नक़ल या अक्ल - 55 Swati द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नक़ल या अक्ल - 55

55

थप्पड़

 

 

अब नन्हें ने उस शख्स को देखकर ख़ुश होकर कहा,

 

कमलेश तू? और फिर दोनों गले मिल गए, फिर कमलेश ने नंदन को भी गले लगा लिया।

 

तू तो गायब ही हो गया था।

 

हाँ नन्हें,  बस काम में बिजी हो गया था ।

 

तू इंस्पेक्टर लग गया? नंदन ने पूछा।

 

मैं तुम लोगों से दो साल सीनियर था, लगना तो था ही।

 

“बधाई हो, भाई ।“ अब दोनों ने उसे फिर गले लगा लिया ।

 

चल बैठते है । कमलेश ने कहा ।

 

घर चल तेरी खातिरदारी करो ।

 

निहाल!! घर से ही तो आ रहा हूँ, मुझे तो यह नदी का किनारा बहुत याद आता था।

 

सही में? उसने सिर हिलाया और तीनों उस नदी के किनारे बैठ गए।

 

तुझे कामयाब देखकर बहुत ख़ुशी हो रही है। नन्हें ने उसके कंधे पर हाथ रखा ।

 

मुझे पेपर लीक का पता चला, बहुत अफसोस हुआ पर मुझे पूरा यकीन है, तुम दोनों भी बहुत जल्द यह पेपर पास कर लोंगे।

 

अच्छा!! तुम दोनों कोचिंग कहाँ से ले रहें हो?

 

हम तो खुद ही पढ़ रहें हैं ।

 

अरे यार!!! एक बार कोचिंग तो लेनी ही पड़ेगी, तुम्हारे पास अब भी समय है, तुम कोचिंग ले लो ।

 

नहीं यार!! हम खुद ही पढ़कर दे देंगे।

 

“देख नन्हें!! अपने अनुभव से बता रहा हूँ, एक बार तो कोचिंग लेनी ही पड़ेगी । अब नहीं लेगा तो बाद में लेगा,  बेकार में तेरा टाइम बर्बाद होगा ।“ उसने यह सुना तो कुछ नहीं बोला, मगर नंदन बोल पड़ा ।

 

क्या यह सच है कि  पेपर लीक होने के बाद, पेपर बहुत मुश्किल  आता है ?

 

हम्म !! इसलिए कह रहा हूँ ।

 

कितना खर्चा होगा? निहाल का सवाल है।

 

कोचिंग के और वहाँ शहर में रहने और खाने पीने के करीब चार पाँच लाख तो लग ही जायेगे। हैरानी से दोनों का मुँह खुला का खुला रह गया।

 

मगर कमलेश ने उन्हें समझाते हुए कहा, “कोशिश कर, कोई न कोई इंतेज़ाम हो ही जायेगा ।“ अब वे  तीनों  काफी समय तक बतियाते रहें और फिर कमलेश  दोबारा मिलने का बोलकर वहाँ से चला गया । काफी देर तक नंदन और नन्हें वहीँ बैठकर आपस में  बातचीत करते रहें  । नन्हें ने कहा, “मैं घर जाकर बापू से बात करता हूँ, क्या पता कोई न कोई रास्ता निकल जाए।"  मैं भी अपने घर में पूछकर देखता हूँ" । अब दोनों घर की ओर जाने लगे।

 

रात को बिरजू ने निर्मला को कॉल किया तो वह उसका फ़ोन सुनने के लिए छत पर आ गई । फ़ोन उठाते  ही उसने कहा,

 

हेल्लो !! बिरजू।

 

निर्मला! तुम ठीक हो?

 

हाँ मैं ठीक हूँ।

 

सुनील का क्या हुआ?

 

होना क्या है? मेरे बिना अपने घर तो लौट गया पर मुझे अभी थोड़ी देर पहले फ़ोन पर धमकी दी है कि मैं जल्दी घर न आई  तो अच्छा नहीं होगा ।

 

तुमने क्या कहा? उसने गुस्से में पूछा ।

 

कुछ नहीं, मैंने उसका फ़ोन काट दिया ।

 

तुम्हें उससे डरने की ज़रूरत नहीं है । 

 

हाँ, तुम सही कहते हो ।

 

 अब नन्हें ने खाना खाने के बाद, अपने अम्मा-बापू से कोचिंग की बात की। उसके बापू बोले,

 

“बैंक में तीन लाख के करीब होगा।“ “अरे!! राधा के बापू ने दो लाख भी तो दिए थें।“ सरला बोली। उसको मिलाकर ही कह रहा हूँ, बाकी एक लाख के करीब शादी और कुछ खेतों में पानी के लिए पाइप खरीदने में लग गया ।

 

बैंक में बात करो ?

 

मकान बनवाया था तो तभी एक लोन लिया था, उसी को चुका रहा हूँ । अब दूसरा मिलना मुश्किल है। लक्ष्मण प्रसाद ने हताश होकर कहा तो अब सरला भी मुंह बनाकर बोली, “ससुराल वालों ने भी इतने हल्के गहने दिए है कि बेचकर कुछ नहीं मिलने वाला और बेइजत्ती अलग होगी और मेरे अपने गहने तो खेतों के लिए ज़मीन खरीदने में खर्च हो गए। 

 

नन्हें को उदास देखकर, उसके बापू ने कहा, “तू परेशान मत हो, दो लाख का इंतज़ाम भी हो जायेगा। उसे सुनकर थोड़ी तस्सली हुई, मगर उसने साथ में यह भी कह दिया कि मेरे लिए किसी से बेकार में  उधार लेने की ज़रूरत नहीं है।

 

अगले दिन सुबह नाश्ता करने के बाद, लक्ष्मण प्रसाद बैंक गया। बैंक के बाबू ने उसको देखकर कहा, बहुत दिनों बाद आये?

 

हाँ बस!!! बेटे की शादी में लगा हुआ था। 

 

 

और कैसी रही किशोर की शादी?

 

सब अच्छे से निपट गया। बाबू! कोई तीन लाख होंगे मेरे अकाउंट में वो  निकालकर दे दो।  ठीक है, देखता हूँ। 

 

बिरजू के कैफ़े में दो बच्चे कंप्यूटर सीखने आ गए।  वह बड़े ही चाव से उन्हें कंप्यूटर सिखाने लगा। अभी कुछ देर ही बीती थीं कि तभी निर्मला को अपने कैफ़े में देखकर वह खुश हो गया।

 

निर्मला तुम?

 

मैं भी कंप्यूटर सीखने आई हूँ। वह  मुस्कुराने लगा। 

 

बापू मान गए ।

 

वो मुझसे बात नहीं कर रहें हैं, मैंने सोना को बताया कि मैं कंप्यूटर सीखने जा रही हूँ। कितनी फीस है?

 

वह ज़ोर से हँसा!! आज तुम्हारा पहला दिन है, पहले देख तो लो, मैं कैसा सिखाता हूँ। 

 

तुमसे अच्छे की ही उम्मीद है, अब निर्मला भी एक कंप्यूटर के पास बैठ गई और बिरजू उसे सिखाने लगा। 

 

मधु ने जमींदार गिरधारी चौधरी  को कहा कि वह उषा के साथ बाजार तक जा रही है। उसने उससे कहा भी कि “ इस हालत  में  ज़्यादा  घूमने फिरने की क्या ज़रूरत है।“  उसने जवाब दिया, “डॉक्टर ने कहा है कि  थोड़ा घूमना, अपनी और बच्चे की सेहत के लिए अच्छा है।“ गिरधारी ने मुंह बंद लिया और वह घर से निकल गई ।

 

दोपहर  के तीन बजे हैं, नन्हें अपने कमरे में पढ़  रहा है। किशोर और राधा अपने कमरे में हँसी ठिठोली कर रहें है। सरला और काजल सो रही हैं। तभी दरवाजे पर ज़ोर का खटका हुआ तो नन्हें ने दरवाजा खोला और अपने सामने अपनी पिता लक्ष्मण प्रसाद को देखकर बोला, “बापू !! आप तो कभी दरवाजा इतनी ज़ोर से नहीं खटखटाते ।“ “किशोर कहाँ है?” वह चिल्लाए।  “अंदर है, पर क्या हुआ?”

 

अब वह ज़ोर से बोले, “किशोर !! किशोर !!”

 

किशोर भी घबरा गया, वह जल्दी से अपने कमरे से निकला तो राधा भी घूँघट करें, बाहर निकल आई। 

 

क्या हुआ ? क्यों चिल्ला रहें हैं ?

 

“बाप को बेवकूफ बनाते तुझे शर्म नहीं आती!!” यह कहकर उन्होंने एक ज़ोरदार चाटा उसके मुँह पर जड़ दिया। यह देखकर सब हैरान हो गए, अपने पति की आवाज सुनकर सरला भी उठ चुकी है। उसने लक्ष्मण प्रसाद को डाँटते हुए कहा, “जवान बेटे पर हाथ उठा रहें है, वो भी बहू के सामने।“

 

मारो न तो क्या करो!!!

 

भाई ने ऐसा क्या किया है? अब नन्हें भी बोल पड़ा।  

 

इससे पूछो, अब सब सवालियाँ नज़रों से किशोर को देखने लगें, किशोर भी शायद समझ चुका है कि  उसको यह थप्पड़ क्यों पड़ा है।