जंगल - भाग 18 Neeraj Sharma द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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जंगल - भाग 18

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                     पुलिस क़ी छान बीन, राहुल के घर जयादा, या ऑफिस दिल्ली के कनाट प्लेस एरिया क़ी, 

Dsp तुषार, और शिमला क़ी पुलिस क़ी एक आवाज़ मे जोर था, वो हल कैसे हुआ ये राहुल ही जानता है।

उसकी कार और बच जाने क़ी स्वाबना, वक़्त क़ी खेल, तुषार का बीच यारी का मतलब समझना... जेल से, केस से आपनी ग्रंटी पे रफा दफा करना, मेहरबान हो, मालिक तो सब कुछ अहसान समझ के उतार भी देता है। कभी तुषार को, कभी ऐसी परिस्थिति मे हेल्प क़ी थी, दिल खोल कर, आर या पार.... उस वक़्त पीछे जाना पड़े गा। चलो फिर.... बात 1999 क़ी ------------

रात आदमरी सी, जैसे दिसम्बर के महीने मे अक्सर लोग चुरसते मे आग लगाए टायर को आग सेक रहे थे।

धुआँ दारी जयादा थी। तभी सड़क से पुलिस गाड़ी भागी आ रही थी। कितनी ही तेज... एकाएक ब्रेक, ट्रक से पिस्टल का फायर, अचनचेत..... गोली कंधे पर लगी तुषार के, वो कोई चुस्ती भी दिखा न पाया। ट्रक का पीछा करती पुलिस जीप... एक होलदार का सीना चीर गयी बूल्ट... ट्रक का स्टेर्ग इतनी फुर्ती मे मुड़ा, क़ी अगली आ रही कार से करेश हो गया। ट्रक का पिछला गेर... पड़ते ही एक गोली उस ड्राइवर के दिमाग़ से निकल गयी। जिसने ये मारी निशाना लगा के, ये राहुल था, एक और वेयक्ति अमजद नामजद था। वो निकल कर भाग ही नहीं सका, उसकी रान पे अटेक गोली का, वो वही शायद दम तोड़  गया। राहुल ने फुर्ती से जीप का हेडल संबाला और सरकारी हॉस्पिटल ले गया।

ये दोस्ती क़ुरबानी के नाम पर मशहूर हुई।

तुषार को 48 घंटे बाद होश आया। उसकी पत्नी बच्चा 

हॉस्पिटल मे थे...

ट्रक पुलिस ने जब्त कर लिया था। उस मे गाये जो पचास होंगी जिसका कत्ल करना लाजमी था। रहायी कर दी गयी.... कमीशनर मोके पर मजूद थे।

तुषार का सब को फ़िक्र था... जिन्दा बच जाये।

ये थी उस साल क़ी जबरदस्त कहानी.... 1999 क़ी...

इंस्पेक्टर से dsp बन कर तुषार ज़ब इस ही शहर मे यहाँ आया। तो उसने राहुल को मिलना चायेया था।

तेरी क़ुरबानी रंग लायी। राहुल का आज भी वो धन्यवाद करता था।

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ये सत्य कहानी का आधार बनी है। राहुल सोच रहा था, कितना हौसला था कभी मुझ मे, आज उम्र से फर्क पड़ गया। पता नहीं कयो इतना, सोचता हुँ मैं, गेम क़ी तरफ ध्यान कयो नहीं दे रहा था।-------------------------786

जॉन उसकी कमजोरी था... उसे पता था। उससे दूर होना, मौत का अनुभव होना था। कया करू, कि ये कमजोरी भी दूर किसी अच्छी पॉजिशन मे चले जाये।

मैं  बे -फिक्र हो जाऊगा। + सदा के लिए।

तभी फोन की घंटी वजी। टुन थी कैसे गीत की... "हेलो राहुल, " 

सुरीली आवाज़ थी.... रीना तुम। "

"हाँ मैं वही स्थान पर हुँ। यहां धमाका हुआ था।" राहुल  हैरान था।

" बोलो फिर " राहुल ने शार्टकट किया।

"---- तुम जिसकी बात करते थे, वो छोड़ चूका है, इस वादियों को, कश्मीर जा चूका है। रीना ने कहा, जैसे कोई खोज बीन अधूरी रह गयी हो।

------" तुम मुझे छोड़ कर चली गयी एकेली... कयो???

तुम्हे कुछ हो जाता फिर..... " राहुल की बात अधूरी रह गयी थी " इतना फ़िक्र करते हो, मेरा, उस टकले ने कभी फोन भी नहीं किया। " रीना की आँखे भर आयी थी।

"अब कया करू -----" राहुल से पूछा उसने।

------------( चलदा )