नफ़रत-ए-इश्क - 10 Sony द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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नफ़रत-ए-इश्क - 10

श्लोक अब बस विराट के पागलपन को डर और सहमी नजरों से देखे जा रहा था।

कुछ फलों के बाद विराट के पुरे कमरे का नजारा कुछ यूं था जेसे अभि अभि कोई तेज तूफान गुजर कर गया हो। पुरे कमरे में कांच के टुकड़े बेखरे पड़े थे। विराट ने मिरर को पंच मारकर उसे चकनाचूर कर दिया था। और साथ ही साथ रूम के हर सामान को अपने पंच से तहस नहस कर रहा था। चीखते दहाड़ते हुए वो कमरे के हर सामान को तोड़ चुका था।

कुछ पल में कमरे के सारे सामान टूट चूके थे और विराट की ताक़त भी।।

वो थक कर फर्श पर ही घूटनों के बल बैठ गया। और तेज़ सांसें लेने लगा। श्लोक जो अब तक एक कोने में खडा विराट के शांत होने का ही इंतजार कर रहा था, भाग कर उसके पास आया और उसके सामने ही बैठ गया।

विराट फर्श पर बिखरे कांच के टुकड़ों को घूर ते हुए नफरत और दर्द से भरो हुए आवाज में ,

"मेरी बहन की जिंदगी बर्बाद करके अपने बहन के आनेकी खुशियां मनारहा हे वो अभय रायचंद। मेरी बहन की मुसकुराहट छीन कर अपने बहन के साथ मुस्कुरा रहा है।"

कहते हुए वो कुछ पल केलिए रुक गया। अपने खून से सने हाथ को अपने माथे पर रगड़ ते हुए सर्द आवाज़ में बोला ,

"बेवकूफ हैं सबके सब। उन्हें तो इतना भी मालूम नहीं है जिस तूफान से वो लोग अपने प्रिंसेस को बचाते फिर रहे हैं, उनकी प्रिंसेस तो खुद ही उस तूफान से जा टकराई है।"

कहते हुए वो एक डेवल स्माइल देकर श्लोक के तरफ़ दिखने लगा।

श्लोक घुटनों के बल उसके थोडा और क़रीब आकर उसके खून से सने हाथ को अपने हाथों में भर कर दर्द भरें आवाज में बोला ,

"जी भाई। अब टूटने बिखरने की बारी उनकी है। रोने गिड़गिड़ाने की बारी उनकी और दर्द में तड़प ने की बारी भी उनकी है।"

कहते हुए वो रोते हुए विराट के सीने से लग जाता है।

श्लोक वैसे ही विराट के सीने से लगे हुए बोला,

"आपने तो आज डरा ही दिया था भाई। इस पागलपन की वजह से अगर आप को कुछ हो जाता तो?

बोलते बोलते वो रुक गया।

उसकी हालत देख कर विराट पहले खुद को शांत करता है। और श्लोक को खुद से दूर करते हुए उसके गाल थपथपा कर बोला,

"डोंट वरी श्लोक, उन रायचंड्स को खून के आंसु रुलाए बगैर में खुद को कुछ भी नहीं होने दूंगा।"

विराट ने कहा और श्लोक के माथे से अपना माथा हल्का टच करके वहां से उठकर वाशरूम में जाने लगा ।

श्लोक  कुछ याद करते हुए विराट के और देख दर्द और नमी के साथ ही सरारती अंदाज़ लिऐ बोला,

"पता है भाई, अभी अगर आप की जान मतलब जानवी यहां होती तो आप को यूं देख क्या बोलती?"

कहते हुए वो विराट के और देख मुस्कुराने लगा।

"तेरी हिम्मत केसे हुई खुद को चोट पहचानें कि। तुझपर तेरे, सासों पर बस मेरा है हक है।"

श्लोक और विराट ने एक ही साथ जानवी के अंदाज़ में बोला। और विराट उसे देख हलकी सी स्माइल करते हुए वाशरूम के अन्दर जाने लगा।

"भाई"

श्लोक ने पीछे से आवाज दिया तो विराट रुक गया। और पीछे मुड़कर एक सवलिया नजर श्लोक पर डाल कर पूछने के अंदाज में बोला,

"बोल"

"गुस्सा ना करें तो एक सवाल पूछूं?"

श्लोक थोडा झिजक के साथ पुछने लगा।

विराट आंखे छोटी करते हुए,

"एसा क्या पुछने वाला है के इतना झिजक रहा है?"

"12 साल बाद तपस्या रायचंद को वापस से अपने इतने क़रीब देखकर क्या सच में आप को बस नफरत और बदला ही याद आया या फ़िर...,

बोलने बोलते ही वो रूक गया। विराट की सर्द नजर उसपर ठहर चुकी थी।

उसने थूक गटकते हुए विराट को मासूम सी नजरों से दिखा और बोला,

"सॉरी भाई, मेने तो बस यूं ही पुछलिया था।"

बोलने हुए वो पीछे मुड़ गया। और दरवाजे के ओर कदम बढ़ाते हुए मन ही मन बोला,

"पैरों पर कुल्हाड़ी तो ठोक है, बेवकूफ तूने तो कुल्हाड़ी पर ही पैर मार लिया, वो भी उस वक्त जब कुल्हाड़ी तेज धार पर है।"कहते हुए वो वहां से चुप चाप जाने लगा।

"सुन"

विराट ने आवाज दे कर श्लोक को रॉक लिए।

"मर गए"

श्लोक सहमकर खुद से बोला और पीछे मुड़कर विराट को मसूमियत  भरी नजरों से दिखने लगा।

विराट एक थकावट भरी मुसकुराहट के साथ,

अर्ज किया हे....

"तब्भा हो कर भी तबाही नही दिखती,

ये कम्बक्त इश्क हे मेरे भाई,

इस बीमारी की कोई दवा नहीं बिकती।

विराट ने बोला और एक गहरी सांस लेकर वॉशरूम के अन्दर चला गया।

श्लोक वहीं कुछ देर खडा रहा। और कुछ सोचे हुए बोला,

"इतने वक्त में इतना तो समझ चूका हुं में के, अगर तपस्या रायचंद आप के दर्द की वजह हे तो इस दर्द की दवा भी वही है।"

रायचंद हाऊस

एक बडा सा स्टडी रूम जिसे एक लाइब्रेरी और आफिस के मिले जुले तरीके से सजाया गया था।

यशबर्धन जी एक किंग साइज सोफे पर किसी राजा की तरह बैठे हुए हाथों में एक फाइल पकड़ कर पढ़ने में ब्यस्त थे।। सामने 50 /55 साल का एक सक्स हाथबांधे खडा हुआ यशबर्धन जी के कुछ कहने का इंतजार कर रहा था।

कुछ समय बाद यशबर्दन जी फाइल पर से नजरें हटा कर उस सक्स को देखकर सर्द आवाज में बोले,

"Are you sure बस इतना ही हे? कोई और इनफॉर्मेशन छूट तो नहीं गया?"

यशबर्घम जी ने पुछा तो सामने वाला सक्स जेसे बस इसी सवाल केलिए रेडी हुए बैठा था। वो झट से बोला ,

"बिलकुल नहीं सर a to z सारे इनफॉर्मेशन हे इस फाइल में। विराट अग्निहोत्री की पुरी जनम कुंडली हे इसमें । एसा हो ही नहीं सकता के कुछ छूट गया हो।

यशबर्धन फाइल को बंद करते हुए उसके ऊपर बोल्ड में लिखे विराट अग्निहोत्री के नाम के ऊपर उगलियो से टैप करते हुए शक भरी अंदाज में बोले,

"How can it be possible? ना कोइ बिजनेस बैकग्राउंड, ना god Father, नाही किसीकी हेल्प, फिर भी बस 5 सालों में एक सक्स कहीं से आता हे और सीधे यशबर्धन के सामने खडा हो जाता हे?"

बोल ते हुए वो गहरी सोच में थे।

सामने खडा वो सक्स यशबर्धन को सोच मे डूबे चेहरे को देख मन ही मन हस्ते हुए बोला,

"बस सामने खडा ही नहीं है बल्के आप की नीव भी हिला चूका हे।"

यशबर्धन अपने सोच से बाहर आकर सामने वाले सक्स को देख बोले,

"प्रिंसेस के वेलकम पार्टी का एक इंबिटेशन कार्ड अग्निहोत्री इंडस्ट्रीज में अदब से पहंचा देना। बाकी हम तो जा ही रहे हैं अवॉर्ड फंक्शन में ,मिल भी लेंगे और समझ भी लेंगे इस विराट अग्निहोत्री को?"

कहते हुए वो हाथ में पकड़े फाइल को टेबल पर पटक कर स्टडी रूम से बाहर चले गए।

यशबर्धन के बाहर जाने के बाद स्टडी रूम में खडा वो सक्स तिरछा मुसकुराते हुए व्यंग भरें अंदाज में बोला ,

"अब आप तूफान के क़रीब जाएं या तूफान आप के करीब आए, तबाही तो आप की ही होनी है।"

कहकर वो अपना फोन निकाल कर किसीको कॉल लगाने लगा।

वहीं दूसरे ओर रायचंद हाऊस के डायनिंग एरिया में..

डिनर टेबल पर सब बस यशबर्धन जी का ही इंतजार कर रहे थे। सालों के बाद पहली बार तपस्या अपने पुरे परिवार के साथ खाना खा रही थी। अनिरुद्ध जी और समर ऑफिस के कुछ प्रोजेक्ट के बारेमे डिस्कस कर रहे थे। वहीं तनु हमेशा की तरह अपने फ़ोन पर ही बिजी थी और हमेशा की ही तरह अभय गायब था।

यशबर्धन अपने जगे पर बैठ ते हुए कुछ रूखे अंदाज में चित्रा जी के और इसारा करते हुए,

"बहु, आप का बेटा हमारी इज्जत करना तो छोड़ ही चूका है कमसे कम इतनी तो उम्मीद ही थी के बहन बरसों के बाद आई है तो उसके साथ डिनर पर ही ज्वाइन कर लेती।"

बोलते हुए ही वो अपनी जगह पर बैठ गए। और उनके साइड में ही बैठे तपस्या के माथे पर हाथ फेर ते लगे।

चित्रा जी उन्हें समझाते हुए धीमी आवाज में बोले,

"जी पापा जी वो शायद ऑफीस के किसी काम में ही फस गया होगा वर्ना तपश्या

"रहने दीजिए बहु, आप के बेटे की काम के प्रति लगन तो हम देख ही चूके हैं। सारे प्रोजेक्ट एक एक कर रायचंद इंडस्ट्रीज से छूट कर अग्निहोत्री इंडस्ट्रीज को मिल रहे हैं। और ये सब आप के बेटे की कड़ी मेहनत ही तो है।"

इससे पहले की चित्रा जी अपनी बात पुरी करती यशवर्धन जी उन्हें टंट मारते हुए ब्यंग भरे अंदाज़ में बोले और वैसे ही गुस्से और व्यंग डे मुस्कुराने लगे।

यशबर्धन जी के गुस्से को देख तपस्या जो अपने हलवे के बाउल से एक स्पून उठा कर खाने ही वाली थी चित्रा जी के बेबसी भरी चेहरे को एक नजर डाल कर बात बदल ते हुए बोलि,

"दादू क्या हम कल थोड़ी देर केलिए तनु के साथ बाहर शॉपिंग पर चले जाएं?"

इससे पहले की यशबर्धन जी कुछ बोले तनु पुरे जोश और एक्साइटमेंट के साथ चहक ते हुए बोली,

"अरे बिलकुल दी, हम दोनों ना गैलेक्सी मॉल चलेंगे वहां आप को बिलकुल लंदन वाली ही फिलिंग आएगी। कल तो मजा ही अजाएगा।"कहकर वो दोनों हाथ से ताली पिटते हुए जब सब पर नजर डालती है तो सबकी जलती नजर उसी पर ही थी।"

सबको एसे खुद के और देखता देख वो सहम कर अपना सिर हलका तपस्या के तरफ़ झुका कर हल्के होंठ खले फुसफुसाते हुए,

"क्या हमने कुछ एसा बोला जो इस मौके पर बोलना नहीं चाहिये था?"

तपस्या उसकी बात सुनकर दांत पीस ते हुए ,

"बेवकूफ हम इंडिया में लंदन को क्यों ही फील करना चाहेंगे, वो तो हम पूछते 12 साल से कर ही रहे थे। और किसने कह था अपनी लम्बी ज़ुबान और छोटा दिमाग खोलने केलिए?"

कहकर वो गुस्से से तनु को देखने लगी।

यशबर्धान जी एक सर्द नजर तनु पर डाल कर वापस से तपस्या को देख कर बोले ,

"प्रिंसेस कल इवनिंग को आपका welcome पॉर्टी है, हम चाहते हैं के तब तक आप कहीं बाहर ना जाएं।"

तपस्या उन्हें देख मुस्कुराकर  हम्ममम मैं सिर हिला देती है।

स्टडी रूम में खड़े सक्स ने किसे कॉल लगाया जानने केलियस आगे पढ़ ते रहें।






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