जंगल की अनकही सच्चाई
गुफा के ध्वस्त होने के बाद सब कुछ शांत हो गया। चारों ओर एक अजीब सा सन्नाटा फैल गया था। अरुण, मोहित, और निधि के लिए सब कुछ काला हो चुका था। जब उन्होंने होश में आने की कोशिश की, तो उन्हें अपने शरीर पर एक भारीपन महसूस हुआ, मानो वे किसी भारी चीज के नीचे दबे हों।
अरुण ने सबसे पहले अपनी आँखें खोलीं। उसने पाया कि वे तीनों गुफा के मलबे के नीचे दबे हुए नहीं थे, बल्कि किसी और जगह पर थे। चारों ओर अंधकार था, लेकिन इस बार यह अंधकार किसी कुएँ या गुफा का नहीं था। यह जगह एक विशाल शून्य की तरह लग रही थी, जहाँ न कोई दीवार थी, न कोई जमीन।
"हम कहाँ हैं?" मोहित ने बमुश्किल से अपनी आवाज़ निकालते हुए पूछा।
निधि ने अपनी आँखें मलीं और चारों ओर देखा। उसे कुछ भी साफ नहीं दिखाई दे रहा था, लेकिन उसके अंदर का डर और ज्यादा गहरा हो चुका था। तभी, एक धीमी और गूंजती हुई आवाज़ सुनाई दी, "तुमने जिस खेल को शुरू किया, वह अब खत्म होने वाला नहीं है। तुम अब उस अधूरे जंगल का हिस्सा बन चुके हो।"
तीनों ने उस आवाज़ की दिशा में देखने की कोशिश की, लेकिन वहाँ कोई दिखाई नहीं दे रहा था। तभी, उन्हें अपने पैरों के नीचे से जमीन के हिलने का अहसास हुआ। अचानक, वे खुद को एक बार फिर उसी अधूरे जंगल में पाए, लेकिन इस बार जंगल का रूप पूरी तरह बदल चुका था।
जंगल अब और भी भयानक हो गया था। पेड़ इतने घने और ऊँचे थे कि उनकी शाखाएँ आसमान को छू रही थीं। हवा में एक भयानक सड़ांध भरी हुई थी, और हर जगह से काली परछाइयाँ सरक रही थीं। ऐसा लग रहा था जैसे यह जंगल अब जीवित हो चुका हो, और उसे किसी की तलाश हो।
"यह जंगल... यह अब भी हमें नहीं छोड़ रहा," अरुण ने कांपते हुए कहा।
मोहित ने गहरी साँस ली और कहा, "हमें इस जंगल का असली रहस्य जानना होगा, नहीं तो हम हमेशा के लिए यहाँ फंस जाएंगे।"
तीनों ने जंगल के भीतर और आगे बढ़ने का फैसला किया। जैसे-जैसे वे चलते गए, उन्हें कई ऐसी चीजें दिखीं जो उन्हें असहज कर रही थीं—जंगल में लगे पत्थरों पर अजीब निशान, पेड़ों पर उकेरी गईं प्राचीन आकृतियाँ, और हवा में भटकतीं अजीब सी गंध।
चलते-चलते वे एक पुराने मंदिर के पास पहुँचे। यह मंदिर बहुत ही रहस्यमय था—इसके चारों ओर काले धुएँ के बादल थे, और मंदिर के दरवाजे पर कई सारी अजीब सी प्रतिमाएँ लगी थीं, जो किसी अज्ञात शक्ति की पूजा करने के लिए बनाई गई लग रही थीं।
निधि ने मंदिर की ओर इशारा करते हुए कहा, "यह शायद उस शाप का केंद्र हो सकता है। हमें अंदर जाना होगा।"
अरुण और मोहित ने हामी भरी, और तीनों ने मंदिर के अंदर प्रवेश किया। मंदिर के भीतर का वातावरण बहुत ही घना और डरावना था। दीवारों पर प्राचीन लिपियों में कुछ लिखा हुआ था, जो समझना मुश्किल था। लेकिन उनमें से एक लिपि निधि के पास जाकर अचानक चमकने लगी।
उस लिपि पर लिखा हुआ मंत्र निधि को समझ में आ गया, जैसे कोई अनजानी शक्ति उसे पढ़ने के लिए मजबूर कर रही हो। उसने धीरे-धीरे वह मंत्र पढ़ा, और जैसे ही मंत्र पूरा हुआ, मंदिर की दीवारों पर खून की धाराएँ बहने लगीं। मंदिर के केंद्र में एक विशाल खिड़की खुल गई, जिससे काले धुएँ का एक भयानक तूफान बाहर निकलने लगा।
तूफान ने पूरे जंगल को घेर लिया, और चारों ओर चीखों की आवाजें आने लगीं—मानो हज़ारों आत्माएँ एक साथ चिल्ला रही हों। तीनों को समझ में आ गया था कि उन्होंने कुछ ऐसा खोल दिया है, जिसे बंद ही रहना चाहिए था।
अरुण ने घबराते हुए कहा, "हमें इसे बंद करना होगा! यह जंगल हमें खत्म कर देगा!"
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मंदिर के अंदर एक विशाल आकृति प्रकट हुई, जो जंगल की आत्मा का प्रतीक थी। उसकी आँखें पूरी तरह से काली थीं, और उसकी उपस्थिति ने चारों ओर का वातावरण पूरी तरह से बदल दिया। उसने तीनों की ओर देखा और भयानक गर्जना की।
आकृति ने अपनी हाथों से एक अदृश्य जाल फेंका, जो तीनों को जकड़ने के लिए बढ़ता चला गया। उन्होंने जितना संघर्ष किया, वह जाल उतना ही मजबूत होता गया। अब उनके पास कोई रास्ता नहीं बचा था।
लेकिन तभी, निधि के मन में एक विचार आया। उसने अचानक गुड़िया को जोर से पकड़ लिया और उस पर मंत्र पढ़ने लगी, जिसे उसने पहले गुफा में पाया था। जैसे ही उसने मंत्र पूरा किया, गुड़िया ने जोर से चमकना शुरू कर दिया, और उसके अंदर से एक तेज़ रोशनी निकलकर मंदिर की उस भयानक आकृति को जकड़ लिया।
आकृति जोर से चिल्लाई, और उसके साथ ही पूरा जंगल हिलने लगा। एक बड़े धमाके के साथ मंदिर ढह गया, और उसके अंदर की सारी डरावनी शक्तियाँ एक ही पल में खत्म हो गईं।
तीनों को ऐसा महसूस हुआ जैसे वे एक भयानक सपने से जाग रहे हों। जब उन्होंने अपनी आँखें खोलीं, तो वे खुद को शहर के बाहर के मैदान में पाए। वे अधूरे जंगल से बाहर आ चुके थे, लेकिन वे जानते थे कि जो कुछ भी उन्होंने देखा, वह असल में हुआ था।
निधि के हाथ में अब भी वह गुड़िया थी, लेकिन इस बार वह गुड़िया सामान्य थी। उसकी आँखों में वह भयानक चमक नहीं थी, और उसका चेहरा भी शांत लग रहा था। लेकिन तीनों जानते थे कि यह गुड़िया अब भी एक रहस्य थी, और उसके साथ जो भी जुड़ा था, वह अब हमेशा के लिए अधूरे जंगल का हिस्सा बन चुका था।
अगले भाग में जाने एक और रहस्य वह रहस्य......
भाग 5: अधूरे जंगल का अंतिम रहस्य
(अगले भाग में...)