शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल - पार्ट 22 Kaushik Dave द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल - पार्ट 22

"शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल"( पार्ट -२२)

कई बार हालात भी अजीब होते हैं
लेकिन विश्वास के बिना कोई चारा नहीं है
किसी का भला करने के लिए सहमति देनी पड़ती है
यही एक भावुक व्यक्ति का लक्षण है
एक परोपकारी आत्मा का मन दुखी हो सकता है
लेकिन दूसरों को तकलीफ़ में नहीं देख सकता..

शुभम को याद आता है कि मरीज युक्ति की चिठ्ठी उसके भाई को पहुंचाने गया था।
रवि जो युक्ति का भाई है उससे युक्ति के बारे में पूछता है।

अब आगे....

रवि:-"देखो डॉक्टर साहब, मेरी हालत के बारे में युक्ति को कुछ भी नहीं बताना है।और जो मैं आपको बताने जा रहा हूं वो भी युक्ति को मत बताना।अगर आप मुझ पर यकीन करें तो मैं पूरी केस हिस्ट्री बता दूंगा। उसके केस में मैं भी फंस गया था।"

डॉक्टर शुभम:-" मुझे आपकी बात मान लेने दीजिए, शायद आप सच कह रहे हैं। मैं युक्ति के जीवन के बारे में जानना चाहता हूं इसलिए आपकी शर्तें स्वीकार्य हैं। मैं बहुत भावुक हूं। मैं एक एनजीओ से बात करके युक्ति की व्यवस्था करने की कोशिश करूंगा। लेकिन फिर तुम युक्ति के जीवन में हस्तक्षेप नहीं कर पाओगे।”


रवि:- "ठीक है..ठीक है..तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद कि तुम युक्ति के लिए उचित व्यवस्था करने का प्रयास करोगे। अब मैं तुम्हें बता रहा हूं। युक्ति को गांव के एक युवक से प्यार हो गया। घर में किसी को पता नहीं था लेकिन मुझे मालूम हो गया था लेकिन देरी से मालूम हुआ था।। लेकिन फिर उस युवक ने मेरी बहन को धोखा दे दिया। उसने अपनी पसंदीदा लड़की से शादी कर ली। वह अक्सर चिड़चिड़ापन में गुस्से हो जाती थी। तब से युक्ति को कोई व्यक्ति प्रेम करता हो ऐसी व्यक्ति पसंद नहीं थी। जिसके परिणाम स्वरूप मुझे भोगना पड़ा। मेरी माता कटु स्वभाव की थी।"


डॉक्टर शुभम:-"ओह.. सच बोल रहे हो या कहानी बना रहे हो?"

रवि:-" मैं सच कह रहा हूं। आप पड़ोस में पूछ सकते हैं। मेरी मां का स्वभाव सख्त था। इस वजह से पापा भी घर में ज्यादा नहीं रहते थे। मुझे गांव की एक लड़की से प्यार हो गया लेकिन वह दूसरी जाति से थी। मेरी माँ को यह पसंद नहीं था। साथ ही उसकी ईर्ष्यालु प्रकृति भी मुझ पर भारी पड़ती थी।"

डॉक्टर शुभम:-" एक मिनट.. लेकिन युक्ति ऐसा क्यों करेगी? वह भी किसी से प्यार करती थी। प्यार में त्याग होता है। मुझे विश्वास नहीं होता कि  भाई के साथ अन्याय करेगी।"

रवि:- "मेरी गर्लफ्रेंड की मां और मेरी मां में अनबन थी। दोनों एक दूसरे से बोलते नहीं थे।एक और कारण था। मेरी मां मेरी गर्लफ्रेंड के घर गई और झगड़ा किया और मना कर दिया। जिसके कारण उसने आत्महत्या करने की कोशिश की। लेकिन उसकी जान बच गई। तब उसने मुझे बताया मेरे मामा के घर भेज दिया गया लेकिन अगर सच्चा प्यार हो तो कितनी भी मुसीबत आए सच्चे प्यार करने वालों का सामना करना पड़ता है।”

डॉक्टर शुभम:-" तो फिर आप अपनी बहन के प्यार को क्यों नहीं समझ पाए?उसे मार्गदर्शन देना चाहिए था। उसे समझाना चाहिए था।"

रवि:-"युक्ति तो जिद्दी है। इसलिए मैं फंस गया। बहन को बहुत समझाया। थोड़ी दिन सीधी तरहसे रहती थी लेकिन फिर उसका मन बदल जाता। अब वह यहां नहीं है तो मेरी तो जिंदगी ही सेट हो गई। मैं आगे बढ़ रहा हूं। दूसरे शहर में जा रहा हूं लेकिन मैं तुम्हें एक बात बता दूं। मेरी प्रेमिका और उसकी मां छह महीने बाद मुझसे शादी करने के लिए तैयार हैं। मुझे नई जोब मिल गई है और छह महीने के बाद शादी कर लूंगा।अब आप ही बताओं जिसके जीवन में अंधेरा हो गया हो वह अपनी लाइफ के बारे में सोचेगा ही। मैंने भी फैसला किया है कि अब मुझे मेरी लाइफ बनानीं है। मुझे परवाह नहीं है कि आप मेरी बातें सच मानें या ना मानें। मैंने अपनी तरफ़ से आपको बताया है।"

डॉक्टर शुभम:- "ठीक है..ठीक है..यह अच्छा है कि तुम्हारी जिंदगी बस यही है। मैं यह बात युक्ति को नहीं बताऊंगा। लेकिन युक्ति ने अपने पिता को क्यों मारा? तुम उस केस में कैसे फंस गए? युक्ति का केस दोबारा खोलने की बात करनी है। मैं जिम्मेदारी लूंगा।"

रवि:-"ओह..अच्छा.. लेकिन मैं युक्ति के केस के लिए तैयार नहीं हूं। आप सोचेंगे कि मैं स्वार्थी हूं। अब मैं स्वार्थी बनना चाहता हूं। मेरे पिता का स्वभाव अच्छा था। लेकिन घर के माहौल में उनका स्वभाव भी बदल गया ।घर पर अधिक समय तक नहीं रहते थे। क्योंकि मेरी माता का कटु स्वभाव था और युक्ति मेरी माता का साथ देती थी।मेरे पिता ने एक निर्दोष व्यक्ति को फंसाकर उन्हें बदनाम करने और बर्बाद करने की कोशिश की, जिसके परिणामस्वरूप उनकी जान चली गई।"

डॉक्टर शुभम को समझ आ गया कि अब मामला मुख्य बिंदु पर आने लगा है।

डॉक्टर शुभम:-"मुझे अभी भी समझ नहीं आया। आप क्या कहना चाहते हैं? इस कहानी में युक्ति कहां से आ गई?"

रवि:-" वह मामला अलग था। हमारा एक और घर भी है। यहीं नजदीक की गली में है। इसे मेरे पिता ने किराए पर दिया  था। अब यह खाली है। मेरे पिता ने यह घर एक शिक्षक को किराए पर दिया था। उनका नाम हरि है। बहुत सरल स्वभाव था ।उसका तबादला इस गाँव में हो गया था, वह किराये के मकान की तलाश में था इसलिए पिता ने उसे हमारा दूसरा घर किराये पर दिया था।  वह हरि लगभग तीस साल का था । यंग था और खूबसूरत था एवं स्वभाव भी अच्छा था। मेरे साथ घुल-मिल गया था।"
( आगे की कहानी जानने के लिए पढ़िए मेरी धारावाहिक कहानी)
- कौशिक दवे