भय का कहर.. - भाग 2 Abhishek Chaturvedi द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भय का कहर.. - भाग 2

कमरे की दीवारों से खून टपकने लगा, और…….



भय का गह्वर (मध्य भाग)

अर्जुन और उसके दोस्तों की मौत के बाद, गांव वालों ने उस भयावह हवेली को पूरी तरह बंद कर दिया। लेकिन फिर भी, गांव में रात के समय एक अजीब-सी बेचैनी बनी रहती थी। हवेली के आसपास से गुजरने वाले लोगों को अचानक ठंडक महसूस होती, और उन्हें अर्जुन और उसके दोस्तों की दबी-दबी चीखें सुनाई देतीं। इस घटना के बाद से, गांव वालों में एक गहरी दहशत बैठ गई थी।

कुछ महीनों बाद, गांव में एक नए परिवार का आगमन हुआ। यह परिवार शहर से आया था, और वे पुराने अंधविश्वासों पर विश्वास नहीं करते थे। इस परिवार के मुखिया, रमेश, को गांव वालों की कहानी सुनकर हंसी आई। उसने सोचा कि ये सिर्फ पुराने समय के लोगों के मनगढ़ंत किस्से हैं, जिनका हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है। रमेश ने गांव में लोगों की कहानियों को नज़रअंदाज़ करते हुए, उस हवेली में रहने का निर्णय लिया। 

रमेश, उसकी पत्नी अंजली, और उनकी बेटी सिया ने हवेली के अंदर जाने की योजना बनाई। गांव वालों ने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन रमेश ने किसी की बात नहीं मानी। वह अपने परिवार के साथ हवेली के भीतर पहुंच गया।

हवेली के अंदर कदम रखते ही अंजली और सिया को एक अजीब-सी घुटन महसूस हुई। लेकिन रमेश ने इसे सिर्फ हवा की ठंडक मानकर नजरअंदाज कर दिया। उन्होंने हवेली के कमरों को साफ करना शुरू किया। हवेली की दीवारों पर जमी धूल और फर्श पर पड़े जाले उनके काम को मुश्किल बना रहे थे, लेकिन वे तीनों इस काम में लग गए।

शाम होते-होते, उन्होंने हवेली के एक हिस्से को साफ कर लिया और वहीं अपना अस्थाई निवास बना लिया। रात गहरी हो चुकी थी, और हवेली के आसपास की हवा और भी सर्द हो गई थी। 

रात का पहला पहर बीत रहा था, जब सिया को अचानक बाथरूम जाने की जरूरत महसूस हुई। उसने अपने कमरे से निकलकर दालान की ओर कदम बढ़ाए। जैसे ही वह अंधेरे में बाथरूम के पास पहुंची, उसे किसी के धीमे-धीमे सिसकने की आवाज सुनाई दी। आवाज इतनी मर्मस्पर्शी थी कि सिया के कदम ठिठक गए। उसने चारों ओर देखा, लेकिन कुछ नहीं दिखा। 

सिया ने हिम्मत करके आवाज के स्रोत की ओर बढ़ने का फैसला किया। वह धीरे-धीरे हवेली के पुराने हिस्से की ओर चली गई। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ती गई, आवाज और स्पष्ट होती गई। अंततः वह उस दरवाजे के पास पहुंची, जिसके अंदर अर्जुन और उसके दोस्तों ने अपनी आखिरी रात बिताई थी। 

सिया ने दरवाजे के पास कान लगाकर सुना, और अब उसे साफ-साफ बच्चों के रोने की आवाज सुनाई दी। अचानक दरवाजा खुद-ब-खुद खुल गया, और एक ठंडी हवा का झोंका उसके चेहरे पर पड़ा। सिया का दिल तेजी से धड़कने लगा, लेकिन जैसे कोई अदृश्य ताकत उसे खींच रही हो, वह अंदर चली गई।

कमरे में घुसते ही, सिया ने देखा कि वहां एक छोटा बच्चा कोने में बैठा हुआ है। उसकी पीठ मुड़ी हुई थी, और वह बुरी तरह से रो रहा था। सिया ने डरते हुए पूछा, "तुम कौन हो? और यहां क्या कर रहे हो?"

बच्चे ने धीरे-धीरे अपना सिर उठाया। उसके चेहरे पर गहरे जख्म थे, और उसकी आंखें काले गड्ढों की तरह थीं। उसने एक ठंडी, कंपकंपाती आवाज में कहा, "तुम यहां नहीं आनी चाहिए थी। अब तुम भी हमारे साथ हो।"

सिया का शरीर ठंड से जमने लगा। उसने भागने की कोशिश की, लेकिन उसके पैर ज़मीन से चिपक गए। कमरे के दरवाजे खुद-ब-खुद बंद हो गए और अचानक चारों ओर अंधेरा छा गया। सिया की चीखें हवेली की दीवारों में गूंजने लगीं, लेकिन अब उसे बचाने वाला कोई नहीं था।

दूसरे कमरे में, अंजली और रमेश सिया की चीखें सुनकर जागे। वे तुरंत सिया की तलाश में दौड़े, लेकिन जब वे उस कमरे के पास पहुंचे, तो दरवाजा बंद मिला। उन्होंने दरवाजा तोड़ने की कोशिश की, लेकिन अंदर से कुछ ऐसा था जो दरवाजे को खोलने नहीं दे रहा था। अचानक, दरवाजे के पीछे से खौफनाक ठहाके सुनाई देने लगे, और फिर दरवाजा खुद-ब-खुद खुल गया।

अंदर का दृश्य देखकर दोनों की सांसें थम गईं। कमरे के बीचोंबीच सिया का शरीर हवा में लटक रहा था, और उसके चारों ओर आत्माओं का झुंड जमा था। उन आत्माओं के चेहरे पर एक अजीब सी खौफनाक मुस्कान थी। अंजली ने जोर से चीखा, लेकिन उसकी आवाज भी हवेली की गहराइयों में कहीं खो गई।

रमेश और अंजली ने भागने की कोशिश की, लेकिन आत्माओं ने उन्हें घेर लिया। कमरे की दीवारों से खून बहने लगा, और उनकी आंखों के सामने हवेली की दीवारों पर अनेकों भूतिया चेहरें उभर आए। हर चेहरा दर्द और प्रतिशोध से भरा हुआ था। 

आत्माओं ने रमेश और अंजली को घेर लिया, और धीरे-धीरे उनकी आंखों के सामने सब कुछ अंधकारमय होता चला गया। हवेली में अब उनकी चीखों के साथ-साथ सिया की दर्दनाक चीखें भी जुड़ गई थीं।

अगले दिन, जब गांव वालों ने हवेली की ओर देखा, तो उन्हें हवेली के आस-पास घना धुआं और अजीब-सी गंध महसूस हुई। कुछ हिम्मती लोग हवेली के करीब गए, लेकिन उन्हें सिर्फ एक डरावना सन्नाटा और मौत की खामोशी महसूस हुई। उस रात के बाद, गांव वालों ने कभी भी उस हवेली का नाम नहीं लिया, और गांव के सभी रास्ते उस हवेली से दूर ले जाने लगे। 

अन्धकार का किला अब भी वहां खड़ा है, लेकिन अब कोई भी उसकी तरफ देखने की हिम्मत नहीं करता। कहा जाता है कि हवेली में उन लोगों की आत्माएं अब भी कैद हैं, जो उस अभिशप्त जगह में रहने की गलती कर बैठे थे। हर अमावस्या की रात, हवेली से भयंकर चीखें सुनाई देती हैं, मानो वे आत्माएं अपनी पीड़ा और प्रतिशोध की आग में जल रही हों। 

और यह कहते हैं कि जब भी कोई साहसी व्यक्ति उस हवेली में प्रवेश करता है, वह कभी वापस नहीं आता। हवेली अब एक भयंकर दहशत की मूरत बन चुकी थी, और गांव के लोग हमेशा के लिए उस डरावनी कहानी के साथ जीने को मजबूर थे।

अगले भाग में देखें क्या होता है कि.........
भय का गह्वर.....