अपराध ही अपराध - भाग 29 S Bhagyam Sharma द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अपराध ही अपराध - भाग 29

अध्याय 29

पिछला सारांश 

कार्तिका इंडस्ट्रीज के संस्थापक कृष्णा राज के दिए दो असाइनमेंट्स को सफलतापूर्वक पूरा करने पर धनंराजन से बहुत खुश होकर उन्होंने उसकी तारीफ की।

कृष्णा राज के हिस्सेदार दामोदरन और उनके लड़का दोनों में मिले असफलता को सहन न कर पाने के कारण बहुत गुस्से में थे। तीसरा असाइनमेंट को किसी तरह से बाधा उत्पन्न करना ही पड़ेगा ऐसा सोचने लगे।

‌ धनंजयन का तीसरा असाइनमेंट के बारे में कृष्णा राज के बोलते समय ही उनके पलंग के नीचे रखे माइक्रोफोन के द्वारा दामोदरन को सब कुछ पता चल गया।

दामोदरन के मुस्कुराते समय ही विवेक ने आकर उसे नोटिस किया।

“क्या बात है अप्पा रहस्यात्मक ढंग से हंस रहे हो। मेरी समझ में तो नहीं आया।”

“इस कृष्णा राज के बारे में सोचकर, हंसी आ गई। हर हालत में थोड़े दिनों में मरने वाला है। मरने के पहले कैसे और रुपए कमा लें यह न सोचकर कैसा मूर्ख है यह सोचकर हंसी आ गई।”

“आपको हंसी आ रही है। इसके बारे में सोचकर मुझे चिढ़ होती है। यह आदमी तो क्रेक हो गया है। बिना समझे ही पूछ रहा हूं ,क्या यह महात्मा हो जाए तो इसके पुराने पाप धुल जाएगा?” 

“एक बीमारी के साथ और दस बीमारी आने से वह डर गया। बस इतनी सी बात है। जाने दो उसके सामने ही उसका तीसरा असाइनमेंट क्या है पता लग गया। अपना ध्यान अब उस पर ही होना चाहिए।

“इस बार वह धनंजयन किसी भी तरह से जीतना नहीं चाहिए। वैसे जीत तो ‘अंडरग्राउंड बिजनेस’ करने में भी कोई अर्थ नहीं है। फिर हमें चुपचाप सिर मुड़वाकर किसी मंदिर के बाहर ही जाकर बैठना पड़ेगा।”

“क्या आप बात है पापा आप कैसी बात कर रहे हो?”

“मैं बात नहीं कर रहा हूं उस धनंजयन ने मुझे बात करने के लिए मजबूर कर दिया।”

“अप्पा वह एक कष्ट उठा रहे मध्य वर्गीय परिवार वाला है। एक जींस पैंट भी लेने की हैसियत उसकी नहीं थी । किसी तरह से तकलीफ उठाकर सिर्फ एक डिग्री उसने ले ली।

“उसकी अम्मा पापड़ अचार बनाने वाली है। उसकी दीदी एक सिलाई करने वाली है। इसके अलावा दो छोटी बहनें और हैं। पूरे परिवार को सोते समय रात को गैस सिलेंडर को खोलकर एक माचिस की तिल्ली जलाकर डाल दो बस।

“सिलेंडर फटने से विपत्ति में एक पूरा परिवार खत्म हो गया दूसरे दिन समाचार आ जाएगा सब खत्म हो जाएगा। उसके बारे में सोचकर आप इतना दुखी क्यों हो रहे हो?” बड़े आराम से विवेक बोला।

“विवेक…. तुम इसे करके आकर बात करते हैं, तो मैं अब क्यों ऐसी बात करता। एक बार के बदले दो बार हारने के बाद अब भी ठीक से बिना सोचे जल्दबाजी कर बात करते हो!”

“उससे क्या होता है अप्पा…. आज ही उसे कर देते हैं।”

“तुम ऐसे ही बोलोगे मुझे पता था। इन सब बातों की अब जरूरत नहीं है। अब उस धनंजय के बारे में फिकर करके तू परेशान मत हो। उसे उसके रास्ते चलने दे। अभी उसको तीसरा असाइनमेंट भी कृष्णराज ने दे दिया। बाद में देखना तमाशा….”

“खत्म करने दें। हां वह तीसरे असाइनमेंट का पता चल गया अप्पा…मुझे ही मालूम नहीं यह आपको किसने बताया?” 

“हमेशा रूपयों की आशा करने वालों के बोलने पर ही मालूम होगा क्या? आज विज्ञान ने हमें बहुत सारे रास्ते बता दिया बेटा।”

“माइक्रो रिसीवर?”

“गुड…ज्यादा बकबक ना करके, चुपचाप मालूम कर लिया। कल उसको देखने के लिए अपने ऑडिटर को भेजा था। तभी उसके पलंग के नीचे माइक्रोफोन रिसीवर को रखकर आने के लिए बोल दिया था। उन्होंने उस काम को कर दिया तो अब उनकी योजना के बारे में पता चल गया।”

“ वे लोग आगे कभी मालूम नहीं कर सकते?”

“संदेह होगा तो निश्चित रूप से धनंजय इसे मालूम कर लेगा। मोबाइल के जैमर को कृष्ण राज के कमरे में रख दे तो बस। फिर वह साइलेंट हो जाएगा। परंतु अब हमें इसके बारे में फिक्र करने की जरूरत नहीं है विवेक।”

“क्यों अप्पा?”

“उसका तीसरा असाइनमेंट तो पता चल ही गया?”

“वह क्या है अप्पा?” विवेक के पूछते हैं दामोदरन ने सब बता दिया।

“अरे बाप रे! वह ऐसा जगत का पिता है क्या?”

“वह कई औरतों के साथ सोया हुआ है। परंतु इस शारदा ही इससे गर्भवती हो गई। इससे वह उससे रुपए न वसूल कर मुझसे शादी कर लो ! ऐसा कहकर उस पागल ने इसे परेशान किया। आखिर में कुंए में गिरकर मर ही गई।”

“फिर वह बच्चा?”

“उस समय वह बच्चा था अब वह तेरे जैसे युवा है।”

“उसे कहां जाकर ढूंढेगा?”

“उसी को तो हम आराम से बैठकर दूर से तमाशा देखेंगे।”

“अरे बाप रे…कहानी है वह उस लड़के का मालूम कर ले तो?”

“पकड़ लेगा करके डरो मत….. पकड़ लेना चाहिए करके इच्छा रखो।”

“कैसे हो अप्पा आप फिक्र मत करो और ऐसा सोचो कि वह पकड़े! कैसे कह रहे हो?”

“ऐसा क्यों कह रहा हूं यह बात अभी तुम्हारे समझ में नहीं आएगी। परंतु जब वह उस युवा से पास जाएगा तो पता चल जाएगा। तुम्हें जो करना है वह बस एक है। उस धनंजय को कुछ भी ना करके; चुपचाप दूर से देखते रहो; मुझे बताते रहो; अभी तक के लिए इतना बहुत है।’

“अप्पा …”

“जो कह रहा हूं वही करो विवेक। एक शतरंज का खेल शुरू हो गया। आखिर में कौन जीतता है सिर्फ वह देखो” दामोदरन ने कड़ाई से बोलकर बात खत्म किया।

एक दैनिक पत्रिका का ऑफिस।

धनंजयन और कुमार सब एडिटर षणमुगम के सामने बैठे हुए थे।

1997 दिसंबर माह के आखिरी हफ्ते के पेपर सभी उनके सामने थे। उसमें दिसंबर 27 तारीख के पत्रिका में ‘कचरे के डिब्बे में बच्चा!’ वह समाचार आंखों में दिखाई दिया।

किसी तरह ढूंढ कर उन्हें यह शुरुआत मिल गया।

“बहुत-बहुत धन्यवाद सर। हमारे लिए बहुत परेशान होकर आपने इस समाचार पत्र को ढूंढ कर हमें दिया। कहीं नहीं मिले तो ऐसा सोच कर डरते हुए ही हम आए थे।” धनंजयन ने उप संपादक को धन्यवाद दिया।

“बिल्कुल ठीक है साहब। आजकल तो सब कुछ :डिजिटल कापी’ ही होती है। ‘इस तरह के पेपर प्रिंटों’ को दीमक से बचाकर रखने के लिए बहुत ज्यादा परेशानी होती है। इस विषय में सचमुच में आप बहुत भाग्यशाली हैं।”

“हमारा भाग्य इस पेपर के मिलने से नहीं सर। इस समाचार में है की कचरे के डिब्बे में बच्चा अब इस बच्चे के मिलने में ही है।”

“वेरी इंटरेस्टिंग…यह बच्चा ‘आई मीन’निश्चित रूप से युवा बन गया होगा आप लोगों के जैसे, अब क्यों ढूंढ रहे हो जान सकता हूं?”

“वह एक बहुत बड़ी कहानी सर…संक्षिप्त में बता देता हूं। यह बच्चा एक गलत संबंधों से पैदा हुआ था। उस गलती को उस दिन किया वह आदमी आज बदलकर एक अच्छा आदमी हो गया। बच्चे को ढूंढ कर फिर अपने पास रखने की उनकी इच्छा है।”

“बहुत बढ़िया सर…अच्छा कौन है वह? मैं जान सकता हूं?”

“प्लीज सर। इसके आगे कुछ मत पूछिएगा। मैं भी ना बताने के स्थिति में हूं।”

“समझ में आ रहा है…यह एक अच्छी बात है। इसके लिए आपकी मदद करने में मुझे भी खुशी हो रही है। इसके बारे में आगे आपको जो भी मदद चाहिए आप बिना संकोच के बोलिएगा। साधारणतया इस तरह के विषयों पर एक लेख आए तो जनता को जागृत करने का एक उपाय होगा।

“इसलिए यह लड़का मिल जाए तो फिर सब एक साथ हो जाए ! तो मुझे खबर करिएगा। मैं उस पर एक लेख लिखूंगा। उसमें निश्चित तौर पर मैं आप लोगों का नाम नहीं डालूंगा।”

“होने दो सर…. आपकी मदद के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद” कहकर बाहर आकर कार में धनंजय अपने मोबाइल फोन से खींचे फोटो के समाचार को एक बार फिर पढ़ा।

कचरे के डिब्बे में बच्चा!

नुंगंबाकम्, लायला कॉलेज पास जो कचरे का डब्बा उसमें एक महीने के अंदर पैदा हुआ बालक मिला। कचरे को उठाने के लिए नगर पालिका के सफाई कर्मचारी जब वहां शंकर लिंगम नाम के आदमी गए तो वह बच्चे को देखकर उन्हें सदमा लगा। फिर उन्होंने उसे बच्चे को वहां पास में ‘बच्चों के होम’ के सुपुर्द किया।

 उस खबर को उसने बार-बार पढ़ा। कार चलाने वाले कुमार को देखकर बोला “कार को कॉरपोरेशन ऑफिस की तरफ ले चलो। कमिश्नर को देखकर उस शंकर लिंगम कौन है इस बात को पहले मालूम करते हैं।”

“क्यों बे, उन्हें पढ़े तो ही वह बच्चों का होम कौन सा है पता चलेगा?”

“एक्जेक्टली”

“ शंकर लिंगम अभी भी सर्विस में होगा? क्या? तुम ऐसा सोचते हो?”

“पक्का उसकी तो उम्र हो गई होगी। रिटायर भी हो गया होगा। हो सकता है कहीं नौकरी में हो तो?”

“क्यों वह मर भी गया होगा?” 

“ऐसा नेगेटिव क्यों बात कर रहा है रे?”

“सभी तरफ के कोणों से सोचना चाहिए ना?”

“मैं सिर्फ पॉजिटिव ही सोचता हूं। ‘नेगेटिव थिंकिंग’ किसी भी विषय में नहीं होना चाहिए कुमार।”

“इसे कहना आसान है धना। परंतु सोचना कठिन है। अभी भी देखो इस ट्रैफिक में कोई भी कैसे आकर टकरा जाएगा डरते हुए ही मैं गाड़ी को चला रहा हूं।

“हमारे जैसे कार रखने वाले सभी लोग इस ‘रेडियल बाइक’ लोग ही यम हैं। एक भी युवा सीधे नहीं जाता है। एक भी सीधा नहीं जाता है। उस पर चढ़कर बैठने के बाद सांप जैसे डांस करता है। बिना इधर-उधर घूमे बिना वे लोग गाड़ी नहीं चलाते हैं।”

“तू बकबक के बिना गाड़ी को देखकर चला। वह शंकर लिंगम जिंदा रहना चाहिए ऐसा मैं भगवान से प्रार्थना कर रहा हूं।”

“धना, तुझे तेरे भगवान पर भरोसा है क्या?”

“अभी क्यों रे यह प्रश्न?”

“आजकल यूथ का मतलब दक्षिणपंथी होता है, यही तो ट्रेंड है?”

“सिर्फ यही क्या, सर के बालों को खड़े-खड़े अजीब ढंग से रखते हैं। उसमें भी कानों में बाली पहनते हैं। शर्ट में बटन ही नहीं लगाते हैं। पूरे शरीर में हरे-हरे पुराने जमाने जैसे गुदवाते हैं । ब्रो ब्रो कहकर ही बात करते हैं।”

“येस ब्रो. यू आर करेक्ट?”

“ओ.के. ब्रो, तुम चुपचाप गाड़ी ठीक से चलाओ।”

वे लोग आपस में हंसी मजाक कर हंस रहे थे इसी बीच कॉर्पोरेशन का बिल्डिंग भी पहुंच गए।

आगे पढ़िए….