बेजुबान - 4 Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बेजुबान - 4

और शबनम उसे कोई काम नही करने देती थी।वह शबनम के इशारे और क्या बोलती है कुछ कुछ समझने लगा था।जो बात समझ मे नही आती तब वह उससे लिखने के लिव कहता था।
और सिथति सामान्य होने में पूरे दस दिन लग गए थे।वह शबनम को लेकर उसकी बस्ती में गया था।बस्ती उजड़ चुकी थी।दंगे में कुछ लोग मारे गए थे।बचे कूचे चले गए थे।जाकिर भी दंगे की भेंट चढ़ गया था।शबनम अपने अब्बा के मरने पर खूब रोई थी।
वह उसे अपने साथ ले आया था।एक दिन बोला
तुम्हारी शादी करा देता हूँ
गूंगी से कौन शादी करेगा
सुंदर हो।पढ़ी हो।समझदार हो।लेकिन कोई उसे अपनी बनाने के लिए तैयार नही हुआ।कॉलोनी में बिना किसी रिश्ते के वह उसके साथ रह रही थी।विरोध के स्वर उठे जो उसके कानों तक भी गए।किसी ने पोलिश में शिकायत भी कर दी थी।उसे जैसे ही भनक लगी।वह उसे लेकर कोर्ट गया
यहा क्यो लाये हो"शबनम ने इशारे में पूछा था
तुम्हे अपनी बनाने
और उसने उससे शादी कर ली।घर आकर बोला
खुश हो इससे
शबनम उसके पैर छूने के लिए झुकी तो उसने उसे गले से लगा लिया था।
और एक दिन पुलिस उसके घर आ धमकी।इंसपकेटर बोला
आपने एक लडक़ी को बंधक बना रखा है
किसने कहा
आपके खिलाफ शिकायत है
मेरे घर मे मेरी पत्नी के अलावा कोई नही है।आप देख सकते है
पुलिस शिकायत कर्ता को साथ लायी थी।वह बोला
यह इसकी पत्नी नही है।इन्होंने इसे रखैल बना रखा है। पूरी कॉलोनी का मोहोल खराब हो रहा है
इन्होंने मेरी पत्नी को रखैल कहा
आपके पास सबूत तो होगा।यह आपकी पत्नी है
इंसपकेटर बोला था
"यह लीजिए
और उसने मैरिज सर्टिफिकेट पेश कर दिया था।
पोलिश इंसपकेटर शिकायत कर्ता से बोला
आप इनसे माफी मांगे और झूठी शिकायत करने पर आपके खिलाफ केश ही सकता है
और माँ के कहने पर वह शादी की बात टालता रहा था।लेकिन परिस्थिति ऐसी बनी की उसे मा से पूछे बिना शादी करनी पड़ी थी।अब वह शबनम के इशारे और उसकी भाषा काफी समझने लगा था।लिखने की जरूरत कम ही होती थी।शबनम अब पत्नी बन चुकी थी।घर तो पहले भी वह सम्हाल रही थी लेकिन अब एक जिम्मेदार ग्रहणी बन चुकी थी।एक दिन वह उससे बोला
तुम्हारी सास मुझे मारेगी और तुम्हे भी
क्यो
एज तो मैने मा को बिना बताए शादी कर ली औऱ वो भी एक मुस्लिम लड़की से
मेरा तो पता ही नही कौन हूँ।न मा का पता न मेरे बाप का।अगर मुझे अब्बा उठाकर न लाते तो हो सकता है।जंगली जानवर ही नोच खाते
"दुखी क्यो हो रही हों,"वह उसे सांत्वना देते हुए बोला,"अब तुम्हारी पहचान है।अब तुम मेरी पत्नी हो
शबनम का धर्म जाति पता नही थी।लेकिन उसका लालन पालन एक मुस्लिम परिवार में हुआ था।वह वहाँ के रीति रिवाज में पली थी।लेकिन उससे शादी होने के बाद उसने हिन्दू रीति रिवाज अपना लिए थे।तब उसने शबनम को टोका था
तुम अपने रीति रिवाज क्यो छोड़ रही हो।मुझे कोई एतराज नही है।
मैं अपनी खुशी से कर रही हूँ।" शबनम बोली,"सासुजी से मिलूंगी तब तक मुझे सब आ जायेगा
"मतलब यह सारी क्यायड अपनी सास को खुश करने के लिए कर रही हो।"पत्नी की बात सुनकर वह बोला था।
एक दिन वह ऑफिस से लौटा तो शबनम ने उसे पत्र दिया था।वह पत्र देखकर बोला
मा का है तुंमने नही खोला
नही