राधे ..... प्रेम की अंगुठी दास्तां - 2 Soni shakya द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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राधे ..... प्रेम की अंगुठी दास्तां - 2

इंतजार तो लाली कर रही थी पर राधा उससे भी ज्यादा बैचैन लग थी।

कमरे में आते ही बोली _क्या कह रही थी लाली तुम,

मुझे प्यार हो गया है देव से नहीं लाली ऐसी बात नहीं है वो तो देव नहीं आता तो मुझे अच्छा नहीं लगता बस!

और वैसे तुम नहीं आती तो भी मुझे अच्छा नहीं लगता। मैं तुमसे भी तो लड़ती हूं ‌।

मुझमें और देव में बहुत फर्क है राधा।

तुम समझती क्यों नहीं?

मैं एक लड़की हु और देव लड़का ।

तो क्या हुआ क्या लड़का दोस्त नहीं होता ?

उसकी बातों में अब भी बचपन झलक रहा था।

ऐसी बात नहीं है राधा पर लड़के की दोस्ती ज्यादा नहीं चलती या तो प्यार में बदल जाती है या फिर छोड़ना पड़ता है ।

समाज ऐसी बातें नहीं समझता राधा इसलिए तुम ही समझ जाओ नहीं तो बाद में बहुत दुख होगा तुम्हें।

राधा सांतवना देते हुए बोली _ऐसा कुछ नहीं होगा लाली।

मेरा काम तो बस तुझे समझने का था आगे तुम जानो राधा।

बस इतना याद रखना कि ...

प्यार मतलब _आ बैल मुझे मार।

एक आग का दरिया होता है और डूब कर जाना पड़ता है।

अगर मिल गए तो ठीक नहीं तो बहुत तकलीफ़ होती है राधा।

कभी-कभी प्रेम बहुत कष्टदाई होता है राधा।

ठीक है समझ गई ज्ञान की देवी तेरी बात को चलो अब गार्डन चलते हैं।

घर के पास ही एक छोटा सा गार्डन था दोनों सहेलियां वहीं चली जाती है। 

गार्डन में राधा अकेली बैठी थी।लाली आइसक्रीम लेने जाती है।

अकेली बैठी राधा के मन में देव के विचार आने लगे ।कितनी सुहानी शाम है ये चारों ओर गार्डन में लगे फुलों को निहारती उसका मन कहता__

काश! देव भी यहां जाते तो कितना अच्छा होता। तभी लाली आइसक्रीम लेकर आती है 

क्या हुआ मेडम फिर को गयी देव के ख्याल में

कुछ भी मत कहो लाली। ऐसा कुछ नहीं है।

अच्छी बात है फिर तो लाली ने कहा।

फिर थोड़े समय रूकने के बाद दोनों घर चलें जाते हैं 

.... अब राधा को देव की याद बहुत सताने लगी थी। 

वह अकसर देव का इंतजार करती रहती थी और जैसे ही देव आता बस...

फिर लड़ना झगड़ना रूठना-मनाना शुरू हो जाता था।

देव भी बड़ी शिद्दत से राधा को मनाता था।

उसके चेहरे पर एक मुस्कान की झलक पाने को सब कर जाता था। 

उसकी बातें, उसकी हंसी, उसका अल्हड़पन आकर्षित करने लगे थे देव को भी।

राधा की कभी ना खत्म होने वाली बातो‌ मे देव इतना खो जाता था कि उसे समय का ध्यान ही नहीं रहता था।

फिर घड़ी की ओर देखकर उसे ख्याल आता कि वापस घर भी जाना है? 

घर जाने का मन नही होता था देव का पर.. कब तक रुकता राधा क पास,

बड़े बेमन से वो अपने घर लौट आता था।

खुला आसमान टिमटिमाते तारे चांदनी रात आकर्षित कर रहे थे, राधा को अपनी ओर, अपने ख्यालों में खोई राधा चांद को निहार रही थी कि..

सहसा उसे चांद में "देव "का चेहरा नजर आने लगा। पहले तो राधा चौकी फिर खो गई देव के ख्यालों में...

बस, थोड़ा सा लापरवाह है पर बहुत प्यारा है। उसकी बातें कितनी सच्ची लगती है ।

कितना सरल और  सहज है वो बिल्कुल खरगोश की तरह ।

खरगोश.. !

हां_ कितना सुंदर, प्यारा , मुलायम और मासूम लगता है ना देव बिल्कुल वैसा ही जैसा कि खरगोश  !!

फिर राधा को एहसास हुआ कि वह देव के बारे में कुछ ज्यादा ही सोच रही हैं।

कहीं लाली की बात सही तो नहीं?

क्या प्यार हो गया है मुझे . .देव से  !!

घंटो इस प्रश्न के उत्तर से झूलती रही राधा।

लाख मना करने के बाद भी राधा को यह बात माननी ही पड़ी कि.... प्यार हो गया है उसे 

_____देव से  !!

आखिर उसके मन ने अपनी बात मानव हि ली राधा से ।

अब तो राधा का मन और भी प्रफुल्लित हो गया अब तो उसे  चांद और भी खूबसूरत लगने लगा अब उसे चांद नहीं बल्कि देव नजर आ रहा था चांद में।

उसके मन में अलग ही उमंग तरंग और खुशी की लहर दौड़ पड़ी थी। 

उसके तन में जैसे बिजली सी चमक गई थी। समझ नहींआ रहा था उसे कुछ भी।

व्याकुल हो रही थी अपने मन की बात लाली से कहने को।

पर रात बहुत हो चुकी थी ,वह लाली के घर नहीं जा सकती थी और न ही लाली को अपने घर बुला सकती थी। उसका व्याकुल मन कहता __

काश  ! यहां लाली होती तो  बता देती कि __हा प्यार हो गया है मुझे... देव से 

पर सुबह होने तक रुकने के अलावा उसके पास कोई चारा न था।

राधा बेसब्री से सुबह होने का इंतजार करने लगी।...

 देर रात तक जागने के बाद फिर जाने कब आंख लग गई राधा की ,पता ही नहीं चला उसे ।

सविता की आवाज राधा के कानों में पड़ी __उठना नहीं है आज राधा रानी ऐसा‌ कौन सा काम पुरा कर लिया है जो घोड़े बेचकर सो रही हो अब तक ।

राधा ने आंख मलते हुए घड़ी की ओर देखा,

बाप रे...!!

9 बाज गया ।

राधा ने तुरंत बिस्तर छोड़ा और.....