गुमशुदा खजाने की तलाश
यह कहानी है अजय और विजय की, जो बचपन के दोस्त थे। दोनों एक छोटे से गाँव में रहते थे, जहाँ हर पहाड़ी, हर जंगल, और हर नदी उनकी खेल की जगह हुआ करती थी। लेकिन इस बार उनकी ज़िंदगी में कुछ अलग होने वाला था।
गर्मियों की एक दोपहर, जब वे गाँव के पुरानी हवेली के पास खेल रहे थे, उन्हें वहाँ एक पुराना नक्शा मिला। यह नक्शा मिट्टी और धूल से भरा हुआ था, लेकिन उस पर बने चित्र और चिह्न कुछ अजीब और रोचक थे। विजय ने उत्सुकता से पूछा, “अजय, यह नक्शा कहीं खजाने का तो नहीं?”
अजय ने नक्शा ध्यान से देखा। "हो सकता है! लेकिन हमें इसे समझने के लिए गाँव के बूढ़े पंडितजी से पूछना होगा।"
वे तुरंत पंडितजी के पास गए। पंडितजी ने नक्शा देखा और कहा, "यह नक्शा बहुत पुराना है। कहते हैं कि हमारे गाँव के पास एक गुप्त खजाना छिपा है, जिसे आज तक कोई नहीं ढूँढ पाया। लेकिन याद रखना, यह रास्ता खतरों से भरा हो सकता है।"
दोनों दोस्तों के लिए यह एक रोमांचक चुनौती थी। अगले ही दिन, सूरज निकलते ही वे नक्शा लेकर निकल पड़े। नक्शे के अनुसार, उन्हें पहले गाँव के पास की नदी के किनारे जाना था। वहाँ उन्हें एक बड़ा पत्थर मिला, जिस पर अजीब-सी लकीरें बनी हुई थीं। उन्होंने नक्शे के चिह्न से मिलाया और सही रास्ता पहचान लिया।
इसके बाद उन्हें जंगल के घने हिस्से से गुजरना पड़ा। वहाँ जंगली जानवरों और काँटेदार झाड़ियों ने उनका रास्ता रोका। लेकिन अजय ने अपनी हिम्मत नहीं हारी और विजय ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल किया। वे दोनों धीरे-धीरे आगे बढ़ते रहे।
तीसरे दिन, वे एक गुफा के पास पहुँचे। गुफा के द्वार पर लिखा था, “केवल बहादुर और सच्चे लोग ही इस खजाने तक पहुँच सकते हैं।” यह देखकर विजय थोड़ा घबरा गया, लेकिन अजय ने उसे समझाया, "हमने अब तक इतनी मेहनत की है। अगर हम साथ हैं, तो कुछ भी असंभव नहीं।"
गुफा के अंदर घना अँधेरा था। उनके पास सिर्फ एक टॉर्च थी, जिसकी रोशनी में वे आगे बढ़ रहे थे। अचानक, उनके सामने एक बड़ा पहेली वाला दरवाजा आ गया। उस पर अजीब से शब्द लिखे थे। पहेली थी:
"जिसके बिना सब कुछ अधूरा है, पर वह खुद अधूरा नहीं।"
दोनों ने सोचा और सोचा। अचानक विजय चिल्लाया, “यह ‘प्रेम’ है! प्रेम के बिना सब कुछ अधूरा है!” उन्होंने दरवाजे पर यह जवाब कहा, और दरवाजा धीरे-धीरे खुल गया।
अंदर का दृश्य अद्भुत था। एक छोटे से कमरे में ढेर सारे सोने-चाँदी के सिक्के, कीमती पत्थर, और प्राचीन कलाकृतियाँ रखी हुई थीं। दोनों दोस्तों की आँखें चमक उठीं। लेकिन तभी, अजय ने कहा, "यह खजाना हमारे लिए नहीं है। यह हमारे गाँव की संपत्ति है। इसे हम गाँव में वापस लेकर जाएँगे।"
वे खजाने को गाँव में लेकर आए और पंडितजी को सबकुछ बताया। गाँव वालों ने उन दोनों की ईमानदारी और साहस की सराहना की। उस खजाने से गाँव का विकास हुआ, स्कूल बने, और हर घर में खुशहाली आ गई।
अजय और विजय को उस दिन एहसास हुआ कि असली खजाना सिर्फ सोना-चाँदी नहीं, बल्कि दोस्ती, साहस और ईमानदारी है।
दीपांजलि--- दीपाबेन शिम्पी गुजरात