प्रकरण - ४७
मैंने जैसे ही रईश से बात खत्म कर के फोन रखा ही था की तभी फातिमा का नाम मेरे फोन में गूंजने लगा। फातिमा का फोन आते ही मेरा चेहरा खिल उठा। आज मैं बहुत दिनों बाद बहुत ही खुश था। ख़ुशी के मारे मैंने फोन उठाया और हेल्लो कहा।
दूसरी ओर से फातिमा बोली, "तुम कैसे हो रोशन? अब तुम्हारे आखिरी गाने की रिकॉर्डिंग खत्म हो गई है? अब तुम यहां अहमदाबाद कब आनेवाले हो? तुम निशाद मेहता के साथ कॉन्ट्राकाट कब साईन करोगे?"
मैंने कहा, "हां, अब नीरव शुक्ला के साथ इस फाइनल गाने की रिकॉर्डिंग भी पूरी हो चुकी है। तो अब मैं अपना पेमेंट चेक लेने के लिए कल उनके पास जाऊंगा। उसके बाद मैं अभिजीत जोशी से मिलूंगा और उन्हें बताऊंगा कि अब मेरे मुंबई से वापस जाने का समय हो गया है ।"
मेरी ये बात सुनकर फातिमा बोली, "हां! तुम सही कह रहे हो। अभिजीत जोशी की वजह से ही तुम्हारे जीवन में इतनी सारी सफलताएं संभव हो पाई हैं, इसलिए तुम उनका जितना भी शुक्रिया अदा करो वह कम है।"
मैंने कहा, "हां, तुमने बिल्कुल सही कहा फातिमा!तुम मुझे बताओ कि मेरे घर पर तुम ठीक से रह पा रही हो न? तुम्हे कोई परेशानी तो नहीं हो रही है न? दर्शिनी और नीलिमा के साथ तुम्हे अच्छा तो लगता है ना?"
फातिमा बोली, "क्या रोशन तुम भी! यह भी क्या कोई पूछने लायक सवाल है? अपने दोस्तों के साथ रहना किस अच्छा नहीं लगेगा?"
फातिमा की ये बात सुनकर मैं ज़ोर से हंस पड़ा। उसके बाद मैंने उससे पूछा, "क्या अब तुम ये बताने का कष्ट करोगी कि विद्यालय का काम अब शुरू हो गया है या नहीं? ममतादेवीने स्कूल के लिए जो जगह ली थी, उसे अब स्कूल के लिए उपयुक्त आकार दिया गया है या नहीं?"
फातिमाने कहा, "हां! बांधकाम के साथ-साथ रंगरोगान में जो भी बदलाव की आवश्यकता थी, वह सब अब हो चुका है। जल्द ही हम छात्रों के प्रवेश की प्रक्रिया शुरू करेंगे।"
फातिमा की यह बात सुनकर मैंने भी कहा, "वाह! यह तो तुमने बहुत अच्छी बात कही है। यह सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई। मुझसे भी ज्यादा खुश तो ममतादेवी होंगी, है ना? उनका सपना अब सच होने जा रहा है। और उनके इस सपने को साकार करने में तुम्हारी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।"
फातिमा बोली, "हां! विद्यालय जिस गति से प्रगति कर रहा है, उसे जानकर ममतादेवी भी बहुत खुश हैं। वह मेरे काम से भी बहुत ही संतुष्ट हैं। चलो! बातों-बातों में मुझे समय का ध्यान ही नहीं रहा। अब मैं फोन रखती हूं। मेरा अब विद्यालय जाने का समय हो गया है।"
"हाँ! हा! ठीक है। मैं भी फोन रखता हूं अब।" इतना कह कर मैंने भी फोन रख दिया।
इस ओर समीर भी मेरे घर आता-जाता रहता था। समीर मन लगाकर मेरे पापा से संगीत सीख रहा था। वह बहुत ही मेहनत कर रहा था। उसकी ये मेहनत देखकर मेरे पापा भी उससे बहुत खुश रहते थे। मेरे पापा उसे जो भी सिखाते थे, वह अगले दिन उसका अभ्यास करके ही हमारे घर आता था। वह बहुत बुद्धिमान था इसलिए उसे सभी धुनें, सरगम, राग आदि बहुत जल्दी उसे याद हो जाते थे।
लगभग एक महीने से समीर मेरे घर आता था। उसी दौरान मैंने भी मुंबई में अपना सारा काम निपटा लिया और मैं भी अहमदाबाद वापस आ गया। मैं अहमदाबाद पहुंचा उसके बाद की बात मैं बाद में करूंगा। उससे पहले मैं आपको और हमारे साथी दर्शकों को समीर के बारे में बताना चाहता हूं।" स्टूडियो में बैठे रोशनकुमारने कहा।
यह सुनकर अमिता बोली, "जी रोशनजी! हमारे दर्शकों को भी आपके परिवार के इन सदस्यों के बारे में जानना बहुत अच्छा लगेगा। हमारे दर्शक और उनके साथ साथ मैं भी यह जानने के लिए बहुत उत्सुक हूं कि समीर और दर्शिनी की प्रेम कहानी में आगे क्या हुआ?"
रोशनने कहा, "जैसा कि मैंने आपको पहले भी बताया मेरे पापा समीर की सीखने की उत्सुकता से बहुत खुश थे। वैसे भी उनका मानना था कि ज्ञान का दान एक महादान होता है। उन्हें संगीत का ज्ञान था और यह ज्ञान उन्होंने समीर को दिया। वे मानते थे कि अगर विद्या का आदान-प्रदान चलता रहे तो ही इस समाज का अच्छे से विकास होता है।
अमिता बोली, "आप बिल्कुल सही कह रहे हैं रोशनजी! विद्यादान महादान ये कहावत यूं नहीं है!"
रोशनने कहा, "हां, अमिताजी! अब मैं आपको अगली बात बताता हूं। समीर अब इतनी अच्छी तरह से सीख गया था कि मेरे पापाने ममतादेवी को इस बारे में बताया। उन्होंने ममतादेवी से कहा, "मेरा एक छात्र समीर है, जो मेरी बेटी दर्शिनी का खास दोस्त भी है।"
यह सुनकर ममतादेवी को कुछ याद आया और वो बोली, "ओह! समीर! हाँ! हाँ! दर्शिनी का दोस्त। मैं उसे जानती हूँ। उसने ही मेरे द्वारा किए गए कार्यक्रम के निमंत्रण कार्डों को डिजिटल बनाया था। समीर बहुत अच्छा और सरल स्वभाव का लड़का है।"
मेरे पापाने कहा, "हां, मैं उसे लगभग एक महीने से संगीत सीखा रहा हूं। वह बहुत ही प्रतिभाशाली लड़का है। संगीत सीखने में आमतौर पर सात साल लगते हैं। लेकिन समीरने बहुत ही कम समय में बहुत कुछ सीख लिया है। वैसे भी वो कहा जाता है न की कलाकार बनते नही है कलाकार तो जन्म लेते है। कुछ ऐसा ही समीर के लिए भी कहा जा सकता है। समीरने इस धरती पर एक कलाकार के रूप में जन्म लिया है। इसलिए ममतादेवी! मैं चाहता हूं कि उन्हें भी आपके विद्यालय में छात्रों को संगीत सीखाने का मौका मिले।
वैसे भी समीर की आर्थिक स्थिति कुछ ज्यादा अच्छी नहीं है, इसलिए वह नौकरी की तलाश में है। समीर की ये हालत देखकर मुझे लगा कि एक बार मुझे आपसे इस बारे में बात करनी चाहिए।”
ममतादेवी बोली, "ये तो आपने बहुत ही अच्छा किया सुधाकरजी। हालाँकि, स्कूल में छात्रों की संख्या बढ़ रही है, इसलिए मुझे भी एक नए संगीत शिक्षक की आवश्यकता तो है ही। यदि आप ही समीर जैसे सरल स्वभाववाले अपने छात्र की अनुशंसा करते हैं तो मेरे लिए इससे अधिक खुशी की बात क्या हो सकती है? मैं समीर को अपने स्कूल में नौकरी जरूर दूंगी। आपका बोझ भी थोड़ा हल्का हो जाएगा। लेकिन समीर की पढ़ाई? क्या वह सब कुछ संभाल लेगा?"
मेरे पापाने कहा, "आप उसके बारे में चिंता मत कीजिए। मैंने सोचा है कि हमें समीर को पूरे दिन नहीं बल्कि दोपहर के एक बजे के बाद ही बुलाना चाहिए। वैसे भी उसके कॉलेज का समय सुबह 7 बजे से दोपहर 1 बजे तक का ही है तो हम उसे एक बजे के बाद कभी भी बुला सकते हैं।"
इस तरह से मेरे पापाने ममतादेवी से बात की और समीर को स्कूल में नौकरी दे दी। ताकि भविष्य में अगर दर्शिनी समीर से शादी की बात भी करे तो तब तक समीर की स्थिति में थोड़ा सुधार हो चुका हो और दर्शिनी को भविष्य में कोई परेशानी न हो।
अमिता बोली, "ये तो आपके पापाने बहुत ही अच्छा काम किया है। रोशनजी!"
रोशन बोला, "हां, अमिताजी! मेरे पापा बहुत दूरदर्शी थे और इसीलिए उन्होंने यह कदम उठाया था।"
अमिता बोली, "दर्शकों! रोशनजी से बातचीत का यह सिलसिला अभी भी जारी है। उनसे बातचीत जारी रखने से पहले आइए लेते है अब एक छोटा सा ब्रेक। जल्द ही वापस मिलेंगे तब तक के लिए नमस्कार।
(क्रमश:)