मौत और ईश्वर के बारे में विचार करना हमेशा गहरा विषय होता है। मौत और ईश्वर दो ऐसे विषय हैं जो हमारे जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से हैं।
मौत एक अनिवार्य सत्य है जिससे कोई भी बच नहीं सकता। यह जीवन का अंत होता है और हर व्यक्ति को एक दिन इससे निश्चित रूप से सामना करना पड़ता है। जबकि ईश्वर एक उच्च शक्ति है जिसे लोग विश्वास करते हैं और जिसका वे अध्ययन और पूजा करते हैं। इन दोनों विषयों के बीच संबंध कई लोगों के लिए गहरा और संवेदनशील होता है।
जब हम मौत की बात करते हैं, तो यह हमें याद दिलाता है कि हमारा जीवन अनिश्चित है और हमें कभी भी इसकी योजना नहीं करनी चाहिए। इसके साथ ही, ईश्वर की प्रासंगिकता हमें एक ऊँची शक्ति के अस्तित्व के बारे में सोचने पर मजबूर करती है और हमें उस ऊँचाई और शक्ति की ओर ध्यान देने के लिए प्रेरित करती है। इन दोनों विषयों के महत्व को समझना हमें अपने जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार करने के लिए प्रेरित कर सकता है। इसके साथ ही, ईश्वर के बारे में विभिन्न धर्मों और दार्शनिक परंपराओं में विभिन्न मान्यताएं हैं।
इसी विषय पर मोहल्लेमे बात हो रही थी, जब मै मोहल्ले में गया। वहाँ पर लाला और अमित बैठे थे।
लाला और अमित एक ही मोहल्ले में पलेबड़े दो आम दोस्त है, जिन्हीने पहले मंडीमें साथ मे काम किया था। अमित पैसा बचाने में माहिर है, हर महीने कुछ न कुछ रकम वह सोरटी में लगाता रहता था।
इस तरह उसने बड़ी रकम जमा कर ली इस प्रकार अमितने कुछ रकम जमा की और सोडा की एजेंसी का कारोबार शुरू किया, जबकि लाला अभी भी मार्केटमे मजदूरी का काम करता है।
लाला का परिवार बड़ा था, जिसमे उसके भाई की मृत्यु होने से भाभी, बहन और उनके बच्चो कि देखभाल की जिम्मेदारी उसके सर थी। इसलिए उससे बचत नही हो पाती है।
वे दोनों की दोस्ती कई सालों से चल रही है। उनकी एक-दूसरे के साथ की यह गहरी और विशेष दोस्ती किसी भी मुश्किल का सामना करने में मदद कर सकती है।
अब आज मुझे मोहल्लेमे देखकर उन्होंने अभिवादन किया।लाला बोला, 'आओ बैठो।'
उसने मुझसे माकी मौत का कारण पूछा।
फिर मैंने कहा कि 'अचानक हुआ, पापा बोले थे कि सुबह तक ठीक हो जाएगा, अभी दवाई दे दी है।'
लाला ने कहा, मौत के बारे में पूर्ण रूप से कह पाना नामुमकिन है। कितने लोग पटरी के सामने खड़े हो जाते है। वो न चाहे फिर भी मोत आ जाती है। किसी करीबी को आभाष नही होता कि हमारा एक सदस्य अब दुनियां छोड़ कर जानेवाला है। मौत जब आनेवाली होती है तब उस आदमी या औरत को जिंदगी खत्म होने का अंदेशा होने लगता है। थोड़ीदेर में ईश्वर को बुरा न कहने पर बात हुई।
वे लोग विस्तृत मे बता रहे थे, कि किस प्रकार लोग ईश्वर को बुराभला कहते है, जब कोई सदस्यकी घर में मृत्यु आ गई हो, तब कही लोग ऐसा कहते है, की "ईश्वरको क्या हमारा ही घर मिला था?" यह बहोत बुरी बात है, कुछ किस्सेमें ऐसा वाजे हुआ है (सामने आया है) कि नजाने कितने ही लोगों को आयदिन मुसीबत आती रहती है, तुरंत वे भगवानको बुराभला कहना शुरू कर देते है। पर वे ये भूल जाते है ईश्वर जिससे प्रेम करते है उसीकी कठोर परीक्षा लेते है।
ताकि, भगवान उसे बार बार याद दिलाता रहे कि तुझे एक दिन मेरे पास लौटकर आना ही है।
इस पर प्रितभाव देते हुए अमितने कहा, 'किसीके लिए अपने दिलमे ज़रा बराबर भी दोष रखेंगे तो मनोकामना रद हो जाएगी, और गर्व तो कभी भी आने ही नही देना है। कतरे बराबर भी गर्व किसी चीज का नही करना चाहिए।
लालाने अपनी बात रखते हुए कहा, 'देखने वह मोतीचाचा, बिल्कुल भी घमण्ड नही किया, उनके रुतबे पर, कितनी जायदाद रखकर चले गए आज तीनो बेटोंको समान हिस्सा प्राप्त हुआ है, और तो और उन्होंने अपना और अपने परिवारका बीमा भी कराया हुआ था।
इस तरह की जब मोतीचाचा के जीवनकाल पर बात हुई। तो अमितने भी इस घटना पर प्रकाश डाला, "आज मोतीचाचा के बेटें एहसानफरामोश हो चुके है। अपने पिताका शुक्रियादा करने के बजाय लोगोंसे कहते है, हमारे पिताने कुछ भी वसीयत में नही दिया हमने खुद दुकाने खड़ी की है।"
लालाने मोती चाचा के बारेमें उसने अहम बात बताते हुए कहा, 'हा तीनो बेटे निकम्मे है। कमीनोंको पता नही है के धंधा कैसे किया जाता है और दुकानमालिक होने के दावे करते रहते है। उनके बापने कितनी जगह से लोन लेकर धंधा खड़ा किया एक से तीन दुकाने की, तब जाकर सफलता प्राप्त हुई।
मोतीचाचा जानते थे कि ये तीनो को धंधे का ज्ञान नही है। चाचा रोज सुबह जल्दी से उठकर दुकान खोल देते थे। जब कि ये निकम्मे दुपहरको खाना खाकर आते है, तब तक आधा दिन बीत जाता, उनको पता ही नही है कब कितना सामान कहा से आया? कितने मूल्य का आया? बेचते हुए कितना दाम लगाना है? कैसे पता चलता उनको?'
उसके बाद, उन्होंने बारिश से होने वाली हानि पर बातें शुरू कर दी।
लालाने पूछा, 'अमित, तेरे नए घर का कैसा हाल है? मतलब बारिश के समयमें क्या पानी का घर मे बहाव आता है?
अमित बोला, 'हा, अब तो यह आम हो गया है, मेरे घर में भी छत से पानी गल रहा है। और मेरे भाईका घर तीसरी मंजिल पर है, वहाँ पर दो बार प्लास्टर कराया फिर भी हाल वैसा ही है।
फिर अमितने मुझे पूछा, 'तुम बताओ मुनव्वर, इस पर तुम क्या कहना चाहते हो?'
मैने कहा, 'मेरे पुराने किराए के मकान में भारी मात्रा में पानी टपकता रहता था। हमको 5 बरतन रखने पड़ते थे!'
अगले ही पल मार्केट दिनचर्या पर कुछ इस तरह मशवरा हुआ, जिसमे इक्षित वहां आकर कहने लगा, "आज तो आंधीके साथ बारिश हो रही थी, सुबह साड़े 4 बजे से शुरू हो गई थी। तू क्या गया था मार्केट? कितना समय रहा मार्केट में?"
लाला ने उत्तर में कहा, "जी मे गया था, 3 से 4 स्टोल ही खुले है। में तो सर पर बौरा टांगकर गया था, पहले तो 4 कुत्तोने मुझे घेर लिया था, फिर अचानक से बिजली हुई तो खलबली मच गई।"
इशितने कहा, "हा, आज ही मेने रेडियो समाचार के प्रसारण में सुना था की प्लेन पर बिजली गिरने पूरी प्लेन क्रैश हो गयी! अच्छा ये बता, धंधा कैसा रहा आज का? क्या चंदू सेठ आया था?"
लालाने फ़ौरन कहा, 'हाँ, चंदू सेठ आया था लेकिन काम भी बहुत कम था, वह सुखी हरि मिर्ची होती है ना! बस वह ही ले जानी थी, जिसको लेकर एक ऑर्डर आया था। चार घण्टोके भीतर ही में वापस लौट आया।'
अमित यह सब सुन रहा था, उसने बातचीत के दौरान कहा, 'मोतीचाचा का सबसे छोटा लड़का बता रहा था कि उसको दुकान नही जम रही, वह मार्केटमे मजदूरी करने चाहता है।'
लाला ने धैर्य से कहा, "मार्केटमे काम करना गुडगुड़िया का खेल नही है, बहुत कठिनाइयों से भरा काम है। एक तो बाजुओं में 4 आदमी जैसा दम होना चाहिए, दूसरा हर वक्त संयम बरतते आना चाहिए क्योंकि फ़लाँ की गालि-गलौज कभी भी सुननी पड़ सकती है, अगर कुछ भी छूटे गलती से।"