तमस ज्योति - 46 Dr. Pruthvi Gohel द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

तमस ज्योति - 46

प्रकरण - ४६

मैं दिन की अपनी आखिरी रिकॉर्डिंग ख़त्म करके अभी-अभी घर पहुँचा था। मैंने विराजभाई को चाय बनाने के लिए कहा इसलिए विराजभाई चाय बनाने के लिए रसोई में चले गये। 

मैं थोड़ी देर आराम करने के लिए अपने बिस्तर पर लेट गया। तभी अचानक मेरे मोबाइल की घंटी बजी जो रईश का नाम ले रही थी। मैंने फोन उठाया और हैल्लो कहा।

सामने से रईश की आवाज आई। वो बोला , "रोशन! कैसा है? तुम्हारा काम कैसा चल रहा है?" 

मैंने बोला "बस! बहुत अच्छा चल रहा है। तुम बताओ। तुम्हारा रिसर्च कहा तक पहुंचा?

रईशने बताया, "बस! यही बात बताने के लिए मैंने तुम्हें फोन किया था। एक महीने पहले की बात है। हम मानव आंखों के लिए कृत्रिम कॉर्निया बनाने में अब सफल हो गए हैं।"

मैंने कहा, "तो फिर मुझे जल्दी बताओ! तुमने ये सब कैसे किया? मैं अब तुम्हें सुनने के लिए बहुत उत्सुक हूं।"

रईशने कहा, "तो फिर सुनो! हमारी आंखों का कॉर्निया वह खिड़की है जिसके माध्यम से प्रकाश प्रवेश करता है और हमारी आंखों को रोशन करता है, लेकिन जब यह कॉर्निया क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो आंख में प्रवेश करनेवाली ये प्रकाश की किरणें अनियमित रूप से बिखर जाती हैं और व्यक्ति की दृष्टि की गुणवत्ता को ख़राब कर सकती हैं। चोट, एलर्जी या किसी अन्य बीमारी के कारण भी ऐसा हो सकता है।

हमारे कॉर्निया की संरचना कुछ इस प्रकार होती है। कॉर्निया की जो पेशी होती है वो मूलभूतरूप से तीन स्तर में व्यवस्थित होती हैं और इन तीन स्तरों के बीच में दो पतले स्तर होते है, जिससे कुल पांच स्तर बनते हैं। ये सभी पाँच स्तर अलग-अलग कार्य करते हैं, जिनमें से प्रत्येक का एक अद्वितीय महत्व होता है।

कॉर्निया की सबसे बाहरी परत को एपिथेलियम के रूप में जाना जाता है जो हमारी आंखों को धूल, पानी या आंखों में प्रवेश करने वाले बैक्टीरिया से बचाने का काम करती है। आपने कई बार देखा होगा कि जब हमारी आंखों में कचरा चला जाता है तो आंसू निकलने लगते हैं। इन आंसुओं से यह ऑक्सीजन और पोषक तत्वों को अवशोषित करता है जिसके लिए चिकनी सतह यह परत प्रदान करती है।

दूसरी परत का नाम बोमन परत है, जो कोलेजन नामक प्रोटीन के तंतुओ से बनी होती है। जो आंखों को आकार देता है।

तीसरी परत स्ट्रोमा है जो बोमन परत के पीछे स्थित होती है। यह कॉर्निया के अंदर की सबसे मोटी परत होती है जो मुख्य रूप से पानी और कोलेजन नामक प्रोटीन से बनी होती है। यह कोलेजन प्रोटीन कॉर्निया को उसकी ताकत, लोच और आकार देता है। कॉर्निया की प्रकाश-संचालन पारदर्शिता उत्पन्न करने के लिए कोलेजन प्रोटीन का अद्वितीय आकार, व्यवस्था और अंतर कॉर्निया की प्रकाश संचालन पारदर्शिता उत्पन्न करने के लिए आवश्यक है।

चौथी परत है डेसिमेट परत जो स्ट्रोमा के पीछे होती है, जो पेशियो से बनी पतली लेकिन मजबूत फिल्म है जो संक्रमण और चोट के खिलाफ सुरक्षात्मक बाधा के रूप में कार्य करती है। डेसिमेट परत भी कोलेजन प्रोटीन फाइबर से बनी होती है जो स्ट्रोमा से थोड़ी अलग होती है, जो कॉर्निया की एंडोथेलियल परत की कोशिकाओं द्वारा बनाई जाती है। डेसिमेट की परत का कार्य चोट लगने पर स्वयं को आसानी से ठीक करना है।

और पांचवीं और अंतिम परत एंडोथेलियम है, जो कॉर्निया की पतली आंतरिक परत है। कॉर्निया को साफ रखने में एंडोथेलियल कोशिकाएं महत्वपूर्ण हैं। आम तौर पर तरल पदार्थ धीरे-धीरे आंख के अंदर से स्ट्रोमा में लीक होता है। एन्डोथेलियम का मुख्य कार्य स्ट्रोमा से इस अतिरिक्त तरल पदार्थ को बाहर निकालना है। इस पंपिंग क्रिया के बिना, स्ट्रोमा पानी से फूल जाता है और गाढ़ा और अपारदर्शी हो जाता है। एक स्वस्थ आंख में, कॉर्निया में प्रवेश करने वाले तरल पदार्थ और कॉर्निया से निकलनेवाले तरल पदार्थ के बीच एक सही संतुलन बनाए रखा जाता है। हमने पहले प्रयोगशाला में कॉर्निया की इन सभी परतों को कृत्रिम रूप से बनाया और फिर उन्हें कॉर्निया की संरचना के अनुसार व्यवस्थित किया। जो बहुत ही कठिन और मेहनतवाला काम था। यह काम करते हुए मुझे एहसास हुआ कि भगवानने किस तरह से हमारे सभी अंगो को बनाया होगा! अगर इस छोटी सी आंख की संरचना इतनी जटिल है तो अन्य अंगों की तो बात ही क्या की जाए? मेरे मन में ख्याल आया कि हमारे पूरे शरीर की संरचना कितनी जटिल होगी! सचमुच प्रभु की लीला तो अद्वितीय है।”

ये सुनकर मैंने कहा, "तुम सही कह रहे हो रईश! लेकिन फिर आप लोग यह कृत्रिम कॉर्निया बनाने में सफल तो हो गए है ना?" 

रईशने कहा, "हाँ, रोशन! हम सब सफल हुए हैं लेकिन..." 

यह सुनकर मैं थोड़ा सा डर गया और तुरंत बोल उठा, "लेकिन क्या भाई?"

रईशने मुझे बताया, "लेकिन हमने जो कृत्रिम कॉर्निया बनाया वह प्रयोगशाला में बहुत अच्छे से विकसित हुआ और अब वह मानव आंख में प्रत्यारोपित होने के लिए तैयार है। यह कॉर्निया ट्रांसप्लांट डॉ. डेनिश विक अब पहलीबार किसी मरीज की आंख में करनेवाले थे। यह मरीज सर्जरी के लिए तैयार था। क्योंकि, न तो उसके आगे कोई था और न ही उसके पीछे। इसलिए उसे किसी और बात की चिंता नहीं थी।

उसके मन में केवल एक ही आशा थी कि अगर उनकी आंखों की रोशनी लौट आए तो उनके जीवन का तमस ज्योति में परावर्तित हो जाए। और यह सोचकर कि इस ऑपरेशन से यह संभव हो जाएगा, वह शख्स आंख के ऑपरेशन के लिए तैयार हो गया था।

ये सुनकर मैंने फिर पूछा, "तो क्या उसकी आंखों का ऑपरेशन हुआ? क्या उसकी आंखों की रोशनी वापस आ गई? जल्दी बताओ रईश!" मैं अब आगे क्या होगा यह सुनने के लिए बहुत बेचैन था।

रईशने कहा, "हां, रोशन! उनकी आंखों का ऑपरेशन तो सफलतापूर्वक हो गया। ऑपरेशन के दो महीने बाद उसकी आंखों की रोशनी भी लौट आई। ये देखकर हम सभी बहुत खुश हुए। हम सभी अभी भी अपनी जीत का जश्न मना रहे थे कि अचानक एक दिन वह आदमी अपनी शिकायत लेकर डॉ. डेनिश के पास वापस आया।"

मैंने पूछा, "शिकायत! शिकायत किस बात की?" ये सुनकर मुझे भी थोड़ा डर लगने लगा।

रईशने आगे बताया, "ऑपरेशन के पंद्रह दिन बाद तक उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई लेकिन पंद्रह दिन बाद उनकी आंखों में इन्फेक्शन हो गया था और वह आंखों में असहनीय जलन से पीड़ित हो गए थे।

उनकी यह शिकायत सुनकर डॉ. डेनिश थोड़ा चिंतित हुए लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने उसकी आँखों की जाँच की और उसकी आँखों में हुए इन्फेक्शन को देखते हुए आई ड्रॉप्स दी और कहा, "चिंता मत करो। यह सिर्फ एक मामूली इन्फेक्शन है। जो ड्रॉप्स मैंने आपको लिख के दिए हैं उन्हें ले लो और इसे एक सप्ताह तक अपनी आंखो में दिन में तीन बार डाल देना। एक सप्ताह बाद ठीक हो जाएगा। एक सप्ताह के बाद फिर एकबार मुझे दिखा देना।"

एक सप्ताह बाद जब वह दोबारा आया तो उसे कोई शिकायत नहीं थी। उनकी सभी शिकायतें पूरी तरह से सुलझ गई थी। 

रईश की ये बात सुनकर मुझे थोड़ी राहत मिली और मैंने कहा, "यह तो बहुत अच्छा कार्य हुआ। तो अब तो तुम्हारा रिसर्च ख़त्म हो गया न? अब तुम यहाँ भारत वापस कब आओगे?"

रईशने कहा, "नहीं, अभी तो यह पहला ही प्रयास है। हम केवल पहले प्रयोग में ही सफल हुए हैं, इसलिए बहुत अधिक आश्वस्त होना भी उचित नहीं है। अभी थोड़े ओर लोगों की आंखों की रोशनी इस प्रयोग से वापस आ जाए और हम इस प्रयोग में पूरी तरह से सफल हो जाए उसके बाद ही हम तुम्हारे ऑपरेशन का जोखिम उठाएंगे। मुझे लगता है कि इसमें एक या दो साल शायद और लग जाएंगे।"

मैंने कहा, "हां रईश! तुम सही कह रहे हो। चलो अब मैं फोन रखता हूं।"

इतना कहकर मैंने फोन रख दिया और अपनी आंखो के ऑपरेशन के खयाल में खो गया था। तभी अचानक मेरे फोन में फातिमा के नाम की घंटी बजी जिसकी आवाज़ से मेरा चेहरा चमक उठा था।

(क्रमश:)