पाठकीय प्रतिक्रिया
पानी का पंचनामा –पानी को बचाओ तंत्र को नहीं
यशवंत कोठारी
पानी खुदा की नियामत है प्रकृति का वरदान है .लेकिन मानव व उसके निर्मित तंत्र ने खुद को बचाने के लिए पानी की हत्या कर दी .
पानी को आम जन तक पहुँचाने के लिए मानव ने एक तंत्र बनाया और उसी तंत्र की कहानी है अरुण अर्णव खरे का एक मासूम उपन्यास –पानी का पंचनामा ,जिसे व्यंग्य –उपन्यास कहने में लेखक ने संकोच किया है .कभी भीष्म सहनी ने चीफ की दावत कहानी लिख कर इस तंत्र का पर्दा फाश किया था .
लेखक स्वयं इसी महकमे से जुड़े रहे हैं सब कुछ देखा समझा है इसलिए उनका लेखन प्रमाणिक है .उनका पूर्व का उपन्यास कोचिंग @कोटा ने भी काफी प्रशंसा बटोरी है ,लेकिन यह रचना एक अलग धरातल की है .
पानी याने जल पञ्च महाभूतों में से एक है इसे व्यापार बना दिया मानव रचित व्यवस्था ने .
यह कथा मंगल प्रदेश की है जहाँ पर जल वितरण व्यवस्था के लिए लम्बा चौड़ा विभाग है ,मंत्री है ,सचिव है मुख्य अभियंता है नीचे लाखों कारिंदे है जो अपने कन्धों पर सब कुछ लादे फिरने का नाटक करते हैं ,करते कुछ नहीं .मंगल प्रदेश में सब कुछ अमंगलकारी है .वैसे यही कथा हर प्रदेश की है मेरा निजी अनुभव भी यही है की सबसे भ्रष्ट महकमा पानी का ही है .
जल मुफ्त का है केवल वितरण व्यवस्था का काम है ,बस सब गोलमाल यही पर है .
कथा का नायक एक जी. एल. नामक प्राणी है जो विभाग में यंत्री है,वो अपनी चालाकियों धूर्तताओं से सब का कच्चा चिटठा खोलने के नाम पर अपना फायदा देखता है .एक विधवा को अनुकम्पा नियुक्ति देकर उसका शोषण करता है सब को सप्लाई करता है .विभाग के धूर्त बाबू है जो स्याह को सफ़ेद और सफ़ेद को स्याह करने की हिम्मत रखते हैं .अफसर को मूर्ख समझते हैं .एक बाबू की टीप सब पर भारी पड़ती है .
नल कूप में बच्चा गिर जाता है उसे जिन्दा निकालने के बाद उसकी मौत हो जाती है मगर विभाग के कोई फर्क नहीं पड़ता .गर्मी के दिनों में जनता पानी के लिए त्राहि त्राहि कर ती है मगर किसी के भी कानों पर जू नहीं रेंगती ,विभागीय घटिया राजनीति में सब एक दूसरे को नीचे दिखाने में व्यस्त है मंत्री सचिव मुख्य यंत्री सब को अपना हिस्सा लेना बस .हर प्रदेश में भी यहीं सब चलता है .जल मिशन का पैसे कहाँ गया कोई नहीं बताता,चुनाव में लग गया .
एक पत्रकार भी खबर की तलाश में सूचना के लिए पत्र देता है लेकिन जी एल उसे खरीद लेता है . कुछ गांघी छाप कागज़ ,महंगी शराब और एक विधवा अनुकम्पा नौकरी पाने वाली के सहारे सूचना का कागज़ उठा लिया जाता है .
सचिव को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से गलत सलत डेटा दे कर अधिनस्थों को फंसाया जाता है .
यह उपन्यास जल विभाग की कमियों ,विसंगतियों को सब के सामने लाता है .यह अफसरों ,नेताओं ,मातहतों दलालों ठेकेदारों के किस्से बताता है जो रोज़ हम अख़बारों में पढ़ते हैं मानसिक, आर्थिक,व शारीरिक शोषण का दस्तावेज़ है यह उपन्यास .कलेवर छोटा है मगर कथानक आप को सोचने को मजबूर कर देगा .यहाँ यंत्री है, महिला का देह शोषण है दावतें है पैसा है भ्रष्टाचार है ,मुर्गा है शराब है बस नैतिकता के अलावा सब कुछ है संविदा में काम करने वाले से लेकर ऊपर तक पूरा तंत्र गलत कामों में आकंठ डूबा हुआ है ,सब अनजान है सब को सब कुछ पता है ,प्रजातंत्र की आवश्यक बुराई.
इसे लेखक ने व्यंग्य उपन्यास नहीं माना है लेकिन उपन्यास में भरपूर व्यंग्य है .पञ्च भी है .शिल्प थोडा कमज़ोर है भाषा पर लेखक की पकड़ अच्छी है इसे किताबघर की संस्था सुरभि ने छापा है १७६ पन्नों की यह किताब हिंदी साहित्य में अपना स्थान बना लेगी .कवरअच्छा है पेपर बेक होने से मूल्य ३५० रुपया अधिक है.
इन दिनों जो उपन्यास आ रहे हैं उनके विषय जटिल है लेकिन खरे जी ने एक सामान्य विषय को लिया है हवा के बाद पानी ही सबसे जरूरी है और उसे ही पाना मुश्किल है जो प्रभु ने निशुल्क उपलब्ध कराया है . खरे जी को बिजली विभाग पर भी ऐसा ही एक उपन्यास लिखना चाहिए . खरे जी को बधाई .
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यशवन्त कोठारी ,701, SB-5 ,भवानी सिंह रोड ,बापू नगर ,जयपुर -302015 मो.-94144612 07