हिमालय की गोद में Deepa shimpi द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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हिमालय की गोद में

हिमालय की गोद में: एक यात्रा की कहानी

सर्दियों की एक ठंडी सुबह थी, जब हमने अपने बैग पैक किए और हिमालय की ओर रुख किया। यह मेरी पहली पहाड़ी यात्रा थी, और मन में उत्साह का ठिकाना न था। हमारा गंतव्य था हिमाचल प्रदेहिमालय की गोद में: एक यात्रा की कहानी

सर्दियों की एक ठंडी सुबह थी, जब हमने अपने बैग पैक किए और हिमालय की ओर रुख किया। यह मेरी पहली पहाड़ी यात्रा थी, और मन में उत्साह का ठिकाना न था। हमारा गंतव्य था हिमाचल प्रदेश का एक छोटा-सा गाँव—कसोल।

रातभर की बस यात्रा के बाद, जब सुबह आँख खुली, तो खिड़की से बाहर का नज़ारा मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। पहाड़ों पर बर्फ की सफेद चादर और आसमान में बादलों का खेल ऐसा लग रहा था मानो प्रकृति ने अपना सबसे खूबसूरत चित्र बनाया हो। रास्ते के हर मोड़ पर पहाड़ों की ऊँचाई, हरियाली और बहते झरनों का संगीत हमें अपनी ओर खींच रहा था।

कसोल पहुँचते ही ठंडी हवा ने हमारा स्वागत किया। हमने एक छोटा-सा कैफे ढूंढा और गरमा-गरम चाय के साथ पहाड़ियों का आनंद लिया। वहाँ के स्थानीय लोग बेहद मिलनसार और खुशमिजाज थे। उनकी बातों में एक सरलता थी, जो शहर के शोर-शराबे में खो चुकी होती है। उनके किस्से-कहानियों में वहाँ की संस्कृति और परंपराएँ झलक रही थीं।

पहला दिन हमने कसोल की गलियों और आसपास के गाँवों को घूमते हुए बिताया। हर गली में इज़रायली संस्कृति की झलक और स्थानीय हिमाचली परंपराओं का संगम देखने को मिला। वहाँ का खाना, संगीत और लोगों की गर्मजोशी ने हमें बेहद आकर्षित किया। इसके बाद, हमने जंगल के रास्तों पर ट्रेकिंग की योजना बनाई।

देवदार के ऊँचे-ऊँचे पेड़ों के बीच से गुजरते हुए ऐसा लग रहा था मानो हम किसी और ही दुनिया में आ गए हों। रास्ते में बहती पार्वती नदी का कल-कल करता संगीत हर कदम पर हमारा साथी था। सूरज की किरणें जब पानी पर पड़तीं, तो ऐसा लगता था जैसे पानी में सोने की बूँदें तैर रही हों। हमने रास्ते में कई स्थानीय झोपड़ियों को देखा, जहाँ के लोग बेहद सरल और आत्मनिर्भर जीवन जीते हैं।

दूसरे दिन हमने मणिकर्ण की ओर प्रस्थान किया, जो अपने गर्म पानी के झरनों और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। ठंडी हवा में गर्म पानी में पैर डालना एक अनोखा अनुभव था। गुरुद्वारे में लंगर का स्वाद और गुरबाणी की मधुर ध्वनि ने आत्मा को सुकून दिया। मणिकर्ण के मंदिर और वहाँ की वास्तुकला देखकर लगा जैसे सदियों पुरानी सभ्यता को कोई जीवंत रूप में देख रहा हो।

शाम को हम वापस कसोल लौटे और वहाँ के मशहूर इज़रायली खाने का आनंद लिया। बाजारों में घूमते हुए हमने हाथ से बनी ज्वेलरी, ऊनी कपड़े और स्थानीय कला के कई अनोखे नमूने देखे। हर दुकान में स्थानीय लोगों की मेहनत और रचनात्मकता झलक रही थी।

तीसरे दिन का सबसे यादगार अनुभव चायल ट्रेक था। यह एक कठिन लेकिन रोमांचक यात्रा थी। घने जंगलों और बर्फ से ढके रास्तों से गुजरते हुए हम पहाड़ की चोटी तक पहुँचे। चोटी से दिखने वाला दृश्य अविस्मरणीय था—चारों तरफ बर्फ से ढकी चोटियाँ और उनकी चमक को और भी सुंदर बनाता सूरज। वहाँ खड़े होकर महसूस हो रहा था जैसे मैं इस अनंत प्रकृति का हिस्सा बन गया हूँ।

उस यात्रा के हर पल ने मुझे सिखाया कि जीवन की सच्ची सुंदरता सादगी और प्रकृति के करीब रहने में है। कसोल के लोगों की मुस्कान, वहाँ की ताजी हवा और प्रकृति की शांति ने मेरे दिल को छू लिया।

जब हम वापस लौटे, तो मेरी स्मृतियों में उस यात्रा की खुशबू और कैमरे में कुछ अनमोल तस्वीरें कैद थीं। यह अनुभव सिर्फ एक यात्रा नहीं थी, बल्कि आत्मा को सुकून देने वाला एक अनमोल तोहफा था। हिमालय की गोद ने मुझे जीवन का एक नया नजरिया दिया, और आज भी मैं उन वादियों को फिर से देखने का सपना देखता हूँ।

यह यात्रा मुझे सिखा गई कि असली खुशी महंगे होटल या लक्जरी में नहीं, बल्कि पहाड़ों की उन ऊँचाइयों और प्रकृति की गोद में छिपी हुई है।

श का एक छोटा-सा गाँव—कसोल।

रातभर की बस यात्रा के बाद, जब सुबह आँख खुली, तो खिड़की से बाहर का नज़ारा मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। पहाड़ों पर बर्फ की सफेद चादर और आसमान में बादलों का खेल ऐसा लग रहा था मानो प्रकृति ने अपना सबसे खूबसूरत चित्र बनाया हो।

कसोल पहुँचते ही ठंडी हवा ने हमारा स्वागत किया। हमने एक छोटा-सा कैफे ढूंढा और गरमा-गरम चाय के साथ पहाड़ियों का आनंद लिया। वहाँ के स्थानीय लोग बेहद मिलनसार और खुशमिजाज थे। उनकी बातों में एक सरलता थी, जो शहर के शोर-शराबे में खो चुकी होती है।

हमारा पहला दिन जंगल के रास्तों पर ट्रेकिंग करते हुए बीता। देवदार के ऊँचे-ऊँचे पेड़ों के बीच से गुजरते हुए ऐसा लग रहा था मानो हम किसी और ही दुनिया में आ गए हों। रास्ते में बहती पार्वती नदी का कल-कल करता संगीत हर कदम पर हमारा साथी था।

दूसरे दिन हम मणिकर्ण गए, जो अपनी गर्म पानी की झरनों के लिए प्रसिद्ध है। ठंडी हवा में गर्म पानी में पैर डालना एक अनोखा अनुभव था। वहाँ के गुरुद्वारे में लंगर का स्वाद और गुरबाणी की मधुर ध्वनि ने आत्मा को सुकून दिया।

शाम को हम वापस कसोल लौटे और वहाँ के मशहूर इज़रायली खाने का आनंद लिया। छोटी-छोटी दुकानों में तरह-तरह की चीज़ें बिक रही थीं—हाथ से बनी ज्वेलरी, ऊनी कपड़े और स्थानीय कला।

तीसरे दिन का सबसे यादगार अनुभव था चायल ट्रेक। यह एक कठिन रास्ता था, लेकिन हर कदम पर प्रकृति का नया चेहरा देखने को मिला। पहाड़ की चोटी पर पहुँचते ही चारों तरफ बर्फ से ढकी चोटियाँ दिखीं। सूरज की सुनहरी किरणें उन पर पड़कर ऐसा दृश्य बना रही थीं, जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है।

इस यात्रा ने मुझे सिखाया कि जीवन में सादगी और प्रकृति से जुड़ाव कितना जरूरी है। कसोल की ताजी हवा, शांत वातावरण और स्थानीय लोगों की मुस्कान ने मुझे एक नया नजरिया दिया।

जब हम वापस लौटे, तो मेरे दिल में इस यात्रा की यादें और कैमरे में कुछ अनमोल तस्वीरें थीं। कसोल की वादियाँ मुझे आज भी बुलाती हैं, और मैं फिर से वहाँ जाने का सपना देखता हूँ।

हिमालय की गोद में बिताए गए ये तीन दिन न केवल मेरी यात्रा के पल थे, बल्कि आत्मा को सुकून देने वाले अनमोल अनुभव भी थे। 

दीपांजलि --- दीपाबेन शिम्पी