कोई आदमी इतना बातूनी हो सकता है इसका एहसास मुझे आज हुआ जब मैं मुख्तयारभाई के रिक्शे में बैठा।
जब मैं रिक्शा में बैठा तो मैं थोड़ा सोच में फंसा था, तो रिक्शावाला भाई ने यह बात भुलाने के तौर पर वह बातें करने लगे।
शुरुआत में, उन्होंने अपने काम का संक्षिप्त परिचय दिया, और कहा कि वह एक धार्मिक स्थान पर डिलीवरी ड्राइवर के रूप में काम करते हैं, और हाल ही में एक मदरसे में पहुंचे।
फिर कुछ मिनटों के बाद उन्होंने कहा कि "उन्हें मदरसे का चक्कर लगाने में कैसे विध्न आ रहा है! कि अगर वे महीने में एक चक्कर नहीं लगाएंगे तो उन्का काम किसी दूसरे रिक्शे वाले को सौंप दिया जाएगा।" उन्होंने चतुराई से कहा कि "वे हर दो महीने में मदरसे का दौरा करते हैं, मदरसे से संबंधित फर्नीचर, भोजन से लेकर चादरें और तौलिये तक लाते हैं।"
उत्सुकतावश जब मैंने उनसे पूछा, 'आपने जिन मदरसों का जिक्र किया है, वे कहां हैं? क्या पैनोली के पास यह है? क्या यह रेलवे स्टेशन के सामने है?'
उन्होंने तब कहा था कि ''मदरसे पनोली गांव में डॉक्टर के अस्पताल के सामने स्थित हैं, जहां लड़कियों और लड़कों के लिए अलग-अलग बैठने और रहने की व्यवस्था है, धार्मिक के साथ-साथ शैक्षणिक शिक्षा भी दी जाती है.
प्रत्येक छात्र को प्रति सप्ताह ₹50 दिए जाते हैं और उसमें से उन्हें नाश्ता और दोपहर का भोजन और रात का खाना दिया जाता है ताकि पैसा भीतर ही घूमता रहे इसलिए प्रशासन बहुत अच्छी तरह से चल रहा है।"
इस प्रकार उन्होंने योजना और विशेषताओं के बारे में बताया।
तब मैंने उत्सुकता से उससे पूछा कि 'उनके भोजन का समय भी हमारे भोजन से भिन्न होगा, है ना?'
जिसमें उन्होंने धैर्यपूर्वक कहा, ''उनके भोजन का समय हमसे अलग है, वह कुछ इस प्रकार है। वे सभी छात्र सुबह 10:00 बजे और शाम को एक साथ दोपहर का भोजन करते हैं, शाम की पाली उन्हें 5:30 बजे दी जाती है, ताकि वे सभी पढ़ सकें देर रात तक "
इसके बाद उन्होंने उस घर के बारे में विस्तार से बताया जिसमें उन्होंने कहा कि उन्होंने अपना घर 2016 में खरीदा था। और इसे पाने के लिए उसने दो और फ्लैट मकान दांव पर लगा दिए, फिर वे खुशी-खुशी यहां मरकजी सोसायटी में आ गए।
उन्होंने आगे कहा कि "उनके चाचा के बेटे का यही बाग फिरदोश में एक मकान है, जिसे उन्होंने 2017 में तब लिया था, जब इसकी कीमत 14 लाख थी, जो वतर्मान समयमें बढ़कर 22 लाख हो गई है, उस समय लोग पूरे मकान को 2500 रुपये में किराए पर ले रहे थे एक मंजिल भी उपलब्ध थी, यानी भूतल और पहली मंजिल दोनों उपलब्ध थीं, अब जब 3500 भरे जाते हैं तो आजकल केवल ऊपरी मंजिल ही उपलब्ध होती है, कोई भी निचली इमारत को छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता है। इसलिए अगर मकान मालिक की आर्थिक स्थिति खराब हो तो वे ऊपरी मंजिल किराए पर दे देते हैं।"
तभी हमें सड़क पर एक बाइकर मिला, उसने बाइकर को सलाम किया और हमें बाइकर के बारे में बताया कि "वह पहले मुल्लावाड मुहल्ले में रहता था और अब शक्तिनगर रहने चला गया है और उसने अपने माता-पिता को पहले हज कराया उसने यह बहुत अच्छा काम किया है। वह अभी अभी ही उमरा से आया है।”
कुछ मिनट बाद वे कहने लगे कि 'माता-पिता का कर्तव्य निभाना बहुत बड़ा पुण्य का काम है।'
बातों-बातों में आधा घंटा कहां बीत गया, पता ही नहीं चला, क्योंकि अंकल रिक्शा बहुत धीरे-धीरे चला रहे थे और पीछे-पीछे बातें भी कर रहे थे।