स्वस्थ, सुंदर, गुणवान, दीर्घायु-दिव्य संतान कैसे प्राप्त करे? - भाग 2 Praveen kumrawat द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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स्वस्थ, सुंदर, गुणवान, दीर्घायु-दिव्य संतान कैसे प्राप्त करे? - भाग 2

गर्भ धारण संस्कार क्या है?

गर्भ संस्कार को समझने के साथ साथ गर्भ धारण संस्कार को समझाना भी जरुरी है, गर्भसंस्कार की प्रक्रिया गर्भधारण (conceive) करने के साथ ही शुरू हो जाती है। यह संस्कार सबसे महत्वपूर्ण होता है। शिशु का गर्भ में आना कोई आकस्मिक घटना (accidental) ना होकर एक पूर्व नियोजित कार्यक्रम (Planned Program) होना चाहिए, पति पत्नी के समागम के समय की मनस्थिति पर निर्भर होता है कि किस प्रकार की आत्मा का गर्भ में प्रवेश होगा।

विवाह के बाद पति और पत्नी को मिलकर अपने भावी संतान के बारे में सोच विचार करना चाहिए। बच्चे के जन्म के पहले स्त्री और पुरुष को अपनी सेहत को और भी बेहतर करना चाहिए। यह बहुत ही पवित्र कर्म होता है लेकिन यदि आप इसे कामवासना के अंतर्गत लेते हैं तो यह अच्छा नहीं है। उत्तम अन्न ग्रहण करने, पवित्र भावना, प्यार और आनंद की स्थिति निर्मित करने से हमारे शरीर का गुण धर्म बदल जाता है। प्रसन्नता सबसे उत्तम भाव होता है। घर का उचित वातारवण होना चाहिए जिसमें चिंता और तनाव नहीं होना चाहिए तो ही आप अपने जन्म लेने वाले बच्चे का अच्छा भविष्य निर्मित कर सकते है।

हमारे शास्त्रों में उल्लेख है कि पवित्र और गुण संपन्न शिशु पाने के लिए माता पिता को परमात्मा के चरणों में प्रार्थना करनी चाहिए। यह प्रार्थना इस प्रकार की हो हे प्रभु! हमारे घर में जो आत्मा आए वह आपका ही प्रतिरूप हो, आप जैसे ही दिव्य गुणों से संपन्न हो, उसके माथे पर तेज हो, वाणी में मिठास हो, बुद्धिमान हो निश्छल हो और हर तरह से संसार के कल्याण के लिए कार्य करें। ऐसी प्रार्थना करने के बाद ही माता पिता प्रार्थना पूर्ण भाव से पवित्र आत्मा को आमंत्रित करें।

इस प्रार्थना से पवित्र भावना का विकास होता है। तब माता-पिता के समागम से संतानोत्पत्ति होती है। यह संयोग ही गर्भाधान कहलाता है। स्त्री और पुरुष के शारीरिक मिलन को गर्भाधान संस्कार कहा जाता है। गर्भ में शिशु केवल स्त्री पुरुष के शारीरिक मिलन का नतीजा ही नहीं है बल्कि शरीर के साथ दो आत्माओं का मिलन होता है जो नई आत्मा को आमंत्रण देता है। फिर शरीर का यंत्र नई आत्मा के लिए तैयार होने लगता है।


गर्भकाल में माता की भावना

मातृत्व एक वरदान है तथा प्रत्येक गर्भवती एक तेजस्वी शिशु को जन्म देकर अपना जन्म सार्थक स्थिति को गर्भवती महिलाएँ जन्म सार्थक कर सकती है। दुर्भाग्यवश इस संवेदनशील समाज सभी नजरअंदाज कर रहे कुटुब और पल रहे शिशु के मस्तिष्क का गर्भवती की भावनाएँ, विचार, आहार विकास रायत पर निर्भर होता है। जब गर्म होती है, तब माता जिस प्रकार में सतानको तीजस तामस भावना से भावित की सात्विका सा अच्छा-बुरा देखती, सुनती पढ़ती खाती-पीती है, उन सबका गर्भस्थ शिशु पर प्रभाव पड़ता है। शिशु प्रत्येक क्षण मी से प्रशिक्षित होता रहता है। मिट्टी के बनते हुए बर्तन में जो चित्र खींच दिया जाता है. वह चित्र कभी नहीं मिटता। इसी तरह मनुष्य के बचपन में या गर्भ में स्थित रहने पर जो संस्कार डाला जाता है, वह अमिट हो जाता है।

Dr Arnold Scheibel (Neurologist) कहते हैं कि यदि गर्भवती आधे घंटे तक क्रोध या विलाप कर रही हो तो उस दौरान गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क का विकास रुक जाता है जिसका नतीजा गर्भस्थ शिशु कम बौद्धिक क्षमता के साथ जन्म लेता है। यह महत्वपूर्ण बात हम जानते ही नहीं हैं। गर्भस्थ शिशु का मस्तिष्क न्यूरोन सेल्स से बना होता है। यदि मस्तिष्क में न्यूरोन सेल्स की मात्रा अधिक है तो स्वाभाविक रूप से शिशु के बौद्धिक कार्यकलाप अन्य शिशुओं की अपेक्षा बेहतर होते है।

नौ माह में माँ का स्वभाव शिशु के जीवन भर का स्वभाव निश्चित कर देता है। अत गर्भवती कितना खुशी भरा व सकारात्मकता से भरा जीवन जीती है यह शिशु क सम्पूर्ण जीवनाशित्वपूर्ण है। गर्भावस्था मो की हर मास से शिशु की सांस होती है। होता है। भी दास तो शिशुकी आस होती है। माँ हो भी प्रसन्न हो सोधराशायी प्रसन्न है। माँ के हर को दुख का माद पहुँच जाता है। माँ की हर मुस्कान के साथ शिशु आनंदित हो जाता है इसलिए माँ को रहना चाहिए और घर के सभी सदस्यों को इसमें सहयोग करना चाहिए।

कुछ लोग ऐसा समझते हैं कि उनके गर्भस्थ शिशु एक तुच्छ और नन्हीं सी जान है. उसे बाहरी संसार के बारे में कुछ नहीं पता लेकिन जो लोग Past Life Regression (पूर्व जन्म को जानने का एक विज्ञान) जानते हैं उनका कहना है कि हो सकता है अब से 2-4 महीने पहले कोई बूढ़ा-बुजुर्ग मरा हो और वो कोई बहुत बुद्धिमान व्यक्ति हो. एक पूरी तरह सुलझा हुआ इंसान हो सकता था जो अब इस बच्चे के रूप में आया है. माता-पिता इस बात को अच्छी तरह समझ सकते हैं कि वो गर्भ में पल रही एक छोटी सी जान नहीं है बल्कि एक आत्मा है, और आत्मा सब कुछ जानती है, जब तक आत्मा माँ के गर्भ में रहती है, तब तक उसे अपना पुराना जन्म पूरी तरह से याद होता है, माँ इस बात को सदैव ध्यान में रखे कि 'मेरे गर्भ में एक उत्तम और पवित्र आत्मा है और मैं जो भी संसकार इसे दूंगी वो उसे पूरी तरह से ग्रहन करने में सक्षम है।