कहानी में अब तक हमने देखा की लूसी को बाबा ने राशियों में जकड़ लिया था और फिर उसने वो सारी सच्चाई बताई जिस से लूसी बिलकुल अंजान थी। उसके वजूद को वो आज अच्छी तरह जान पाई लेकिन साथ ही असली माता पिता के कत्ल और फिर बाबा की शैतानी मंसूबों पर बेतहाशा गुस्से और जज़्बात में उबलने लगी। उसने बहुत कोशिश की खुद को आज़ाद करने की लेकिन बाबा ने उसके सर पर ज़ोर दार डंडा मार कर बेहोश कर दिया।
कुएं में गिरे रोवन ने खुद को एक तहखाने जैसे सुरंग में पाया जहां का नज़ारा मन को विचलित कर रहा था। उसके आसपास दुलाल और झुमकी थे जो उसकी मदद करने की कोशिश में लगे थे।
रोवन ने जेब से मोबाइल निकाल कर देखा जिस में नेटवर्क बिल्कुल no survice में था। उसने परेशान हो कर मोबाइल अपने जेब में वापस रखते हुए झुंझला कर कहा :" ओह ये कहां फंस गया मैं! न जाने ये कौन सी जगह है ऐसा लग रहा है कि मैं जहन्नुम में आ गया हूं! मुझे लूसी के पास जल्द से जल्द पहुंचना होगा पर पता नहीं ये सुरंग मुझे कहां ले जाएगी!"
सामने से एक पतला सा रास्ता दिखाई दे रहा था जिस की ओर कदम बढ़ाया ही था के दीवार पर लगा हुआ मशाल उड़ने लगा। दरअसल वो रोवन को उड़ता हुआ दिख रहा था लेकिन असल में उसे दुलाल ने थाम रखा था ताकी वो रोवन का ध्यान अपनी ओर खींच सके, उसने मशाल को ज़मीन की ओर झुकाया जिस वजह से ज़मीन पर रौशनी पड़ने लगी जहां उसने लकड़ी की मदद से ज़मीन को खुरच कर रोवन के लिए एक नोट लिखा था।
मशाल को उड़ते देख पहले तो रोवन ठिठक गया और उसने गन तान ली लेकिन जब ज़मीन पर लिखे लिखावट पर नज़र पड़ी तो गन नीचे कर के गौर से पढ़ने लगा।
" रोवन सर! मैं दुलाल आपको इस बात से आगाह करता हूं के लूसी की जान खतरे में है। मैं उस झोंपड़ी के अंदर नहीं जा सकता इस लिए आपको ही उसे समय पर जा कर बचाना होगा वरना आप हमेशा के लिए उसे खो देंगे! मैं शायद ये सब लिखने के बाद हमेशा के लिए ऊपर चला जाऊं इस लिए अभी आप से और लूसी से इस ढोंगी बाबा के बारे में बताने के लिए माफी मांगता हूं! मैने जो इंसानों से सुना वोही बता दिया इस लिए मुझे माफ कर दीजिए और लूसी को बचा लीजिए!"
रोवन के पढ़ते ही दुलाल चमकती हुई रेत की तरह हवा में धीरे धीरे गायब होने लगा। उसका जिस्म धूल के कानों की तरह बिखरने लगा। जाते जाते वो झुमकी और रोवन को मुस्कुरा कर देखते हुए गया। वो बहुत खुश था। उसे जाते देख झुमकी का भी मन हमेशा के लिए ऊपर जाने के लिए मचलने लगा था लेकिन अब उसे इस बात का एहसास हो गया था के जब तक उसका समय नहीं आएगा तब तक वो जा नहीं सकती और अब उसकी बेचैनी में थोड़ी कमी आ गई थी इस लिए उसके दिल को जाने की तड़प भी कम हो रही थी।
इस मैसेज को पढ़ने के बाद रोवन तिलमिला उठा। और सुरंग की ओर भागने लगा। उसके पीछे मशाल लेकर झुमकी भी भागने लगी। जब रोवन ने देखा के पीछे मशाल भी आ रही है तो उसने रुक कहा :" देखो दुलाल मैं तुम्हें देख तो नहीं सकता लेकिन तुम मुझे सुन सकते हो! अगर तुम्हें रास्ता पता है तो आगे चल कर मुझे निकलने में मदद करो!"
तभी झुमकी ने पास पड़े एक इंसानी उंगली की हड्डी को उठा कर मिट्टी पर लिख कर बताया " जीजू मैं झुमकी हूं! दुलाल भैया गायब हो गए हैं। मैं ने दीदी की चीख सुनी तो मैं वहां झोंपड़ी के पास चली गई, अंदर नहीं जा पाई लेकिन मैने कान लगा कर सुना! वो बाबा कह रहा था के सूरज निकलने से पहले वो दीदी का दिल निकाल लेगा! मुझे रास्ता नहीं पता लेकिन मैं उड़ कर कुएं के रस्ते जा सकती हूं। दीदी को बचा लो जीजू!"
रोवन ने उसके टेढ़े मेढ़े लिखावट के एक एक शब्दों को मुश्किल से पढ़ा तो वो बेहद परेशान हो गया। घबराहट और फिक्र से सुरंग में उसे घुटन महसूस होने लगी। उसका दिल कर रहा था के दीवारों को फाड़ कर निकल जाए, इस बेचैनी और गुस्से में उसने दीवारों पर कई मुक्के मारे लेकिन अब सुरंग के रस्ते जाने के अलावा कोई उपाय नहीं था।
उसने तेज़ तेज़ सांसे लेते हुए अपने गन को देखते हुए कहा :" झुमकी एक काम करो! तुम उड़ सकती हो न तो किसी भी तरह ये गन लूसी तक पहुंचाओ! होशियारी से इस काम को पूरा करो! कम से कम लूसी उस कामिने को गोली तो मार सकती है। मैं किसी तरह निकलने की कोशिश करता हूं।"
झुमकी ने रोवन के हाथ से गन लिया और मशाल वहीं रख कर सनसनाते हुए चली गई।
रोवन ने मशाल उठाया और भागने लगा। उसके ज़हन में सिर्फ और सिर्फ लूसी थी। जब भी मन में बुरा ख्याल आता के क्या वो लूसी को बचा भी पाएगा या हमेशा के लिए खो देगा तो उसके सीने में सांस अटकने लगती और ऐसा महसूस होता के इस दुनिया से दूर कहीं ऐसी जगह चला जाए जहां उसकी लूसी की जान को कोई खतरा न हो और उसे सब से छुपा कर महफूज़ कर ले।
चिंता और बदहवासी में उसकी नज़र सिर्फ और सिर्फ रस्ते पर थी। कुछ ही आगे जा कर देखा तो अब सुरंग का रास्ता खत्म हो चुका था लेकिन बाहर जाने की कोई गुंजाइश नज़र नहीं आई, सामने रास्ता खत्म देख कर उसने उतावले पन में दो तीन लात दीवार पर जमाई और फिर चीखते चिल्लाते हुए बोलने लगा :" कमिने मैं तेरी चमड़ी उधेड़ कर कुत्तों को खिलाऊंगा अगर मेरी लूसी को तूने छुआ भी तो! छोडूंगा नहीं तुझे!...अगर मैं बाहर आ गया न तो तेरे हलक में हाथ डाल कर तेरा कलेजा निकलूंगा राक्षस!"
चीखते हुए अचानक उसकी नज़र बगल के दीवार पर पड़ी जो मशाल की लाल सी रौशनी में कुछ अलग सी दिखी। ऐसा लगा वो एक इंसान के निकलने भर तक की दीवार कच्ची है और हाल ही में उस पर मिट्टी लगाया गया है। वो थोड़ी सी ज़्यादा मटमैली भी दिख रही थी।
रोवन को उम्मीद की एक किरण मिली और उसने जी जान लगा कर उस दीवार पर लाट घुसे मारना शुरू किया।
मारते मारते उसके हाथों की चमड़ी फट कर खून निकलने लगा था लेकिन उसे न अपने ज़ख्मी होने की परवाह थी न खून बहने की। वो बस हार हाल में वहां से निकल कर लूसी के पास पहुंचना चाहता था।
कुछ देर बाद दीवार में दरारें पड़ने लगीं। अब रोवन को हिम्मत मिली और मन में आस जाग उठी तो उसने और ज़ोर लगाना शुरू किया।
इधर झुमकी झोंपड़ी के पास आ कर परेशान हुई जा रही थी के आखिर बिना अंदर जाए वो लूसी तक बंदूक कैसे पहुंचाए? उसने फूस के दीवार पर बने सुराख से झांक कर देखा तो उसके होश उड़ गए, ढोंगी बाबा ने लूसी के हाथ पैर को फिर से बांध दिया था। उसके मुंह पर भी कपड़ा ठूस कर बांध दिया था और वो अब भी बेहोश थी। उसके सर से खून बह कर गले तक चला गया है बल्के अब भी खून बह रहा है। शैतान बाबा अपने शक्तिशाली बनने की खुशी में एक कोने में बैठ कर बीड़ी फूंक रहा है।
झुमकी ये सब देख कर सोच में पड़ गई के अगर लूसी तक बंदूक पहुंचा भी दे तो कोई फायदा नहीं क्यों के वो तो बेहोश है। उसने एक बार सोचा के किसी लड़की के अंदर घुस कर इस काम को अंजाम दे लेकिन रात के समय न तो आसपास कोई इंसान था न ही दूर दूर तक कोई लड़की नज़र आ रही थी।
To be continued.......