समर पाँच साल का हो चुका था। गाँव की प्राथमिक शाला में उसका प्रवेश हो चुका था। उसका दोस्त मलिक उसके साथ ही था। वे दोनों नियमित शाला में जा रहे थे। शाला में प्रवेश हुए उन दोनों को सोलह दिन हो चुके थे। पहले तो समर को लगता था कि जैसे किसी ने भारी गठरी उनके ऊपर रख दी हो, मगर जैसे-जैसे दोस्त बनते गए वैसे-वैसे गठरी हल्की होती गई। उसने दृढ़ संकल्प बना ही लिया था कि पुलिस अफसर बनना ही है।
समर को हर रोज कक्षा का रंगमंच बदलता नज़र आ रहा था मगर एक ऐसा पात्र था जो उन्हें उसकी जगह पर स्थिर नज़र आ रहा था। अध्यापक कक्षा में ज़ब न हो तब कक्षा मस्ती का मैदान बन जाता था, किन्तु वह एक लड़का ख़ामोशी से सबको देखता रहता। न तो कोई उनसे बात करता न वो किसी से बात करता। चुपचाप शाला में आता और चुपचाप घर पर वापस चला जाता।
एक पाठशाला में छुट्टी मिलने के बाद समर और मलिक अपने घर लौट रहे थे। उन दोनों का घर पाठशाला से पाँच मिनट का रास्ता था। दोनों के पास किताब रखने के थैली थी, जो एक-दूसरे मारते हुए रास्ते पर चले जा रहे थे। उस वक्त समर की नज़र आगे जा रहे उस लड़के पर पड़ी जो कक्षा में खामोश बैठा रहता था।
मस्ती बंद करके समर ने उस लड़के की तरफ़ इशारा करते हुए मलिक से पूछा, “ईमान के बारे में तुम कुछ जानते हो? क्या वह पागल है?... हमेशा अकेले-अकेले बैठा रहता है।”
मलिक अपनी जगह पर ठहर गया और समर की बात पर चौंका। “उसके बारे तुम नहीं जानते?... उसका कोई दोस्त नहीं होगा। और होगा भी कैसे, जो एक मुसलमान ठहरा! उसका कोई दोस्त नहीं बनेगा।”
समर उस बात से मलिक के ऊपर चिढ़ गया, “क्यों नहीं बनेगा? मैं बनूँगा उसका दोस्त। कोई अगर तुम्हें अपना दोस्त नहीं बनाएगा तो तुम्हें कैसा लगेगा? दूसरों की तरफ़ उँगली तान से पहले एक बार अपनी तरफ़ उँगली तान कर देख लेना चाहिए।”
“ओह! तुम उस ईमान की वज़ह से मेरे साथ झगड़ा कर रहे हो। मैं तुम्हारी दोस्ती अच्छी तरह समझ गया हूँ।”
मलिक उससे दूर जाए उसके पहले समर ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया और माफ़ी भरे अंदाज में बोला, “मेरे राजा, तुम गलत सोच रहे हो। मैं तुमसे शिकायत नहीं कर रहा हूँ, बल्कि मैं तो तुम्हें समझा रहा हूँ,” उसने मलकित की चड्ढी के नाड़े का एक शिरा पकड़ लिया, “तूने मुझ पर गुस्सा किया तो मैं तुम्हारा नाड़ा खिंच लूंगा।” समर के साथ आसपास जा रहे बच्चे मलिक को देखकर हँसने लगे।
समर की हरकत से मलिक गुस्से में आ गया और बोला, “समर, नाड़ा छोड़ दो। तुम्हारा मज़ाक अब बढ़ता जा रहा है।”
“अरे! मेरे मना करने पर भी गुस्सा कर रहा है,” समर ज़ोर से नाड़ा खिंच लिया। चड्ढी पूरी तरह से सरक जाए उसके पहले मलिक ने चड्ढी संभाल ली। सभी बच्चे मलिक पर मुँह फाड़ कर हँसने लगे। समर हँसी के ठहाके लगाते हुए वहाँ से भागा, “शाम को मिलते हैं, मलिक।”
समर ईमान के पास पहुँचते ही उसके साथ चलने लगा। समर को अपने साथ चलते हुए देख उसने अपने कदम तेज़ करके आगे निकलने की कोशिश की। मगर समर ने भी हार नहीं मानी। वो भी उसके साथ कदम मिलाने लगा।
ईमान के पैर और तेज़ भागे उसके पहले समर बोला, “अरे धीरे चल राजा, वरना साँसे फूल जाएगी। इतनी जल्दी क्या है घर जाने की?”
ईमान से सख़्ती से कहा, “तुम मुझे अकेला छोड़ दो तो ही बेहतर होगा। मैं किसी से बात नहीं करना चाहता।”
“कोई खास वज़ह? मुझे लगता था कि तू खिसका हुआ है, मगर तू तो दूसरों के खिसका दे ऐसा है। जबान तो मानो तलवार की धार को काट रही हो।”
ईमान भड़क गया, “तुम समझ क्यों नहीं रहे हो। मैंने कहा न कि मेरा पीछा छोड़ दो। फिर भी तुम मेरे पीछे क्यों पड़े हो। अब तुम हमें शांति से जीने भी नहीं दोगे?”
सहसा समर की मस्ती खोर हँसी चूर-चूर हो गई। समर गंभीर होकर बोला, “यार, मैं तो तुम्हें अपना दोस्त बनाने आया था, लेकिन तुम तो मुझ पर भड़क गए। मुझे तुम पर यह उम्मीद नहीं थी।” इतना बोलते ही समर का गला भर आया। दिल पर एक घृणारूपी तीर चुभ गया था और वह लगातार खून के आँसू बहा रहा था।
समर को नर्वस देख कर वह ठहर गया और शांत स्वर में बोला, “तुम मेरी वज़ह से खुद को बदनाम क्यों कर रहे हो?”
“बदनाम?”
“मैं मुसलमान हूँ। तुम मुझसे दोस्ती करोगे तो सारे बच्चे तुम्हारा मज़ाक उड़ाएंगे। मैं नहीं चाहता कि मेरी वज़ह से किसी की बेइज्जती हो। हम दोनों तेल और पानी की तरह है जो कभी एक-दूसरे के साथ नहीं मिलते।”
“तुम ऐसा कैसे कह सकते हो?”
“लोगों ने तेल-पानी समझा है तो मैं क्या करूँ?”
“मगर मैं तो तुम्हें दूध समझ रहा हूँ। दोस्त न होने का दुख में समझता हूँ। मैं उम्मीद से दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा हूँ। दोस्ती ठुकराने का मतलब है कि मेरी इज्जत ठुकराना।”
“मगर-”
“मगर-वगर कुछ नहीं।
ईमान समर का आगे बढ़ा हुआ हाथ देखने लगा। कुछ देर सोचने के पश्चात उसने समर हाथ मिला लिया और समर के चेहरे पर मुस्कान छा गई।
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