टूटे हुए दिलों का अस्पताल - 41 Mehul Pasaya द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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टूटे हुए दिलों का अस्पताल - 41

टूटे हुए दिलों का अस्पताल – एपिसोड 41


पिछले एपिसोड में:

करण ने सिया को बताया कि उसे उसके पापा ने जबरदस्ती शहर से दूर भेज दिया था।

सिया के लिए यह एक बड़ा झटका था। अब वह उलझन में थी कि किस पर भरोसा करे—करण पर या अपने परिवार पर।

अब आगे…



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सिया की बेचैनी


रात के 3 बजे थे। सिया अपने कमरे में बिस्तर पर बैठी थी, लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी।


"क्या सच में पापा ने ऐसा किया होगा?"


उसके दिमाग में पुरानी यादें घूम रही थीं।


पापा तो हमेशा कहते थे कि वो मेरी खुशी चाहते हैं… फिर उन्होंने ऐसा क्यों किया?"


वह अपने पापा से पूछना चाहती थी, लेकिन डर रही थी।



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आदित्य का शक बढ़ता जा रहा था


अगले दिन अस्पताल में आदित्य ने सिया को गुमसुम देखा।


"क्या हुआ?"


सिया कुछ बोलने ही वाली थी कि पीछे से करण आ गया।


"सिया, तुमसे बात करनी है।"


आदित्य ने घूरकर करण की तरफ देखा।


"क्या बात है?"


करण ने बिना कुछ बोले सिया की तरफ देखा, जैसे वो चाहता हो कि वो खुद बताए।


आदित्य ने गहरी सांस ली।


"सिया, तुम ठीक हो?"


सिया ने सिर हिलाया, लेकिन उसके चेहरे पर उलझन साफ थी।


आदित्य समझ गया कि कुछ गड़बड़ है।



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सिया का सामना अपने पापा से


शाम को सिया ने हिम्मत जुटाई और अपने पापा को फोन किया।


"पापा, आपसे कुछ पूछना था…"


"हाँ बेटा, बोलो?"


सिया ने कांपते हुए कहा, "क्या… क्या आपने करण को मुझसे दूर करने के लिए कुछ किया था?"


फोन के दूसरी तरफ चुप्पी छा गई।


"पापा?"


कुछ सेकंड बाद उनके भारी स्वर में जवाब आया—


"सिया, तुम्हें ये सवाल पूछने की जरूरत क्यों पड़ी?"


सिया के दिल की धड़कन तेज हो गई।


"मतलब… सच में आपने करण को…"


पापा ने ठंडी आवाज़ में कहा, "जो किया, तुम्हारे भले के लिए किया।"


सिया के हाथ से फोन गिरने वाला था।


"लेकिन पापा… आपने मुझसे झूठ क्यों बोला?"


"क्योंकि वो लड़का तुम्हारे लायक नहीं था।"


सिया की आँखों में आँसू आ गए।


"पापा, आप मेरे फैसले लेने वाले कौन होते हैं?"


"मैं तुम्हारा पिता हूँ, सिया। मुझे पता है कि कौन तुम्हारे लिए सही है और कौन नहीं।"


सिया की आँखों में गुस्से और दर्द के आँसू थे।


"आपने मेरी ज़िंदगी का सबसे अहम फैसला मुझसे छीना, पापा। मैं कभी आपको माफ़ नहीं करूँगी!"


वह फोन पटक कर रोने लगी।



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करण की खुशी और आदित्य का डर


करण को जब ये सब पता चला तो वो अंदर ही अंदर खुश था।


"अब सिया को समझ आ रहा है कि मैंने झूठ नहीं बोला था।"


वहीं दूसरी ओर, आदित्य को चिंता हो रही थी।


"अगर करण ने सिया की भावनाओं का फायदा उठाया, तो क्या होगा?"


उसके मन में गहरी बेचैनी थी।


वह जानता था कि सिया बहुत भावुक है। अगर करण उसे फिर से अपने जाल में फँसाने में सफल हो गया, तो वो टूट जाएगी।


"मुझे सिया को इस खेल से बाहर निकालना होगा, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए।"



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आगे क्या होगा?


क्या सिया अब करण के करीब आ जाएगी?


आदित्य इस स्थि

ति से सिया को कैसे बचाएगा?


पापा और सिया के रिश्ते में आई दरार और कितनी गहरी होगी?

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