मनस्वी - भाग 1 Dr. Suryapal Singh द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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मनस्वी - भाग 1

पुरोवाक्

'मनस्वी' एक शोकगाथा है एक करुण उपन्यासिका (Elegiac Novelette) । शोकगीत लिखने की परम्परा अँग्रेजी, पर्शियन, उर्दू में अधिक रही है। शोकगीत किसी प्रिय के अवसान, निधन पर लिखे जाते रहे हैं। कभी-कभी पूर्वजों, अज्ञात शहीद लोगों के प्रति भी शोकगीत लिखे गए हैं। इन गीतों में तत्कालीन समाज भी प्रतिबिम्बित होता है। इनमें कभी उदासी तो कभी सात्विक आक्रोश का स्वर उभर कर आता है।
           पंडित सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' की रचना 'सरोज स्मृति' एक शोकगीत है। सरोज की असमय मृत्यु ने उन्हें झकझोर दिया। अपने कविकर्म पर ही वे खीझ उठे, 'हो इसी कर्म पर वज्रपात।' गद्य में शिव प्रसाद सिंह ने अपनी बेटी के प्रति अपनी संवेदनाएँ व्यक्त की हैं।
        मनस्वी का जन्म इस परिवार में एक नवम्बर 1997 को प्रातः हुआ था। ग्यारह वर्ष सात महीने सात दिन वह इस पार्थिव जगत में रही। अस्वस्थ होने पर उसे चार जून 2009 को चिकित्सा विश्वविद्यालय के आपात कक्ष में भरती कराया गया। 8 जून 2009 को प्रातः उसने पार्थिव शरीर छोड़ दिया। पाँच दिन ही वह आपात कक्ष में रही। माता-पिता प्रीती और व्रजेन्द्र की दौड़धूप भी उसे बचा नहीं सकी।
           'मनस्वी' इन्हीं पाँच दिनों की स्मृति कथा है। इसमें मनस्वी जिसे घर पर मनु कहा जाता था अपने विचार-बिम्बों को प्रकट करती है कभी जगकर, कभी तंद्रा और कभी स्वप्न में। इसमें अधिकांश उसकी सोच, स्थितियों का ही अंकन है। एक बालिका की जिजीविषा, सपने सभी कुछ इसमें हैं। माता-पिता, डाक्टर ही नहीं सृष्टि नियन्ता से भी वह संकेतों में बात करती रही। एक बालिका के मन में उठे ये बालसुलभ प्रश्न केवल करुणा ही नहीं जगाते, उद्वेलित भी करते हैं। उसकी स्मृति को समर्पित इस गाथा को आप भी आत्मसात करें इसी आकांक्षा के साथ. .............।

कजली तीज भाद्रपद वि०स० 2066
23.8.2009 सूर्यपाल सिंह



अनुक्रम
अनुच्छेद एक- मनस्वी बोल रही हूँ
अनुच्छेद दो- मेरा ऊपर जाने का समय अभी कहाँ हुआ है?
अनुच्छेद तीन- दुनिया को ठीक से चलाओ
अनुच्छेद चार- ज़िन्दगी यदि पतंग की तरह कट जाए तो?
अनुच्छेद पाँच- देर करने की आदत छोड़ो भगवान जी !
अनुच्छेद छह- तुम खुश रहो माँ
अनुच्छेद सात- क्या छोटे बच्चे राम जी होते हैं?
अनुच्छेद आठ- मैं देर से सो रही हूँ पापा !
अनुच्छेद नौ- अब तंग नहीं करूँगी माँ
अनुच्छेद दस- हर बच्चा माँ-बाप के लिए जरूरी है
अनुच्छेद ग्यारह- चिड़िया उड़ गई
अनुच्छेद बारह- उपराम




अनुच्छेद-एक

मनस्वी बोल रही हूँ

'हलो...हलो.... मैं मनस्वी बोल रही हूँ। किससे बात करना है आपको?......डॉक्टर सूर्यपाल सिंह से.... हलोऽ... मैं उनकी पौत्री हूँ......मनस्वी सोमवंशी।.... हलो ऽ... बाबा टहलने गए हैं। आते ही होंगे।.... हाँ... हाँ.... तुरन्त बताऊँगी मैं..... मैं ही बाबा का बहुत सा काम देखती हूँ...हलो ऽ... आप....आप.....हलो ऽ.. निश्चिन्त रहें आप.... 'पूर्वापर' पत्रिका छपने गई है.....दो चार दिन में आ जाएगी.... हलो ऽ.... मुझे सब मालूम रहता है......आपकी कहानी हमने पढ़ी है.... अच्छी है......पत्रिका में छप रही है..... हलो ऽ.... इसमें धन्यवाद की कया बात है?.... कहानी अच्छी है इसलिए छप रही है....। हाँ बाबा ठीक हैं... ठीक है.... प्रणाम ।'
        कुछ क्षण बाद फोन की घंटी पुनः बज जाती है। 'हलो ऽ... मैं मनस्वी सोमवंशी बोल रही हूँ।... हलोऽ आपसे तो कई बार बात हुई है।..... बाबा टहलने गए हैं। आते ही होंगे।... आपका लेख... हाँ.... पत्रिका में छपा है.......पत्रिका दो-ही-चार दिन में आ जाएगी।..... बाबा ने कह रखा है कोई फोन आए तो बात कर लिया करो.... हलो ऽ... आप मेरी बातों से खुश होते हैं....बच्ची हूँ मैं.... गलती भी कर सकती हूँ..... बाबा को बता दूँगी.....यह तो मेरा काम ही है....बाबा का काम मुझे ही देखना है।.....जरूर.....जरूर. ....। ठीक है प्रणाम ।'

        यहां मनस्वी अस्वस्थ हो गई। उसे चिकित्सा विश्वविद्यालय ले जाना पड़ा।
        बच्चे हों या बड़े बीमार होने पर बिस्तर पर लिटा दिए जाते हैं। बहुतों को बिस्तर पर आराम करने की सलाह दी जाती है। शरीर से वे आराम करते हैं। शारीरिक गतिविधियाँ कम हो जाती हैं। पर क्या दिमाग भी शिथिल हो जाता है? यदि कोई विशेष दिमागी बीमारी न हो तो मस्तिष्क काम करता रहता है। स्मृतियों का पिटारा खुलता रहता है।
बच्चे या बड़े बिस्तर पर पड़े पड़े बहुत कुछ सोचते, याद करते रहते हैं।
         चिकित्सा विश्वविद्यालय लखनऊ का ट्रामा सेण्टर। बच्चों के आपातकक्ष (Emergency ward) में और बच्चों के साथ एक बच्ची भी लेटी है, नाम है- मनस्वी । उम्र ग्यारह वर्ष सात महीना दो दिन। उसके माता-पिता उसे दिखाने के लिए लाये थे पर डॉक्टर साहब ने स्थिति की गंभीरता को समझकर उसे बच्चों के आपात कक्ष में भर्ती कर लिया। बच्ची का शरीर लम्बा, गोरा, बड़ी-बड़ी आँखें कुछ कहती हुई, बाल छोटे कटे हुए। उसे अक्सर घर पर उल्टी हो जाती थी। स्थानीय चिकित्सकों की दवाओं से कुछ लाभ अवश्य हुआ पर उन्हीं के परामर्श से वह विश्वविद्यालय लायी गयी। लड़की ने कक्षा छह में अभी प्रवेश लिया है। किताब-कापियाँ खरीद कर अपनी छोटी सी मेज पर सजा लिया है। घर में बाबा का कम्प्यूटर है। उस पर उसने अपना पैड बना रखा है। बाबा से पूछकर कम्प्यूटर पर बैठ जाती। कभी टाइप करती, कभी कोई खेल खेलती। आज एक विस्तर पर लेटी है। माँ और पिता दोनों पास ही बैठे हैं। डॉक्टर साहब उसे देखते हैं तो वह अपनी बड़ी-बड़ी आखों से डाक्टर साहब को देखती है। दवा लिखकर डाक्टर साहब चले जाते हैं पर उसे लगता है कि वे अभी गए नहीं हैं। उसका मस्तिष्क चलता रहता है। उसके दिमाग में एक दृश्य उभरता है।
बोल पड़ती है-
'आप देखने आये हैं डाक्टर साहब। आपको मैं किस नाम से पुकारूँ?'...........
'आपको 'डाक्टर साहब' या 'डाक्टर जी' नहीं कहना चाहती। जानते हैं क्यों?' 
'साहब' या 'जी' कहने से लगता है हममें और आपमें दूरी है। वैसे भी 'डाक्टर जी' कहना कुछ अटपटा लगता है। मैं चाहती हूँ कुछ ऐसे ढंग से पुकारना जो ज्यादा अच्छा लगे। क्या मैं 'डाक्टर चाचू' कह सकती हूँ?' 
'क्यों नहीं?' डॉक्टर साहब के उत्तर से प्रसन्न होती है। बताती है-
      डाक्टर चाचू मेरे कई चाचा और चाचू हैं। आप उन्हें देखकर खुश होंगे। कोई चाचू अभी आ नहीं पाए हैं। जैसे ही उन्हें खबर होगी, भागकर आयेंगे। बहुत अच्छे हैं हमारे चाचू। आपके चाचू भी उतने अच्छे... विह्वल हो निवेदन करती है- 'डाक्टर चाचू मुझे बचा लेना। मैं अभी मरना नहीं चाहती।' मन उद्विग्न है। पूछ लेती है-यह मरना क्या होता है डाक्टर चाचू ? बच्चे क्यों मर जाते हैं?... डाक्टर चाचू, मुझे उल्टी क्यों हो जाती है? भगवान जी से पूछूंगी मैं। हमारे घर में भी भगवान जी हैं। मैं खाती भी बहुत कम हूँ...... पतली एक रोटी सब्जी से और आधी दूध से, फिर भी उल्टी। डाक्टर चाचू' आपको औरों को भी देखना होता है। मैंने तुम्हें देर तक रोक लिया और बच्चे परेशान होंगे एवं उनकी तकलीफ भी देखना है डाक्टर चाचू ।
        डाक्टर साहब के बारे में सोचते हुए मनु की दृष्टि माँ पर पड़ जाती है। उसके ओठ फरफराते हैं। दृश्य बदल जाता है। वह माँ से बात करने लगती है।
        'मम्मी तेरे प्राण मुझमें बसते हैं न? मैं कहीं जा थोड़े रही हूँ। नेहा, मोनी, बबिता, सोनू, शुभु, मोनू, रोहित सबके साथ छिपी छिपान खेलती थी न । अब ये सब कहते होंगे कि मनु नहीं है। दुखी होंगे। चलकर उनसे कहूँगी कि तुम लोग इतनी जल्दी क्यों परेशान हो जाते हो? मैं थोड़े दिन के लिए बाहर चली गई थी, फिर आ गई हूँ। मम्मी, तुम भी दुखी मत होना, तबियत खराब हो जाती है तो ठीक भी हो जाएगी। डाक्टर चाचू हैं न? वे कहते हैं ठीक हो जाऊँगी मैं। तुमको भी उनकी बात माननी चाहिए। आखिर वे डाक्टर हैं। मम्मी, देखो वह पाँच नम्बर की लड़की कुछ कराह रही है। नर्स मैम से कह दो उसे देख लें। उसकी मम्मी को भी बता दो। हो सकता है वे पानी लेने गई हों। मुझसे दूसरे का दुख देखा नहीं जाता माँ। दौड़ो माँ, उसकी कराह तेज हो गयी है।'
         माँ दौड़ जाती है। नर्स को बुलाकर उस बच्ची को दिखाती है। नर्स दवा देती है। उस बच्ची की कराह धीरे-धीरे कम होती है। मनु खुश हो जाती है। उसकी मम्मी उसके पास आती है। मनु बोल पड़ती है, 'मम्मी ! यहाँ पाँच बच्चे भर्ती हैं, सबको देखते रहना। सभी बच्चे हैं न। तू मेरे लिए बहुत दुःखी रहती है। इन बच्चों को देखने से तुझे और खुशी होगी। मेरी ही तरह ये बच्चे दूर-दूर से आए हैं। पिता जी से कहना कि कोई जरूरत पड़े तो इन बच्चों की मदद कर देंगे। पता नहीं किसी बच्चे के माँ-बाप के पास पैसा है या नहीं। बाबा मना नहीं करेंगे। उनको मैं अच्छी तरह जानती हूँ। अगर इन बच्चों की मदद हो जाए तो बाबा खुश ही होंगे।
          तूने कुछ खाया नहीं है। पापा और तुम खाना खा लो। मुझको तो नली से खाना मिल ही रहा है। मेरे माथे पर हाथ रखो माँ।' माँ हाथ रखकर सहलाती है।
          'मैं तुम्हारे साथ चिपक कर सोती थी न। मुझे नींद आ जाती है, तू चिन्ता न कर। अब मैं सयानी हो रही हूँ। बहुत छोटी बच्ची नहीं हूँ। अपने को सँभाल लूँगी। तू अपना ध्यान रख। पापा कहाँ चले गए माँ?' 
'अभी आ रहे हैं?'
'आएँगे तो कह देना मेरे माथे पर हाथ रखकर सहला देंगे। माँ मैं इस बिस्तर पर पड़ी हूँ पर मन भागता रहता है।
        मम्मी तू दुखी न हो। भगवान जी से कहती हूँ कि जल्दी ठीक कर दो। कितना काम मेरा बाकी है। ठीक हो जाऊँगी तो जल्दी जल्दी गृह कार्य पूरा कर लूँगी। बाबा के पास बैठ जाऊँगी, बस.. । कुछ पापा बताएँगे कुछ तुम और काम पूरा। मानसी से कह दूँगी कि अब मैं तुम्हारे साथ दौड़ सकती हूँ। 
          ओ........ओ......जम्भाई क्यों आ जाती है माँ? मन करता है थोड़ा सो लूँ। मम्मी तू अपना हाथ मेरे हाथ पर रख और मैं सो जाऊँ। पलकें भी कितनी अच्छी चीज़ है। पलकें बन्द करो और सो जाओ।' पलकें बन्द कर लेती है। माँ उसका एक हाथ अपने हाथ में लेकर सहलाती रहती है। माँ भी थकी है उसे भी बीच में झपकी आ जाती है।
           शाम को डॉक्टर साहब पुनः देखने के लिए आए। जाँचा, दवा लिखा और चले गए। मनु के कल्पना की रील पुनः घूम गई। वह बोल पड़ी, 'डॉक्टर चाचू मैं कहानी सुनाऊँ।' 'हाँ-हाँ सुनाओ। सुनने का वादा तो मैं कर ही चुका हूँ।' मनु कहानी सुनाती है- एक परी थी। परी से एक शैतान नाराज हो गया। वह उसे मारना चाहता था। परी के पास एक तोती थी। वह तोती को बहुत प्यार करती थी। लोग कहते थे उसकी जान तोती में बसती थी। शैतान को जब इसका पता चला तो उसने तोती की गर्दन मरोड़ दी। उसके साथ ही परी भी बेहाल हो गई। उसने भी दम तोड़ दिया। वह परी कौन थी? जानते हैं डॉक्टर चाचू। वह परी मेरी माँ है और मैं ही वह तोती हूँ। अब आप समझ सकते हैं कि मुझे ठीक करना कितना जरूरी है?
            आप मरीज के घर वालों के बारे में क्यों नहीं पूछते हैं? आपको पूछना चाहिए कि तुम्हारे घर में कौन-कौन लोग हैं? क्या करते हैं? एक दूसरे को कितना प्यार करते हैं? तभी तो आप जान पाएँगे मरीज के बारे में। मैं कोई मरीज नहीं हूँ, मैं तो एक लड़की हूँ। मेरे घर के बारे में जानेंगे तो आप मेरी दवा ठीक से कर सकेंगे। जानते हैं डॉक्टर चाचू कि हमारे कितने बाबा हैं? वे हमें कितना प्यार करते हैं? हमारे बाबा बहुत व्यस्त रहते हैं। वे हमेशा कुछ लिखते-पढ़ते रहते हैं। मैं उनकी थोड़ी मदद भी करती रहती हूँ। घूम कर जैसे ही आते हैं मैं उनके सामने मीठा का एक टुकड़ा और पानी रख देती हूँ। वे पानी पीते हैं फिर अंकुरित अनाज दे आती हूँ। माँ तब तक चाय बना लेती हैं। मैं एक कप चाय दे आती हूँ। बाबा चाय पीते हुए लिखना शुरू कर देते हैं। उनकी बहुत किताबे हैं डॉक्टर चाचू। आपको पढ़ने के लिए दूँगी मैं। नाटक, उपन्यास, कविताएँ, कहानियाँ, निबन्ध सभी कुछ लिखा है बाबा ने। उपन्यास, कहानियाँ, नाटक मैं भी पढ़ लेती हूँ। खूब मजा आता है मुझे। आपको भी आएगा। बाबा नाटक भी कराते हैं। मैं भी नाटक में एक बार परी और एक बार बैल बनी थी। 'वो वो, तक तक' कर हिमानी हाँकती थी। बहुत अच्छा लगता था। जानते हैं नाटक का नाम क्या था? नाम था 'हम बच्चे हैं।' नाटक में हम गाते थे-
                  हम बच्चे हैं, हमको बच्चे ही रहने दो, 
                  हम सच्चे हैं हमको सच्चे ही रहने दो।

जैसे ही ठीक हो जाऊँगी डॉक्टर चाचू ! नाटक में भाग लूँगी। आप भी देखने आना। मैं आपको खूब हँसाऊँगी। लोट-पोट हो जाएँगे आप। बाबा कहते हैं हँसने से आदमी स्वस्थ होता है। आप भी स्वस्थ हो जाएँगे डॉक्टर चाचू। चाची को भी जरूर लाना और भाई-बहिन होंगे तो उन्हें भी। आप बहुत व्यस्त रहते हैं न। आपको भी थोड़ी देर हँसना चाहिए। बहुत से बच्चे हैं जो नाटक में भाग लेते हैं।
            हमारा घर तो नाटक घर ही है डॉक्टर चाचू। कभी कभी बाबा के कमरे में या बाहर बरामदे में नाटक की तैयारी चलती। एक बार बहुत मजा आया डॉक्टर चाचू। बाबा का लिखा नाटक 'तनुदा का अपहरण' खेलने के लिए हमारे घर पर ही तैयारी हो रही थी। रीतेश, प्रदीप, अशोक, शैलेश, सुनील, भैरव, देवव्रत, शाहनवाज चाचू अभ्यास कर रहे थे। उसमें जोर से बोलना था 'तनुदा का अपहरण हो गया है। दौड़ो, गाँव वालो दौड़ो।' जैसे ही देवव्रत चाचू ने जोर से कहा, किसी ने कोतवाली फोन कर दिया कि कालोनी में डाका पड़ गया है। अब भैया पुलिस की गाड़ियाँ दौड़ पड़ीं। दो तीन गाड़ियाँ, दरोगा, कोतवाल सभी आ गए। जब उन्हें पता लगा कि यह तो नाटक का अभ्यास हो रहा है वे भी मुस्कराने के सिवा और क्या कर सकते थे। तो ऐसा है हमारा घर।
              नाटक में भाग लेने वाले बच्चे हमारे घर आते रहते हैं। राम भवन, प्रियव्रत, सत्य प्रकाश, वीरेन्द्र, सामन्त, अमरदीप, विभोर, सौरभ, सूबेदार किस किस का नाम गिनाऊँ। कृष्णकान्तधर, चक्रधर तो सुनती हूँ, बहुत पहले से नाटक कर रहे थे। दीदी लोग भी नाटक में भाग लेतीं। बबिता, आरती के साथ ही शिवानी, शिप्रा और मीनाक्षी बुआ भी नाटक में भाग लेतीं। वे सभी हमारे घर आते हैं। वर्मा (पारसनाथ) और पाण्डेय (अम्बिकेश्वर) चाचू भी आते हैं। मैं ही बताती हूँ उन्हें, बाबा हैं या कहीं गए हैं। कभी पानी पिलाती हूँ, कभी भूल जाती हूँ। बाबा आते हैं तो समझाते हैं बेटे तुम्हें भूलना नहीं चाहिए। कोई आ जाए तो एक गिलास पानी जरूर पिलाना चाहिए। बाबा को दुख होता है लेकिन डाटते नहीं, समझाते हैं। कोई आ जाए तो चाय-पानी कुछ पिलाना ही चाहिए। डॉक्टर चाचू, यह कोई बड़प्पन है कि किसी को चाय-पानी ही न पूछें। भूल करती हूँ मैं। अब यहाँ से जाऊँगी तो कोशिश करूँगी कि भूल न करूँ। यह कोई अच्छी बात नहीं है कि कोई आए और पानी भी न पाए।
               डॉक्टर चाचू ! यहाँ से जाऊँगी तब मैं बाबा का बहुत सा काम खुद सँभाल लूँगी। बाबा का कमरा किताबों से ही भरा रहता है। उनकी मेज पर किताबें और फाइलें लगी रहती हैं। मैं कहती हूँ बाबा इन्हें सँभाल कर रखो। बाबा कहते हैं इतना समय नहीं मिलता बेटे। मैं ही समय निकालकर उनका कमरा साफ करती हूँ, मेज पर किताबें करीने से रखती हूँ। मेज कपड़े से पोंछ कर साफ कर देती हूँ। जब सब सामान ठीक से रख देती हूँ तो बाबा कहते हैं, 'बहुत अच्छा किया।' कभी-कभी मैं भी थक जाती हूँ। यहाँ से ठीक होकर जाऊँगी। थकान नहीं लगेगी। मेरे पास भी बहुत काम है डॉक्टर चाचू। मम्मी-पापा को पप्पी देना, अपनी किताबें सँभालना, गृहकार्य करना स्कूल की तैयारी करना, नहाना-धोना ये सब काम ही तो हैं। जल्दी ठीक कर दो डॉक्टर चाचू जिससे मैं यह सब काम कर सकूँ। हाथ में यह जो सुई लगी है कभी-कभी चुभती है। क्या इसे निकाला नहीं जा सकता डॉक्टर चाचू ? बाबा घर पर हैं पर मेरे बारे में सोचते होंगे मनु बिस्तर पर पड़ी है। धीरे-धीरे ठीक जरूर हो रही है। अगर उनको पता चल जाए कि तबियत ठीक नहीं हो रही है तो भागकर आएंगे अभी। जानते है डॉक्टर चाचू बाबा मुझे बेटे ! कहकर बुलाते हैं। 'मनु बेटे एक गिलास पानी ले आओ' और मैं अपना काम छोड़कर भागकर पानी दे आती। अब उन्हें पानी कौन देता होगा डॉक्टर चाचू ? घर में कोई दूसरा बच्चा भी तो नहीं है। उनका कमरा वैसे ही पड़ा होगा। दादी भी इलाहाबाद हैं। बाबा अकेले होंगे। खुद ही कमरे में झाडू लगाते होंगे। किताबें अस्त-व्यस्त पड़ी होंगी। वे कहीं चले जाते तो मैं ही चिट्ठियाँ लेती। जो आता उससे बात करती। बाबा लौटकर आते तो चिट्ठियाँ देती, आने वालों के बारे में बताती। नाम जरूर पूछ लेती थी मैं, जिससे बाबा को बता सकूँ। अब ये सब कौन करता होगा डॉक्टर चाचू ? इसीलिए मुझे जल्दी है। जल्दी से ठीक हो जाऊँ तो बाबा का काम सँभाल लूँ। आगे भी बाबा का काम मुझे ही तो सँभालना है। बाबा की किताबें टाइप कर दूँगी। बहुत अच्छा टाइप करती हूँ मैं। बाबा के पास चिट्ठियाँ बहुत आती हैं। सबका जबाब देना होता है। प्रमोद चाचू आकर टाइप करते हैं। मैं उनसे भी सीख लेती हूँ। जब उनको मौका नहीं मिलेगा तो मैं टाइप कर दिया करूँगी। कम्प्यूटर में कुछ खराबी आ जाती है, तो विजय चाचू आकर ठीक करते हैं। उनसे भी सीखना है मुझे। बाबा बहुत जरूरी काम कर रहे हैं। वे कहते हैं कि हम आदमी बनाने का काम कर रहे हैं। यह आदमी बनाना क्या होता है डॉक्टर चाचू ? कोई बर्तन बनाता है, कोई मेज-कुर्सी बनाता है पर बाबा कहते हैं कि मैं आदमी बनाता हूँ। अभी मैं समझ नहीं पाती। थोड़ी बड़ी हो जाऊँगी तो समझ में आएगा। बाबा कहते हैं कि आदमी बनाने का कारखाना बहुत बड़ा है। ठीक होने पर हो सकता है मैं भी इसी में लग जाऊँ। जब घर में ही काम है तो बाहर क्यों दौडूं ? जब हम इस कारखाने में काम करेंगे तो आपको भी बुलाएँगे डॉक्टर चाचू। आदमी बनाने में आप भी मदद करेंगे न? बाबा कभी-कभी कहते हैं कि बहुत से लोग बाघ बन रहे हैं। बाघ तो जानवर है न। हम आदमी बनाने वाले कारखाने में बाघ नहीं, आदमी बनाएँगे। बाघ तो जंगल में रहता है, जंगल में रहे।
        डॉक्टर चाचू मेरी साँस कभी कभी क्यों बढ़ जाती है? आपने आक्सीजन लगा दिया इससे आराम मिला है। पर इससे मैं अपना मुँह इधर- उधर घुमा नहीं पाती।
         ठीक है। आप कहते है कि बिना आक्सीजन के काम नहीं चलेगा तो ठीक है। बर्दाश्त करूँगी इसे भी।'
         दृश्य बदलता है। पापा का चित्र उभरता है। 'पापा, डॉक्टर चाचू ध्यान रखते है मेरा। उनका जो भी पैसा बनता होगा, दे देना। मैं ठीक हो जाऊँगी पापा। तुम बिलकुल चिन्ता न करो। बहुत नासमझ नहीं हूँ। आप यहाँ मेरे साथ पड़े हैं। कचहरी का नुकसान हो रहा होगा।... लेकिन कोई उपाय भी तो नहीं है। पापा, मम्मी को समझाते रहना। वे रोने लगती हैं तो मेरी आँखों में भी आँसू आ जाते हैं। पापा, यहीं बैठ जाओ। मेरे माथे पर हाथ रखो। आप द्वारा माथा सहलाना अच्छा लगता है पापा। आप मेरे पास रहते हैं तो मन प्रसन्न हो जाता है। मेरी बीमारी की बात बताकर किसी को दुखी न करना। ठीक ही हो जाऊँगी मैं। डॉक्टर चाचू को सब कुछ बता देती हूँ। पापा, मन करता है करवट ले लूँ। धीरे से करवट बदल दो पापा ।... अब ठीक है। थोड़ी देर बाएँ करवट रह लूँगी फिर...... चित लेटी रहूँगी। आप भी बैठ जाएँ पापा। कब तक खड़े रहेंगे? मम्मी नहा ले तो उसे ले जाकर नाश्ता कर लेना। मम्मी को पकोड़ी पसन्द है पापा। पकोड़ी देख लेना ताजी हो। उसका तेल भी ठीक हो। पकोड़ी न खाना चाहे तो मक्खन टोस्ट खिला देना। मम्मी कुछ नहीं खाएगी तो कमजोर हो जाएगी। उसे बता दो रोए नहीं। बाबा को भी फोन कर देना दुखी न हों। बाबा ने अच्छा किया कि मोबाइल खरीद दिया। यहाँ से आसानी से बात हो जाती है। पुलिस बाबा से भी कह देना-किसी तरह की चिन्ता न करें। टहलने जाया करें। पंकज चाचू हमें उठा लेते। हम डर जाते। उनके प्यार करने का यही तरीका है। घर चलूँगी तो बेटू को खिलाऊँगी। प्यारी बच्ची है वह। चाची भी बहुत प्यार करती हैं मुझे। गांव पर दादी से भी बात कर लेना। बुढ़िया दादी दिल्ली से आ गई हैं। उनसे भी कहना मनु खुश रहती है, वे भी खुश रहें। पापा, इस बार मैं स्कूल के डांस में भाग लूँगी। नृत्य करूँगी। बाबा से कहूँगी। वे कुछ करेंगे। संगीत के लोग आते हैं उनके पास। नृत्य से व्यायाम भी हो जाता है पापा। इससे स्वस्थ रहूँगी।
           पापा, आप भी दवा लेते रहना। आप स्वस्थ रहेंगे तभी तो दौड़ धूप करेंगे। आरुषी कहती थी पापा लोग इंजन होते हैं, हम लोग गाड़ी के डिब्बे । इंजन को तेल-पानी मिलेगा तभी तो वह डिब्बों को खींच सकेगा। उसकी बात सच है न पापा ?
          जुलाई में स्कूल खुल जाएगा। आरुषी आएगी तो उससे कहूँगी, 'तूने सच कहा था। पापा लोग सचमुच इंजन होते हैं।'
          आज मामी की याद आ रही है पापा। दोनों मामी कुछ भी बनातीं तो कहतीं मनु को पहले खिलाओ। छोटू, विश्वजीत, कात्यायनी का नम्बर बाद में लगता। हम लोग कहते, 'मामी हम लोग साथ खाएँगे।' मामी सभी के लिए परोसतीं और हम लोग बैठकर हँसते खेलते खाते। छोटू कुछ शरारत करता तो मैं डाट देती। वह चुप हो जाता। विश्वजीत हम लोगों को कहानियाँ सुनाते । मामा पूछते, 'तुम लोगों को कुछ विशेष खाना है?' वे कुछ विशेष लाते तो खुद ही बनाने बैठ जाते। मामी उनकी मदद करतीं। रोटी-चावल बनातीं। मामा सबको बिठाकर खिलाते। मामा झूठ मूठ की लड़ाई करते। मैं छिप जाती तो खोजते। मामा को भी रोज दवा खानी पड़ती है पापा। वे हमेशा खुश रहते हैं। आप भी खुश रहिएगा पापा।

            ठीक हो जाऊँगी तो मम्मी के साथ मामा के यहाँ जाऊँगी। दो-चार दिन रह कर चली आऊँगी। खूब मजा आएगा पापा। कात्यायनी से भजन गाना सीख लूँगी। वह बहुत अच्छा गाती है न?
             मम्मी आ जाएँ तो उन्हें कुछ खिला देना पापा। वे मुझे देखती रहती हैं। अपने खान-पान पर कोई ध्यान नहीं देतीं। वे कितनी दुबली हो गई हैं पापा। उनका भी स्वस्थ रहना कितना जरूरी है? पापा, आपका भी चेहरा मुरझाया हुआ क्यों है? मैं अभी जीवित हूँ, खुश हूँ डॉक्टर चाचू ध्यान रखते हैं। मुझे बचाने का पूरा प्रयास करेंगे वे। देखो मम्मी आ गईं। मैं आँख बन्द कर लेती हूँ। मम्मी आएगी तो मेरा सिर सहलाने लगेगी।'
              मम्मी आते ही मनु के सिरहाने खड़ी हो जाती है। उसका हाथ मनु के माथे पर पहुँच जाता है। वह धीरे-धीरे सहलाती रहती है। मनु आँख बन्द किए रहती है जिससे मम्मी को लगे कि मनु सो गयी है। मम्मी माथा सहलाती रहती है और मनु को धीरे-धीरे सचमुच नींद आ जाती है। मम्मी-पापा उसे सोते देखकर जलपान के लिए थोड़ा समय निकालते हैं।