भय का गह्वर (एक अंतिम रहस्य)
गांव में आदित्य के साहसिक कार्य के बाद, लोग मानने लगे थे कि हवेली के अभिशाप का अंत हो चुका है। हवेली को फिर से सील कर दिया गया और गांववालों ने राहत की सांस ली। लेकिन इस शांति का एक गहरा रहस्य छिपा था, जिसे बहुत कम लोग समझ सके थे।
कुछ महीनों बाद, गांव में एक नया पुजारी आया, जिसका नाम था महंत नारायण। वह एक गहन अध्येता था और अपने पूर्वजों से विरासत में मिले कई रहस्यमयी ग्रंथों का ज्ञाता था। गांव में पहुंचने के कुछ ही दिनों बाद, नारायण ने हवेली की कहानियों के बारे में सुना। वह उस काले रहस्य से मोहित हो गया और उसने तय किया कि वह इस अभिशाप के बारे में और गहराई से जानेगा।
नारायण ने पुरानी किताबें और पांडुलिपियां खंगालनी शुरू कीं, और कुछ दिनों के बाद उसे एक बेहद प्राचीन ग्रंथ मिला, जिसमें अन्धकार के किले का जिक्र था। इस ग्रंथ में लिखा था कि हवेली का अभिशाप समाप्त नहीं हुआ है; यह केवल शांत हुआ है। असली बंधन तब टूटेगा, जब "अभिशप्त आत्मा" की सच्चाई पूरी तरह से उजागर हो जाएगी।
ग्रंथ में एक और महत्वपूर्ण बात लिखी थी—हवेली के अंदर अभी भी एक और गुप्त कक्ष है, जिसे कोई भी नहीं जानता था। यह कक्ष हवेली के नीचे की गहरी सुरंग में स्थित था, और उसमें उस प्राचीन जमींदार की आत्मा कैद थी जिसने हवेली पर अभिशाप लगाया था। उस आत्मा को मुक्त करने के लिए और अभिशाप को पूरी तरह समाप्त करने के लिए, उस कक्ष तक पहुंचना जरूरी था।
नारायण ने तय किया कि वह इस अंतिम रहस्य को उजागर करेगा और अभिशाप को हमेशा के लिए समाप्त करेगा। उसने गांव के कुछ साहसी लोगों को इकट्ठा किया और अपनी योजना के बारे में बताया। हालांकि, लोग डर गए और किसी ने भी उसका साथ देने का साहस नहीं किया। नारायण को अकेले ही इस यात्रा पर निकलना पड़ा।
एक अंधेरी रात को, जब पूरा गांव गहरी नींद में था, नारायण ने अपनी यात्रा शुरू की। वह हवेली के दरवाजे के पास पहुंचा और अपने मंत्रों से उसे खोला। हवेली के अंदर का वातावरण अब भी वही था—सर्द, भयानक और भयावह। लेकिन नारायण अडिग था। उसने हवेली के नीचे के गुप्त रास्ते की खोज करनी शुरू की।
काफी खोजबीन के बाद, उसे एक गुप्त दरवाजा मिला, जो हवेली की सबसे पुरानी दीवार के पीछे छिपा हुआ था। यह दरवाजा प्राचीन शिलालेखों से ढका हुआ था। नारायण ने ग्रंथ के अनुसार मंत्रों का जाप किया और दरवाजा धीरे-धीरे खुलने लगा। उसके पीछे एक गहरी और अंधेरी सुरंग थी, जो हवेली के नीचे की ओर जा रही थी।
सुरंग के अंदर की हवा और भी सर्द थी। नारायण ने अपने हाथ में दीपक लिया और धीरे-धीरे सुरंग के अंदर उतरने लगा। सुरंग के दोनों ओर दीवारों पर अजीब और रहस्यमयी चित्र बने हुए थे, जो हवेली के पुराने इतिहास और अभिशाप की कहानी को दर्शा रहे थे। सुरंग के अंत में, उसे एक और दरवाजा मिला। इस दरवाजे पर वही काले धागे बंधे थे, जिनका उल्लेख ग्रंथ में किया गया था।
नारायण ने अपने मंत्रों के साथ उन धागों को खोला और दरवाजे को धक्का दिया। दरवाजा खुलते ही, उसके सामने एक विशाल कक्ष था। कक्ष के बीचों-बीच एक बड़ा पत्थर का ताबूत रखा था। ताबूत के चारों ओर काले रंग की धूप की लपटें उठ रही थीं। यह वही ताबूत था जिसमें जमींदार की आत्मा कैद थी।
नारायण ने ताबूत के पास जाकर मंत्र पढ़ने शुरू किए। जैसे-जैसे मंत्रों का जाप बढ़ता गया, ताबूत में हलचल होने लगी। ताबूत का ढक्कन धीरे-धीरे हिलने लगा और एक जोरदार आवाज के साथ खुल गया। अचानक, पूरे कक्ष में एक तेज़ प्रकाश फैल गया, और जमींदार की आत्मा ताबूत से बाहर निकल आई।
उस आत्मा के चेहरे पर गहरी नफरत और क्रोध था। उसने नारायण की ओर देखा और एक भयानक आवाज में बोली, "तुमने मुझे जागने की हिम्मत की है? अब तुम्हारी मौत निश्चित है!"
लेकिन नारायण डरने वाला नहीं था। उसने अपने मंत्रों का जाप जारी रखा और आत्मा को नियंत्रित करने की कोशिश की। आत्मा ने जोर से चिल्लाया और हवेली की दीवारें कांपने लगीं। कक्ष के चारों ओर की धूप की लपटें और तेज़ हो गईं। नारायण को अपनी शक्ति पर विश्वास था। उसने मंत्रों को और तेज़ी से पढ़ा और आत्मा की शक्ति को तोड़ने की कोशिश की।
आख़िरकार, नारायण का मंत्र उस आत्मा पर हावी हो गया। आत्मा की ताकत कम होती गई, और वह धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगी। अंततः आत्मा जोरदार चीख के साथ गायब हो गई, और हवेली की दीवारों पर से सभी निशान मिट गए। ताबूत फिर से बंद हो गया और कक्ष में शांति छा गई।
नारायण ने एक गहरी सांस ली और कक्ष से बाहर निकल आया। उसने सुरंग को पूरी तरह से बंद कर दिया ताकि कोई और इस कक्ष तक न पहुंच सके। हवेली अब पूरी तरह से शांत हो गई थी।
गांव में वापस आने पर, नारायण ने गांव वालों को सारी सच्चाई बताई। उन्होंने नारायण का धन्यवाद किया और उसे एक महानायक माना। हवेली को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया, और अब कोई भी उस रास्ते पर जाने की हिम्मत नहीं करता।
अन्धकार का किला अब एक वीरान खंडहर बन चुका था, जो अपने भयानक अतीत के बावजूद अब एक सन्नाटे में डूबा हुआ था। गांव के लोग अब शांति से जीने लगे, और हवेली के अभिशाप का अंत हो चुका था—शायद हमेशा के लिए। लेकिन कोई भी कभी इस बात का दावा नहीं कर सका कि उस किले का भयावह इतिहास अब पूरी तरह से समाप्त हो चुका है, या वह अभी भी किसी अनजान भविष्य का इंतजार कर रहा है।
भय का गह्वर (रहस्य का पुनरागमन)