सनातन - 2 अशोक असफल द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सनातन - 2


(2)

घर उसका एक 1 बीएचके फ्लैट था। उसमें एक हॉल और एक ही बेडरूम था। हॉल से एक तरफ बेडरूम जुड़ा था तो दूसरी ओर किचेन। और किचेन से बॉलकनी। जबकि वॉशरूम कॉमन था। उसका एक दरवाजा हॉल में खुलता तो दूसरा बेडरूम में।

शाम को हॉल में दो घंटे के लिए प्रवचन-कार्यक्रम रखा गया। उसने अपनी मल्टी में कुछ को सूचित कर दिया था। इस तरह आठ-दस लोग वहाँ आकर बैठ गए।

उस पहले दिन के कथा-प्रवचन में मैंने आत्मा और परमात्मा की रिलेशनशिप की चौंकाने वाली कथा कही। मैंने उन्हें बताया कि कैसे आत्मा प्रेयसी है और परमात्मा प्रेमी। वे एक-दूसरे के बिना नहीं रहते क्योंकि वे अभिन्न हैं। और उन्हीं के संयोग से जड़-चेतन की उत्पत्ति हुई है। प्रकृति उन्हीं की ऊर्जा से संचालित है। समूचा प्राणी-जगत उन्हीं से प्राणवान और एक-दूसरे के प्रति आकर्षित। 

इस अवसर पर मैंने एक गीत भी गाया :

तुम गगन के चंद्रमा हो, मैं धरा की धूल हूँ

तुम प्रणय के देवता हो, मैं समर्पित फूल हूँ

तुम हो पूजा मैं पुजारी, तुम सुधा मैं प्यास हूँ...

तो एक समां-सा बंध गया। औरतें नाचने लगीं, पुरुष भाव-विभोर हो गए। 

तब मैंने आगे कहा, दरअसल, नायिका के ऐसे समर्पण के बाद नायक भी इस तुलना में अपना सर्वस्व लुटाना चाहता है। वह भी कहता है कि तुम मेरी पूजा हो और मैं तुम्हारा पुजारी हूँ। तुम अमृत हो और मैं प्यास हूँ...। 

जब सब लोग चले गए तो मीनाक्षी ने मेरी घोर भर्त्सना करते हुए कहा, 'वास्तव में आप गजब के पाखंडी हैं! भीतर से धर्म विरोधी होते हुए भी खुद को वेदांती सिद्ध करने पर तुले हुए। पर मैंने भी आपको बदलने का बीड़ा उठा लिया है तो फिर बदल कर ही रहूँगी।'

मैंने कहा, 'मुझे वह चुनौती स्वीकार है। पर तुम इस सत्य को नहीं नकार सकतीं कि प्रेम में डूबा कोई व्यक्ति शून्य में विचरण करेगा ही। उसके पास कहने ओर सुनने के लिए शब्दों का अभाव हो ही जाएगा। यही अभाव प्रेम के गहरे होने की निशानी है। एक ऐसे प्रेम की जिसमें मन की उत्कंठा साथी के नाम पर शुरू और साथी पर ही खतम हो जाए।'

इस पर वह व्यंग्य से बोली, 'यह तो अध्यात्म में ही संभव है और आप कोई स्प्रिचुअल लाइफ नहीं जी रहे, उसका नाटक कर रहे हैं! हकीकत में ऐसी तुलना दोनों को ही शक्ति देती है कि अब वह एक-दूसरे के पूरक हो जाएँ! तभी यह तुलना रूहानी हो सकेगी। रूहानी होने पर यह प्रेम अन्य लोगों पर बिखर सकेगा, आपकी नाटकबाजी तक सीमित नहीं रहेगा...।'

मैंने देखा, वह बोलती तो शब्दों को चबा-चबा कर बोलती और बोलते वक्त ओठ गोल कर लेती। मूक रहने पर उनमें स्पंदन होने लगता, लब अनायास खुल जाते। उन पर कुछ गीलापन व तरलता भी आ जाती। 

मुझे सामुद्रिक शास्त्र का पर्याप्त ज्ञान था, इसलिए जानता था कि ऐसे ओठों वाली स्त्री यदि मेहरबान हो जाय तो पुरुष को उत्तम कामसुख देने में हिचकती नहीं। 

बहरहाल, भोजन कराके वह गेट चौकस मूँद बेडरूम में कैद हो गई। और मैं इस कामना में आँखें मूँदकर सो गया कि आज नहीं तो कल ईश्वर करें, वह खुद ही मुझे रतिदान देने आमादा हो जाय! मैं उसकी फिगर इमेज पर बेशक लट्टू हो चुका था। और यह तो मैंने दिन में ही पता कर लिया था कि पति विदेश में है तो वह बरसों से निपट एकाकी जीवन जी रही है। जिसे ये तथाकथित धार्मिक, राजनैतिक दल अपने मतलब के लिए गाहे-बगाहे उपयोग करते रहते हैं।

सुबह उठकर नित्य की भाँति मैंने दीपक जगा और उसके सम्मुख एक घण्टे खड़े रहकर घण्टी बजाते हुए सुंदरकाण्ड किया जो कि मुझे कंठस्थ था। किचेन और बालकनी में आते-जाते मीनाक्षी मुझे कई बार कौतूहल-वश देख गई। और मैं मन ही मन प्रमुदित कि उस पर असर हो रहा है...! बाद पूजा के मन ही मन गुनगुनाते, ‘उठेगी तुम्हारी नजर धीरे-धीरे...’ मैं उसे प्रसाद देने पहुँचा तो उसने बड़ी श्रद्धा से हथेली की कटोरी बना आगे करदी, जिसमें मैंने चीनी और तुलसीदल मिश्रित दो चम्मच दूध-परदादी डाल दी, और वह बड़े भक्तिभाव से आँख मूँद ईश्वर को अर्पित कर पी गई फिर हथेली जीभ से चाट ली तो इसे शुभशकुन मान मेरा हृदय गदगद हो गया।

दोपहर में भोजन कर मैंने दो घण्टे विश्राम किया। ढाई-तीन बजे उठकर देखा तो पाया, सिर के कड़क से स्याह बाल पीछे की ओर खींचकर बांधे वह कैनवास पर चित्र उकेर रही थी। 

मुझ पर नजर पड़ी तो जागा हुआ जान पूछा, 'चाय दूँ?' और मैंने 'हांजी' बोला तो उठकर बाथरूम में चली गई। 

देर तक नल चलने की आवाज आती रही, फिर बंद हो गई। और फिर बाथरूम का भीतर की ओर खुलने वाला गेट खुला और वह शायद बेडरूम में चली गई। जहाँ से थोड़ी देर बाद बदली हुई मैक्सी में और बाल तौलिए में लपेटे निकली और मेरी ओर तिरछी नजरें फेंकती किचेन में घुस गई। 

उसकी बेधक दृष्टि से घायल मैं कुछ समय के लिए मदहोश-सा हो गया। फिर कुछेक देर में किचेन से चाय पकने की गंध आने लगी। 

शाम को कथा-प्रवचन मैंने एक गीत से आरम्भ किया : धूप खिल गई रात में/ या बिजली गिरी बरसात में/ हाय तबस्सुम तेरा ...

और सम्मुख बैठे श्रोता मुँहबाए रह गए तो बोला, जीवन की समस्याएँ क्षण भर के लिए आपको परेशान करना बंद कर देती हैं... और आपको एहसास होता है कि- जीवन में बहुत अधिक सुंदरता और अर्थ है!

सुनकर सभी मंत्रमुग्ध। और फिर मैंने सीता और राम के मध्य के घनीभूत प्रेम और उसके घटक संयोग-वियोग की ऐसी मर्मस्पर्शी कथा कही कि वे भावविभोर हो गए। जबकि मीनाक्षी के ओठ और गाल समेत पूरे चेहरे की लालिमा बढ़ गई। वह मुझे बार-बार निहार भी रही थी। उसकी आँखों के गोलक और भी तरल हो गए जो सदा तरल बने रहते! और तब लगा कि वह सचमुच प्यासी है, एक चिर पिपासित अतृप्त आत्मा। जो नाहक भटकती है- पंडालों, आँदोलनों, और बे-सिर-पैर की यात्राओं में।

अंतर के सोच-विचार और मुख से निसृत कथा-प्रवचन में दो घण्टे कब बीत गए, पता नहीं चला।

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