महाशक्ति - 17 Mehul Pasaya द्वारा पौराणिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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महाशक्ति - 17

महाशक्ति – एपिसोड 17

"संग बिताए कुछ अनमोल पल"

अनाया और अर्जुन के दिलों में प्रेम की अनुभूति गहरी हो चुकी थी। अनाया की हालत अब पहले से काफी बेहतर थी, लेकिन अर्जुन अभी भी उसके आसपास ही बना रहता था। उसकी देखभाल में कोई कमी नहीं छोड़ता।

सूर्योदय के साथ नई शुरुआत

एक दिन, अनाया सुबह-सुबह उठी और खिड़की से बाहर देखा। सूरज की हल्की किरणें पहाड़ों को सुनहरी आभा से भर रही थीं। हवा में ठंडक थी, लेकिन मन में एक अजीब-सी गर्माहट थी।

तभी अर्जुन हाथ में एक गरम पेय लेकर आया।
"अभी भी आराम करना चाहिए, तुम पूरी तरह ठीक नहीं हुई हो," अर्जुन ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।

अनाया ने पेय लिया और अर्जुन को देखा।
"मुझे अब अच्छा लग रहा है, और वैसे भी, तुम मेरे लिए इतनी चिंता क्यों कर रहे हो?"

अर्जुन कुछ पल चुप रहा, फिर मुस्कुराकर बोला,
"क्योंकि अब तुम्हारी खुशी मेरी जिम्मेदारी है।"

पहाड़ों के बीच सैर

थोड़ी देर बाद, अर्जुन और अनाया पहाड़ों की एक छोटी पगडंडी पर टहलने निकले। अनाया अब पहले से ज्यादा ऊर्जावान महसूस कर रही थी। अर्जुन उसके साथ धीरे-धीरे चल रहा था, जैसे उसकी हर कदम पर नजर रखे हुए हो।

"अर्जुन, तुम्हें याद है जब हम पहली बार मिले थे?" अनाया ने पूछा।

"कैसे भूल सकता हूँ? उस दिन युद्ध का माहौल था, लेकिन मेरे मन में जो हलचल थी, वो उससे भी बड़ी थी।"

अनाया हँस पड़ी।
"तुम्हें देखकर ही लगा था कि तुम बहुत गंभीर इंसान हो, लेकिन अब लगता है कि तुममें एक हल्के-फुल्के इंसान की आत्मा भी छुपी है।"

अर्जुन ने मुस्कुराकर सिर हिला दिया।
"और तुम्हें देखकर ही पता चल गया था कि तुम जितनी शांत दिखती हो, उतनी ही जिद्दी भी हो।"

शिव मंदिर में एक वादा

चलते-चलते वे पास के एक छोटे से शिव मंदिर में पहुँच गए। मंदिर की घंटियाँ बज रही थीं, और वातावरण एक दिव्य ऊर्जा से भरा था।

"चलो, यहाँ कुछ प्रार्थना कर लेते हैं," अर्जुन ने कहा।

दोनों ने शिवलिंग के सामने हाथ जोड़े। अर्जुन ने मन ही मन एक वचन लिया—
"अनाया के साथ हमेशा खड़ा रहूँगा, चाहे कोई भी कठिनाई क्यों न आए।"

जबकि अनाया ने भी मन ही मन यही सोचा—
"अब से अर्जुन ही मेरा सहारा है, मैं उसे कभी नहीं छोड़ूँगी।"

जैसे ही दोनों ने आँखें खोलीं, हवा में एक हल्की गूंज हुई, मानो शिवजी ने उनके प्रेम को स्वीकार कर लिया हो।

आराम के पल

वापस लौटकर दोनों एक झरने के पास बैठ गए। अर्जुन ने अपने थैले से कुछ फल निकाले और अनाया को दिए।

"बस इतना ही? और कुछ नहीं?" अनाया ने मज़ाक में कहा।

"इस समय यही सबसे अच्छा भोजन है," अर्जुन ने हँसते हुए जवाब दिया।

अनाया ने एक टुकड़ा लिया और अर्जुन की तरफ बढ़ाया।
"तुम भी लो।"

अर्जुन ने बिना कुछ कहे टुकड़ा ले लिया। यह छोटी-सी क्रिया दोनों के बीच के रिश्ते को और गहरा कर रही थी।

भविष्य की अनजान राहें

दिन खत्म होने को आया था, लेकिन अर्जुन और अनाया के दिलों में यह दिन हमेशा के लिए अंकित हो गया। उन्होंने एक-दूसरे के साथ सुकून भरे पल बिताए, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि आने वाले दिन कितने कठिन होने वाले हैं।

(अगले एपिसोड में – अर्जुन और अनाया की प्रेम भरी दुनिया में क्या कोई नया मोड़ आएगा? जानने के लिए पढ़ते रहिए… 'महाशक्ति'!)