बेजुबान - 1 Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बेजुबान - 1

एक औरत से उसे ऐसी उम्मीद नही थी।वह यह सोचकर आया था कि उसकी नीच और घिनोनी हरकत पर उसके साथी उसे डांटेंगे, जलील करेंगे, भला बुरा कहेंगे। लेकि न जैसा वह सोचकर आया था वैसा नही हुआ था।बल्कि उलट।उसके सहकर्मी उससे कुछ कहने की बजाय उसके पुरुष सहकर्मी उसकी पत्नी को ऐसे घूरकर देखने लगे मानो वह बाजारू औरत हो।बिकाऊ माल हो।उसके साथ काम करने वाली औरतों ने तो हद ही कर दी थी।एक महिला सहकर्मी ने तो उसका पक्ष लेते हुए उसकी पत्नी पर ऐसे आरोप लगाए थे कि उसे ऐसा लगा मानो उसे सरेआम नंगा कर दिया गया हो।और अपने नंगेपन को छिपाने के लिए वह पत्नी का हाथ पकड़कर ऑफिस से बाहर निकल आया था।
उसकी पत्नी के साथ जो हुआ उसका जिम्मेदार वह स्वयं था।उसे अपने गांव जाने के लिए इधर होकर आने की जरूरत नही थी।इधर होकर उसके गांव का रास्ता नही था।
उसके गाँव का रास्ता दिल्ली होकर था।वह जा भी दिल्ली होकर ही रहा था।लेकिन रास्ते मे ट्रेन का एक्सीडेंट हो जाने की वजह से ट्रेन को आगरा होकर निकाला गया था।वह आगरा कई बार आ चुका था।लेकिन पत्नी के साथ पहली बार गांव जा रहा था।अगर वह अकेला होता तो आगरा पर न उतरता।पर पत्नी साथ थी और ेेतीहसिक शहर को दिखाने के लिए वह आगरा उतर गया था।
कॉलेज की पढ़ाई पूरी होते वह नौकरी के लिये कोशिस करने लगा।उसे सफलता मिली थी। काफि पर्यस के बाद।और नौकरी लगने पर वह लखनऊ आ गया था।
वह जब भी घर जाता मा उसके हाथ मे किसी लड़की का फोटो देते हुए कहती,"अब तू शादी कर लें
यह उसकी माँ की चाहत नही थी।हर मा यही चाहती है कि उसके बेटे के सिर पर सेहरा बंधे।वह भी हर बार मा को एक ही जवाब देता,"माँ जल्दी क्या है।शादी करूंगा और जरूर करूंगा।"
वह माँ की बात को हर बार टाल देता था।लेकिन उसे शादी करनी पड़ी थी।वह भी मा को बिना बताए।
पिछले दिनों देश के कई हिस्सों में साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे थे।इन दंगों की आग से लखनऊ भी अछूता नही रहा था।साम्प्रदायिक दंगों को धार्मिक रूप दे दिया जाता है।धर्म से जोड़ दिया जाता है।धार्मिक बना दिया जाता है।लेकिन हक्कीक्त में किसी भी धर्म के आम लोग न दंगे चाहते हैं।न ही दंगे करते हैं न उसमे शरीक होते हैं।दंगों के पीछे राजनीति होती है या राजनीतिक लोगो का हाथ होता है।या समाज विरोधी और गुंडों का हाथ होता हैं।उनका उद्देश्य होता है दंगे कराकर लूटपाट करना,उपद्रव करना,हत्या बलात्कार।आगजनी और उपद्रव।राजनीतिक लोगों या गुंडों और समाजविरोधी लोगो की चाल का शिकार आमलोग होते हैं।उन्हें ही दंगो का दंश झेलना पड़ता है इन दंगों की वजह से दोनों धर्म के लोगों के बीच अविष्वास की खाई खड़ी हो जाती है।दोनों समुदायों के बीच घृणा और नफरत पैदा हो जाती है।
ऐसे ही साम्प्रदायिक दंगे की चपेट में उन दिनों लखनऊ भी था।शहर में अफरा तफरी मची थी।भय और डर का माहौल था।लेकि न सरकारी कॉलोनी शहर मेँ भड़के दंगों से अछूती थी।वहां शांति थी।वह सरकारी नोकर था।उसे भी सरकारी कॉलोनी में फ्लैट मिला हुआ था।शादी नही हुई थी इसलिय अकेला रहता था