प्रकरण - २२
ममतादेवीने फातिमा को एक और जिम्मेदारी सौंपी। वो थी अतिथियों के लिए निमंत्रण पत्रिका तैयार करने की। जब ममतादेवीने यह बात फातिमा को बताई तो फातिमाने ममतादेवी से कहा, "आप बुरा न मानें तो मैं आप से ये कहना चाहूंगी की अगर कोई मुझसे भी बेहतर निमंत्रण पत्रिका बना सकती है तो वह रोशन की बहन दर्शिनी है। आपको शायद पता नहीं होगा लेकिन रोशनजी के क्लासिस का पैम्फलेट भी उनकी बहनने ही बनाया था। इसलिए मुझे लगता है कि ये मौका आपको दर्शिनी को देना चाहिए।"
फातिमा की ये बात सुनकर ममतादेवीने कहा, "अगर तुम्हें ठीक लगे तो रोशन को बताना और उसकी बहन को यहां बुला लेना।"
फातिमा बोली, "तो फिर ठीक है। मैं रोशनजी से कहकर दर्शिनी को बुला लूंगी।"
फिर फातिमाने मुझसे कहकर दर्शिनी को विद्यालय बुलवा लिया। दर्शिनी भी यह काम पाकर बहुत खुश थी क्योंकि यह उसका पसंदीदा काम था।
दर्शिनी इस बार अकेले विद्यालय नहीं आई थी वो तो मुझे तब पता चला जब फातिमाने मुझसे पूछा कि, "दर्शिनी के साथ आया यह लड़का कौन है?"
जब फातिमाने मुझे यह बात बताई तो मैंने भी अब दर्शिनी से पूछा की वह अपने साथ किसे लेकर आई है? तब दर्शिनीने मुझे उत्तर दिया और कहा, "वह समीर है। वह मेरी कक्षा में मेरे साथ पढ़ता है और मेरा दोस्त है। वह मेरे द्वारा बनाए गए डिजाइन को ग्राफिक्स में बनाएगा और कार्यक्रम का बैनर भी बनाएगा और इसीलिए मैं उसे यहां अपने साथ लेकर आई हूं। और इसके अलावा वो पूरे इवेंट का मेनेजमेंट भी कर देगा।
दर्शिनीने मुझे समीर से मिलवाया और कहा, "समीर! यह मेरे भाई है। रोशनभाई।"
समीर बोला,"ओह! नमस्ते भाई!"
उसने शायद अपना हाथ मेरी ओर बढ़ाया था तो दर्शिनीने भी उसका हाथ मेरे हाथ में दे दिया और हम दोनोंने हाथ मिलाया।''
मैंने कहा,"तुमसे मिलकर मुझे अच्छा लगा।"
उसके बाद फातिमा दर्शिनी और समीर को ममतादेवी के पास ले गई और उन दोनों का परिचय करवाया और कहा, "ये दोनों निमंत्रण पत्रिका तैयार करने का काम संभाल लेंगे।"
यह सुनकर ममतादेवी खुश हो गईं और दोनों से एक निमंत्रण पत्रिका बनाकर अगले दिन उन्हें दिखाने को कहा।
ममतादेवी से मिलने के बाद दर्शिनी और समीर दोनों हमारे घर गए और निमंत्रण कार्ड बनाने के काम में लग गए।
मैं और फातिमा स्कूल में होनेवाले कार्यक्रम की तैयारी करने लगे। हमने अब पांच छात्रों को पसंद कर लिया था। मैं उन पांचों को बहुत मेहनत से सीखा रहा था। हमने मेहमानों के लिए एक स्वागत गीत तैयार किया था जिसमें हमने तीन लड़के और दो लड़कियों को चुना था।
बच्चों की नई चीजें सीखने की क्षमता और उत्साह भी वयस्कों की तुलना में बहुत अधिक होता है। मेरे छात्र भी इस आगामी कार्यक्रम को लेकर बहुत उत्साहित थे और इसलिए शाम तक हमने उन्हें मुखड़ा और एक अंतरा अच्छे से तैयार करवा लिया था।
बच्चों को भी स्टेज पर परफॉर्म करने का ये अनुभव पहली बार मिल रहा था, इसलिए वे सभी बड़े उत्साही थे।
फातिमा और मैं कार्यक्रम की तैयारी में व्यस्त थे और इस बात से अनजान थे कि अगली सुबह फातिमा के जीवन में एक और हल्का झटका लेकर आने वाली थी।
दर्शिनी वहां फातिमा के पास आई और बोली, "फातिमा! क्या मैं भी सीखने आ जाऊं क्या?"
फातिमाने ख़ुशी से बोली,"अरे! तुम और समीर दोनों आ गये?"
मैं बच्चों को रियाज़ करवा रहा था। दर्शिनी के वहा आते ही फातिमा दर्शिनी और समीर को लेकर ममतादेवी के पास गई।
दर्शिनी, समीर और फातिमा अब ममतादेवी के ऑफिस पहुंच गए थे। दर्शिनीने अब ममतादेवी को एक निमंत्रण पत्रिका देते हुए कहा, "यह लीजिए। निमंत्रण पत्र तैयार हो गई है।"
पत्रिका देखते ही ममतादेवी खुश हो गई और बोली, "वाह! ये तो आपने बहुत अच्छी निमंत्रण पत्रिका बनाई है। साथ ही इसमें आमंत्रित लोगों के फोटो भी लगाए हैं। मैंने तो आपको केवल नाम दिए थे। तो ये फोटो आपको कैसे मिले?"
दर्शिनीने कहा, "ये सभी मशहूर लोग और राजनेता हैं। इनकी तस्वीरें सोशियल मीडिया पर तुरंत ही मिल जाएंगी! यह आइडिया मेरे दोस्त समीर का था।"
ममतादेवीने फातिमा को निमंत्रण पत्रिका दी और वह समीर की ओर मुड़कर बोली, "समीर! आपने निमंत्रण पत्रिका में क्या अद्भुत विचार रखा है! मैं बहुत खुश हूं। लेखन, अक्षरों और रंगों का चयन भी इस पत्रिका को बहुत सुंदर बना रहा है। मुझे यह बहुत पसंद आया। फिर वह फातिमा की ओर मुड़कर बोली, "फातिमा! अब यह तुम्हारी जिम्मेदारी है कि तुम इस पत्रिका मेहमानों को बांटो।"
फातिमा बोली, "जी मैडम।"
पत्रिका देने के बाद दर्शिनी और समीर दोनों वहां से चले गए। उन दोनों के जाने के बाद फातिमाने पत्रिका की ओर देखा। उसमें एक राजनेता की फोटो देखकर वह चौंक गई। ममतादेवी को तुरंत फातिमा की मानसिक स्थिति समझ में आ गई। ममतादेवी को पहले ही एहसास हो गया था कि फातिमा अस्थायी रूप से अपने अतीत में चली गई है।
जैसे ही ममतादेवी को फातिमा की हालत समझ में आई उन्होंने फातिमा से पूछा, "क्या हुआ फातिमा? कहां खो गई हो?"
फातिमा बोली, "मैडम! ये राजनेता मनोज विरानी की तस्वीर है। ये वही विरानी अंकल हैं, जो मेरे पापा के खास दोस्त है। उनकी ये तसवीर देखकर मुझे अपने परिवार की याद आ गई। अंकल का परिवार और मैं एक साथ कई जगहों एकसाथ घूमने भी गए है।"
ममतादेवी बोली, "हाँ, वो तो मुझे लगा कि शायद वही बात तुम्हारे मन में होगी! लेकिन बेटा! तुम्हें अपने अतीत को याद नहीं करना चाहिए, अब तुम केवल और केवल फातिमा हो। तमन्ना नहीं।"
फातिमाने कहा, "हाँ, लेकिन कभी-कभी मुझे अपनी मम्मी की बहुत चिंता होती है। क्या वह भी मुझे याद करती होगी? वह कभी भी मुझसे मिलने की कोशिश भी क्यों नहीं करती? मुझे अपने भाई की भी बहुत याद आती है। वह क्या कर रहा होगा?"
ममतादेवीने कहा, "हाँ बेटा! तुम्हारी मम्मी हर कुछ दिनों में मुझसे तुम्हारे बारे में पूछती रहती थी। तुम्हारे यहाँ आने के एक महीने के भीतर ही तुम्हारे पापाने यहाँ का सारा कारोबार कॉन्ट्राक्ट पर दे दिया और वे लोग हमेशा के लिए अमेरिका में बस गये। तुम्हारी मम्मी ही चाहती थी की मैं तुम्हें इन सब बातों से अनजान ही रक्खू। लेकिन आज तुम उदास हो की मम्मी मुझसे मिलने क्यों नहीं आती इसलिए मैंने तुम्हें ये सारी बाते बताना जरूरी समझा।"
ममतादेवी की ये बात सुनकर मैं भी बोल उठी, "ओह! ये आप क्या बात कर रही है? मेरी मम्मी को कितनी परेशानी हुई होगी! मेरी वजह से उन सभी को कितनी परेशानी उठानी पड़ी! शायद अगर मैं यहाँ न आकर चुपचाप उस योग से शादी कर लेती तो मेरा पूरा परिवार इस तरह परेशान तो नहीं होता!"
फातिमा को ऐसा बोलते देख ममतादेवीने उससे कहा, "अरे फातिमा! तुम गलत सोच रही हो। तुम युग के साथ कभी खुश नहीं हो सकती थी! कुछ महीने पहले ही तुम्हारी मम्मीने मुझे खबर दी थी कि वो युग जिससे तुम्हारी शादी होनेवाली थी वह बहुत नशे में गाड़ी चला रहा था और अपना संतुलन खो बैठा और एक ट्रक से टकरा गया। उसका एक्सीडेंट हो गया और बहुत ही खून बहने के कारण घटनास्थल पर ही उसकी मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के बाद उसके कुछ राज़ सामने आए। उनमें से एक यह भी था कि उसने अपने परिवार की जानकारी के बिना ही शादी कर ली थी और वह एक तीन साल के बेटे के बाप भी था। वो कहते है न की जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है। तुम्हारे साथ भी ये अच्छा ही हुआ की तुम्हारी मम्मीने तुम्हारा साथ दिया। तुम बहुत भाग्यशाली हो बेटा!''
ये सब अचानक सामने आने पर फातिमा काफी परेशान सी हो गई थी। वह ममतादेवी के गले लगकर रोने लगी। ममतादेवीने उसे कुछ देर तक रोने भी दिया ताकि उसका मन हल्का हो जाए।
फिर ममतादेवीने फातिमा को पानी दिया और कहा, "चलो, अब सामान्य हो जाओ, बच्चे तुम्हारा इंतज़ार कर रहे होंगे!"
फातिमा अब मेरे पास आई और हम दोनों फिर से विद्यार्थियों को कार्यक्रम की तैयारी करवाने में जुट गए।
(क्रमश:)