त्रिशा... - 13 vrinda द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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त्रिशा... - 13

त्रिशा राजन से मिलने के बाद अपने मां के कहने पर सीधे अपने कमरें में आई और आराम से कुर्सी पर थक कर बैठ गई। अभी यह सब जो भी हो रहा था उससे वह मानसिक रुप से थकी थकी सी महसूस कर रही थी क्योंकि भले ही उसने कुछ ना कहा हो पर मन ही मन वह बहुत ज्यादा घबराई हुई थी, बहुत नर्वस थी। एक अजीब सा डर था उसके मन में। और अभी थोड़ी देर पहले जब वह राजन से मिली थी तो और भी ज्यादा नर्वस और डरी हुई थी। इसलिए वापस अपने कमरें आकर वह बहुत ही शांती का अनुभव कर रही थी। ऐसा लग रहा उसे जैसे उसने बहुत बड़ी कोई जंग जीत लो और बहुत बड़ा सा कोई बोझ उसके सिर से उतर गया हो। 

अपने आप को मिली इस शांति और सुकुन को वह आंख बंद करके आराम से अनुभव कर रही थी कि तभी उसे कुछ याद आया। उसने झटके से अपनी आंखें खोली और कुर्सी से उठ  खड़ी हुई। वह अपनी अलमारी तक गई और अभी थोड़ी देर पहले रखे उस बाॅक्स को निकाल कर अलमारी बंद कर दी। 

उस बाॅक्स को  अपने हाथों में पकड़ कर वह अपने बैड तक आई और उस पर बैठ गई। बैठे बैठे वह अपने हाथों में मौजूद उस बाॅक्स को ही देखने लगी। वह ज्यादा बड़ा बाॅक्स नहीं था छोटा ही था और उस पर चमकदार लाल रंग की पन्नी से कवर भी किया हुआ था। कवर के ऊपर उस बाॅक्स पर रिबन भी बंधा था। देखने वो बाॅक्स छोटा जरुर था पर जो भी हो उस की पैकिंग ही बहुत  लग रही थी देखकर। 

उस बाॅक्स को देखते ही त्रिशा को राजन का  चेहरा याद आ गया और साथ ही कैसे वो गिफ्ट देने के बाद अपने चेहरे पर आए खुशी के उन भावों को छिपाने के लिए बिना कुछ कहे चुपचाप चला गया था। 

राजन के उन भावों को याद करते ही त्रिशा के चेहरे पर मुस्कान आ गई। अब उसे राजन के बारे में सोच कर वो डर या घबराहट नहीं हो रही थी जो कि कुछ देर पहले वह महसूस कर रही थी। अब तो एक अलग सा ही अनुभव वह महसूस कर रही अपने मन में। एक अलग सा, अजीब सा, अनकहा सा भाव था अब उसके मन जिसे वह खुद भी नहीं समझ पा  रही थी। एक अजीब सी खुशी उसे हो रही थी, एक अजीब सी गुदगुदाहट उसके मन में हो रही थी और एक अजीब सी मीठी मीठी सी मरोड़ उसके पेट में उठ रही थी। 

उसने अपनी बड़ी हुई धड़कनों को संभाला और फिर बड़े ही प्यार से उस गिफ्ट के पैकिंग को खोलने लगी। उसे खुद भी नहीं पता था कि वो कितने ही प्यार से संभाल के उस कवर को हटा रही थी। कवर हटाने के बाद जब सारी पैकिंग खुल गई तो उसने देखा कि अंदर एक छोटा सा चौकोर डिब्बा है। उसने वो छोटा बाॅक्स खोला तो पाया कि उसमें एक जोड़ी बहुत ही सुंदर सी  झुमकीयां है। 

आकार में वह ना तो ज्यादा बड़ी थी और ना ही ज्यादा छोटी। सुनहरी सी रंग में सुंदर सी, सादी सी वह झुमकियां एक ही बार में उसके मन को भा गई। एक अलग ही कशिश थी उन झुमकियों में जो उसे इनमें दिखाई दे रही थी। आम सी यह झुमकियां जिन्हें  ना जाने महक या मम्मी के साथ बाजार में कितनी ही बार देखा होगा पर आज तो यह बहुत ही ज्यादा कीमती सी लग रही है उसे।  वह खुद भी यह नहीं जानती है कि उसे सिर्फ यह झुमकियां भाई है या फिर शायद इन झुमकियों के संग संग इन्हें देने वाला भी उसके मन को भा गया। 

वह उन झुमकियों को बड़े ही प्यार से निहार रही थी कि तभी उसने किसी के आने की आहट सुनी और फिर फटाफट उसने उस बाॅक्स को बंद करके वापस अलमारी में  रख दिया। 

वह अलमारी बंद ही कर रही थी कि तभी एकदम से उसके कमरे का दरवाजा खुला और एक एक कर उसके मम्मी पापा दोनों उसके कमरे में आ गए। मम्मी ने पीछे से दरवाजा भी बंद कर दिया ताकि कोई अंदर ना सके। 

त्रिशा जानती थी कि उसके माता पिता अगर एक साथ आऐं है तो किस बारे में बात करने आएं होगें। और उसका अंदाजा बिल्कुल सही निकला।  उसकी मां ने उसके पास आकर पूछा,
" बेटा, तुम अभी अभी राजन से मिली....... 
तुमने उससे बात भी की........
तो तुम्हें वह कैसा लगा???? 
मतलब तुम्हें राजन कैसा लगा??? 
देखों बेटा, मुझे और तुम्हारे पापा को तो राजन बहुत अच्छा लगा।।।। अच्छा खासा कमाता भी है और परिवार भी देखों बस छोटा सा ही है उसका। और यह लोग भी हमारी रिश्तेदारी में है तो ........
हमें लगता है कि वह तेरे लिए ठीक रहेगा।" 

" हमने तो अपनी कह दी बेटा, पर अब तुम बताओं अपने दिल की हमें। तुम्हें राजन कैसा लगा??? "
"और क्या तुम इस रिश्ते के लिए तैयार हो????" मां ने बड़े ही प्यार से त्रिशा के सिर पर अपना हाथ फेरते हुए उससे पूछा।