तमस ज्योति - 30 Dr. Pruthvi Gohel द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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तमस ज्योति - 30

प्रकरण - ३०

रोशन बोला, "ममतादेवीने फातिमा से अपने प्यार का इजहार करने को तो कहा लेकिन अब तक फातिमा खुद ही नहीं समझ पा रही थी कि क्या ये सच में प्यार है या सिर्फ दोस्ती? प्यार की कीमत तो तभी होती है जब आपका प्रिय पात्र आपके साथ न हो और फिर भी आप उसकी यादों में जीते हैं। उस दिन आगे चलकर मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही होनेवाला था।"

मेरा पूरा विदाई समारोह ख़त्म होने के बाद फातिमा मेरे पास आई। मैं तुरंत ही उसके कदम की आवाज़ को पहचान गया। विद्यालय में अपने इन दो वर्षो के अनुभव के कारण, अब मैं किसी भी व्यक्ति को उसके कदमों से पहचान सकता था। मैंने भी फातिमा को उसके कदमों से पहचान लिया।

फातिमा मेरे पास आई तो मैंने उससे पूछा, "अरे! फातिमा! क्या तुम अभी भी यही हो न?" 

फातिमा बोली, “हाँ, हा मैं यही हूँ रोशन।"

मैंने पूछा, "क्या तुम मुझसे कुछ कहना चाहती हो?"

मेरे पूछने के बावजूद भी जब कुछ क्षणों तक मुझे फातिमा की कोई भी आवाज नहीं सुनाई दी तो मुझे लगा कि वह शायद किसी दुविधा में है, इसलिए मैंने उससे दोबारा पूछा, "फातिमा! क्या तुम यही हो या फिर चली गई? मैं उसे देख तो नहीं सकता था लेकिन वह बहुत शांत थी इसलिए वो वहा है भी या नहीं उसकी पुष्टि करने के लिए मैंने उससे फिर से वही सवाल पूछा।

मैं जब फातिमा से बात कर रहा था तभी वहां ममतादेवी हमारे पास आई और बोलीं, "हां! वह यही है। लेकिन उसका चेहरा उदास है। शायद वह इस बात से दु:खी है कि तुम मुंबई जा रहे हो। क्यों? मैंने ठीक कहा न फातिमा?" 

फातिमाने ममतादेवी से अपने आँसू छुपाने की व्यर्थ कोशिश की और बोली, "नहीं, नहीं, मुझे बहुत खुशी है कि  रोशनजी को इतना अच्छा मौका मिला है। मैं तो उनके लिए बहुत ही खुश हूं।" 

फातिमा के शब्दों में तो ख़ुशी झलक रही थी लेकिन उस दिन उसकी आवाज़ मैने एक दर्द सा भी महसूस किया। 

मैं फातिमा के करीब गया और उसका हाथ पकड़कर बोला, "देखो फातिमा! मैं चाहे कही भी रहूं हमारी दोस्ती कभी नहीं बदलेगी। मेरे जीवन में बहुत सारे दोस्त थे लेकिन जब से इन आंखो पे तमस छा गया है तबसे एक के बाद एक पता नही कैसे लेकिन सारे मुझसे दूर होते चले गए। तुम एक दोस्त के रूप में मेरी जिंदगी में उस वक्त आई हो जब सबने मेरा साथ छोड़ दिया था। तुम्हारे लिए मेरे मन में जो सम्मान है वह हमेशा वैसा ही रहेगा। वह कभी भी नहीं बदलेगा।"

जब मेरी बात पूरी हो गई तो मैं फातिमा का हाथ छोड़ने ही वाला था, लेकिन उसकी पकड़ अभी भी मजबूत थी। शायद वह अब भी मेरे स्पर्श का एहसास चाहती थी। मैं भी थोड़ा भावुक हो रहा था। फिर मेरे दिलने मुझे रोक दिया। मुझे कहा पता था कि वह मेरे बारे में क्या सोचती होगी? वैसे भी मैं तो सूरदास था! जबकी फातिमा का व्यक्तित्व सुंदर और उत्तम था। जैसे ही मेरे मन में यह ख्याल आया, मैंने उसका हाथ तुरंत ही छोड़ दिया।

फातिमा बोली, "आप जब चाहें मुझसे बात कर सकते हैं।" 

जब फातिमा ये बात बोली तो मैंने महसूस किया कि फातिमा के मुंह से ये शब्द बहुत ही मुश्किल से निकल पाए थे। 

मेरे मुंबई जाने से पहले की उस दिन मेरी और फातिमा की वो आखिरी मुलाकात थी। उसके बाद हमें बस इस बात का ही इंतजार था कि हम वापस कब मिलेंगे?

मैं अब मुंबई पहुंच चुका था। मुंबई पहुंचने के दो दिन बाद मुझे ममतादेवी का फोन आया। उन्होंने कहा, "कैसे हो रोशन? तुम शांति से मुंबई पहुंच तो गए न?" 

मैंने कहा, "हां, मैं बिल्कुल शांति से पहुंच गया हूं। अभिजीतजीने मेरे लिए सारी व्यवस्था कर दी है। मुझे कोई भी दिक्कत नहीं है। आप बताइए आप और फातिमा कैसे है?"

ममतादेवीने कहा, "मैं तो ठीक हूं, लेकिन फातिमा तुम्हारे बिना थोड़ी उदास लगती है। मैंने देखा है कि जब तुम यहां थे तब वह तुम्हारी उपस्थिति में बहुत ही खुश रहती थी। ऐसा लगता था जैसे तुम्हारे जीवन में आने के बाद से उसका जीवन ही बदल गया है। लेकिन जब से तुम यहां से गए हो तब से वह उदास रहने लगी है। शायद वह तुम्हारी अनुपस्थिति को अभी भी स्वीकार नहीं कर पा रही है। मैं उसकी इस हालत को हररोज देखती हूँ। आपने भी शायद अनुभव किया होगा की जब आप विद्यालय छोड़ के जा रहे थे तो उस समय उसकी आवाज़ में दर्द था। मैंने तुम्हें आज यही बताने के लिए फोन किया था रोशन! फातिमा तुम्हारे बिना बहुत दु:खी हैं। तुम एकबार उससे बात कर लो। दो दिन से तुम्हारी कोई खबर नहीं आई है तो वो थोड़ी परेशान सी है। मैं उसे बहुत अच्छे से जानती हूं, इसलिए कह रही हूं की वह तुमसे कभी खुलकर बात नहीं कर पाएगी। तुम वक्त निकाल के उससे बात कर लेना।

मैंने मेरे और फातिमा के रिश्ते के बारे में खुलासा करते हुए ममतादेवी से कहा, "हां, मैं जरूर बात करूंगा। लेकिन मैं आपको यह भी बता दूं की हम दोनों सिर्फ अच्छे दोस्त हैं। इसके अलावा हमारे बीच और कुछ नहीं है।"

अब तक तो मैं और फातिमा हम दोनों ही एक दूसरे को केवल अच्छे दोस्त ही मानते थे। लेकिन ममतादेवी की इस बात से मैं थोड़ा दुविधा में पड़ गया था। हम दोनों को खुद ही नहीं पता था की हम दोनों प्यार में थे!

ममतादेवी का फोन खत्म होते ही मैंने तुरंत फातिमा को फोन किया। मैंने कुछ देर उसके साथ बात की। 

फातिमा से बात करते हुए मुझे एहसास हुआ कि दो दिन बाद जब मैंने फातिमा की आवाज सुनी तो मुझे भी बहुत ही खुशी हुई। उसका एक एक शब्द, उसकी हर कोई बात मेरे मन को बहुत ही ख़ुशी दे रही थी। मैंने महसूस किया कि उसके साथ इस बातचीत करने से मेरे मन को बड़ा सुकून मिलता था। लेकिन हकीकत तो ये थी की मैं चाहे लाख कोशिश कर लूं लेकिन उसे एक अच्छी जिंदगी देने के लिए तो अधूरा ही था न! मैं बारबार भूल जाता था की मैं सूरदास हूं। फिर मैं खुद ही सोचने लग जाता था की मुझे ये याद रखना चाहिए कि फातिमा को मुझसे कहीं बेहतर कोई न कोई तो मिल ही जाएगा। जो मेरी तरह विकलांग नहीं होगा।

इसलिए मैंने ममतादेवी की बात सुनकर भी फातिमा को अपने दिमाग से दूर रखने का फैसला कर लिया था। मैंने खुद से वादा किया कि हम सिर्फ दोस्त रहेंगे और मैं प्यार को बीच में लाकर फातिमा के मन का बोझ नहीं बनूंगा। यह फैसला मेरे लिए बहुत कठिन था, लेकिन मैं नहीं चाहता था कि मेरे स्वार्थ के कारण फातिमा के साथ कोई भी अन्याय हो।

फातिमाने मुझसे बात करने के बाद जैसे ही फोन रखा तो उसकी आंखों में आंसू थे। 

ममतादेवीने मुझे ऑडियो मेसेज करके बताया था कि मेरे साथ बात करने के बाद दूसरे दिन जब फातिमा विद्यालय आई तब उसके चेहरे पर चमक थी। 

फातिमा के चेहरे पर चमक देख कर ममतादेवीने तुरंत उससे पूछा, "मुझे लगता है कि तुमने कल रोशन से बात की होंगी?" ममतादेवी की यह बात सुनकर फातिमा पूरी तरह से शर्मिंदा हो गई।

यह देखकर ममतादेवीने फातिमा से फिर कहा, "फातिमा, तुम रोशन को यह क्यों नहीं बताती कि तुम भी उससे प्यार करती हो! मैंने तुम्हें तब भी बताया था जब वह यहां से जा रहा था, लेकिन तब भी तुमने उससे कुछ नहीं कहा और अब तो वो वह मुंबई चला भी गया। मैं अब भी तुमसे कह रही हूं तुम रोशन को अपने दिल की बात बता दो। हो सकता है कि वो कभी खुद चलकर तुमसे प्यार का इज़हार न करें। अगर तुम सच में रोशन को पसंद करती हो तुम्हे खुद से ही इस रिश्ते में पहल करनी होगी क्योंकि, रोशन कभी नहीं चाहेंगा कि किसी लड़की को अपनी जिंदगी एक अंधे आदमी के साथ बितानी पड़े।

फातिमा बोली, "आप मुझे गलत समझ रही हैं मेडम! हाँ! मुझे रोशनजी के जाने का दु:ख  जरुर है लेकिन वह सिर्फ एक दोस्त की हैसियत से। इससे ज्यादा और कुछ नहीं।'' 

फातिमा को समझाने की ममतादेवी की कई कोशिशों के बावजूद भी फातिमाने मेरे साथ अपने रिश्ते को दोस्ती से ज्यादा कुछ नहीं माना।

यहां मुंबई में मुझे अब अभिजीत जोशी के साथ उनके एलबम के संगीत का काम शुरू करना था।

(क्रमश:)