आभासी दुनिया को अलविदा Vijay Tiwari Kislay द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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आभासी दुनिया को अलविदा

            रजनी की शादी हुए अभी डेढ़-दो साल ही गुजरे थे। वह दांपत्य की खुशियाँ और मनचाहे आउटिंग्स का सुख भी नहीं ले पाई थी। योजनाएँ तो मारिशस, सिंगापुर, दुबई जैसे शहरों तक जाने की थीं, परंतु दुर्योग किसने जाना है। एक दिन कार्यालय से घर लौटते वक्त एक ज़बरदस्त एक्सीडेण्ट में उसके पति की मौके पर ही मृत्यु हो गई।

             कुछ महीने शोक और उदासी के उपरांत सब कुछ धीरे-धीरे सामान्य हो चला था। रजनी का नियमित सुबह कार्यालय जाने और शाम को घर वापस आने का क्रम शुरु हो गया था। रजनी एक महिला होने के साथ-साथ सुंदर, जवान और समय के साथ आगे बढ़ाने वाली  कामकाजी युवती थी। दफ्तर, बाजार और समाज में रोज उसका तरह-तरह के लोगों से पाला पड़ता रहता था। अपनी वाक्पटुता और अनुभव से वह आम मुश्किलों का निराकरण आसानी से कर लिया करती थी। दफ्तर तो ठीक, लेकिन रातें काटना उसके लिए मुश्किल होता था। वैसे तो इक्कीसवीं सदी में अंतरजालीय मंचों की बाढ़ सी आ गई है। लोगों के सामने विकल्प चुनने के असंख्य अवसर हैं। ऐसे में रजनी भी व्हाट्सएप, फेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, पॉडकास्ट जैसे प्लेटफार्म पर सक्रिय रहने लगी। आज की परिस्थितियों में समान विचार धाराओं वाले मित्रों को ढूँढ़ना मुश्किल नहीं रहा। 'तू न सही, कोई और सही' वाली बात आज अंतरजाल पर प्रायः अपनी सार्थकता सिद्ध करती अनुभव की जा सकती है। यही कारण है कि आज के नेट-यूजर्स इसे बहुत साधारण बात मानते हैं। इन्हें कोई भी गंभीरता से नहीं लेता। वैसे भी गंभीरता से लेने पर कभी और ज्यादा नहीं होता। अक्सर लोग 'पीछे छोड़, आगे बढ़' पर विश्वास करने लगे हैं। तभी तो रजनी भी नेट में रमने लगी। उसके अनेक महिला तथा पुरुष मित्र बनते और लेफ्ट होते रहते थे, कईयों को तो रजनी रिमूव्ह कर देती थी। कुछेक से मिलना-जुलना होने लगा। खट्टे-मीठे अनुभव चखते रजनी के दिन यूँ ही कट रहे थे। कई बार मित्रता के बाद मेलजोल बढ़ने लगता लेकिन जब उसे पता चलता कि सामने वाला चालाक या पहले से ही बीवी-बच्चों वाला है तो उसे ऐसे लोगों से नफरत होने लगती। कभी-कभी वह अपनी परिस्थितियों और विवशताओं के चलते समझौते भी करने की सोचती, लेकिन उसे धोखे ही ज्यादा मिलते। धीरे-धीरे उसके तन-मन दोनों अधीर होने लगे थे। रोज-रोज की खुसुरफुसुर और तानों से वह तंग आ चुकी थी।

           उन्हीं दिनों एक बार वह पुनः मुआँ नेट के फरेब में आ गई। अबकी बार उसे नेट पर अपने से एक साल छोटा लड़का मिला जो उसी शहर का तो था परंतु शहर के दूसरी छोर का होने के कारण प्रत्यक्षतः अपरिचित था। उसकी प्रोफाइल, चित्र, मित्रसूची और अपलोड की जाने वाली पोस्टों के कारण रजनी उस लड़के की ओर आकर्षित होने लगी। लड़का भी उससे बात करने के अवसर तलाशता रहता। आपस में मन मिलने के कारण पहले वे किसी पार्क, रेस्टोरेंट आदि स्थानों में मिलने लगे। फिर क्या था दीवानगी रंग लाई और धीरे-धीरे वे लिव-इन-रिलेशन में आ गए। कुछ महीने बीतने के बाद रजनी जब-जब उससे शादी की बात करती तो वह हर बार कोई न कोई कहानी गढ़कर सुना देता। इसी बीच रजनी ने देखा कि उस युवक की नीयत धन-दौलत पर अधिक और उसकी ओर कम है, तब उसे लगा कि वह एक बार फिर से छली जा रही है। न चाहते हुए भी उसने उस लड़के से अलग होना ही उचित समझा।

       अब तक उसकी अनुभवी बुद्धि और विवेक लोगों की नीयत को अच्छी तरह से पहचानने लगे थे। अब उसे यह समझ में आने लगा कि दुनिया चाहे कितनी भी आगे बढ़ जाए, आभासी दुनिया अधिकांश मामले में आभासी ही होती है। हमारा पारंपरिक समाज और हमारी परंपराएँ ही सही हैं। अपने समाज, अपने रिश्ते और अपनों की जानकारी में जो होता है, वही उचित व दीर्घजीवी होता है। इन सबके बाद भी कहीं न कहीं भाग्य और दुर्भाग्य भी हमारी दशा और दिशा बदलते हैं। अक्सर जब वह यही सब सोचती तब उसे यह गीत याद आ ही जाता-

प्यार से भी जरूरी, कई काम हैं। 

प्यार सब कुछ नहीं, जिंदगी के लिए।।

      

     दुनियादारी की आग में तपकर निकली रजनी अब अपनी ज़िंदगी को ऐसा मोड़ देना चाहती थी, जहाँ प्यार उसके आड़े न आए। अब वह जग में कुछ ऐसा अनूठा काम करना चाहती थी कि लोग उसके मरने के बाद भी उसे याद रखें।

      ये वही क्षण थे जब रजनी 'आभासी दुनिया को अलविदा' कह रही थी।