एक महान व्यक्तित्व - 2 krick द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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एक महान व्यक्तित्व - 2

इसी तरह हम शहेर से वापस गाँव रहने आ गये अब आगे मेरी स्कूल की पढाई शरू हो गई । जिंदगी का सबसे बोरिंग काम वैसे ऐसा मुझे तब लगता था अब तो पढाई का महत्व पता चला गया है। आपको सुनके बहुत ही आश्चर्य लगेगा की मैने अपने स्कूल जीवन मे कुल 6 बार अलग अलग स्कूल बदली है उसके पीछे भी बडी लम्बी और मजेदार कहानी है। सबसे पहले तो गाव की ही माध्यमिक विद्यालय मे मुझे पापा ने भेज दिया वो मेरे घर से थोड़ा ही दूर थी मेरे घर से दिख भी रही थी। लेकिन मे वहा 2 या तीन दिन ही गया उसके बाद बाल मंदीर के लिये दूसरी स्कूल वो तो स्कूल भी नही थी सिर्फ एक रूम कमरा था जिसमे हम जमीन पे बैठे के पढाई करते थे। इतना छोटा रूम की जो शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाता लेकिन क्या करे हम तो बच्चे थे कौन सुनता हमारी। बड़ा रूम कौन ही देता और वहाँ पता है अध्यापक के लिये खुर्शी थी और हमारे लिये बेंच भी नही थी। फिर भी वहा बाल मंदीर पुरा किया मेरे पापा ने फिर तीसरी बार स्कूल बदल दी और इस बार वही शहर मे ही पढाई शरू हुई लेकिन वहा भी बालमंदिर से ही सब कुछ शुरू से ही शुरू हुआ क्युकी ये वाली स्कूल काफी बडीया थी। मे और मेरी दीदी दोनो ही घर से ट्रैवल करके स्कूल जाते थे गाँव से शहेर एक स्कूल वेन हमे लेने के लिये आती थी। बहुत मजा आता था घर से मम्मी हम दोनो भाई बहन को खाने के लिये टिफिन मे नास्ता अलग से देती थी जो कभी कभी ही मुझे खाने मिलता था ज्यादा तर तो वो मेरी दीदी ही खा लेती थी और डराके चुप कर देती थी और पापा थोड़े पैसे देते थे। थोडे मतलब 5₹ या 10₹ जो उस समय बहुत थे और छोटे थे इस लिये ऐसा लगता था की पूरी की पूरी स्कूल ही खरीद लूंगा। लेकिन हम तो छोटे राजा सिर्फ 20 - 20 बिस्किट ही खरीद पाते थे। हमारा बचपन  कितना मजेदार होता है। हर खूब सूरत पल अगर याद हो तो भविस्य मे सुनके कितना मजा आता है। इस लिये तो मातृ भारती पे मे ये लिख रहा हूँ। कहानी नि पर वापस आते हुवे मुझे स्कूल जाना इतना भी पसंद नही था हर रोज मे बहाने ही मारता था कभी कभी बहाना सफल हो जाये और स्कूल ना जाना पड़े तो वो दिन मेरे लिये दुनिया का सबसे अच्छा दिन बन जाता। ऐसे ही एक घटना मेरे साथ बनी एक दिन मुझे स्कूल जाना ही नही था लेकिन पापा ने पकड के केदि की तरह वेन मे डाल दिया फिर भी मे बहुत रोया हाथ पैर मारने लगा। तो दो तीन सर लोग ने मुझे पकड़ा लेकिन मे एक हमारे यहाँ के सर थे उनके हाथ पर काट के वेन की खिड़की से भाग के घर आया था। बाद मे पता चला की वो गाँव की एक स्कूल के प्रधान अध्यापक थे। आज भी उनके घर जाता हूँ तो वो हसने लग जाते है और बोलते है ये वही है ना जो बचपन मे स्कूल नही जाता था और  मेरे हाथ पे काट के गाडी की खिड़की से भागा था। खेर छोड़ो मुझे तब पढाई अच्छी ही नही लगती थी। उसकी बाद एक दूसरी फन्नी घंटना मेरी दीदी और मे हम दोनों साथ मे ही घर से स्कूल जाते थे लेकिन हमारे घर से 1 किलो मीटर की दूरी पर हमारे घर से दूर रोड था वहा तक हमे चलके जाना था पापा गाडी पर छोड ने तो आते थे लेकिन कभी कभी हमे चलके ही जाना पड़ता था। और रास्ता इतना अच्छा भी नही था मतलब रास्ता तो ठीक ही था लेकिन डरावना बहुत था। मेरे घर से 100 मीटर तक तो मम्मी देखती  रेहती कितने तक पोहोच मेरे लाल गोपाल स्कूल ही जा रहे है या बीच से ही गूली मार रहे है। ये तो हुई मम्मी की बात लेकिन आगे के रास्ते मे मुझे दीदी के साथ जाना था लेकिन वो कभी भी साथ मे नही चलती थी मे मेरी स्पीड से ही चलता लेकिन दीदी मेरे से पांच कदम आगे चलती थी। मुझे हमेशा अकेले ही पीछे छोड के आगे आगे चलती थी। और रास्ते मे बहुत सारे बड़े बड़े पेड आते थे जिनके बीच मे भूत चुडेल की अफवाये तो होती ही थी। एक जगह बास के बहुत सारे पेड थे जिन पर हवा के जोके लगने ने से कितनी भूतिया आवाजे आती थी और छोटे थे तब CID जैसे डरवान सौ भी देखते रहते थे इस लिये रास्ते मे वो जगह से निकना बहुत कठिन था। पता है तब मे क्या करता था। मे दूसरी मे था लेकिन मुझे हनुमान चालीस की दो लाइन बिल्कुल सही तरीके से आती थी। मेरे पापा ने मुझे 2 पंक्ति सिखाई थी। "भूत पिशाच निकट नही आवे महावीर जब नाम सुनावे। जय हनुमान ज्ञान गुण सागर जय कपिश ति हु लोक उजागर। " बस हनुमान चालीस की ये दो लाइन के बल बुते पर मे वो डरावना रास्ता काटता था। मेरी दीदी तो कब का घर आई भी जाती थी और मे पीछे पीछे शांति से आता था मम्मी को मुझे लेने आना पड़ता था और मुझे गोद मे उठाके मम्मी घर लेकर आती थी। और मेरा स्कूल भी काफी बड़िया था जहा जावो वहा हाथ पीछे रख कर लाइन मे चलो, खाना खाने से पहले हाथ जोडेक आँखे बंध करके प्राथना करो साथ  मे चलो। कचरा ना करो। पूरी यूनिफॉर्म मे आवो आई  कार्ड लगा कर। अच्छे से बाल बनाके आवो ये वो सब बहुत कुछ बाल मंदीर मे करवाते थे। बस ऐसे ही मेरी दूसरी कक्षा तक पढाई पुरी हो गई अब मुझे तीसरी कक्षा से ही घर वाले हॉस्टल मे भेज ने वाले थे। जिसकी मजेदार कहानिया हम दूसरे पार्ट मे सुनेंगे तब तक के लिये बाय बाय।