भय का कहर.. - भाग 6 Abhishek Chaturvedi द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भय का कहर.. - भाग 6

भय का गह्वर (एक अंतहीन अंधकार)

राहुल और उसके साथियों की गुमशुदगी के बाद, गांव में एक बार फिर से खौफ का माहौल बन गया था। गांव के बुजुर्गों ने सलाह दी कि हवेली को पूरी तरह से ढहा दिया जाए, ताकि उसका भयानक इतिहास हमेशा के लिए समाप्त हो जाए। लेकिन इसके खिलाफ भी कई तर्क थे, क्योंकि लोग मानते थे कि अगर हवेली को ध्वस्त किया गया, तो उसमें बंधी हुई आत्माएं पूरी तरह से आज़ाद हो जाएंगी और गांव पर कहर बरपाएंगी।

गांव के कुछ लोगों ने हवेली की निगरानी के लिए एक दल गठित किया। इस दल के सदस्य रात को हवेली के आसपास गश्त करते थे, लेकिन अंदर जाने की हिम्मत किसी में नहीं थी। गांव में अब हवेली के आसपास का इलाका पूरी तरह से वीरान हो गया था। रात को कोई भी उस दिशा में जाने का सोच भी नहीं सकता था।

लेकिन एक दिन, गांव में एक अजनबी आया। वह एक साधु था, जो पूरे भारत में घूम-घूमकर तांत्रिक शक्तियों का अध्ययन कर रहा था। उसका नाम स्वामी अधिराज था। उसने हवेली के बारे में सुना और गांववालों से कहा कि वह इस अभिशाप का समाधान कर सकता है। उसने बताया कि उसके पास ऐसी तंत्र-विद्या है, जिससे वह आत्माओं को पूरी तरह से मुक्त कर सकता है।

स्वामी अधिराज का विश्वास देखकर गांव के कुछ लोग उसके साथ हो गए। उन्होंने मिलकर एक योजना बनाई और तय किया कि वे पूर्णिमा की रात हवेली के अंदर जाकर आत्माओं को मुक्त करेंगे। उस रात स्वामी अधिराज और उसके अनुयायी पूरी तैयारी के साथ हवेली के अंदर प्रवेश कर गए।

जैसे ही वे हवेली के अंदर पहुंचे, स्वामी अधिराज ने मंत्रों का जाप शुरू कर दिया। हवेली के अंदर की हवा अचानक तेज़ हो गई, और दीवारों पर अजीबोगरीब छायाएं दिखने लगीं। लेकिन स्वामी अधिराज अपने स्थान पर अडिग रहा। उसने हवेली के भीतर गहरे में छिपी आत्माओं को ललकारना शुरू किया।

धीरे-धीरे हवेली की जमीन हिलने लगी, और ताबूतों के ढक्कन खुलने लगे। हवेली के काले साए जीवित हो उठे और स्वामी अधिराज की ओर बढ़ने लगे। लेकिन स्वामी अधिराज ने अपनी तांत्रिक शक्तियों का उपयोग करते हुए एक बड़ा यज्ञ किया। यज्ञ की आग चारों ओर फैल गई, और हवेली की दीवारों से निकलती हुई आत्माएं उस आग में समाने लगीं।

यह देखकर स्वामी अधिराज के अनुयायियों में खुशी की लहर दौड़ गई। उन्हें लगा कि अंततः इस अभिशाप से छुटकारा मिल गया है। लेकिन तभी, हवेली के अंदर की धूल-धूसरित दीवारों से एक और भयानक शक्ति जाग उठी। यह शक्ति पहले से कहीं अधिक भयावह थी। यह वही पुरानी आत्मा थी, जिसने इस हवेली को अपनी जागीर बना रखा था।

इस आत्मा की शक्ति इतनी ज़्यादा थी कि स्वामी अधिराज के मंत्र और यज्ञ भी कमजोर पड़ने लगे। हवेली की दीवारों से खून बहने लगा, और चारों ओर की हवा भारी और ठंडी हो गई। स्वामी अधिराज ने आत्मा को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन उसकी शक्तियां अब इस आत्मा के आगे नाकाम साबित हो रही थीं।

आत्मा ने स्वामी अधिराज और उसके अनुयायियों को अपनी पकड़ में लेना शुरू कर दिया। उनकी चीखें हवेली के भीतर गूंज उठीं, लेकिन उनकी आवाजें हवेली के बाहर किसी तक नहीं पहुंच पाईं। हवेली ने एक बार फिर अपने काले रहस्य को छिपा लिया था।

सुबह होते ही, गांव के लोग हवेली के पास पहुंचे। लेकिन वहां सिर्फ सन्नाटा और वीरानी थी। न स्वामी अधिराज का कोई निशान मिला, न उसके अनुयायियों का। लोगों को अब यकीन हो गया था कि हवेली का अभिशाप कभी समाप्त नहीं होगा।

गांव के बुजुर्गों ने फैसला किया कि हवेली को अब पूरी तरह से छोड़ दिया जाएगा। कोई भी उस ओर जाने की कोशिश नहीं करेगा, और हवेली को समय के हवाले कर दिया गया। 

अन्धकार का किला अब एक और भी भयानक रहस्य में बदल गया था। हवेली के आसपास का क्षेत्र अब पूरी तरह से वीरान हो गया था। 

वक्त बीतता गया, और गांव के लोग हवेली को भूलने लगे। लेकिन कुछ रहस्य कभी मिटते नहीं, वे बस समय की धूल में दब जाते हैं। हवेली अब भी वहीं खड़ी है, अपने अंदर के अनकहे किस्सों और छिपे हुए भय को अपने में समेटे हुए। कोई नहीं जानता कि हवेली के अंदर क्या छिपा है, और शायद कोई कभी जान भी नहीं पाएगा। लेकिन जो भी इस रहस्य को सुलझाने की कोशिश करता है, वह हवेली का हिस्सा बनकर रह जाता है—हमेशा के लिए। 

इसलिए, भय का गह्वर कभी खत्म नहीं होता। यह बस रूप बदलता है, और अपने नए शिकार की तलाश में रहता है। और हवेली के काले साए अभी भी वहीं हैं, अपनी न खत्म होने वाली भूख को शांत करने के इंतजार में।

भय का गह्वर (अंतहीन दहशत)