भय का कहर.. - भाग 3 Abhishek Chaturvedi द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भय का कहर.. - भाग 3

भय का गह्वर (अंतिम भाग)

हवेली में रमेश और उसके परिवार के साथ हुई घटनाओं के बाद, गांव पर एक गहरा सन्नाटा छा गया था। लोग अब उस हवेली के बारे में बात करने से भी डरने लगे थे। गांव के बुजुर्गों ने तय किया कि उस हवेली को हमेशा के लिए बंद कर देना चाहिए, ताकि कोई और उसकी भेंट न चढ़ सके। एक तांत्रिक को बुलाया गया, जिसने हवेली के चारों ओर रक्षा कवच डालने का दावा किया। हवेली को मोटी लोहे की जंजीरों से जकड़ दिया गया और गांववालों ने उस रास्ते पर जाना पूरी तरह से बंद कर दिया।

लेकिन इन सबके बावजूद, एक व्यक्ति था जो इस पूरी घटना से संतुष्ट नहीं था। उसका नाम था आदित्य, और वह रमेश का छोटा भाई था। आदित्य को अपने भाई और उसके परिवार की मौत की सच्चाई जाननी थी। उसने गांव वालों से सुनी हुई बातों पर यकीन नहीं किया और हवेली में जाकर खुद इसका पता लगाने का निश्चय किया।

आदित्य एक साहसी और जिद्दी व्यक्ति था। उसने अपने दोस्तों को इस योजना में शामिल करने की कोशिश की, लेकिन कोई भी उसके साथ जाने को तैयार नहीं हुआ। उसे यह समझ में आ गया कि यह मिशन उसे अकेले ही पूरा करना होगा।

अमावस्या की रात आदित्य ने हवेली में प्रवेश करने का फैसला किया। उसने अपने साथ एक पुरानी किताब और कुछ औजार रखे, जिनके बारे में कहा जाता था कि वे आत्माओं से बचाव कर सकते हैं। रात के समय जब पूरा गांव सो रहा था, आदित्य चुपचाप हवेली की ओर निकल पड़ा।

हवेली के पास पहुंचते ही, आदित्य को वहां की घनघोर ठंड और सन्नाटा महसूस हुआ। उसने लोहे की जंजीरें हटाकर दरवाजा खोला और अंदर कदम रखा। जैसे ही उसने दरवाजे को पीछे से बंद किया, अंदर की हवा और भी सर्द हो गई। हवेली के अंदर एक अजीब-सी घुटन थी, जो उसे गहराई तक बेचैन कर रही थी। 

आदित्य ने अपने भाई की खोज में हवेली के कोने-कोने की जांच करनी शुरू की। जैसे ही वह उस कमरे के पास पहुंचा, जहां उसकी बहन सिया की मृत्यु हुई थी, उसे वहां पर हल्की-हल्की रोशनी दिखाई दी। उसने ध्यान से सुना तो वहां कुछ फुसफुसाहटें सुनाई देने लगीं। उसने दरवाजा खोला और देखा कि वह वही कमरा था, जहां अर्जुन और उसके दोस्तों की आत्माएं बंधी हुई थीं। 

अंदर का दृश्य दिल दहला देने वाला था। दीवारों पर खून के धब्बे थे, और कमरे के बीचोंबीच, ताबूत अभी भी रखा हुआ था। आदित्य ने ताबूत के पास जाकर देखा कि वहां पर कुछ लिखा हुआ था, जो एक प्राचीन भाषा में था। उसने अपने साथ लाई किताब को खोलकर उस लेख को पढ़ने की कोशिश की। धीरे-धीरे, उसने समझा कि यह एक अभिशाप था, जो उस समय के जमींदार ने मरने से पहले किया था। 

यह अभिशाप हवेली में आने वाले हर व्यक्ति को आत्मा में बदल देता था। इस अभिशाप को तोड़ने के लिए एक बलिदान की आवश्यकता थी—एक निर्दोष आत्मा का बलिदान। तभी, ताबूत अपने आप खुल गया और अंदर से भयानक चीखें सुनाई देने लगीं। हवेली की आत्माएं जाग गई थीं, और वे आदित्य की ओर बढ़ रही थीं। 

आदित्य ने अपनी पूरी शक्ति से प्राचीन मंत्र पढ़ना शुरू किया, जिसे वह किताब से जान चुका था। आत्माएं उसकी ओर बढ़ती जा रही थीं, और हवेली की दीवारें हिलने लगी थीं। अचानक, हवेली के अंदर तेज़ हवा चलने लगी, जिससे चारों ओर अंधेरा और गहरा हो गया।

मंत्र पढ़ने के दौरान, आदित्य ने महसूस किया कि हवेली की आत्माएं अब और भी ज़्यादा भयानक हो गई हैं। वे अब उसकी आत्मा को निगलने के लिए तैयार थीं। लेकिन तभी, आदित्य ने अपने आप को बलिदान करने का फैसला किया। उसने एक तलवार निकाली, जो उसने अपने साथ लाई थी, और खुद को चोट पहुंचाई। जैसे ही उसका खून जमीन पर गिरा, हवेली में एक जोरदार गूंज उठी। आत्माओं की चीखें और भी तेज़ हो गईं, और वे धीरे-धीरे गायब होने लगीं। 

अंततः, हवेली में सन्नाटा छा गया। आदित्य की चेतना धीरे-धीरे धुंधली पड़ने लगी, और उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया। जब उसे होश आया, तो वह हवेली के बाहर, गांव के मंदिर के पास पड़ा था। गांववालों ने उसे बचा लिया था। उसने हवेली की कहानी को समाप्त कर दिया था, लेकिन उसकी यादें उसे हमेशा सताती रहीं।

गांव वालों ने हवेली को फिर से सील कर दिया, और अब वहां जाने का कोई साहस नहीं करता। आदित्य ने अपने भाई और उसके परिवार की आत्माओं को मुक्त कर दिया था, लेकिन उसने अपने अंदर एक गहरे अंधकार को महसूस किया, जो उसे हर रात सोने नहीं देता था। 

अन्धकार का किला अब वीरान खड़ा है, और कहा जाता है कि जो भी वहां जाने की कोशिश करता है, उसे हवेली के अंदर से आती हुई दबी-दबी चीखें सुनाई देती हैं। हवेली के रहस्य ने आखिरकार एक बार फिर से गांव को अपनी पकड़ में ले लिया है, और यह सवाल हमेशा के लिए अनसुलझा रह गया कि क्या आदित्य वास्तव में उस अभिशाप को समाप्त कर पाया था, या वह खुद भी उसी अंधकार का एक हिस्सा बन गया था?



अगले भाग में जानें......
भय का गह्वर (एक अंतिम रहस्य)