तो लीजिये दोस्तों बदलाव ज़रूरी है की कहानी श्रंखला में पेश है दूसरी कहानी जिसका शीर्षक है
मौसम शादियों का ...!
एक अमीर बाप की बेटी की शादी में उसके माँ -बाप ने इवेंट मैनेजमेंट वाली पार्टी को पैसों का चेक देते हुए कहा
"देखो हमें सब कुछ एकदम परफेक्ट चाहिए, किसी भी कार्यक्रम में हमें किसी भी तरह की कोई कमी पेशी नहीं चाहिए समझें...! अगर कुछ भी गड़बड़ हुई तो समझ लेना तुम सब की खैर नहीं...! और हाँ शादी में आने वाले आम और गरीब लोगों के लिए भी व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि जब वो यह शादी देखे तो उन्हें पीढ़ी यों तक यह शादी याद रहे "
तभी पीछे से एक कर्मचारी ने आकर कहा
"मैडम सुनार आया है चलकर एक बार देख लीजिये"
"हाँ ठीक है चलो"
"लाइये दिखाई तो जरा क्या क्या गहने बनाये है आपने बेबी के लिए...? "
यह देखिये...!
"अरे यह क्या...? यह तो सिर्फ सोने और हीरे के गहने है. कुछ पन्ना और मूंगा में भी तो बनाया होगा ना और आजकल तो सिल्वर गोल्ड का जमाना है. वो दिखाई ये ना...!"
"हाँ बनाया है ना मैडम, यह देखिये सिल्वर गोल्ड में जड़ा पन्ना सेट है. मेहँदी वाले दिन पहना दीजिये गा बेबी को खिल उठेंगी वो...! और यह मूँगे का सोने में जड़ा सेट यह तो फेरों के समय लाल लिबास के साथ बहुत ही सुंदर दिखाई देगा...बेबी पर नहीं...!
और हल्दी के लिए...?
हल्दी के लिए यह गोल्ड और सच्चे मोतियों का मिक्स एन मैच है ना...!
"हाँ मगर बहुत हल्का लगेगा कुछ और भी सोचिये."
जी, "जैसा आप ठीक समझें"
तभी दूसरा कर्मचारी "मैडम कपड़ों के ट्रायल के लिए टेलर आया है..."
"हाँ ठीक है...! उनसे कहो इंतजार करें हम आ रहे हैं".
घूमती घुमाती मैडम पहुँची दर्जी के पास. हाँ जी कैसे है आप...?
"जी बिलकुल ठीक बस आपका आशीर्वाद है "
"दिखाइए क्या बनाया है आपने..."
"एक काम करिये पहले बेबी के कपड़े दिखाइए...! हमारी तो वैसे भी अधिकांश साड़ियाँ ही हैं "
"जी जैसा आप कहें "
"अरे वाह जरी का काम तो बहुत ही सुंदर किया है आपने, हमें बहुत अच्छा लगा..!"
जी बहुत शुक्रिया लेकिन यदि आप एक बार बेबी को बुलाकर भी दिखा लेती तो....!
"हाँ हाँ क्यों नहीं. आत्माराम जी. जाइये जरा बेबी को बुला दीजिये तो कहिये गा हमने बुलाया है."
जी...!
कुछ ही देर बाद आओ बेटा मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी. यह देखो तुम्हारा लेंहगा और यह फेरों वाली साड़ी कितनी खूबसूरत लग रही है, है ना ....! सभी कपड़े एक एक करके तमाम कार्यक्रमों के कपड़े बेबी के उपर रखकर देखे जाने लगे... मैडम ने कहा "यह जरी काम तो देखो...!अशफाक मियाँ ने क्या खूब काम किया है, भई हम तो फ़िदा ही हो गए आपके काम पर....!
ज़र्रा नवाज़ी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया...! लेकिन हमें लगता है बेबी को यह सोने और चांदी की जरी कोई ख़ास पसंद नहीं आयी.
क्यों जी, भला आपको ऐसा क्यों लग रहा है...?
लेकिन बात तो सही थी बेबी की शादी में खुद बेबी ही खुश नज़र नहीं आरही थी. मानो उसका मन ही ना हो शादी करने का उसने कहा भी
"माँ मैं पहले ही आपको अपनी पसंद ना पसंद बाता चुकि हूँ, फिर आप यह सब क्यों कर रही है...?"
अरे बेटा...! इतना कहने की देर थी इससे पहले ही बेबी अपने ऊपर सजाये हुए सारे कपड़े फेंक कर वहां से निकल गयी और मैडम कहती ही रह गयी
"अरे बेटा सुनो तो सही...!!! शादी में ऐसा ही होता है यही हमारे खानदान की परंपरा है..."
बेबी का ऐसा भाव देखकर अशफाक मिया की एक बोह उपर को उठ गयी. उन्हें लगा हो ना हो दाल में कुछ काला है. उनके भावों को पढ़ते हुए मैडम ने जबरन हँसते हुए कहा "आजकल के बच्चे भी ना कहीं और का गुस्सा कहीं और ही निकालने लगते है...! आप जाइये हमें कपड़े पसंद है और यही फाइनल है."
जी, अशफाक मिया ने अपने मन की शंका बाहर जाकर सभी को बता दी. अब सब यही सोचने लगे कि जरूर बेबी का कोई चककर वककर है और उससे ही छिपाने के लिए इतने आनन फानन में शादी की जा रही है. तो किसी ने कहा
"अरे भाई बड़े लोगों है कुछ भी कर सकते हैं, हो सकता है शादी के बाद एक साल पूरा होने से पहले ही खुशखबरी भी मिल जाये."
लेकिन असल बात है क्या यह जानने की किसी ने कोशिश भी नहीं की शादी का दिन आया बेबी ने भरे स्टेज पर सभी के सामने अपने होने वाले पति से पूछा
"आप मुझसे शादी करना चाहते हैं या मेरी धन दौलत से...?"
यह कैसा सवाल है...? क्या आपने यहाँ हमें हमारी बेज़्ज़ती करने के लिए बुलाया है...?
"वो सब बाद में अभी जो पूछा है उसका जवाब दीजिये"
"ज़ाहिर सी बात है आपसे...!"
तो बस फिर मुझे मंदिर में शादी करनी है, बिना किसी तामझाम के आपके घर से एक साड़ी तो आयी ही होगी मेरे नाम की...?
"एक क्यों बहू 7 चढ़ावे की साड़ियाँ आपके लिए ही तो हैं. लड़के की माँ ने आगे आकर कहा".
"नहीं मम्मी जी, मुझे केवल फेरे वाली साड़ी से मतलब है. आप सिंदूर और एक मंगलसूत्र का इंतज़ाम और कर लीजिये आप मंदिर पहुंचिये मैं अभी तैयार होकर आती हूँ" लड़के वाले वहां से मंदिर की ओर चले गए. पूरे परिसर में बुदबुदाहट सी फैल गयी लोग तरह तरह की बातें करने लगे. बेबी के पापा ने आगे आकर कहा
"यह क्या मजाक है बेबी...?"
मज़ाक़....! मज़ाक़ तो आप लोग कर रहे हैं शादी जैसे पवित्र बंधन को मजाक बनाकर रख दिया है आप लोगों ने. मैंने पहले ही कहा था मुझे एक साधारण सा विवाह करना है जिसमें कोई दिखावा ना हो... लेकिन आप लोगों ने मेरी एक नहीं सुनी.
"हाँ तो इसका यह मतलब तो नहीं कि तुम यूँ इस तरह सबके सामने हमारी बेज़्ज़ती करोगी"
"पापा आप जानते हम पैसे वाले लोगों की देखा देखी एक आम आदमी भी अपने बच्चों की शादी हमारी तरह ही करना चाहता है. खासकर अपनी बेटियों की शादी...!"
"हाँ तो इसमें हमारी क्या गलती है, सभी को अपनी चादर देखकर अपने पैर फैलाने चाहिए"
"अच्छा...! तो फिर आपने मेरे लिए अपने से ऊँचा परिवार क्यों चुना निचला क्यों नहीं...?"
"क्यूंकि बेटा हम तुम्हें अपना बेस्ट देना चाहते हैं इसलिए...!"
"वही तो पापा हर पिता अपनी बेटी को अपना बेस्ट देना ही चाहता है. फिर चाहे उसे उसके लिए कुछ भी क्यों ना करना पड़े... और इस सब में एक गरीब बाप अपनी बेटी की खुशी खरीदने के चककर में कर्जदार बन जाता है. उसकी उम्र खत्म हो जाती है, लेकिन उसका कर्जा चुकता नहीं हो पाता. उपर से लड़के वाले यदि लालची प्रवृति के निकल जाए तो बेटी भी दुःख उठती है."
बेबी ने अपने पास खड़ी अपनी एक सहेली का हाथ पकड़ते हुए आगे खींचा और अपने पापा के सामने खड़ा कर दिया. लड़की सर झुकाये रोने लगी. सारे परिसर का माहौल भी ग़मगीन हो उठा.
बेबी ने कहा
"पापा यह मेरी सहेली है रजनी, यह आपके दोस्त की बेटी की शादी में गयी थी. वहां की रौनक देखकर इसके भी अरमान जाग उठे. इसने अपने पापा से कहा
“पापा मैं भी डेस्टिनेशन वेडिंग करना चाहती हूँ.”
इसके पापा ने इसकी खुशी के लिए क्या नहीं किया...! महँगे कपड़े, गहने, मेकअप, और इस सब से उपर दहेज़ क्यूंकि लड़के वालों को लगा जो आदमी शादी में इतना पैसा लगा सकता है वह दहेज़ भी तगड़ा दे ही सकता है...! उन्होंने उनकी भी सारी मांगे पूरी करी...! कहते कहते बेबी की आँखों से आँसू टपकने लगे. लेकिन इसके ससुराल वालों का जी ही नहीं भरा पापा...! आये दिन वह लोग कुछ ना कुछ माँगने लगे. जब रजनी ने इंकार किया, तो उन लोगों ने इसके साथ घरेलू हिंसा शुरु कर दी मार-मार के इसे नीला पिला कर दिया और इतने पर भी जब यह नहीं मानी तो इसका चेहरा बिगाड़ देने की धमकी दे डाली...! कहते हुए अब रजनी और बेबी दोनों फूट फूटकर बेबी के पापा के सामने रोने लगे.
फिर रोते हुए बेबी ने दुबारा कहा
“पापा आप जानते है, रजनी के पिता ने ट्रेन से कटकर आत्महत्या कर ली....! क्यूंकि वह अपने हालातों के आगे बहुत ही बेबस हो चुके थे और वह अपनी आँखों के सामने अपनी बेटी का अहित होते नहीं देखना चाहते थे”
"पापा मैं दूसरी रजनी नहीं बनना चाहती इसलिए आपको और यहाँ मौजूद आप जैसे सभी अमीर लोगों को यह समझाना चाहती हूँ मैं, कि हम जैसे लोगों को शादी दिखाने के लिए नहीं बल्कि अच्छे सम्बन्ध बनाने के लिए करनी चाहिए. एक ऐसी शादी का उदाहरण लोगों के सामने रखना चाहिए जिसमें शामिल होकर लोग खुद को छोटा महसूस ना करे, ना ही उनकी उम्मीदें इस कदर बढ़े कि वह अपनी लाडो को खुशी देने के चककर में खुद, खुदकुशी ही कर ले.
“पापा राजा को देखकर ही प्रजा सीखती है. मैंने दादी से कहानियों में सूना है. हम साधारण शादी करेंगे तो यह लोग भी अपने बच्चों का विवाह साधारण रूप से ही करेंगे... आप समझ रहे है ना मैं क्या कहना चाहती हूँ.”
“हाँ बेटा मैं समझ गया कि तुम क्या कहना चाहती हो...! के साथ मंदिर में बहुत ही साधारण तरीके से बेबी का विवाह सभी के आशीर्वाद के साथ संपन्न हो गया. और जब वर वधु आशीर्वाद लेने पापा के पास आये तो बेबी के पापा ने कहा बेटा आज तेरी शादी के साथ में यहाँ आए सभी लोगों को यह संदेश भी देना चाहता हूँ एक दिन की शादी में पैसा पानी की तरह बहाने से अच्छा है वही पैसा आने वाले समय के लिए संभाल कर रखा जाये और कुछ ऐसा किया जाये जिससे हम दूसरों को रोजगार प्रदान कर सकें क्यूंकि शादी की तो कोई गारंटी नहीं आज है हो सकता है कल रहे ना रहे तो इससे अच्छा है शादी मे हम क्या कर रहे है पर अधिक ध्यान ना देते हुए शादी के बाद हम कैसे जी रहे हैं और कैसे अपने संबंध को निभा रहे है वह अधिक महत्वपूर्ण है. है ना...! इसलिए
“बदलाव जरूरी है ....!”
तो जल्द ही मिलते हैं एक और नयी कहानी के साथ भाग -3 के रूप में तब तक जुड़े रहिए और टिप्पणी के रूप में अपनी उपास्थि दर्ज कराते रहिए ...जय श्री कृष्ण