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सगीना बरसात का मौसम निहार रही थी, बालकोनी मे ख़डी। सड़क का नजारा, कया नजारा था, पहाड़ीयों के बीच जैसे ख़डी हो और भीग रही हो, एक एक बून्द जैसे उसके ऊपर और वो सिकुड़ रही हो....
बस ये खाब था, जो जल्द ही जॉन ने तोड़ दिया... पीछे से जोर से माधुरी उर्फ़ सगीना को बाहो मे भींच लिया, " माँ तुम हैरान हो " सगीना उल्टा प्रश्न सुन के सुन सी हो गयी।
"हैरान, कयो भला " सगीना ने पूछा।
इस लिए, पापा ने मेरा और आप का दोनों का हालेड का प्लान किया है, उनोहने मुझे बता दिया था।
" बस दोनों ही जायेगे, पापा नहीं। "
"ये तो मैंने पूछा ही नहीं " ----- माधुरी हस पड़ी।" हम को कौन जानता है... हालेड मे " पापा को कहुगा, साथ चलो। "
"दादा जी के मामा वही के वस्नीक है, मोम...." जॉन ने कहा, "हम कुछ इनसाइकूट के स्टूडेंन्ट बन के जायेगे। "
"जानी हम ईसाई मत कबूल करेंगे।" सगीना उर्फ़ माधुरी ने कहा।
"कितनी ख़ुशी है, मोम " राहुल बोला " आप को नहीं "
"कयो नहीं बेटा " माधुरी सवाली मुस्कान मे थी।
फिर दोनों चुप थे।
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टकले रंगीले से फिर से शादी का प्लान कामजाब हो निकला था। एक लम्बे अंतर काल के दौरान....
पहले की लाइफ अपसेट थी, बर्दाश्त किया था। रीना ने भी कितना उसे, फिर एक हो रहे थे, रीना को तरस उस पर उसके प्यार और इज़हार पर आ के एक ट्रक छे टायरो वाला खरीद के दिया था, अब उसका रोजगार और उनकी बेटी थी। जो अब आठ -नौ साल की हो चुकी थी।
रंगीला टकला :- शराब और शादी वाह, लाइफ मे जरूरी है, ओह मेरी बेटी। "रीना बेटी को कोई सबक दें रही थी, उसकी क्लास की पढ़ाई का......
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तभी फोन की रिंग टोन वजी ---" हेलो, मैं रीना से बात कर सकता हुँ। " बड़ी दुखी स्वर मे भरे हुए टूटे हुए स्वर मे कहा।
"---रीना तुम्हारा फोन " आख़री पेग लगाते हुए कहा रंगीले टकले ने कहा।
"कह दो, बिज़ी हुँ, मैं " टकले को रीना ने कहा और बाहे ऊपर किये अगड़ाई लीं।
"सुन लिया तुमने " फोन काट के टकले ने कहा, "उम्र पेतीस की औरत की और अगगड़ाई मार देती है।"-----
"अच्छा जी ----" रीना ने सवाली निशान किया ??
आज सिक्सर मरुँगा.... टकले ने शरट उतार के कहा।
"इरादे आप के नेक नहीं लगते। " रीना ने फिर सवाली निशान लगा दिया।
------------" जवानी मे कुछ किया है तो जान तुमसे। "
हसते हुए टकले ने कहा। रीना ने लड़की को भेज दिया था गाइडरन पास दूसरे कमरे मे।
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जो दब जाये वो प्यार नहीं, फ़टे न वो ज़नाब बारूद नहीं.... दबे हुए प्यार करोगे, तो संतुष्ट न हो पायोगे, याद रखना, बेशर्मी मे इश्क़ रंगो मे बिखर जावे, ऐसे ही बारूद फटने से जैसे अंग कट जावे है।
कुछ सासो का मेल न होना, यही संबंध है, यहाँ एक अटूट बंधन मे सास आ गयी, वही इश्क़ की संतुष्टि है,
मगर लम्मा समय मिल पाना, रीना को बहुत कठिन था। सच मे वो इश्क़ नहीं टकले से उच्ची उच्ची बाते सुनना खलता था। अलग थलग ऐसे होते थे, मानो जैसे चौका भी नहीं मार सका हो..... इतना झूठ कयो बोल कर शुरू करता था। तेज दौड़ वाले घोड़े किसे पसंद नहीं होते। बस इसी कारण रीना ने चार साल दुरी बना रखी थी।
/ / -------(चलदा )