नादान इश्क़ - 2 rk bajpai द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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नादान इश्क़ - 2



अब तक आपने देखा कि कैसे एक पल में ईशान की शादी टूट गई। जिसके पास वह लौटकर आया था, आज वही उसकी ना रही। एक पल में ईशान बिखर गया था, और कैसे उसे वीर ने संभाला था। अब देखते हैं आगे।

वीर का घर( कुछ साल बाद)

यह कहानी वीर अपने 16 वर्षीय बेटे आरव को सुना रहा है। आरव बहुत ध्यान से यह कहानी सुन रहा है। तभी वह अपने पापा से पूछता है।

आरव: "फिर? फिर क्या हुआ, पापा?"

वीर: "फिर क्या, बेटा? ईशान सच की तलाश में निकलने की सोचने लगा।"

वीर फिर से आरव को आगे की कहानी बताने लगा। जहां से उसने खत्म की थी, वह फिर से वहां से शुरू करता है।


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फ्लैश बैक

ईशान वीर से गले लगाकर रो रहा है। वीर ने उसे थोड़ी देर संभालते हुए बेड पर बैठा दिया। ईशान, अपने आंसुओं को रोकते हुए, वीर से बोलता है।

ईशान: "क्यों यार, सिर्फ हर बार मैं ही क्यों? क्यों भगवान मेरे साथ ऐसा करता है?"

ईशान इतना बोलने के बाद अपने आंसुओं को रोक नहीं पा रहा है और बस रोता चला जा रहा है। वीर, उसे संभालते हुए बोलता है।

वीर: "क्या यार, तू फिर से कमजोर पड़ रहा है? तू इतना कैसे बदल सकता है, यार? बस कर, तू इतना कमजोर नहीं पड़ सकता ईशान। मैं जानता हूं कि तू कैसा है। दुनिया का क्या? वो तो बोलने के लिए ही है। तू क्यों उनकी सुनता है? बहुत सुन ली तूने दुनिया की। अब तू सिर्फ अपने दिल की सुन।"

वीर की ऐसी बातें सुनकर ईशान अपने आंसू पोंछते हुए खड़ा होता है और आगे बढ़ते हुए कदमों के साथ बोलता है।

ईशान: "यह समाज, वीर; बस यही समाज किसी को जीने नहीं देता। ये वही समाज है, जिसकी वजह से कोई मुझसे बहुत दूर है। लेकिन समझ नहीं आता, ये समाज और वो चार लोग चाहते क्या हैं? क्यों किसी को जीने नहीं देते? जबकि कितने दिन कोई बोलेगा? चार दिन बस? अरे, मैं सब सुन सकता हूं, लेकिन शायद हर कोई नहीं। इसलिए ये सब दिन मैं देख रहा हूं। समाज तो बस तमाशा देखने जानता है।"

वीर, ईशान की बातें सुनकर उसे समझाने के लिए उसके पीछे से हटकर उसके सामने आता है और एक हाथ उसके कंधे पर रखते हुए बोलता है।

वीर: "अबे यार, ईशान! तू समाज देख रहा है। अबे, ये वही समाज है जो हर किसी को कुछ न कुछ बोलता है। सोच, अगर लड़की किसी लड़के का साथ देती है और उसके साथ शादी करती है, तो लोग बोलते हैं, अपने बाप की इज्जत गवा दी।' और वही लड़की अगर अपने परिवार का साथ देते हुए उस लड़के से शादी ना करके अपने घरवालों की मर्जी से शादी करती है, तो वही समाज बोलता है कि 'इसने अपने मोहब्बत को धोखा दिया।' अब बता, ईशान, किसकी बात सही है और किसकी गलत?"

ऐसे ही बात बोलते हुए वीर आगे बढ़ता है और बोलता जाता है।

वीर: "भाई, कभी भी कोई भी फैसला लेना तो यह मत सोचना कि ये चार लोग और ये समाज क्या बोलेगा। क्योंकि बोलने के लिए तो ये हैं ही, लेकिन करना सिर्फ और सिर्फ तुझे है।"

वीर की बातें सुनकर ईशान को कुछ समझ आने लगा था। अब वह भी थोड़ा संभल गया और फिर से अपने एक शायराना अंदाज में बोलता है।

ईशान: "उसे बेइंतहा बेपनाह मोहब्बत है।
बस इतना कबूल पाऊं...
बता, ए दोस्त, कौन सी राह से जाऊं
कि उस तक पहुंच जाऊं..."

वीर: "वह मेरे ग़ालिब, अब चल और पता कर, आखिर सच्चाई है क्या?"

ईशान: "हां, सबसे पहले उस लड़की से पता करना होगा कि कौन है? कहां रहती है? और कहां से आई है?"

ईशान की यह नासमझ बातें सुनकर वीर बोलता है।

वीर: "भाई, तू एक लॉयर होकर ऐसी बात कर रहा है। अबे, भाई, तुझे लगता है कि वो सच बोलेगी? तब तू उससे पूछ पाएगा। हमें उसे बिना बताए सच जानना होगा। और एक बात, ईशान। ये बात कोई मानने को तैयार नहीं होगा कि तू सही है। तो थोड़ा संभल कर करना, जो भी करना है।"

ईशान: "हां, वीर, शायद तुम सही कह रहे हो। इस समय मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है।"

वीर: "ठीक है, अच्छा, मैं चलता हूं।"

ईशान: "अब तू कहां जा रहा है?"

वीर थोड़ा मुस्कुराते हुए बोलता है।

वीर: "अब घर जा रहा हूं। अपनी भाभी कब से फोन कर रही है। अगर टाइम से नहीं गया, तो खाना नहीं मिलेगा, भाई।"

ईशान, वीर की बात पर हंसते हुए बोलता है।

ईशान: "ठीक है, ठीक है, जा। मैं भी थोड़ा रेस्ट कर लूं। तुझे कॉल करूंगा, तब चल के कुछ पता करते हैं।"

वीर: "हां, चल। चलता हूं, बाय।"

इतनी बात बोलकर वीर वहां से चला जाता है और अपनी कार स्टार्ट करके अपने घर पहुंचता है। कुछ समय बाद, घर पहुंचते ही वीर की पत्नी छाया उस पर गुस्से से टूट पड़ती है।

छाया: "ये लो, आ गए अपने उस दोस्त के पल्लू से निकलकर। बस, पूरी दुनिया में इन्हें ही वह सही लगता है। बाकी की तरफ देखता भी नहीं है ये इंसान!"

वीर (गुस्से से): "चुप करो! बस, अब और एक शब्द नहीं! बिना जाने किसी के बारे में बोलने का तुम्हें कोई हक नहीं है, छाया।"

छाया: "हां हां, कहां सुनोगे उसके बारे में। पता नहीं क्या जादू मेरे पति पर कर गया वो।"

वीर: "तुम्हें पता भी है क्या बोले जा रही हो?"

छाया: "आप ही बताइए जी, क्या गलत बोल रही हूं मैं? अरे, जो आदमी एक औरत के होते हुए दूसरे के साथ बच्चा पैदा करने में लगा हो, उसकी पूजा करूं या आरती उतारूं?"

वीर को ऐसी बात सुनकर बहुत तेज गुस्सा आता है और चिल्लाते हुए बोलता है।

वीर: "बस, एक शब्द और बोला तो मेरा हाथ उठ जाएगा, छाया!"

छाया: "हां, मारो, मारो! और सीखा ही क्या है आपने? बस, अगर बोलूं तो आपका तो हाथ उठ जाना है! लो, खड़ी हूं, मार लो। लेकिन जो सच है, वह बदल नहीं जाएगा मारने से।"

वीर थोड़ा शांत होता है और बोलता है।

वीर: "यार, जाओ तुम। और हां, वह ईशान बोल रहा है कि वह उसका बच्चा नहीं है, मतलब नहीं है।"

छाया: "अच्छा जी, और वह डीएनए रिपोर्ट उसका क्या? उसे क्या, मेरे चाचा ने छाप के दे दी?"

वीर: "उस रिपोर्ट के बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता। जितना मैं उसे जानता हूं, शायद उसका बाप भी नहीं जानता होगा। आखिर तुम जानती ही क्या हो उसके बारे में? और उसका अतीत? अरे, तुम तो वो देख रही हो जो वो दिखाता है। लेकिन मैं जानता हूं उसे, कि वो किस तरह से टूटा है। तुमसे जरा भी अंदाजा है कि आज उसकी जगह पर कोई और होता, तो शायद जिंदा भी ना होता, छाया।
'अरे यार, हम लोग जिंदगी जीते हैं, वह काट रहा है।'"

छाया, वीर की ऐसी बातें सुनकर थोड़ी सी शांत हो गई। क्योंकि आज से पहले उसने वीर के मुंह से ऐसी बातें ना सुनी थी और ना ही वीर के चेहरे में यह दर्द देखा था। यह बातें सुनकर छाया वीर के पास आकर बैठी और बोली।

छाया: "क्या हुआ जी? आप ऐसा क्यों बोल रहे हैं? मुझे भी बताइए, क्या है ईशान का अतीत? क्यों वह होते हैं, वह भी आज नहीं है।"

वीर: "अरे छोड़ो, जाने दो। बहुत लंबी कहानी है, जो शायद किसी के समझ न आए, तो क्या फायदा उसे सुनने का?"

वीर की ऐसी बात सुनकर अब छाया को और इच्छा होने लगी जानने की। आखिर क्या था ऐसा, जो सारी दुनिया को ईशान गलत और वीर को ही सही लगता था। तभी फिर छाया पूछती है।

छाया: "जी, एक बात बताइए। सारे समाज को वह गलत दिखाता है, सिर्फ आपको ही क्यों वह सही दिखा?"

छाया की यह बात सुनकर वीर थोड़ा मुस्कुराता है और मुस्कुराते हुए अंदाज में बोलता है।
वीर: "पता है, छाया, हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। शायद लोगों ने पहले हिस्से का पहलू देखा है और मैंने उसके दूसरे हिस्से का। शायद यही वह वजह है कि मैं ईशान को अभी भी सही मानता हूं। और मुझे यकीन भी है कि वो ऐसा कभी नहीं करेगा।"

छाया: "अरे, आप सुनाइए ना कि क्या था उसका अतीत?"

वीर: "अभी तक तो तुम उसे भला बुरा बोल रही थी और अब तुम्हें सब जानना है?"

छाया: "हां, लेकिन अब शायद आपके साथ मैं भी सिक्के का दूसरा पहलू देख पाऊं।"

वीर ने हल्का सा सिर झुकाया, फिर एक गहरी सांस लेकर बोला।

वीर: "ठीक है, मैं बताता हूं। वो कहते हैं ना, कहानी कितनी भी पुरानी क्यों न हो, एहसास हमेशा नए होते हैं। तो ऐसी ही कहानी है कुछ हमारे ईशान की।"





क्या था राज जो वीर अपने बेटे को जो कहानी सुना रहा था। उस कहानी में एक और कहानी छुपी है जो अब वो अपनी वाइफ छाया को सुनाएगा? और क्या था इस ईशान का अतीत जो सिर्फ अच्छे से वीर ही जानता था? क्युकी ईशान वीर को हर बात बताता था शायद इसलिए या फिर कोई और वजह ? अतीत की कहानी सुनने के बाद क्या छाया ईशान का साथ देगी अपने पति के साथ मिलकर या नही? जानने के लिए पढ़ते रहे।

नादान इश्क़