रायपुर का रेल्वे स्टेशन,मैं रोज की तरफ अपने कॉलेज जाने के लिए एक लोकल का टिकट लेकर बैठी ट्रेन का इंतेजार कर रही थी, और ये मेरे रोज का रूटीन था कि मैं थोड़े देर पहले जाकर ही टिकट लेकर कम से कम 10-15 मिनट तो बैठती थी ताकि मुझे थोड़ा पढ़ने का टाइम मिल जाये,
वही रोज मेरे इस इंतेजार में मेरा कोई और भी साथी होता था एक 25 - 26 साल की लड़की,वो अक्सर मुझे स्टेशन पर उसी टाइम पर मिलती थी और जब भी मैं कुछ पढ़ती थी तो वो मेरे साथ मेरे बुक को बहोत ध्यान से देखते थी,बात चीत से पता चला मुझे की उसे पढने लिखने का बहोत शौक था लेकिन वो पढ़ लिख नही सकती थी, लेकिन क्यों ये मैने नही पूछा क्योंकि शुरू से मेरी आदत थी कि जब तक कोई खुद अपने बारे में ना बताए मैं उनके बारे में कुछ नही पूछती थी, क्योंकि किसी की लाइफ में दखल देने वाले हम कौन होते है ,
मैंने भी मान लिया कि शायद कोई आर्थिक तंगी की वजह से वो ना पढ़ सकी होगी, लेकिन उसने इतना तो बताया ही था कि उनके पिता की तबीयत ठीक नही है उन्ही के इलाज के लिए वो गांव से यहाँ आयी है और इलाज के लिए यही काम भी करती है,
आज बहोत देर वेट किया मैने लेकिन आज वो नही आई थी, मुझे लगा शायद वो मुझसे जल्दी चली गयी हो, या होगा कोई वजह , ऐसे ही करते करते 3 दिन निकल गए वो मुझे अब नही मिलती थी, तो मैंने सोचा शायद उसके काम पर जाने का टाइम चेंज हो गया हो, लेकिन पता नही क्यों अंदर से मन नही माना, मैंने पास में एक फल वाली को देखा अक्सर वो उससे बाते करती थी,
मैने भी बिना कुछ सोचे जाकर उससे पूछ लिया, वो मानो वो फल वाली आंटी मेरा ही इंतेजार कर रही हो,मेरे पूछते ही उसने मुझे एक कागज पकड़ाते हुए कहाँ,"ये उसने तुम्हारे लिए छोड़ा है "।
मेरी नज़रे भी बड़ी हैरानी से उस कागज और उस औरत को देखने लगी, मैंने वह खत अपने हाथ मे लिया, उसमे एक बच्चों की लिखावट थी जो उसने तो नही लिखी थी क्योंकि उस बेचारी को लिखना कहाँ आता था, शायद उसने किसी से लिखवाया था,
उस खत को पढ़कर मेरी आँखें नम हो गयी थी क्योंकि कुछ ऐसा लिखा ही था उसमें, जिसे पढ़कर मैं खुद को रोक नही पाई, जो कुछ इस तरह थी,
"गुड़िया,
ये मेरी मैडम के बेटे से लिखवा रही हूँ, मैं जानती हूँ आप मुझे जरूर याद करती होंगी, इसलिए ये खत आपके लिए, आपको पता है मैं आपसे हमेसा कहने की कोशिश करती थी कि लेकिन फिर सोचती थी आपको क्या ही मतलब होगा मेरी बातों से लेकिन इतने महीने या कहे साल हो गए हमे और आपने भी बहोत कुछ सिखाया है मुझे, आपकी वजह से मैं अब अपना नाम लिख सकती हूँ, गुड़िया मैं आज वापस जा रही हूं आज मेरे बाप का साथ छूट गया मुझसे, वही जिसने कभी मुझे अपने वजूद से अलग कर दिया था वो भी इसलिए कि मैं एक लड़की हूँ,
मेरे होने से पहले ही उसने सुना दिया था मेरी को ये पैगाम की इस बार अगर लड़की हुई तो वो मार देंगे उसे, लेकिन बदकिस्मती तो देखिए मेरी माँ की मैं हो गई, उसी रात मेरे बाप ने मुझे रेल्वे स्टेशन पर छोड़ दिया था ताकि मुझसे पीछा छूट जाए, लेकिन बड़ी धित थी मैं भी ना मरी ना वहाँ से टस की मस हुई फिर दूसरे दिन आया था मेरा बाप मुझे देंखने तब ज़िंदा देख वापस अपने साथ ले गया था, ऐसे ही वो कई रात कभी मंदिर कभी चौराहे तो कभी कूड़े में डाल आजमाता मेरी ज़िंदगी को, लेकिन फिर उन्होंने हार मान ली,
उसके बाद मेरे 2 भाई भी आये, पिता का लाड - प्यार उन्हें खूब मिला, हर चीज उन्होंने पाई, बस मिला ना किसिको तो वो थी मैं , एक दिन ऐसा आया जब माँ का साया भी उठ गया सर से, और जिन बेटों के लिए मेरे बाप ने इतनी जद्दोजहद की वो भी अपने बीवियों और बच्चों संग छोड़ गए अकेले, उनकी बीमारी में भी ना साथ दिया उनका ना सहारा दिया उन्हें, आज साथ दिया उनका तो सिर्फ इस अनचाही बेटी ने, क्या करती मैं भी था तो मेरा जन्मदाता , अब ना वो ताकत थी उनमे की सेक सके दो रोटी खुद के लिए , अगर चली जाती मैं भी ब्याह कर तो करता कौन उनकी देखभाल,आज उनके जाने के बाद याद आयी है मेरे भाइयों को उनकी ,आये है लेने हिस्सेदारी ।
~Shweta Pandey