अनुच्छेद-सात
क्या छोटे बच्चे रामजी होते हैं?
मनु का बिस्तर साफ है। माँ उसको साफ रखने के लिए निरन्तर कुछ न कुछ करती रहती है। एक चद्दर ओढ़े मनु लेटी हुई है। उसके दाएँ किनारे एक गुलाबी रंग की रोयेंदार तौलिया तह करके रखी है। पापा चारपाई से स्टूल सटाकर बैठे हैं। मनु की आँखें बंद हैं। साँस धीरे-धीरे चल रही है। पिता की आँखों में भी मनु के स्वस्थ होने का स्वप्न उग रहा है। उनका भी मन उड़ान भरता है। जरूर अच्छी हो जाएगी मनु। यह विश्वास उन्हें प्रफुल्लता देता है। दो-चार दिन में ठीक हो जाएगी मनु। इसे घर ले चलेंगे। उसी तरह फुदकेगी, चहकेगी जैसे पहले चहकती थी। रूपये चाहे ज्यादा ही लग जाएँ पर वह अच्छी हो जाए। घर की खुशी लौटाने का एक माध्यम है वह। अगर कहीं कुछ हो जाएगा तब तो पहाड़ टूट पड़ेगा। कैसे बर्दाश्त करेगा कोई? माँ, दादी सभी के प्राण तो इसी में बसते हैं। इसका चहकना कितना जरूरी है? यह प्रश्न बार-बार उनके दिमाग में भी कौंध जाता है।
भगवान भी शायद सब देखते हैं। उन्हें पता है कि मनु का रहना कितना आवश्यक है? पर भगवान को भी निस्संग होते देखा जाता है। तटस्थ भाव से, साक्षी भाव से वे भी देखते हैं क्या? संवेदनाएँ उन्हें चिन्तित नहीं बनातीं। कुछ भी हो भगवान को भी थोड़ा सोचना होगा ही। मनु के लिए उन्हें कुछ रियायत देनी ही होगी। 'हे भगवान' उनके मुख से निकलता है। उन्हें लगता है जैसे भगवान स्वयं आकर हाल-चाल पूछते हैं, दवाइयों का निर्देश देते हैं। पर देखो क्या होता है?
मनु की माँ स्वयं नहाने-धोने के लिए गई है। मनु की देखरेख में उसका पूरा समय बीत जाता है। किसी तरह नहाने कपड़े धोने का समय निकालती है। आखिर कौन करेगा? किसी को बुलाया भी नहीं है उसने। समय की गाड़ी खिंच रही है। सुबह के सात बज रहे हैं। फिर वही सफाई कर्मियों की हलचल, झाडू-पोंछा की धीमी आवाज। अभी मनु की आँखें बंद है। वह सो रही है। हो सकता है कोई स्वप्न देख रही हो। तभी तो नहीं जग पाई है। रोज पहले ही जग जाती थी। सफाईकर्मियों को सफाई करते देख कभी कभी सोचती थी कि घर पर चलकर हम भी ऐसे ही कमरों को साफ करेंगे। फर्श को खूब रगड़कर पोंछा लगा देंगे। फर्श चमक जाएगी। उसने घर पर झाडू लगाना सीख लिया है। बहुत करीने से झाडू लगाती है। कोने अंतरे में भी कहीं धूल रह न जाए इसका ध्यान रखती है। पर आज उसकी नींद अधिक गहरी है। उसके पापा बैठे हुए उसके चेहरे को देखते हैं किन्तु उनका दिमाग भी उड़ान भर रहा है। वे मनु के बारे में ही सोचते हैं। स्वस्थ हो जाने के बाद मनु के लिए क्या करना है कि मनु बीमार न पड़े। वह हमेशा स्वस्थ रहे। छत से लगा पंखा उसी गति से चल रहा है जैसा वह चलता आया है। कभी कभी जरूर थोड़ी सी गति तेज होती है पर तुरन्त सामान्य हो जाती है। मनु की आँख धीरे से खुल जाती है। पिता का चेहरा भी प्रसन्नता से दीप्त हो उठता है। वे मनु से पूछते हैं' तबियत ठीक है न'। 'हाँ पापा' मनु उत्तर देती है। पापा छोटी तौलिया से मनु का चेहरा साफ करते हैं। तौलिया को थोड़ा भिगोकर धीरे-धीरे मस्तक, गालों पर रगड़ते हैं। सफाईकर्मी झाडू-पोंछा लगाकर कक्ष से बाहर हो गए हैं। मनु की नजरें उन्हें ढूँढ़ती हैं ' क्या सफाई करने वाले चले गए'? मनु पूछती है। 'हाँ', पिता उत्तर देते हैं। तब तो मैं आज देर तक सोती रही। 'माँ कहाँ है पापा?' 'माँ नहाने गई है, आती ही होगी।' 'माँ को समझाते रहना पापा, वे बहुत दुखी रहती हैं। बच्चे बीमार पड़ते ही हैं। कोई मनु ही बीमार थोड़े पड़ी है। हर कोई बीमार पड़ता है। पापा आप जब बीमार हुए थे तो अच्छे हो गए थे न? बाबा भी ठीक हो गए थे। मैं भी स्वस्थ हो जाऊँगी।
जो बीमार होता है, स्वस्थ भी हो जाता है। स्कूल में भी एक बार डॉक्टर आए थे न? उन्होंने कहा था मनु तुम हरी सब्जियाँ खाया करो। अब चलूँगीं तो हरी सब्जियाँ ही खाऊँगीं, आलू बिल्कुल नहीं। हरी सब्जियाँ खाकर स्वस्थ हो जाऊँगी फिर बीमार नहीं पहूँगीं। बाबा से कह दूँगी, 'बाबा, हरी सब्जियाँ ही लाया करो।' मैं उनके साथ जाकर खुद भी ले आऊँगीं। स्वस्थ रहने के लिए तो यह सब करना ही पड़ेगा।
पापा, देखो वह बच्ची बहुत कमजोर है। बच जाएगी न वह ! उसका तो हड्डियों का ढाँचा ही रह गया है। उसके शरीर पर मांस कैसे चढ़ेगा पापा ? बहुत दुःखी होंगे उसके माँ-बाप भी। मैं तो अभी उतनी कमजोर नहीं हूँ। भगवान जी उसे भी ठीक कर दें। वह भी खेलने-कूदने लायक हो जाए। फिर तो उसकी भी गाड़ी चल निकलेगी। मैं उससे कहूँगी हरी सब्जियाँ खाया करो। उसकी माँ से भी कह दूँगीं। बच्चे स्वस्थ रहते हैं तो अच्छा लगता है। बाबा की एक कविता है-
'सोन चिरैया माँ कहती थी' बहुत अच्छी लगती है मुझे यह। बच्चे चिड़ियों की तरह फुदकते हैं। उन्हीं की तरह चहचहाते हैं। बाबा कभी-कभी कहते थे, "चहचहाना बन्द" और हम लोग थोड़ी देर के लिए चुप हो जाते थे। पर ज्यादा देर चुप कहाँ रह पाते थे? दो मिनट बाद ही फिर चहचहाना शुरू। बच्चों के साथ बैठकर तरह-तरह की बातें। खेलकूद में जरा जरा सी बात पर बहस। बच्चों का संसार ही अलग है।' मनु अपने उसी संसार में खो जाती है।
पंखा उसी गति से चल रहा है। मनु की आँखें फिर चलते हुए पंखे पर पड़ती है। बिजली मिलेगी तो पंखा चलेगा ही। भगवान जी चाहेंगे तो बच्चे स्वस्थ होंगे ही। चाहना ही पड़ेगा उन्हें और चारा ही क्या है? भगवानजी, सभी बच्चों को स्वस्थ कर देना। अकेले स्वस्थ होने में कोई खुशी नहीं होती। सभी स्वस्थ हो जाएँगे तो खूब मजा आएगा। हँसते-खेलते हुए बच्चे घर लौटेंगे। घर भी चहक उठेगा। चहकता हुआ घर तुम्हें अच्छा लगता है भगवान जी?'
मनु की माँ नहा धोकर आ जाती है। माँ को देखते ही मनु के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव उभर आते हैं। बहुत अच्छा किया माँ। नहाना धोना तो करना ही है। अगर कई दिन यहाँ पड़े रहना है तो फिर बिना नहाए धोए कोई कैसे रहेगा? आज तेरा चेहरा बहुत अच्छा लगता है माँ। तू खुश है न । खुश रहने पर तेरा चेहरा बहुत अच्छा लगता है। तेरी खुशी देखकर मुझे भी बहुत खुशी होती है और तब मेरा चेहरा भी बहुत सुन्दर लगता होगा। तू कहती है कि मेरी आँखें बड़ी हैं। तू ही कहती है बड़ी आँखें अच्छी लगती हैं। तो मेरी आँखें अच्छी लगती होंगी न? यहाँ से लौटूंगी तो बड़े वाले शीशे के सामने खड़े होकर अपनी आँखें देखूँगीं। फिर मुस्कराऊँगी। पलकों पर उँगली फेरूँगी। डॉक्टर कहते हैं कि पलकों की मालिश करनी चाहिए। धीरे-धीरे पलकों को सहलाऊँगी। अच्छी, बड़ी आँखों से बच्चों का चेहरा खिल जाता है न? लौट कर चलूँगी तो आँखों का एक चित्र बनाऊँगी। भगवान जी की भी आँखें अच्छी लगती हैं न? उनकी आँखों का भी एक चित्र बना दूँगी। भगवानजी को वह चित्र देते हुए कहूँगीं कि तुमने मुझे स्वस्थ कर दिया तो उसके बदले मैं आपका चित्र बनाकर दे रही हूँ। इसे स्वीकार करो और तब लेन-देन बराबर हो जाएगा न?'
'लेन-देन बराबर हो गया?' जैसे भगवान मनु के सामने खड़े हों। वह उनसे पूछ रही है। मनु आज कुछ अधिक प्रफुल्लित दिखती है। कहती है-'पापा अब मैं ठीक हो जाऊँगी। मेरा चेहरा देखो पापा। उसकी चमक तो लौट आई है। बाबा को फोनकर दो कि मैं ठीक हो रही हूँ, चाचू को भी। अब नहीं लगता कि कोई दिक्कत आएगी। साँस भी ठीक है न? कुछ भी तो गड़बड़ नहीं लगता। मेरी आवाज तो ठीक है न ? डॉक्टर चाचू को धन्यवाद दूँगी इसके लिए। उन्होंने बड़ी मेहनत की। उनकी मेहनत का परिणाम अच्छा होगा ही। बाबा और पुलिस बाबा इस समय टहलकर लौट आए होंगे। दोनों चाय पीते हुए सोच रहे होंगे कि मनु ठीक हो रही है। पापा आज बिल्कुल कोई तकलीफ नहीं है। बिल्कुल निश्चिन्त होकर जाओ, मम्मी तुम भी। हम फिर लौटेंगे घर। फिर खेलेंगे छिपी-छिपान। बच्चों को इकट्ठा करेंगे, चिड़ियों की तरह चहचहाएँगे। घर पर कोई आएगा तो उसे आदर से बिठाएँगे, पानी पिलाएँगे। मम्मी अब जब लौटेंगे, अधिक ताकतवर होकर लौटेंगे। खूब दौड़ेंगे, खेलेंगे और पढ़ेंगे। कम्प्यूटर पर अपने पैड पर लिखेंगे- अब हम आ गए हैं। हमारा स्वास्थ्य ठीक हो गया है। बाबा से कहेंगे कि इण्टरनेट जुड़वा दें। बहुत जल्दी हम लोग इण्टरनेट पर काम करने लगेंगे। मम्मी, जो कुछ हम लिखेंगे उसे इण्टरनेट पर डाल देंगे दुनिया के बहुत से बच्चे उसे पढ़ेंगे। वे भी उसका जवाब भेजेंगे, कितना मजा आएगा तब? एक ब्लाग बनाऊँगी। दुनिया भर के बच्चे उसे पढ़ेंगे।
मम्मी, मेरी आँखों में देखो बिल्कुल ठीक हो रही हूँ मैं। चेहरे से पता चल जाता है न? मेरा चेहरा देखो। तुम्हें पता चल जाएगा कि मैं तेजी से ठीक हो रही हूँ। अब बिल्कुल देर नहीं है। इस कमरे से हमें छुट्टी मिल जाएगी। इस बिस्तर पर अब लेटना नहीं पड़ेगा माँ। यहाँ पड़े-पड़े उकता रही हूँ मैं। अस्पताल से छुट्टी होने पर बच्चे खुश होते हैं न? मेरी खुशी का भी दिन नजदीक आ गया है। माँ तू थोड़ा हँस दे। मैं तुझे हँसाना चाहती हूँ। हँसने से आदमी स्वस्थ हो जाता है न ? देखो मेरी साँस बिल्कुल सामान्य है। पापा, डॉक्टर चाचू आएँगे तो उनसे समझ लेना कि आगे क्या करना होगा। जब यहाँ से छुट्टी हो जाएगी तब भी तो कुछ न कुछ सावधानी तो बरतनी ही होगी। अपनी छोटी सी डायरी में साफ-साफ सब लिख लेना। मैं स्वयं पढ़कर उसके अनुसार स्वयं को सँभाल लूँगी। अब मैं बहुत छोटी बच्ची नहीं हूँ।
मम्मी, तेरी खुशी लौट आएगी। थोड़ा हँस दे तो मैं भी हँस पडूं। एक आदमी हँसता है तो दूसरे को भी हँसी आ जाती है। चलो मैं ही पहले हँस देती हूँ। तुम भी मुस्कराओ न ? तेरा मुस्कराना बहुत अच्छा लगता है माँ। तू हँसती है तो बहुत अच्छा लगता है। रोने से चेहरा बिगड़ जाता है न ? अब रोना मत। हमेशा हँसते रहना। सभी तो कहते हैं- हँसते-हँसते ज़िन्दगी बितानी चाहिए। मैंने बहुत कष्ट दिया न तुझे। इसीलिए तेरी खुशी लौटाना चाहती हूँ। इस बिस्तर को छोड़ चलेंगे हम लोग। पापा, आप भी बहुत परेशान होते हैं। यहाँ से चलने पर थोड़ा आराम मिलेगा न ? अस्पताल का बिस्तर ही ऐसा होता है। जब भी इससे छुट्टी मिलती है, बच्चे खुश होते हैं। आज मैं भी बहुत खुश हूँ। शरीर हल्का हो गया है। हल्का शरीर उड़ सकता है न ? परियों की उड़ने की कहानियाँ क्यों अच्छी लगती हैं माँ ? तेरा मुस्कराना क्यों रुक गया ? माँ तेरा मुस्कराता चेहरा ही अच्छा लगता है। दुःख को दूर भगा दो। भगवानजी का चित्र देखा है ? हमेशा मुस्कराते रहते हैं। मैं एक बार रामजी का चित्र बना रही थी। गलती से मैंने उनकी मूँछे बना दीं। चेहरा जरा रौबदार और गुस्से से भरा बन गया। फिर क्या हुआ मम्मी ? वह चित्र रामजी का नहीं, रावण का लगने लगा। कैसी अजीब बात है? रामजी बनाते-बनाते मैं रावण बना बैठी। मैंने बहुत कोशिश की कि वह चित्र रामजी का ही लगे लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। मम्मी, क्या हर चित्र में रामजी और रावण दोनों होते हैं ?
सोचती हूँ स्टिकर से रावण का चित्र बनाने की कोशिश करूँगी। जब बन जाएगा तो उसकी मूँछे हटा दूँगी। उसके गुस्सेवर चेहरे को बिल्कुल शान्त चेहरा बनाऊँगी और देखूँगी क्या सचमुच रामजी बन जाते हैं ? मम्मी जो गुस्से में होता है, क्या रावण हो जाता है ? जो मुस्कराता रहता है वह क्या रामजी हो जाता है ? एक ही आदमी में क्या राम और रावण दोनों होते हैं ? गाँव पर जो रामलीला लोग करते हैं, उसमें जो बच्चे राम का काम करते हैं, कुछ बड़े होने पर वही रावण बन जाते हैं। क्या छोटे बच्चे रामजी होते हैं ? बड़े होते ही लोग रावण हो जाते हैं ? तभी तो छोटे बच्चे रामजी बनते हैं, बड़े लोग रावण बनते हैं। मैं कुछ जान नहीं पाती माँ। तू कहती है बड़ी होऊँगी तब समझ पाऊँगी। मम्मी, रामजी होना अच्छा होता है कि रावण बनना ? रावण जब तलवार घुमाता है तो बड़ा डर लगता है माँ। छोटे से रामजी तीर से उसका सामना करते हैं। लगता है राम जी अब गए, तब गए। पर रामजी का तीर भी कुछ कम नहीं होता। रावण के पेट में लगते ही वह चित हो जाता हैं। नंगे पांवों से राम चलकर रावण के पास आते हैं। उसे बेहोश देखते हैं। मैं तो समझती थी बड़ा मुश्किल होगा राम के लिए जीत पाना। बन्दर-भालुओं की उनकी सेना। पर रामजी के तीर सचमुच ऐसा काम कर जाते हैं जिस पर जल्दी विश्वास नहीं होता। रावण की सारी सेना हार जाती है और राम पैदल चलते हुए जीत जाते हैं। देवताओं की ओर से उन्हें रथ दिया गया था लेकिन वह भी अन्त में। सारी लड़ाई तो वह नंगे पाँव लड़ते रहे। रामजी भी तो हमेशा हँसते रहते हैं। मैं भी हँस रही हूँ माँ। आज हँसी का दिन है। तुम भी मुस्कराओ, हँसो दुःख को दूर भगाओ माँ। मुस्कराने से आदमी रामजी बन जाता है।'