अधुरी खिताब - 15 kajal jha द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अधुरी खिताब - 15


🌙 एपिसोड 15 : “परछाइयों का पुनर्जन्म”



🌑 1. रोशनी का निगलना


कक्ष में फैली चमक अब इतनी तेज़ हो चुकी थी कि राहुल की आँखें खुली रहकर भी अंधी-सी लगने लगीं।

वह चिल्लाया —

“यह क्या हो रहा है… किताब मुझसे क्या चाहती है?”


उसके शब्द हवा में खो गए।

एक पल में सब कुछ रुक गया — आवाज़ें, रोशनी, यहाँ तक कि उसकी धड़कन भी।

और फिर एक अनजानी फुसफुसाहट उसके कानों में गूँजी —


> “राहुल… अब तू सिर्फ़ इंसान नहीं रहा…”




धीरे-धीरे उसके चारों ओर हवा घूमने लगी, और वह खुद को उसी तख़्त पर पड़ा पाया जहाँ किताब रखी थी।

लेकिन अब किताब खुली नहीं थी — वह उसकी छाती पर रखी थी, जैसे उसके दिल की धड़कनों को सोख रही हो।



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🕯️ 2. नई रूह का जन्म


अचानक हवा का एक झोंका आया, और दीवारों पर वही काली परछाइयाँ फिर से बनने लगीं।

पर इस बार वे बेकाबू नहीं थीं, बल्कि किसी एक दिशा में झुक रही थीं — राहुल की ओर!


किताब से निकली हल्की रोशनी उसके पूरे शरीर पर घूमने लगी।

उसकी आँखों में चमक उतर आई — आधी इंसान जैसी, आधी किसी और दुनिया की।


उसके होंठों से अपने आप शब्द निकले —

“मैं अब अधूरी किताब का रक्षक हूँ…”


तुरंत ही उसके सामने एक आकृति प्रकट हुई —

अरविंद देव की नहीं, बल्कि एक नई आत्मा की।

वह कोई और नहीं, अनन्या थी।

लेकिन अब उसका चेहरा शांत नहीं, रहस्यमयी था।


“राहुल…” उसने कहा, “किताब ने तुझे चुना है। अब तू वो करेगा, जो अरविंद नहीं कर सका।”


राहुल ने भौंहें चढ़ाईं — “मतलब?”


अनन्या ने मुस्कुराते हुए कहा —

“हर रूह जो कभी अधूरी रही, उसे तू अब पूरा करेगा… पर हर अधूरी आत्मा को जगाने के लिए एक कीमत चुकानी होगी।”



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🕸️ 3. हवेली के बाहर


सुबह की पहली किरण दरभंगा की उस हवेली की टूटी खिड़कियों से अंदर झाँकी।

गाँव वाले, जो रातभर बाहर डर से बैठे थे, अब धीरे-धीरे अंदर आने लगे।


“अरे, अब्बे देख ना रमाकांत,” एक आदमी बोला, “किताब वाला लड़का… कहाँ गया?”


रमाकांत ने मशाल उठाई, और जब उसने तख़्त देखा, तो ज़ोर से चीखा —

“ई देख! किताब तो यहीं बा… लेकिन लड़का कहाँ?”


किताब अब शांत थी, लेकिन उसके कवर पर एक नया निशान उभरा था —

एक हाथ का निशान, जला हुआ, और उसके नीचे अक्षर थे –


> “राहुल”




लोग काँप उठे।

“भगवान बचाए… अब ई किताब का नया मालिक बन गइल।”



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🔥 4. किताब की पुकार


रात होते ही हवेली के पास के कुएँ से धीमी-धीमी गूंज उठने लगी।

जैसे कोई पुकार रहा हो —

“मुझे खोलो… मुझे जगाओ…”


दरभंगा की उस हवेली में अब कोई इंसान नहीं रहता था, लेकिन किताब अब भी साँस ले रही थी।

कभी दरवाज़े अपने आप खुलते, कभी दीवारों से धुआँ उठता।

और उसी धुएँ में कभी-कभी राहुल का चेहरा दिखाई देता —

आँखों में वही चमक, और होंठों पर हल्की मुस्कान।



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🌫️ 5. शहर में अजनबी


तीन महीने बाद — दिल्ली।

एक पुरानी किताबों की दुकान में, एक खूबसूरत लड़की “तनिषा” आई।

वह शोध के लिए प्राचीन हस्तलिपियों की तलाश में थी।

दुकानदार ने कहा –

“एक किताब है, बिटिया, मगर उसे छूना भी अशुभ माना जाता है। लोग कहते हैं, जो इसे पढ़े वो गायब हो जाता है।”


तनिषा हँस पड़ी –

“भूत-प्रेत में विश्वास नहीं करती मैं। दिखाइए।”


दुकानदार काँपते हाथों से अलमारी खोली —

और बाहर निकली वही किताब।

कवर पर वही जलता हुआ नाम — “राहुल”।


तनिषा ने किताब छूते ही महसूस किया, जैसे किसी ने उसकी उँगलियों को पकड़ लिया हो।

उसने किताब झटके से गिरा दी।


“क्या हुआ, बिटिया?” दुकानदार ने पूछा।


“कुछ नहीं…” उसने धीमे से कहा,

लेकिन उसके दिल की धड़कनें तेज़ थीं —

क्योंकि अभी-अभी उसने एक आवाज़ सुनी थी, जो किसी ने नहीं सुनी –


> “तनिषा… तू मेरी कहानी का अगला पन्ना है…”





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🩸 6. किताब फिर जागी


रात में तनिषा ने किताब अपने कमरे में रखी।

वह जाग रही थी — पर नींद और डर दोनों उसकी आँखों में थे।

घड़ी ने बारह बजाए।


किताब अपने आप खुली।

उसके पन्ने तेज़ी से पलटने लगे।

एक पन्ने पर राहुल की परछाईं उभरी — वही चेहरा, वही चमकती आँखें।


“तनिषा,” उसने कहा,

“कभी किसी ने कहा था — जहाँ अंत लिखा है, वहीं से शुरुआत होती है…

अब वो शुरुआत तू है।”


तनिषा काँप गई —

“तुम… कौन हो?”


“मैं वो हूँ, जो अधूरा नहीं रहना चाहता।”

राहुल की आवाज़ गूँजी और किताब की स्याही जैसे हवा में उठने लगी।


उसने आगे कहा —

“किताब ने मुझे चुना था, अब उसने तुझे चुना है।

हम मिलकर इसकी आख़िरी कहानी लिखेंगे — पर खून से…”


कमरे में अचानक लाइट बंद हो गई।

खिड़की से हवा का झोंका आया, और किताब ज़ोर से बंद हो गई।

तनिषा चीख़ी — लेकिन उसकी आवाज़ किसी ने नहीं सुनी।



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🌘 7. हवेली की वापसी


अगली सुबह, दिल्ली की सड़क पर एक टैक्सी रुकी।

उसमें बैठी तनिषा के हाथ में वही किताब थी।

उसकी आँखें अब किसी और सी लग रही थीं — गहरी, ठंडी, और खाली।


ड्राइवर ने पूछा – “कहाँ जाना है, मैडम?”

उसने बिना हिले कहा –

“दरभंगा… पुरानी हवेली।”


ड्राइवर ने हँसते हुए कहा –

“वो तो भूतिया जगह है, मैडम!”


तनिषा ने मुस्कुराकर कहा –

“हाँ… अब वहीं मेरा घर है।”


टैक्सी धीरे-धीरे धुंध में गुम हो गई,

और पीछे से वही आवाज़ गूँजी —


> “अधूरी किताब… अब फिर से ज़िंदा है।”





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🔔 एपिसोड 15 समाप्त


👉 क्या तनिषा अब किताब की अगली शिकार है या

उसका हिस्सा?

👉 क्या राहुल अब भी ज़िंदा है, या किताब में बस उसकी रूह है?

👉 और क्या दरभंगा की हवेली फिर से रूहों का घर बनेगी?


अगला भाग – “एपिसोड 16 : हवेली की वापसी”

जल्द ही… 🌕