मनस्वी - भाग 6 Dr. Suryapal Singh द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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मनस्वी - भाग 6

अनुच्छेद-छह
                       तुम खुश रहो माँ

बच्चों के उस आपात् कक्ष में कई बच्चे लेटे हैं। उनके माँ बाप इधर उधर भागते हुए दिखते हैं। हर एक के माता-पिता यही आशा लगाए हुए हैं कि उनका बच्चा स्वस्थ हो जाएगा। डॉक्टर भी अन्त तक आशा बँधाते हैं। अचानक जब किसी की डोरी कट जाती है, वे भी मौन हो जाते हैं। कहते हैं, यही भगवान की इच्छा थी। जिसके बारे में हम कुछ नहीं कर सकते, उसे भगवान पर छोड़ देते हैं। डॉक्टर भी यही कहते हैं ऊपर वाले पर किसी का वश नहीं। अब भी चिकित्सा विज्ञान मौत को रोक नहीं पाया है। इसीलिए लोग कहते हैं- सबकी दवा होती है पर मौत की दवा नहीं होती। मौत किसी बहाने आ ही जाती है। कोई सड़क पर साइकिल से गिर जाता है और ईश्वर को प्यारा हो जाता है। कोई आम, जामुन के पेड़ से गिर पड़ता है, कभी बच जाता है, कभी भगवान उसे अपने पास बुला लेते हैं। भगवान कब किसको बुला लें, किसी को कोई पता नहीं। जो भगवान को नहीं मानते वे भी मौत के कारण की तलाश करते ही रह जाते हैं। जब कारण उनकी पहुँच में नहीं रहता तब उसे प्रकृति का विधान मानकर चुप हो जाते हैं।
              इस आपात् कक्ष के बिस्तरों पर जो बच्चे लेटे हैं, वे सभी उठकर खेलने लायक हो पायेंगे या नहीं, इसे कौन बताए? डॉक्टर भी एक सीमा तक ही सब कुछ बताते हैं, फिर उन्हें भी कहना पड़ता है अब हम लोगों का वश नहीं है, भगवान से प्रार्थना करिए। भगवान भी कभी सुन लेते हैं तो बच्चा ठीक हो जाता है। कभी नहीं सुन पाते या सुनना ही नहीं चाहते तो बच्चा इस संसार को छोड़ जाता है। पर आदमी कहाँ सोचता है? ज़िन्दगी भर तो वह अहंकार में डूबा रहता है। 'मैं हूँ' यही भाव उसे परेशान करता है। श्मशान पर ज्ञान की बातें सुनी जाती हैं। वह जीवन की निरर्थकता का पाठ पढ़ाता है। हर आदमी सार्थक जीवन जीने की कोशिश करता है। चार्वाक् भी कहते रहे, 'जब तक जियो सुख से जियो।' इस सुख की खोज में ही तो आदमी जीवन भर भागता है। मनु एक दिन एक किताब पढ़ रही थी। उसमें पढ़ा 'जब तक जियो सुख से जियो'। उसने पूछ लिया 'बाबा यह सुख क्या होता है?' मनु अभी छोटी है। उसको बाबा ने यही बताया कि जिससे खुशी मिले वही सुख है जिससे तकलीफ हो वही दुःख है। पर मनु कहाँ चुप रहने वाली थी। 'बाबा हम जिसमें खुश होते हैं, उसमें किसी को तकलीफ भी तो हो सकती है। हम किसी चिड़िया को पकड़कर नचाना चाहते हैं; उसे बाँध लेते हैं। क्या उसे तकलीफ नहीं होती? इसे क्या कहेंगे बाबा? मुझे खुशी होती है और उसे तो दुख। ऐसा क्यों होता है बाबा? एक आदमी की खुशी दूसरे के दुःख का कारण बन जाती है, ऐसा क्यों होता है? दुनिया में बहुत से काम किसी को खुशी देते हैं किसी को तकलीफ। तब हम सबको खुश कैसे बना सकते हैं?' 'तुम्हारा प्रश्न बहुत टेढ़ा है। सबको खुश रखना एक मुश्किल काम है लेकिन ऐसी कोशिश करनी चाहिए कि लोग खुश रहें।' मनु चुप नहीं होती, पूछ लेती है, 'बाबा क्या हम लोग चाहें तो सबको खुश रख सकते हैं?' बाबा बोल पड़ते हैं, 'ऐसा करना संभव है पर प्रायः होता नहीं।' आज आपात् कक्ष में बिस्तर पर लेटी हुई मनु यही सब सोच रही है। बाबा यहाँ नहीं हैं जिससे सवालों का उत्तर पूछे, पर सवाल तो मन में उठते ही हैं। गौतम बुद्ध को रोग नहीं हुआ था। वह बिस्तर पर नहीं लेटे थे। रोगी को देखकर उन्होंने घर छोड़ दिया था। क्या घर छोड़ देने से सभी सुखी हो सकते हैं? गौतम जी ने तपस्या की थी। उन्होंने कष्टों से मुक्ति का मार्ग खोजा। मेरी किताब में ऐसा लिखा है। लेकिन मैं बीमार क्यों पड़ी? रोग से छुट्टी नहीं पा सकी। गौतम जी होते तो मैं उनसे पूछती कि आप मेरे ठीक होने का उपाय बताइए।
                मनु आज कुछ ज्यादा विचलित है। तरह-तरह के प्रश्न उसके दिमाग में उठ रहे हैं। भगवानजी ने कोई उपाय किया या नहीं। मैं ठीक हो पाऊँगी या नहीं। वह सोच रही है। आँखें खुलती हैं, बन्द हो जाती हैं, फिर खुलती हैं। उसका सोचना जारी है। छत से लगा हुआ पंखा उसी गति से चल रहा है जैसे कल चल रहा था। वह एक बार पुनः पंखे को देखती है सोचती है अगर उसके शरीर में भी ठीक से बिजली आ जाए तो वह ठीक हो जाएगी। पर कुछ भी निश्चित नहीं है, बिजली का आना और जाना भी। डॉक्टर के आने का समय हो गया है। मनु की माँ बगल में बैठी उसके बालों को सहला रही है 'डॉक्टर चाचू अभी आए नहीं,' मनु पूछती है। ' आ ही रहे होंगे' माँ बताती है। नर्स ने आकर मनु को देखा। उसकी फाइल को लाकर रखा। इसी बीच डॉक्टर साहब आ गए। मनु थोड़ी खुश हुई, बोल पड़ी 'डॉक्टर चाचू मुझे जरूर बचा लेना'। डॉक्टर के मन-मस्तिष्क में मनु के ये शब्द कई बार हलचल पैदा करते रहे। आज जब उसने कहा तो उन्हें लगा कि वे इस बच्ची के लिए कुछ कर पाते तो कितना अच्छा होता? वह जीना चाहती है। देखो भगवान क्या करते हैं? एक बार फिर उन्होंने मनु की साँस का परीक्षण किया। आज तो स्थिति सामान्य है। अगर इसमें थोड़ा सुधार हो जाए तो हो सकता है, यह बच्ची बच जाए। उन्होंने फाइल को एक बार देखा एक सुई और लिख दी। माँ ने पूछा-'मनु ठीक हो जाएगी डॉक्टर साहब?' 'हम लोग कोशिश कर रहे हैं,' डॉक्टर साहब ने उत्तर दिया। आज इसकी स्थिति ठीक है। डॉक्टर साहब ने एक बार फिर मनु को देखा। फिर दूसरे बच्चे को देखने आगे बढ़ गए। यही उचित भी है। हर बच्चे को देखना है। हर बच्चे के माता पिता आशान्वित है। आज डॉक्टर साहब ने सभी बच्चों को काफी समय देकर देखा। सभी की तकलीफें सुनीं। माता-पिता को हिदायतें दी। वे कक्ष से निकले। मनु का कहा हुआ वाक्य-'मुझे बचा लेना डॉक्टर चाचू' बार-बार उनका पीछा कर रहा है। वे भरपूर प्रयास कर रहे हैं पर मनु की इच्छा पूरी होगी या नहीं, इसे वे खुद भी नहीं जानते।
               'माँ मैंने डॉक्टर चाचू से कह रखा है- मुझे अभी बहुत काम करना है। बहुत सारे काम बाकी हैं। जल्दी से ठीक हो जाऊँ तो सभी काम कर डालूँगी। तुम दुःखी मत हो माँ। आखिर रोने से तो कुछ होगा नहीं। दवाई काम करेगी तभी मैं ठीक हो पाऊँगी। डॉक्टर चाचू रोज कोई न कोई नई दवा बताते रहते हैं, पापा दौड़कर लाते भी हैं, पर मैं जल्दी से ठीक क्यों नहीं हो पाती माँ? मामा होते तो आज मेरे सामने चुप खड़े रहते। वैसे तो मुझे चिढ़ाते रहते हैं पर आज बिल्कुल न चिढ़ाते। उनको भी दवाई खानी पड़ती है न ? दौड़कर दवाई लाते, खिलाते, कहते में आ गया हूँ मनु। चाचू को भी बुलाया जाता तो वे सब भी दौड़े हुए आते। लेकिन किसी की जरूरत नहीं है माँ। काम तो दवाई ही करेगी। कोशिश करो कि दवाई काम करे। डॉक्टर चाचू कोशिश कर रहे हैं और आखिर किया ही क्या जा सकता है? आसमान से तो कोई चीज आएगी नहीं। जो यहाँ है उसी से काम चलाना है। माँ तू दुःखी न हो। ठीक हो जाऊँगी मैं। इतनी कमजोर नहीं हूँ मैं कि भगवान मुझे बुला ही लें। तुम खुश रहो माँ। तुम्हें खुश देखकर मैं भी खुश होती हूँ। पापा से कहना कि वे भी खुश रहें।'