आई कैन सी यू - 15 Aisha Diwan द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

आई कैन सी यू - 15

अभी सुरज दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन उसकी रौशनी फैल चुकी थी। पक्षियों की मधुर आवाज़ और मनमोहक गुलों की खुशबू से पूरा कॉलेज महक उठा था। खिड़की के पर्दों को धक्के मार कर आ रही हवाओं ने रोवन के जिस्म को छुआ तो उसे ठंडक महसूस हुई और नींद आंखों से दूर जाने लगी। उसने धीरे धीरे अपनी आँखें खोली। अब तक वो हल्के नींद के आगोश में था लेकिन जब याद आया के लूसी उसके लिविंग रूम में है तब एक झटके में नींद की खुमारी आंखों से गायब हो गई और हड़बड़ा कर उठा। दिल में आया के कहीं उठने में देर तो नहीं हो गई। डरे हुए आंखों से घड़ी की ओर देखा तब उसने सुकून का सांस लिया। अभी 5:27 बज रहे थे। रात के हादसे से नींद तो कहीं दूर जा कर बस गई थी। बस कुछ देर पहले ही उसकी आंख लग गई थी। 

बड़ा सा एक चाबी ड्रॉअर से निकाला और अपने कमरे से बाहर लिविंग रूम में आया। लूसी सोफे पर सिकुड़ कर सो रही थी। बहुत थकान और बुखार की तपिश से हुई कमज़ोरी से उसे नींद आ गई थी। रोवन दबे पांव उसके क़रीब आया और उंगलियों से उसके सर को छू कर देखा। अब बुखार उतर चुका था। उसे इतनी मासूमियत से सोते देख उसका दिल नही चाह रहा था के उसे जगा दे लेकिन इस समय उसने अपने जज़्बातों पर काबू किया और वोही सख़्त दिल रोवन बन कर जगाने लगा जिस रोवन के किरदार से वो लोगों में बदनाम है। 
   " मिस साइरस!... उठो देर हो जायेगी!.... वेक अप मिस साइरस!"

उसके आवाज़ देने से लूसी जाग उठी और मोटी मोटी पलकों को उठा कर रोवन को देखते हुए बोली :" क्या हुआ सुबह हो गई क्या ?...उठने में देर तो नहीं हो गई?"

रोवन गहरी आवाज़ में :" हां सुबह हो गई है! चलो मैं मेन गेट खोल देता हूं!"

लूसी की आंखें लाल हो गई थी। एक तो रात भर मुसीबतों से लड़ती रही। कई बार रोई और जिस वजह से तेज़ बुखार भी रहा। एक रात ने उसे चकना चूर कर दिया था। 
उसने अपना बैग उठाया और रोवन के पीछे पीछे जाने लगी। 
रोवन ने मेन गेट के बड़े से ताले को खोला और लूसी को जाने का इशारा किया। 

लूसी उस से कुछ पूछना चाहती थी और थैंक्स कहना चाहती थी लेकिन उसके कुछ कहने से पहले ही रोवन ने कहा :" मिस साइरस आज कॉलेज मत आना!... और हां बेहतर यही होगा के तुम अपने घर चली जाओ कम से कम वहां तुम्हारी जान को खतरा नहीं होगा!.... मेरे बारे में ज़्यादा मत सोचो मैं ज़िंदा हूं यही काफी है। चलो जाओ अब पढ़ाई से ज़्यादा जान ज़रूरी है।"

लूसी गेट से बाहर कदम रखते हुए बोली :" मैं नहीं जाऊंगी!.... अगर मैं चली गई तो उस चुड़ैल को लगेगा मैं उस से डर कर भाग गई हुं!... जो जंग छिड़ गई है उसे तमाम कर के ही रहूंगी मैदान छोड़ कर भागना मैं ने नही सीखा है।.... आपका शुक्रिया आप ने मेरी मदद की इस लिए!"

ये सब कह कर कंधे पर बैग लटकाए वो चली गई। रोवन ने उकताहट से लंबी सांस लेते हुए कहा :" बड़ी ज़िद्दी लड़की है!.... लगता है इसके घर वालों ने इसे ज़्यादा ही सर चढ़ा रखा है।.... पागल!"

दोनों अपने अपने रास्ते चले गए। 

डगमगाते कदमों से चलते हुए लूसी उस सफेद साड़ी वाली औरत के बारे में यही सोच रही थी के "चाकू लगने के बाद से वो वापस नहीं आई क्या वो हमेशा के लिए चली गई है या अभी उसकी शक्तियां कमज़ोर है इस लिए नहीं आई? मुझे उसका इंतज़ार करना होगा और जब तक वो वापस आयेगी तब तक किसी पैरानॉर्मल इन्वेस्टिगेटर से बात कर लूंगी। मुझे एक घातक हथियार रखना होगा। उसे अगर बम से उड़ा दूं तो मर जायेगी या नहीं?....मैं कह दूंगी के मैं पटाखों से खेल रही थी।.... ओफ्फो मैं सेंस लेस होने लगी हुं! वो मरे ना मरे आसपास के लोग ज़रूर मर जायेंगे और तो और मेरी अब उमर भी नहीं है कि मैं पटाखों से खेलूं!"

अपने विचारों में खोई खोई चल रही थी के उसे किसी का कॉल आया। बैग से मोबाईल निकाल कर देखा तो पापा का नंबर था। 

सुबह सुबह पापा का फोन देख कर जल्दी से कॉल रिसिव किया। 
        "हेलो पापा!"

उधर से मम्मी की आवाज़ आई :" हां बेटा हम बोल रहे हैं!... कैसी हो तुम? 

    " हां मम्मी मैं बिलकुल ठीक हूं! आप सब कैसे हैं?

लूसी ने अपने आप को ठीक दिखाते हुए कहा।

    " तुम्हारी आवाज़ ऐसे पस्त क्यों लग रही है?.... तबियत तो ठीक है ना?

मम्मी ने शक करते हुए कहा।

लूसी बनावटी हंसी हंस कर बोली :" अरे नहीं मम्मी मैं तो बिलकुल ठीक हूं! सुबह सुबह है ना अभी इस लिए थोड़ी सी मॉर्निंग सिकनेस है।"

   " लेकिन ऐसा लग रहा है तुम चलते हुए बात कर रही हो! सुबह मॉर्निंग वॉक पर निकली हो क्या?

मम्मी ने पूछा। 
मम्मी के सवाल से परेशान हो कर लूसी ने जल्दी में कहा :" हां मम्मी अभी मैं रूम में जा रही हूं! नहाऊँगी, नाश्ता करूंगी फिर कॉलेज चली जाऊंगी! मैं आप से बाद में बात करती हूं। Bye!"

उसने जल्दी में फोन रख दिया तब तक वो अपने कमरे के बाहर आ गई थी। दरवाज़े पर दस्तक दी। वर्षा ने आंखें मलते हुए दरवाज़ा खोला। उसे सामने देखते ही भरी भरी आवाज़ में बोली :" तुम इतनी सुबह सुबह आ गई?.... क्या हो गया था अचानक चली गई! तुम ने मेरे मैसेज का भी जवाब नहीं दिया।"

लूसी अंदर आई और बैग रखते ही अपने बिस्तर पर चित हो गई। उसने लेटे लेटे ही वर्षा के सवाल का जवाब देते हुए कहा :"पापा की तबीयत खराब हो गई थी इसलिए हम सब परेशान हो गए थे!... मैं ने ज़िद किया कि मुझे सुबह ही जाना है इसलिए भैया मुझे छोड़ कर गए!"

  " अच्छा!.... तुम्हारी हालत बिल्लियों के पंजों से बची हुई चूहे जैसी क्यों लग रही है?

वर्षा ने हैरत में उसे देखते हुए कहा।

" मैं रात भर से सोई नहीं अब मुझे सोना है तुम जाओ जाकर तैयार हो जाओ तुम्हें तो कॉलेज जाना है ना?"

लूसी आंखे बंद कर के बोली।

     "मुझे तो जाना है लेकिन तुम नहीं जा रही हो क्या?... आज आराम करने वाली हो?

वर्षा ने पूछा।

  "आज मैं नहीं जा सकती रोवन सर ने भी आने से मना किया है।"

लूसी के मुंह से रोवन का नाम गलती से निकल गया। उसका नाम सुनते ही वर्षा ताज्जुब से बोली :" क्या!... रोवन सर? क्या कह रही हो?

लूसी फौरन बात बदलते हुए झूठी हंसी हंस कर बोली :" तुम्हारे कान में रोवन सर बज रहे हैं क्या!...मैंने तो कहा कि रावण सर हो गया है मेरा! सर में दर्द है ना इसलिए ऐसा लग रहा है कि रावण के तरह एक नहीं कई सर हो गए हैं। लगता है तुम्हारी नींद पूरी नहीं हुई है! जाओ जाकर फ्रेश हो जाओ!"

वर्षा असमंजस में ये सोचती हुई चली गई के "मैं ने तो अच्छी तरह सुना इसने रोवन सर ही कहा था! पता नही पगला गई है घर जा कर!"

आज रोवन के दिल वा दिमाग़ में चैन सुकून नहीं था। खोया खोया सा और अंदर ही अंदर कुछ तलाश करने में लगा हुआ था। उसके ज़िंदगी के कई तरह के अनसुलझे तार बिखरे हुए थे जिसे वो अपने दिमाग में तोड़ने जोड़ने में लगा हुआ था। ऑफिस में किसी एक तरफ नज़र टिकाए हुए व्हील चेयर में बैठे झूल रहा था। एक चपरासी वहां खड़ा था जिसने कुछ देर पहले ही कहा था के सर इन पेपर्स पर साइन कर दीजिए" 
लेकिन रोवन का ध्यान उस पर था ही नहीं। चपरासी ने फिर से कहा :" सर इन पेपर्स पर साइन करना है!"

अब रोवन के ख्यालों की लय टूटी और उसने चपरासी पर नज़र डालते हुए कहा :" ओह हां मैं साइन कर देता हूं!"


शाम चार बजे क़रीब वो कॉलेज से अपनी काली कार में कहीं निकल गया। एक लंबा सफर तय कर के वो एक घाट पर पहुंचा। वो गंगा घाट था। कार से उतर कर नदी के किनारे जा कर खड़ा हो गया। नदी अपनी धुन में शांत मगर मस्त मौला बन कर बह रही थी। तेज़ हवाएं रोवन के घने बालों को लहरा रही थी। 
वहां खड़े रह कर कुछ देर तक वो सिर्फ पानी को तकता रहा फिर एक गहरी सांस लेते हुए कहा :" तुम्हें यहीं पर विसर्जित किया गया था और मैं न जाने कितनी ही बार यहां आ कर तुम से माफी मांग चुका हूं!.... वो तुम ही हो ना जिस ने मेरी दो दुल्हनों को मारा था?.... और अब लूसी साइरस के पिछे पड़ गई हो!.... तुम मेरी जान क्यों नहीं ले लेती... मैं हाज़िर हूं!... उन बेकसूर लोगों को क्यों सता रही हो जो मुझसे जुड़े हैं! लूसी साइरस तो मुझसे जुड़ी भी नहीं, हम तो एक दूसरे को जानते तक नहीं हैं फिर तुम उसे क्यों मारना चाहती हो? क्या इस लिए की वो तुम्हें खत्म करने की हिम्मत रखती है?.... मेरे सामने आ कर मुझे जवाब क्यों नहीं देती! बस कर दो अपना ये खेल!... अगर तुम ने फिर से किसी को यानी लूसी को मारने की कोशिश की तो मैं ये खेल खत्म कर दूंगा और अपनी जान ले लूंगा फिर तुम्हारा इस दुनिया में कोई काम नहीं रहेगा!"

नदी को देखते हुए ये सब बोल कर वो वापस चला गया। उसे मालूम नही था के उसकी ये बातें उस तक पहुंची या नहीं जिसे वो बोलना चाहता है। बस अपने दिल की बेचैनी को बाहर करने आ गया था।

(तो जानते हैं अगले भाग में की रोवन किस से बातें कर रहा था। कौन है वो जिस से रोवन लूसी को न मारने की विनती कर रहा था? उसने ऐसा क्या किया था की वो उस से माफी मांग रहा है? कौन है वो सफेद साड़ी वाली? पढ़ते रहें अगला भाग जल्द ही।)