लालच कहूँ या लाचारी Shweta pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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लालच कहूँ या लाचारी

लघु कथा

सुबह के 10 बजे थे, सबके ऑफिस और कॉलेज जाने का वक्त था ये , मैं रोज की तरह ही बस का इंतेज़ार कर रही थी कॉलेज जाने के लिए , की तभी मेरी ध्यान एकाएक सामने लगी भीड़ पर जाती है,

मुझे भी जिज्ञासा हुई कि आखिर ऐसा क्या हुआ है जो वहाँ इतना भीड़ लगा हुआ है,मैं भी उस भीड़ के बीच पहुँची तो जो मैंने देखा मेरी हाथ पैर कांप गए, एक बच्चा बेसुद हालत में पड़ा था, उसका सर उसकी माँ ने अपने गोद मे रखा हुआ था, जो लहूलुहान था, वही वो मा रोती बिलखती अपने बच्चे को जगाने की कोशिश कर रही थी,लेकिन शायद अब बहोत देर हो चुकी थी,उस मां की पुकार झकझोर रही थी सबको,

वहाँ लोगो को शायद ये अंदाजा पहले ही हो गया था,लेकिन कोई उस बच्चे को उठाकर हॉस्पिटल तक भी लेजाने की नही सोच रहा था,आप सोच रहे होंगे क्यों?,मैं बताती हूँ , उस बच्चे के कपड़े फटे हुए और धूल से सने थे,उस मा की आँचल भी फटे हुए,देखकर साफ पता चल रहा था,ये वो बदनसीब है जिन्हें सोने के लिए एक छत भी नसीब नही ,अब तो साफ था, क्यों हाथ लगाएगा कोई उन्हें,चलिए छोड़िये,मुझसे रहा नही गया, मै उस माँ की सहायता के लिए आगे बढ़ती की तभी एम्बुलेंस आ रुकी, चलिए उन समझदार लोगो ने इतना काम तो कर ही दिया था, उन्हें लेजाया गया कि तभी मैरे कानों में कुछ आवाजे आयी,

"भीख मांगने की आड़ में चोरी करेंगे तो यही होगा ना"

"इन लोगो का यही काम है अच्छे खासे होने के बावजूद चोरी करना और भीख मांगने का इन लोगो ने धंधा बना लिया है"

"हाँ ना वो चोरी करता और ना ही भागता और ना ही मरता "

एक पल को मेरे मन मे भी यही ख्याल आया कि क्या सच मे उसने चोरी की है?, उत्सुकता की वजह से मैने पूछ ही दिया,"क्या चुराया था उसने?"

तो वही खड़ा एक मोटा तगड़ा आदमी कद काठी से साफ पता चल रहा था,की सामने जो मिस्ठान भंडार है वो इनकी ही होगी, और मेरा तुक्का भी सही निकला, 

उस सेठ ने मुँह मोड़ते हुए कहाँ,"अरे कबसे यही खड़ा था, और अंदर खाते लोगो को घूर रहा था, लालची साला मिठाइयों पर नज़र गड़ाए खड़ा था,और यहाँ मेरी नज़र बिचली तो ब्रेड उठाकर भागा ही था कि एक ट्रक ने टक्कर मार दी, इसलिए कहते है लालच का फल बुरा होता है"।

मैंने एक तक उस आदमी को देखा, मेरे पास शब्द नही थे उनसे कहने के लिए,सब वहाँ से चुप चाप अपने रास्ते निकल जाते है, मैने भी कदम बढ़ा लिया ऑटो की तरफ अपने कॉलेज जाने के लिए , लेकिन मन मे बस एक ही सवाल उठ रहा था,

"की क्या उस बच्चे की भूख को लालच कहना सही है,ना जाने हम रोज कुछ ना कुछ खाते है और जो थोड़ा बहोत बच जाए तो या तो कूड़े में डाल देते है या किसी कुत्ते या गाय को देदेते है, 

लेकिन कभी सोचा है वो ना जाने कितने दिनों तक भूखे रहते होंगे, कभी उन्हें खाना मिलता होगा तो कभी सो जाते होंगे यूँ ही भूखे पेट, जिन चीजों से हमारा मन भर जाता है उन्हें तो वो कभी नसीब भी नही होता.....

शायद उस बच्चे ने भी कभी उन मिठाइयों को चखा तो दूर हाथ भी नही लगाया होगा, शायद इसलिए उन्हें ध्यान से देख रहा हों, और लोगो ने उसके इस भूख और लाचारी को लालच और चोरी का नाम दे दिया....."

"तो आप ही बताइए क्या वह लालच था, चोरी या फिर एक भूखे की लाचारी"

~shweta