नफ़रत-ए-इश्क - 19 Sony द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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नफ़रत-ए-इश्क - 19

श्लोक जैसे ही उसके खून से सनी हाथों को एंटीसेप्टिक से साफ कर दवाई लगाने लगा विराट अचानक से दांत पीसते हुए अपना दूसरा हाथ जिसको उसने अपने थाई पर रखा हुआ था जोर से कसकर कार के ग्लास विंडो पर दे मारता है । आवाज इतनी जोर की थी के श्लोक के हाथों से दवाई उछलकर नीचे गिर जाती है ।और आसपास खड़े गार्ड भी भाग कर car के पास आ जाते हैं।

वहीं विराट बिना भाव के बस सर्द नजरों से गाड़ी के टूटे गग्लास को देखे जा रहा था। गार्ड भागते हुए गाड़ी के सामने खड़े होकर,"सर सब ठीक तो है ना? कुछ प्रॉब्लम है क्या ?'

श्लोक एक नजर विराट के एक्सप्रेशनलेस चेहरे को देखते हुए गाड़ी के डोर थोड़ा खोल कर गार्ड की तरफ एड्रेस करते हुए बोला,"अरे नहीं भाई कुछ भी नहीं हुआ है। एक्चुअली भाई का कल बॉक्सिंग कंपटीशन है ना बस उसी की प्रैक्टिस कर रहे हैं । में हूं ना देख लूंगा आप जाइए।" गार्ड्स को उटपटांग जवाब दे कर श्लोक सिर झटकता है।

विराट बिना उसके तरफ देखे अपने दूसरे जख्मी हाथ के बहते खून को देखकर कोल्ड वॉइस में बोला ,

"तू गाड़ी स्टार्ट करेगा या तुझे बाहर फेंक कर मैं खुद ड्राइव करके चला जाऊं ।"

"आपने खुद को इस लायक रखा भी है के खुद ड्राइव करके जाएंगे ?"

लंबी सांस खींच कर श्लोक चीड़कर विराट के और देखने लगा ।

फिर कुछ सोच कर कॉटन और एंटीसेप्टिक निकालकर विराट के दूसरे हाथ को खींच कर खून साफ करते हुए बोला,

"मैं क्या कह रहा हूं भाई , आप एक ही बार में अपना बॉडी के जिस जिस पार्ट को तोड़ना चाहते हैं , तोड़ फोड़ दिजिए।मैं एक ही बार में ड्रेसिंग कर दूंगा। फिर आराम से चलेंगे। वैसे अभि तो पुरी रात पड़ी है।"

कहते हुए वो एक होपलेस नजर से विराट को घूरने लगा। उसकी बात सुनकर विराट गुस्से से चीखते हुए बोला,

"हट गाड़ी से । निकल बाहर । में खुद चला जाऊंगा ।कोई जरूरत नहीं है तेरी मदद की।"

बोलते बोलते ही विराट श्लोक से अपना हाथ छुड़ाकर गाड़ी का डोर खोलने लगा । श्लोक उसके बाजू पकड़ कर रोकते हुए मिन्नतें करते हुए बोला ,

"भाई चलते हैं। आप बस शांत होकर आराम से बैठे रहिए। बस घर पहुंच जाएंगे ।"

विराट कुछ नहीं बोला बस उसके ऊपर एक सर्द नजर डालकर सीट पर ही सिर रख कर आंखें बंद कर लिया।

श्लोक गाड़ी स्टार्ट कर रायचंद हाऊस से बाहर निकल गया।

रायचंद हाऊस से सीधे चल कर अग्निहोत्री हाऊस के तरफ़ रास्ता था और लेफ्ट टर्न से सिटी हॉस्पिटल के तरफ रास्ता।

इससे पहले के श्लोक गाड़ी सीधे अग्निहोत्री हाउस के तरफ़ लेता विराट आंखे बन्द किए शांत आवाज में,

"घर नहीं हॉस्पिटल जाना है।"

श्लोक को पता तो था वो क्या कहना चाहता था, फिरभी अंजान बनते हुए पुछा,

"आप कबसे इन छोटी मोटी चोटों केलिए हॉस्पिटल चलने लगें हैं भाई। घर चलते हैं में ही ड्रेसिंग करदूंगा।"

उसकी बात सुनकर विराट बीना किसी भाव के बोला,

"चुप चाप ड्राइव करके चलेगा या एडमिट होने चलेगा?"

श्लोक उसकी बात सुनकर मुंह बनाते हुए बोला,

"नहीं भाई, चुप चाप ड्राइव करके ही जाना है। उस पागल के साथ कौन एडमिट होगा उस हॉस्पिटल में।"

आखरी की लाइन उसने बेहद दबे लफ्ज़ों में बोला था। लेकीन उतनी आवाज विराट के कान में पड़ने केलिए काफी थी। फिर भी उसने कुछ भी नहि कहा बस एक गहरी सांस ली। उसे समझाने आता था श्लोक का जानवी केलिए चिढ़। विराट का खुद से भाग कर यूं हर बार जानवी के पास जाना उसे कतई भाता नहीं था। उसे पता था विराट जानवी चाहता नहीं है बस तपस्या से भाग कर वो जो राह पकड़ता है उसकी मंजिल जानवी है।

रायचंद हाऊस,

पार्टी से विराट के जाने के बाद तपस्या को अजीब सा महसूस हो रहा था। जेसे उसकी सांसें रूक रही हो। वो वहीं खडी होकर विराट के जाते रास्ते को बस देख ही रही थी।

"आप यहां क्या कर रहे हैं? वहां गेस्ट बस आप से ही मिलना चाहते हैं।"

आवाज सुनकर तपस्या पीछे मुड़कर देखती है। सिद्धार्थ मुसकुराते हुए उसका हाथ पकड़ा कर खींचने लगा।

और दूसरे ही पल अपना हाथ तपस्या के हाथ से झटक कर अपना हाथ देखते हुए बोला,

"शीट, ये क्या है??"

तपस्या एक नजर उसके हाथो पर डाल कर वापस से अपने हाथों को दिखने लगी।

"आप के हाथों पर ये खून, कहीं चोट लगी है क्या?"

सिधार्थ ने पुछा तो तपस्या को याद आया के उसने अपने हाथों से विराट के खून से सने हाथ को थामे रखाथा।

"वो, वो, जो वो

कहते हुए उसे याद आया के वो तो उस शख्स का नाम तक नहीं जानती जिस केलिए वो अपने दिल में इतना हलचल महसूस कररही है । अभि अभि जिसके इतने क़रीब आने लगी है वो। वो भी बस दो ही मुलाकात में।

"वो जिन्हें अभि चोट लगी थी , वो अभि हमें कोंगराचूलेट करने आए थे , उनका नाम क्या है ?"

कुछ सोचते हुए तपस्या ने सिद्धार्थ की ओर देखते हुए पूछा।

सिद्धार्थ अपने खून लगे हाथ को नाक सिकुड़कर देखते हुए कन्फ्यूजन में बोला,

"कौन?? वो विराट ? विराट अग्निहोत्री?? हां आजकल बिजनेस वर्ल्ड में खूब चर्चे है उसके ।और अभय भाई से बेस्ट बिजनेसमैन ऑफ द ईयर का अवार्ड भी उसी ने छीना है।"

बोलकर रूमाल निकाल कर हाथ पोंछ ते हुए वाशरूम के और चला गया।

तपस्या वहीं खडी अपनी  हाथों पर लगे ब्लड स्टेन को देखकर बेख्याली में ही सोचने लगी,

"विराट अग्निहोत्री !!! उन्हें तो हम बस कल ही मिले हैं, लेकिन न जाने ऐसा क्यों लग रहा है कि बरसों से जानते हैं उन्हें। जब भी मिलते हैं और मिलने की तलब बढ़ती जाती हे। यूं लगता है जैसे वो हमे हमसे भी बेहतर जानते हैं।"

सोचते हुए वो खुद की तरफ आते हुए यशवर्धन जी को देख खुद को नॉर्मल करने की कोशिश करती है।

वहीं हॉस्पिटल में,

थोड़ी देर के बाद हॉस्पिटल के पास श्लोक अपनी गाड़ी रोकता हैं । गाड़ी रुकते ही विराट जो आंखें बंद किए सीट से सिर टिका हुआ था एक ही झटके में गाड़ी खोलकर हॉस्पिटल के अंदर जाने लगा । जैसे उसे जानवी के पास पहुंच ने की बहत जल्दी हो। या तपस्या के मोह से भागने की।

उसके लड़खड़ाते हुए कदम और आंखों की लाली देखकर श्लोक उसे आवाज देते हुए बोला,

"भाई मैं आपके साथ चलूं क्या ?"

विराट बिना उसके और देखे हॉस्पिटल के तरफ़ बढ़ते हुए बोला ,

"तू घर जा, और मां को कुछ मत बताना। मैं सुबह घर आ जाऊंगा ।"

बोलकर वो एक ही पल में श्लोक की आंखों से ओझल हो गया। श्लोक मायूसी से विराट के जाते रस्ते को देखकर मन ही मन बोला ,

"हर बार अपना गुस्सा और दर्द भूलने केलिए आप जिसके तरफ़ कदम बढ़ाते हैं वो आपके गुस्से को तो शांत कर सकती है लेकिन आप का दर्द दूर नहीं कर सकती ।क्योंकि आपके दर्द की दवा भी वही है जो इस दर्द की वजह है ।पता नहीं आप ये कब समझेंगे।"

मन ही मन सोचते हुएनवो गाड़ी के अंदर बैठ गया । अंदर बैठ कर वो गाड़ी स्टार्ट करने लगा तो उसकी नजर साइड के पैसेंजर सीट में पढ़ती है। जहां विराट का फोन पड़ा हुआ था वो कुछ सोच कर एक शरारती मुस्कान लिए फोन उठाता है और हॉस्पिटल के अंदर भागता है।

रायचंद हाऊस,


रायचंद हाऊस में पार्टी खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी ।तपस्या को थके हुए देखकर यशवर्धन उसके तरफ जाकर फिक्र करते हुए बोले ,

"आप ठीक तो है प्रिंसेस ?बिल्कुल मुर्झा गई है ।कुछ खाया है या नहीं आपने?"

पूछते हुए हाथ में पकड़े ज्यूस को ग्लास उसके और बढ़ा देते हैं ।और बोले,

"लीजिए पी लीजिए ।यू विल फील बेटर।"

तपस्या वो ज्यूस का ग्लास उनको ही पिलाते हुए थोड़ा मुस्कुरा कर ,

"हम ठीक है दादू । बल्के हमे तो आप थके हुए नजर आ रहे हैं ।"

यशबर्धाम की ज्यूस के ग्लास को साइड में जाते हुए वेटर की ट्रे में रख कर थोड़ा थके हुए लहजे में बोले ,

"हम जानते हैं प्रिंसेस , यूं अचानक से इंगेजमेंट अनाउंस से आप थोड़ा सा परेशान हो गए हैं ।लेकिन बिलीव में हम जो भी कर रहे हैं आपके ही भलाई के लिए कर रहे हैं ।"

कहते हुए वो तपस्या को थोड़ा करीब आकर उसके माथे को सहलाकर कुछ गहरी सोच में डूबे हुए बोले ,

"आप जानते हैं ना प्रिंसेस आपकी दादी के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार और यकीन हम आप पर ही करते हैं? उनके देहांत के दिन ही आपका जन्म हुआ था, इसलिए हम दिल से मानते हैं कि आपके रूप में वो वापस आई है ।और

यशवर्धन की बातों को आधे में टोक ते हुए तपस्या ने मुस्कुराते हुए उनके तरफ देखा ,और उनके गले लगते हुए बोली,

"हम बिल्कुल ठीक है दादू । हमे इस शादी से कोई प्रॉब्लम नहीं है । नाहीं आपकी किसी फैसले से हमे कोई प्रोब्लम  है।"

बोल कर उसने मुसकुराते हुए यसबर्धन के तरफ़ दिखा। और यशबर्धन भी एक सुकुन की सांस लेते हुए उसे सीने से लगा लेते हैं।


कहानी आगे जारी है ❤️