नक़ल या अक्ल - 65 Swati द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नक़ल या अक्ल - 65

65

जवाब

 

अब उसने गुस्से में हरीश की कमीज का कॉलर पकड़ते हुए कहा,

 

तुम घर के अंदर घुसे  कैसे थें ?

 

छत से, वह घबराकर बोला।

 

अब वही से वापिस जाना, मैं बापू  जी को जाकर देखती हूँ। तभी वह बाहर गई, उसने अपना चेहरा घूँघट  से ढका  और उनसे पूछा,

 

जी बापू  जी !!!

 

बेटा  यह फल लाया हूँ,  इन्हें  पानी में डाल  दें। उसने हाथ से फल  लिए और रसोई की तरफ जाने लगी, मगर जमींदार वहीं आँगन में चारपाई  पर बैठ  गया। मधु  की तो साँसे अटक गई, अब थोड़ी देर में सुधीर भी आ जायेंगे। तभी कुछ सोचते हुए वह बाहर निकली, उसने गिरधारी चौधरी को कहा कि “बापू  जी आज मौसम में उमस है, आप आराम से अंदर बैठ जाए, मैं आपके लिए चाय  लाती हूँ।“  उसने अपना हुक्का पीते  हुए ज़वाब  दिया, “अभी चाय  पीने  की इच्छा  नहीं है, थोड़ी देर यही बैठूंगा।“ मधु भी खमोशी से सिर  हिलाकर अंदर आ गई, जहाँ पहले से ही हरीश बैठा हुआ है। उसने मधु के अंदर आते ही उससे पूछा,

 

क्या कहा, बूढ़े ने ?

 

कहना क्या है? वह अभी आँगन में बैठेंगे। तुम्हें किसने कहा था, इस तरह घर आने के लिए।

 

ये भी तेरी वजह से हुआ है, बदगुमान औरत। मधु ने हरीश को घूरकर देखा तो वह उसे ऊँगली दिखाते  हुए बोला, “आँखे नीचेकर अपनी, मैं तेरा पति नहीं हूँ। अब उसने नजरें नीची झुका लीं।“ लगता है, मुझे ही कुछ सोचना पड़ेगा।“ वह अब परेशान होकर कमरे में चक्कर काटने लगा।

 

 

क्लब में म्यूजिक बज रहा है, सभी दोस्त म्यूजिक पर थिरक रहें हैं।  सोना ने रिमझिम और नंदन  को बैठे देखा  तो वह उनसे बोली, “रिमझिम, नंदन डांस करने चलो।“ “तुम चलो! हम अभी आते हैं।“ रिमझिम ने  कोल्ड्रिंक पीते हुए ज़वाब दिया। “जल्दी आना!!” यह कहकर सोना भी डांस के लिए बाकी नाचते दोस्तों के साथ नाचने लगी। रिमझिम ने उसे डांस करते देखा तो वह बोली,

 

मैंने आज से पहले सोना को इतना खुश कभी नहीं देखा।

 

हम्म !!  आज़ादी  किसे अच्छी नहीं लगती।

 

वो गॉंव में भी आजाद ही रही है, मगर उसके लिए ऐसी किसी जगह पर अपना जन्मदिन मनाना, एक सपने जैसा है। काश!! नन्हें भी आ जाता।

 

उसे सोना का समीर और राजवीर की मित्र मण्डली में रहना पसंद नहीं है। नंदन ने भी कोल्ड ड्रिंक पीते हुए कहा। अब सोना फिर उनके पास आयी और उन्हें खींचकर डांस फ्लोर पर ले गई। वे भी सोना के साथ डांस फ्लोर पर म्यूजिक के साथ थिरकने लगें।

 

बिरजू और निर्मला ढलते सूरज को नदी के किनारे बैठे  देख रहे हैं। अब बिरजू ने उसका हाथ पकड़ा तो उसने अपना चेहरा, उसकी तरफ कर लिया,

 

“क्या हुआ निर्मू,  यह शाम तुम्हें उदास क्यों कर रही है। 

 

 मुझे नहीं लगता बिरजू, हमारे प्यार की कोई मंजिल है। 

 

इसा मत कहो, निर्मला । मैं बहुत मुश्किल से जीना सीखा हूँ और वो भी सिर्फ तुम्हारी  वजह से। एक दिन सब ठीक हो  जायेगा।

 

कैसे ठीक होगा??  शहर जाने से पहले सोना ने मुझे बताया है कि बापू मुझे जबरदस्ती कानपुर  छोड़कर आने वाले हैं।“ यह सुनकर बिरजू सकते में  आ गया ।

 

यह बाप है या कसाई। उसने गुस्से में  कहा।

 

दो चार दिन बाद, मैं तुंमसे अलग कर दी जाऊँगी। तुम्हें मुझसे कोई अलग नहीं कर सकता। उसने अब निर्मला को गले लगा लिया। तभी उस तरफ से मुंशी रामलाल गुज़रा तो उसने बिरजू को किसी को गले लगाते हुए देखा, मगर दूरी  के कारण  वह निर्मला का चेहरा नहीं देख पाया। “यह किसकी छोरी है? जिसे यह बिरजू  गले लगाए घूम रहा है, पता लगाना ही पड़ेगा।“ उसने मुँह  बनाते हुए कहा।

 

काफी देर सोचने के बाद, उसने अपनी जेब से एक पुड़िया निकाली और उसे पकड़ाते हुए कहा, “तू चाय में इसे डाल दें।“

 

यह क्या है?

 

इससे जमींदार को नींद आ जाएगी।

 

वह हैरान होते हुए बोली, “इसका मतलब तू नशा करता है।“

 

“धीरे बोल और अपना मुँह बंद कर कभी कभी  ले लेता हूँ। मधुने गुस्से से उसे देखा और रसोई में चाय  बनाने चली गई।

 

रिमझिम और नंदन के साथ सोनाली ने डांस करते हुए फोटो खिंचवाई तो वह फिर दूसरी तरफ समीर और बाकी दोस्तों के साथ जाकर फोटो खिंचवाने लगी। तभी रिमझिम डांस करते हुए किसी से टकराई उसके मुँह से निकला “सॉरी!! उसने पलटकर देखा तो वह हैरान हुई।  “विशाल तुम?” “रिमझिम तुम यहाँ?” “मैं अपने दोस्तों के साथ आया था,” “मैं भी अपनी सहेली की जन्मदिन की पार्टी में आई हुई हूँ।  अब उसने विशाल को नंदन से मिलवाया। “चलो, मैं तुम्हें भी अपने दोस्तो से भी मिलवाता हूँ । “ रिमझिम के जाते ही नंदन वापिस टेबल पर आकर बैठ गया।  कुछ सेकण्ड्स बाद, टेबल पर वेटर केक रखकर चल गया।  समीर ने ज़ोर से कहा, “सोना चलो आओ, तुम्हारे बर्थडे का केक  काटते है। “ ओह  थँक्स समीर!! यह तुमने मंगववया,” वह खुश होते हुए बोली तो उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “केक तो कुछ भी नहीं, मैं तुम्हारे लिए यह पूरा क्लॉब खरीद सकता हूँ।“  “ओह !! समीर !! थैंक्यू सो मच !!” यह सुनकर नंदन ने मुँह बना लिया। 

 

मधु चाय का कप लेकर जमींदार के पास आई और उससे कहने लगी, “बापू  जी!!  चाय !!”

 

बेटा !!! मैंने मना किया था!!

 

मैं अपने लिए बना रही थी, सोचा आपके लिए भी बना दूँ। 

 

तू दूध ज़्यादा पिया कर। 

 

अब तू बन गई है, थोड़ी ले लीजिये।

 

अब उन्होंने उससे चाय का कप ले लिया और धीरे धीरे चाय पीने  लगे।  मधु ने देखा कि  बापू जी को नशा चढ़ रहा है।  उनकी आँख  बंद  हो रही है।  अब उन्होंने चाय का कप ज़मीन पर रखा  और चारपाई पर लेट  गए। मधु ने हरीश को बाहर  निकलने का ईशारा  किया और वह दबे कदमों  से बाहर  की तरफ जाते हुए छत पर जाने लगा, अभी वह एक सीढ़ी चढ़ा ही था कि बाहर का दरवाजा खुला और सुधीर अंदर आ गया? उसने हरीश को ऊपर चढ़ते हुए देखा तो बोला, “अरे !! हरीश तू यहाँ क्या कर रहा है?”  मधु और हरीश को जैसे साँप ही सूंघ गया।  दोनों एक दूसरे का चेहरा देखने लगे । “आज तो सब खत्म” मधु ने अपने उभरे हुए पेट पर हाथ रखते हुए धीरे से कहा और हरीश की जबान को तो जैसे लकवा ही मार गया हो, उसे समझ नहीं आया कि क्या जवाब दें ।