नक़ल या अक्ल - 54 Swati द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नक़ल या अक्ल - 54

54

कौन है?

 

सोना ख़ुशी से चिल्लाते हुए अपने बापू के पास गई और बोली, “जीजो! कैसे हो आप? आप कब आए?” अरे! साली साहिबा !!! अभी तो पहुँचा हूँ और बापू जी मुझे इधर लेकर आ गए।“ अब बापू ने उसे वहाँ  बिछी कुर्सी पर बिठाया, तभी सोना निर्मला को खींचते हुए सुनील के पास लेकर आ गई। उसने बिरजू को बड़ी  बेबसी से देखा । बिरजू ने सुनील को बहुत बुरी तरह घूरा, उसका मन किया कि वह एक ज़ोरदार घूँसा  उसके मुँह पर मार दें। सुनील ने निर्मला को देखकर कहा, “आज तो बड़ी जँच रही हो।“ उसने कोई ज़वाब नहीं दिया। अब बापू जी ने सुनील को खाने की थाली लाकर दीं और फिर दोनों के पास ही बैठ गए, “अच्छा हुआ बेटा, जो तुम आ गये?” बारिश की वजह से गोपाल  निर्मला को छोड़ने नहीं जा सका।“ “हाँ बापू जी , रास्ते बंद थें, मगर अब रास्ते खुल गए हैं। क्यों निर्मला ।“ निर्मला की नज़र तो बिरजू की तरफ है, “यह महाशय कौन है?” सुनील की यह बात सुनकर निर्मला एकदम से बौखला  गई। “जीजा जी!!! इनकी दुकान का ही आज कार्यक्रम है, बिरजू  भैया ! इधर आए।“ सोना ने जब उसे पुकारा तो वह उनके पास आ गया। सुनील ने बिरजू को बधाई दी तो उसने भी उसे धन्यवाद कहा।

 

 

अब बिरजू को उसके बापू ने बुला लिया। सुनील अपनी थाली से एक कौर लेकर निर्मला को खिलाने लगा तो उसने उसके हाथ से कौर लिया और ख़ुद ही खाने लगी। बिरजू की नज़रें सुनील की इस हरकत पर गई तो उसकी गुस्से में त्योरियाँ  चढ़ गई। बिरजू के इस हावभाव को नन्हें ने भी देख लिया। उस समझते देर न लगी कि  बिरजू  के मन में  क्या चल रहा है तो वही निर्मला भी उसे खुश नहीं लग रही है। कुछ देर बैठने के बाद, वे लोग जाने लगे तो वह सोना के बापू से मिलने के बहाने, निर्मला के पास आया और धीरे से बोला, “मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ डरना मत!!! ज़िन्दगी हर किसी को एक मौका ज़रूर देती है, तुम्हेँ  भी दिया है। इसे गँवाना मत !!!” निर्मला ने बिरजू को एक नज़र  देखा और फिर अपने परिवार के साथ वहाँ से चली गई।

 

 

घर पहुँचते ही सुनील ने निर्मला को कहा, “जल्दी से अपना सामान बांधो, एक घंटे में हमारी  ट्रैन  है।  उसके बापू ने भी कहा, “हाँ  बिटिया! सामान  बाँधो।“ तभी निर्मला के पैर जड़  हो गए, वह अपनी जगह से नहीं हिली। उसके बापू ने सोनाली को कहा कि  वह अपनी दीदी का सामान  बाँध  दें। वह सामान बाँधने  अंदर जाने लगी तो निर्मला ने उसे रोकते हुए कहा,

 

सोना !! कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है । वह उसकी तरफ हैरानी से देखने लगी।

 

“कहा न कहीं जाने की ज़रूरत  नहीं है।“ सुनील की भी त्योरियाँ  चढ़ गई। अब उसके बापू बोल पड़े, “बिटिया! यह क्या तमाशा लगा  रखा है।“

 

बापू मैं इस आदमी के साथ कहीं नहीं जाऊँगी।

 

पर क्यों ? बेटी  यह तेरा पति है। वह अब भी हैरान है।

 

पति ?? ऐसे पति से तो पति न होना बेहतर  है।  “नीर !!!” उसके बापू उस पर चिल्लाए  और सुनील उसे खा जाने वाली नज़रों से देखने लगा।

 

बापू !!! यह पति नहीं हैवान है, अब उसने रोते हुए अपने बापू को सारी बात बता दी। सबने सुना तो सबके पैरो तले ज़मीन खिसक गई। सुनील तो भड़क गया,  “अरे! तुम्हें नहीं जाना तो मत जाओ, मगर मुझपर ऐसे गंदे इल्जाम तो न लगाओ।“

 

“बापू !! मैं सच कह रही  हूँ।“ वह अब फूटफूटकर  रोने लगी।  गिरधर ने एक नज़र सुनील को देखा तो वह बोला, “बापू  जी यह झूठ  बोल रही है।“

 

“नीरू  बेटा !!” सुनील ऐसा नहीं कर सकता।

 

“आपको अपनी बेटी  पर विश्वास नहीं और एक साल पहले मिले इस आदमी पर विश्वास है। अगर मैं बोझ लगने लगी हूँ तो मैं अपनी जान अभी कुएँ में कूदकर दे देती हूँ ।“ गिरधर खुद को सँभालते  हुए कुर्सी पर बैठ गया। सुनील निर्मला की हिम्मत देखकर हैरान हो रहा है और निर्मला रो-रोकर कह रही है कि “वह कहीं नहीं जाएगी।“  अब सुनील गुस्से में बोला, “ठीक है, बापू जी, मेरी बहुत इज़्ज़त खराब हो गई, अगर आपकी बेटी का दिमाग ठीक हो जाये तो इसे इसके ससुराल भेज देना।“ उसने जाते हुए निर्मला को घूरा और वहाँ से चला गया। सोना ने उसे पानी पिलाया और उसे अंदर ले गई। गोपाल अपने बापू के पास बैठ गया।

 

बापू! मुझे लगता है कि  दीदी सच कह रही है।

 

मैं सुनील को अच्छे से जानता हूँ। गिरधर बोला।

 

और हम अपनी बहन को अच्छे से जानते है। अब सोना भी बोल पड़ी।

 

सोना !! गिरधर चिल्लाया।

 

हाँ बापू, कोई अपना घर खुद खराब नहीं करता, ज़रूर कहीं कुछ  गड़बड़ है। अब उसके बापू  भी चुप हो गए।

 

निहाल जाते समय एक बार फिर बिरजू से मिलते हुए बोला,

 

 

“आप ऐसे ही खुश रहा करे और मैं भगवन से कामना करता हूँ कि आप दिन रात दिन तरक्की करें।“

 

“धन्यवाद नन्हें। मैं भी दुआ करता हूँ कि तुम मुझसे बहुत जल्द पुलिस अफसर की वर्दी में मिलो।“ उसने उसे गले लगा लिया। राजवीर अपने भाई की यह बात सुनकर बुरी तरह चिढ़ गया। अब धीरे धीरे सभी गॉंववाले  जमींदार को बधाई देकर जाने लगे। जमींदार को भी आज बिरजू पर गर्व महसूस हो रहा है पर बिरजू को तो निर्मला की फ़िक्र हो रही है। “काश !! तुम ठीक हो।“ उसने मन ही मन कहा। जब पंडाल खाली हो गया तो गिरधारी चौधरी ने कहा,

 

चल बेटा, घर चलना है या आज से दुकान खोलनी है?

 

आप लोग चले, मैं अभी यही रहूँगा।

 

अब सभी घरवाले चले गए। उसने अपनी जेब से फ़ोन निकाला और निर्मला का नंबर देखने लगा, मगर कुछ सोचकर वह रुक गया।

 

गॉंव के रास्ते में नन्हें और नंदन ने देखा कि सुनील गुस्से में रिक्शे पर अकेला जा रहा है।

 

“लगता है, निर्मला जीजी इसके साथ नहीं गयी।“ यह नंदन की आवाज है । निहाल ने सुनील को घूरकर देखा तो उसे वह बड़ा ही चालबाज नज़र आया । अब दोनों नदी के किनारे की ओर जाते जा रहें हैं कि तभी उन्हें किसी ने पुकारा, “नन्हें!!! नंदन!! उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसकी हैरानी का ठिकाना नहीं रहा। “अरे तू??” निहाल के मुँह से निकला और नंदन भी उस शख़्स को देखकर हैरान हो रहा है।