
हर तरफ फैला रहे कूड़ा कचरा और राख
लवण हमारे खत्म कर रहे रासायनिक उत्पाद||
स्पीकर रुपी वृक्ष ने सुनी सबकी दुखभरी बातें
दुखी था वह भी रिश्तेदार के नाते
उसने कुछ नही बोला सिर्फ मन को टटोला
सबकी बातें सुन कर उसका भी खून खौला
प्रकृति रुपी राष्ट्रपति को सौंपा अध्यादेश
मनुष्य के खिलाफ कार्यवाही का माँगा आदेश ||
प्रकृति ने अध्यादेश पर कर दिए हस्ताक्षर
सुनामी,सूखा, बाढ़,बीमारी का रूप हुआ भयंकर
मनुष्य के कुकर्मों का पूरा होगा हिसाब
मनुष्य रुपी प्राणी अब बन जायेगा इतिहास|

मेरी मुहब्बत

वो कहते थे की हम नहीं समझ सके उन्हें
लगता है प्यार नाम की समझ नहीं उन्हें
हम तो वफ़ा के दौर के काफ़िर बने रहे
वो चल दिए ये बोलकर समझ नहीं तुम्हें ||

होती नहीं मोहब्बतों में जीत और हार
हर वक़्त साथ देने का वादा है मेरा प्यार
उनको तो ये लगने लगा हम साथ नहीं है
इस हीर ए मोहब्बत की है परख नहीं उन्हें ||

जज्बात मेरे प्यार के हो गए दरकिनार
मासूमियत से मेरी वो वाकिफ थी मेरे यार
वो छोड़ कर चले गए दामन ये प्यार का
कहते थे मेरे प्यार का सरताज हम जिन्हें ||

अब दौर ए मोहब्बत का अंजाम दिखा है
कवि इश्क़ के समंदरों में डूब चुका है
गोते लगा लिए अब निकला नहीं जाता
डूब कर रोता हूँ की देखूंगा अब किन्हें ||

अब सोचता हूँ भूल जाऊं बीती हुई बात
वो खेल गए जिनसे वो थे मेरे जज्बात
अब हो गयी हद प्यार के इन गम के दिनों की
मैं खुश हूँ बहुत कम से कम पता चले उन्हें ||

धन्यवाद