सनातन - 3 अशोक असफल द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सनातन - 3

...मैं दिखने में प्रौढ़ और वेशभूषा से पंडित किस्म का आदमी हूँ इसलिए मीनाक्षी को मुझसे कोई वैसा भय नहीं, जैसा आम पुरुषों से होता है! इसके उलट मेरी आकर्षक सजधज- आधी बाँह का कुर्ता, किनारीदार पटका, गले में माला-दुशाला, उँगलियों में अँगूठियाँ, भाल पर तिलक, कंधों तक झूलते केश और क्लीन शेव्ड चहरा देख युवतियाँ तक प्रभावित हो जातीं। और मैं बोलता तब तो पुरुष भी सम्मोहित हो जाते। फर्श बुहारते अपने पटके का छोर सम्भाले जब छोटे-छोटे कदमों से मंच की ओर बढ़ता, जैसे कोई दुल्हन लहँगा उठाये स्टेज पर जाती है; नर-नारी सभी की नजरें जमी रह जातीं।

खाना खिलाने के बाद उसने हॉल में मेरा बिस्तर लगा दिया और खुद मुस्कराते हुए बेडरूम में चली गई।मैंने महसूस किया कि आज उसकी मुस्कान खासा महक रही थी। ...कामी पुरुषों को देखकर काम पीड़ित महिलाओं की मुस्कान महक उठती है, मुझे पता था।आज वह कल की अपेक्षा कहीं अधिक कमनीय, मृदुल और मेहरबान भी लग रही थी। सो, लेटते ही मैं मीठे दिवास्वप्न में खोया-खोया-सा सो गया। पर अभी पहली नींद भी पूरी न हुई थी कि बत्ती चली गई। और एसी बंद हो जाने से उमस के कारण आँख खुल गई तो अब नींद ही नहीं आ रही, इसलिए पेशाब भी बार-बार लग रही थी। मुझे पता था कि बाथरूम कॉमन है, उसका एक गेट हॉल में और दूसरा बेडरूम में खुलता है इसलिए आहट होती होगी और वह बार-बार जाग जाती होगी! लेकिन मैं कर भी क्या सकता था? गर्मी थी और एसी बंद। इन्वर्टर की बदौलत पंखा चल तो रहा था पर वह आरसीसी के इस घरौंदे की उमस से पार कैसे पाता! और नींद न आने का दूसरा कारण यह कि- मैं सोच रहा था, ऐसी सड़ी गर्मी में वह हॉल में ही लेटती होगी। क्योंकि हॉल तो फिर भी बालकनी से जुड़ा है, बेडरूम हॉल के अंदर। भयानक उमस के कारण नींद उसे भी तो नहीं आ रही होगी!इसी-लिए, कई बार सोचा कि बुला लाऊँ! पर इतनी हिम्मत कहाँ। एहतियातन पेशाब भी रोके हुए था। पर लगातार जागते रहने से बार-बार प्यास और जितनी बार प्यास उतनी ही बार पेशाब भी लगना लाज़िमी! बहरहाल, फिर इस बार पेशाब के लिए उठा तो वॉशरूम में पहुँचते ही चमत्कृत हो गया, क्योंकि बेडरूम की ओर खुलने वाला गेट हल्का-सा खुला था। अगर उसका डंडाला उधर से लगा होता तो वह चौखट में पूरा धँसा होता!लघुशंका उपरांत हिम्मत जुटा गेट तनिक ठेल कर देखा मैंने तो पहले से ज्यादा चमत्कृत हो रहा... क्योंकि उमस के कारण अपना गाउन उतार लिया था उसने सो फिल-वक्त नाइट लैंप के हल्के पीले उजास में बेड की हल्की नीली चादर पर अंडर गारमेंट शॉप की डमी-सी नमूदार हो रही थी...। वह सो रही थी अपने सुसज्जित कक्ष में या किसी शिवमंदिर में नंदी बनी बैठी उमस से जूझ रही थी, मेरे पास जानने का कोई उपाय न था। क्योंकि मेरी ओर उसकी पुश्त थी। इसलिए तमाम देर उसकी पुश्त ताकता सोचता रहा कि- गेट असावधानी में खुला छूट गया या उसने उमस से बचने खोल लिया या मुझे अवसर देने जानबूझ कर!  और दिमाग में इस तीसरे कयास के आते ही दिल में हलचल मच गई जो कि जल्द ही चुभन और फिर तीखी चुभन में बदल गई। तब गोया सर पर कफन बांध पूरा गेट खोल मानो हिमालय की दहलीज लांघ हसरतों के उस अन्तःपुर में दाखिल हो ही गया जो एवरेस्ट से भी ऊँचा लग रहा था! पर वह सचमुच सो रही थी। यह तो तब पता चला जब उसके सिरहाने की ओर गया। ...बेशक उसके उठे हुए नितंब मुझे आकर्षित कर रहे थे जिससे मेरी साँस धौंकनी की तरह चल रही थी, पर किसी सोती हुई पराई स्त्री को प्रणय के लिए उकसाना तो जिंदा बम को डिसफ्यूज करने जैसा खतरनाक काम था! भय के कारण मेरी हिम्मत नहीं पड़ी। फिर मानवीय दृष्टि से यह भी सोचा कि उमस के कारण जब उसने अपने कपड़े उतार लिए और केवल अंडर गारमेंट्स में रह गई तब उसे नींद आई, तो इस नींद से जगाना उसके साथ अन्याय होगा। कहावत के मुताबिक सोते को जगाना और खाते को मारना पाप की श्रेणी में आता है! यही सोच मेरी उत्तेजना शिथिलता में बदल गई। फिर भी रूप का लोभी मन उसकी आकर्षक देहयष्टि को अपने भीतर उतार कर ही बेडरूम का गेट खोल हॉल में लाया, मुझे। और फिर दया ने गेट बंद नहीं करने दिया ताकि बालकनी से आती कुछ तो ताजा हवा उसे मिले और वह बदस्तूर सोती रहे।इसके बाद मुझे आसानी से नींद आ गई। रात में देर से सोया फिर भी सुबह मैं उससे पहले उठ गया और गेट जैसे खोला था वैसे ही बेडरूम में जाकर अंदर से बंद कर वॉशरूम में गया और बेडरूम की ओर खुलने वाला उसका दरवाजा भेड़ दिया तथा बाहर निकल अपनी ओर से यानी हॉल की तरफ से डंडाला लगा दिया।मैं जानता हूँ, खासा उत्तेजना के बावजूद मुझे एकदम नींद क्यों आ गई? दरअसल, पुरुष की इच्छाएँ आग की तरह हैं जो उसके जननांगों से उठकर मस्तिष्क की तरफ़ जाती हैं। आग की तरह वह बहुत तेजी से भड़क तो उठता है पर उतनी ही आसानी से बुझ भी जाता है। वह जब तक जागी, मैं नहा-धो चुका था और पूजा की तैयारी कर रहा था। लेकिन ध्यान उसकी आहट पर लगा था जो वॉशरूम में जा, फिर बेडरूम में लौटी और फिर बेडरूम का हॉल की ओर खुलने वाला गेट खोल निकली और मुस्कुराती हुई किचेन में चली गई। जहाँ से थोड़ी देर में चाय पकने की गंध आने लगी। मेरे लिए यह कोई बाध्यता नहीं कि पूजा से पहले चाय न पियूँ। इसलिए उसने एक प्याली गरम-गरम चाय लाकर दी तो मैंने मुस्कुराते हुए शुक्रिया अदा कर उसे ले लिया और पीने लगा। वह भी मुस्कुराते हुए वहीं बैठ गई और चाय शिप करती रही। इस बीच मैंने कहा कि- रात को बत्ती चली गई थी और एसी बंद हो गया था... बड़ी उमस थी! मेरे कारण तुम्हें कितनी तकलीफ उठाना पड़ रही है, नहीं तो हॉल में आकर सो जातीं। यहाँ बालकनी से कुछ तो ताजा हवा आती ही!'उसने कहा, 'चिंता के लिए आपका शुक्रिया! पर आपके यहाँ रहने की यह कोई ज्यादा कीमत नहीं है...'कहकर वह मुस्कुराई और फिर उठकर चली गई। ...मैं जानता था कि उसके दिल में मेरे लिए ऐसे ही धीरे-धीरे जगह बनेगी। प्रसन्न मन सुंदरकाण्ड करने लगा। मैं जितनी देर सुंदरकाण्ड करता इतनी देर लगातार घंटी बजाता और मैं खड़ा होकर पाठ करता तो उसमें लीन हो जाता। इस बीच कई बार वह आई-गई। मुझे देख-देख मुतासिर हुई, ऐसा पाठ करने के दौरान भी मन में सोचता मैं पुलकित होता रहा। पाठ खत्म हो गया तो मैंने कल की तरह तुलसी-चीनी मिश्रित दूध प्रसादी उसे जाकर दी। और उसने हँसती आँखों से हथेली आगे बढ़ा उसे ले लिया, फिर आँखें मूँद भगवान को अर्पित कर पी लिया और फिर हथेली जीभ से चाट ली और बस इसी दृश्य से मैं फिर उत्तेजित होने लगा।मैं जानता हूँ कि औरत की इच्छाएँ पानी की तरह हैं जो उसके सिर से शुरू होकर नीचे की तरफ़ जाती हैं। उनको जगाने में कुछ ज्यादा ही वक्त लगता है। पर एक बार जागने के बाद उन्हें ठंडा होने में भी खासा वक्त लगता है...।भोजन के बाद मैंने दो घंटे विश्राम किया। यह तो कल ही डिसाइड हो गया था कि प्रवचन अब एक ही वक्त रखा जाएगा; अपराह्न में, न दोपहर और न शाम को। सो जब जागा तब वह कैनवास पर कोई चित्र उकेर रही थी। यह उसका शौक था या समय पास करने का तरीका अथवा अपने आप को रचनात्मक बनाए रखने का जतन। जो भी हो पर यह ठीक था कि वह मोबाइल में नहीं उलझती, किसी से गपशप नहीं करती, इधर-उधर किटी पार्टी के लिए नहीं जाती। बस अपने मन से मन में ही रमण करती रहती।

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