"शुभम - कहीं दीप जले कहीं दील"( पार्ट -३२)
डॉक्टर शुभम और रूपा फ़ोन पर बातचीत करते हैं।
रूपा युक्ति के बारे में बताती है। युक्ति की डिलीवरी के बाद युक्ति ने रूपा को बहुत परेशान किया था। युक्ति मानसिक रूप से बिमार थी।
अब आगे...
डॉक्टर शुभम:- "रूपा, कृपया अब उन पुरानी बातों के बारे में बात मत करो। युक्ति फिर भी मेरी पत्नी थी। मेरे बच्चों की मधर थी।युक्ति भी इस दुनिया में नहीं रही। अब उसकी बातें करने से क्या फायदा? जो हो गया वो भूल जाओ। याद रखोगी तो परेशानी बढ़ जाएगी।अगर प्रांजल आएगी तो युक्ति के बारे में ऐसी बात मत करो। प्रांजल बर्दाश्त नहीं कर पायेंगी।बताओ, क्या काम था?"
रूपा:-'वो पुरानी बातें याद करो ,जो हमने साथ गुजारे थे।तुम्हें मेरी चिंता नहीं है। युक्ति के कारण आपकी और मेरी शादी नहीं हुई।अभी भी देर नहीं हुई है, मैं अब भी तुमसे प्यार करता हूँ, अगर तुम मुझसे शादी नहीं करोगे तो मैं निराश हो जाऊँगी। क्या मुझे तुम्हें छोड़ देना चाहिए? क्या आप अकेले रह सकते हैं? अब मैं अकेले नहीं रह सकती। अब हमारी उम्र भी हो रही है। हमें हम दोनों की जरूरत है।काश हम शादीशुदा होते और हमारे बच्चे भी होते तो कितना अच्छा होता। मैं तुम्हारी हर बात मानने को तैयार थी लेकिन...लेकिन जब तुम उस वक्त मुझसे मिलने जा रहे थे तो तुम्हारे साथ मेरे पिताजी ने एक चाल चली थी और तुम मुझसे शादी करने के लिए तैयार नहीं थे। मैं आपके लिए डॉक्टर की सेवा छोड़ने को तैयार था लेकिन.. लेकिन..'
बोलते-बोलते रूपा फिर रो पड़ी।
डॉक्टर शुभम ने रूपा को फोन पर रोना बंद करने के लिए कहा।
डॉक्टर शुभम:- 'रूपा, तुम गोल-मोल बातें करती हो और फिर भावुक होकर रोने लगती हो, ऐसे तो तुम्हारी तबीयत खराब हो जाएगी। तुम तो कह रही थी कि तुम्हारी भतीजी आ रही है।मैं नाम भूल गया हूं लेकिन इसे कुछ दिनों तक अपने पास रखिए, आपको बेहतर महसूस होगा। अगर मेरी बेटी प्रांजल आ जायेंगी तो हम एक-दो दिन के लिए तुम्हारे घर भेज आ जायेंगे या प्रांजल अकेली आ जायेंगी। प्रांजल का फोन आया था, उसने बताया था कि वह जब आयेगी तो रूपा आंटी के घर एक दो दिन के लिए रहने के लिए जायेंगी। मुझे अस्पताल पहुंचने में देर हो जायेगी। अभी प्यून आज जायेगा।आज अस्पताल में कोई गेस्ट आने वाला है। शायद वीआईपी भी होगा।अगर देरी हो जाए तो कोई कर्मचारी मेरे घर बुलाने आ जाएं तो अच्छा नहीं लगता। आप जानते हैं कि मैं हमेशा समय पर अस्पताल जाता हूँ।'
रूपा ने सँभलते हुए कहा-''मैं कहाँ गोल-मोल बातें कर रही हूँ। मैं आपको शुभकामनाएँ देती हूँ, ऐसा कहती हूं कि हमारा पिछला जीवन अच्छा गुजरा था। शायद तुम्हें मुझमें कोई दिलचस्पी नहीं है। कॉलेज के दौरान तुम मुझसे अच्छे से बात करते थे, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती और हम दोनों ने प्यार कबूल कर लिया था। समय के चक्र में हम ऐसे फंस गए कि अब एक साथ जीने के लिए तुम तैयार नहीं हो। आपने एक बार मुझे उपहार के रूप में एक सोने की अंगूठी दी थी, आज भी मुझे पुरानी यादें याद आ रही हैं।आपकी इच्छानुसार ही हम शादी कर सकते हैं। मेरी तरफ से हां है। यदि तुम कुछ नहीं कहोगे तो मैं जब प्रांजल मेंरे घर आयेंगी तो मैं हमारे पुराने रिश्तों के बारे में बताउंगी। शायद प्रांजल भी हमें साथ-साथ देखना पसंद करेंगी।"
डॉक्टर शुभम:- 'हां.. अब आपसे आमने-सामने मिलने का समय हो गया है, मेरी प्रांजल आएगी तो मैं उसे भी साथ ले आऊंगा, लेकिन जब आपकी भतीजी को आना था तो क्या हुआ? मैं उसका नाम भूल गया हूँ मुझे अपनी भतीजी का नाम फिर से बताओ। क्षमा करें.. हां, आपने गलत समझा, लेकिन मेरा इरादा आपको ठेस पहुंचाने का नहीं था।'
रूपा:- 'ठीक है.. ठीक है..शुभम. दोस्त की तरह बात करने के लिए आपको सॉरी बोलने की जरूरत नहीं है.. हां.. मैं क्या कह रहा था, जिसके लिए मुझे फोन करना पड़ा? हाँ..याद आया, मेरी भतीजी का नाम दिवु है, वह एक-दो दिन में आ रही है, शायद पाँच-सात दिन मेरे पास रहेगी, फिर आ जाना, दोनों बच्चियों को एक साथ अच्छा लगेगा'
डॉक्टर शुभम:-'मुझे आपका साथ रहना अच्छा लगेगा लेकिन केवल एक दिन के लिए। मुझे वापस अस्पताल जाना होगा पड़ेगा ।यह आपके लिए अच्छा है कि आपकी भतीजी आ रही है इसलिए आप बहुत खुश हैं। मैं बस यही चाहता हूं कि आप खुश रहें। अब मेरे जाने का समय हो गया है।'
रूपा:-'लेकिन शुभम मेरी बात सुनो। क्या आप जानते हैं कि यह दिवु कौन है? मैं दिवु को बहुत चाहती हूं।'
डॉक्टर शुभम:- 'हां आपकी कजिन भाई की बेटी है लेकिन उसका नाम दिवु है? अलग सा नाम लगता है।
तभी डॉक्टर शुभम के क्वार्टर की घंटी बजी।
फोन चालू था।
रूपा जो बोलने वाली थी वह शुभम सुनने वाला नहीं था।
क्योंकि अस्पताल का टाइम भी हो गया था।
मन में बड़बड़ाने लगा
अस्पताल का आदमी आया होगा।
डॉक्टर शुभम देखने गए कि कौन आया?
फ़ोन पर रूपा भतिजी दिवु के बारे में बोलती रही लेकिन सुनने वाला कोई नहीं था।
( क्रमशः यह दिवु कौन है? प्रांजल घर पर आयेगी तो क्या कहने वाली है? जानने के लिए पढ़िए मेरी धारावाहिक कहानी)
- कौशिक दवे