राधे ..... प्रेम की अंगुठी दास्तां - 4 Soni shakya द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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राधे ..... प्रेम की अंगुठी दास्तां - 4

बताओ तो क्या हुआ है?

राधा देव को अपने कमरे में ले आई।

बोलो न क्या हुआ है राधे।

आज तुम कुछ अलग सी लग रही हो। कुछ हुआ है क्या ?

कैसे हो देव और घर में सब कैसे हैं? 

देव आश्चर्य से राधा की और देखकर बोला _यह तुम दूसरी बार पूछ रही हो राधे। 

यहां बैठो पहले बताओ क्या हुआ है कहते हुए देव ने राधा को अपने पास बैठा लिया।

देव राधा की आंखों में देख कर कुछ पढ़ने की कोशिश कर रहा था पर राधा ने पलकें झुका ली।

क्या, कहना जरूरी है बिन कहे नहीं समझोगे देव।

अब तो देव से रहा नहीं गया उसने राधा का हाथ पकड़ कर अपने सीने पर रख कर बोला __देखो मेरा दिल कैसे धड़क रहा है अब जल्दी बता भी दो।

राधा के दिल में तो पहले से ही प्यार का बीज अंकुरित हो गया था।

देव के दिल पर हाथ रखते ही राधा के अन्दर जैसे बिजली सी चमक गई। कभी देव की आंखों में अपना अक्स  निहारती तो कभी पलके झुका लेती पर कुछ बोल नहीं पाई जैसे उसके होंठ सिल गए हो।

बोलो न राधे..

तभी माया कमरे में प्रवेश करती है। माया (राधा की मां) देव और राधा को ऐसा देखकर उसे थोडा अजीब लगता है पर वह कुछ कहती नहीं बस इतना ही कि_चलो देव सविता ने नाश्ता बना दिया है। और कमरे से बाहर आ जाती है।

राधा देव के हाथ से तुरंत अपना हाथ खींच लेती है। 

देव भी तुरंत एक पल गंवाए जी आंटी जी कहकर खड़ा हो जाता है और माया के पीछे-पीछे कमरे से बाहर निकल आता है।

राधा को दुःख होता है कि वो अपने मन की बात नहीं कह सकी।

थोड़ी देर बाद राधा भी नाश्ते के टेबल पर आ जाती है।

देव अपना नाश्ता खत्म कर ,-अब चलता हूं आंटी जी फिर आऊंगा कहता है और खड़ा हो जाता है।

बाय राधा ,कहकर निकल जाता है।

राधा दूर तक देव को जाते हुए  देखती रहती है। माया की नजर राधा पर थी। उसके अंदर शक का बीज पनप गया था।

माया को एहसास हुआ कि राधा अब बड़ी हो गई है।

माया को समझने में देर न लगी कि राधा देव की और आकर्षित हो रही है। 

विचलित हो गई माया ,मन में कई तरह के विचार आने लगे। अगर राधा देव को पसंद करने लगी तो ठीक न होगा।

कितने पुराने रिश्ते हैं हमारे।सब खराब हो जाएंगे।

क्या कहुगी में -देव की मम्मी से कैसे नजर मिलाऊंगी उनसे।

लोग क्या कहेंगे , सब मेरी परवरिश पर उंगली उठाएंगे। 

कहीं कोई मेरी राधा को बदनाम न कर दे। नहीं, नहीं मै ऐसा कुछ नहीं होने दुंगी।

अब मुझे ही कुछ करना होगा।

शाम को माया बड़ी बचैनी से वृषभानु जी का इंतजार कर रही थी। वृषभानु (राधा के पिता) और जैसे ही वे आए ,

माया बोली आ गये आप ! मैं आपके लिए चाय बनाकर लाती हूं तब तक आप हाथ मुंह धो लो।

माया के चेहरे पर बेचैनी साफ झलक रही थी जिसे वृषभानु जी ने भी भांप लिया था।

चाय पीते हुए वृषभानु जी ने कहा _अब बताओ क्या बात है ? इतनी बेचैन क्यों हो। क्या हुआ है।

तुम्हें पता है राधा बड़ी हो गई है--माया बोली 

हां पता है, और जहां तक मेरा ख्याल है सभी बच्चे बड़े होते हैं छोटे नहीं। 

इसी तरह राधा भी बड़ी हो रही है।

अरे भई स्कुल से कालेज में आ गई है अब।

मजाक नहीं __मै गंभीर हुं।

तुम समझ नहीं रहे हो मैं क्या कहना चाहती हूं। 

मेरा मतलब था कि अब राधा शादी के योग्य हो गई है। 

तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या? अभी बच्ची है वो अभी उसकी पढ़ने लिखने की उम्र है और तुम्हें शादी के योग्य दिखती है। 

बृजभानु जी की बात सुनकर माया से रहा नहीं गया उसने‌ सीधे-सीधे कह दिया कि__राधा देव की ओर आकर्षित हो रही है। 

सच में तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है अब तो।

अरे बचपन के साथी हैं  वो, एक साथ उठना बैठना है उनका ,हंसी मजाक करते हैं ,खेलते हैं, लड़ते हैं झगड़ते हैं बस और कुछ नहीं। 

मां हुं मैं उसकी _और एक बच्चे को उसकी मां से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। आप मेरी बात मानो।

बात ज्यादा आगे ना बड़े इससे पहले राधा की सादी कर दो।

वृषभानु जी भी सोच में पड़ गए, क्योंकि माया ने इससे पहले कभी राधा की कोई शिकायत नहीं की थी बल्कि वह तो राधा के लिए सबसे लडती थी।

ठीक है तुम कहती हो तो मैं देखना शुरू करता हूं तुम चिंता मत करो ।

दरवाजे की ओट में खड़ी सविता सब सुन रही थी।

चलो अब खाना बना लो भुख लगी है और हां, राधा कहां है ?

होगी उसके कमरे में _माया बोली 

ठीक है,  

मैं उसे भी बुला लाता हूं खाने के लिए।

राधा ,बेटा राधा, क्या कर रही हो  ?कहते हुए वृषभानु जी राधा के कमरे में जाते हैं.....