जिंदगी के रंग हजार - 14 Kishanlal Sharma द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

जिंदगी के रंग हजार - 14

आंकड़े और महंगाई
अरहर या तूर की दाल 180 रु किलो
उडद की दाल 160 रु किली
चने 100 रु किलो
आप कोई सी भी दाल ले ले या चने,मोठ, साबुत मशहूर या कोई और सबके दाम बढे है।
गेंहू का आटा चक्की से पहले 25 या 26 रु किलो आता था।अब 35 या 36 रु किलो है।अलग अलग कम्पनियों का सील बन्ध आटा आता है वो तो और भी ज्यादा महंगा है।
गेंहू के अलावा जो,बाजरा, मक्का,ज्वार आदि के भाव भी पिछले साल के मुकाबले बढ़े हैं और इनके आटे के दाम भी बढ़े हैं।
पहले यह कहा जाता था।अरे आदमी और कुछ नही तो दाल रोटी खाकर जी लेगा।पर ये भी बहुत महंगी है।
अब चावल की बात करे।चावल की अनेक किसमे बाजार में मिलती है।साबुत, पोन्ना और किनकी भी मिलती है।मै जो चावल पहले सौ रु किलो लाता था।अब 120 रु किलो मिलता है।
अब हम सब्जी पर आते हैं।सब्जी मौसमी है और इसके दाम सीजन के अनुसार बदलते रहते हैं।इस साल बरसात ज्यादा हुई इसलिए सब्जी की फसल खराब भी हुई।लेकिन भावों में भी जगह के अनुसार बहुत अंतर है।जिस समय जो सब्जी आगरा में 60 या 70 रु किलो थी।वो जयपुर में 100 या 120 और पुणे में 150 थी।
यही हाल गर्मी में आम का था।मैं तीनो जगह गया था।जो आम आगरा मे 70 रु किलो बिक रहा था।जयपुर में 100 औऱ पुणे में 150 रु किलो बिक रहा था।
खाने पीने की जो चीजें हैं उनकी जरूरत हर आदमी को पड़ती है।टी वी पर बहस होती रहती है।महंगाई कि तुलना आंकड़ो से की जाती है।प्रवक्ता बताते हैं कि उनके जमाने मे ये आंकड़े थे जबकि अब ये।अगर आंकड़ सिथर है और महंगाई नही बढ़ रही तो फिर बाजार में चीजों के दाम क्यो बढ़ रहे हैं।
बेरोजगारी है।इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि विकास तेजी से हो रहा है तो लोगों को रोजगार भी मिल रहा है।लेकिन यह भी सत्य है कि बड़ी तादाद में लोग प्राइवेट नौकरी कर रहे हैं।जैसे दुकानों पर,कोरियर में या अन्य उन्हें दस या पन्द्रह हजार रु महीने मिलते है वे लोग कैसे महंगाई में परिवार का भरण पोषण कर सकते हैं।
खाने पीने की चीज में दूध भी है जिसके दाम बढ़े हैं।
अब अन्य सामान कि बात करे।बिल्डि ग मटेरियल के दाम बढ़े हैं।सीमेंट, बजरी, ििईं, लोह
आदि सभी सामान महंगा हुआ है।और साथ मे मजदूरी भी।मिस्त्री हो या बेलदार सभी के दाम बढ़े हैं।
आदमी सामाजिक प्राणी है।उसे आना जाना भी पड़ता है।बस हो या रेल या प्लेन सब के कु किराये बढ़े हैं।
इस महंगाई का असर सबसे ज्यादा उन पर पड़ता है जो मजदूर,मिस्त्री या दुकानों पर काम करते हैं।कम पगार मिलती है और अकेले कमाने वाले हैं।पेंशनभोगी भी इस महंगाई का शिकार हैं।
आंकड़ अपनी जगह है।इनसे आप ग्लोबली बता सकते हैं कि हमारे यहाँ महंगाई कम है।लेकिन आंकड़े निकालने का तरीका शायद सही नही है।वो जमीनी हक्कीक्त नही दिखाते ।बाजार में महंगाई आसमान छू रही होती है और आंकड़ कहते हैं महंगाई बढ़ी नही।ये शायद इसलिय है ताकि कर्मचारी और पेंशनरों को कम पैसा देना पड़े।
सरकार को चाहिए महंगाई पर काबू पाए जिससे जनता को राहत मिल