तमस ज्योति - 23 Dr. Pruthvi Gohel द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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तमस ज्योति - 23

प्रकरण - २३

जिस समय फातिमा और मैं विद्यार्थियों को अभ्यास करा रहे थे उस समय फातिमा बिल्कुल चुप ही थी। उसकी खामोशी मुझे परेशान कर रही थी। हालाँकि मैं उसका चेहरा नहीं देख सकता था, लेकिन मुझे एहसास तो हो ही रहा था कि उसके साथ कुछ तो ठीक नहीं था।

प्रैक्टिस ख़त्म होने के बाद और स्कूल की छुट्टी होने के बाद जब सभी छात्र चले गए ऐसा मुझे लगा तब मैंने फातिमा से पूछा, "क्या बात है फातिमा? तुम आज इतनी चुप क्यों हो? कुछ हुआ है क्या? कोई परेशानी है तुम्हें? तुम्हारे इस दोस्त से क्या तुम अपने मन की बात नहीं कहोगी?”

फातिमाने थोड़ी सहज आवाज़ में मुझसे कहा, "नहीं, कोई खास बात नहीं है। ममतादेवीने आज मुझे बताया कि मेरे यहां आने के एक महीने के भीतर ही मेरा पूरा परिवार अमेरिका चला गया था और अब तक मुझे इस बारे में कुछ पता ही नहीं था। अब तक मैं जिस बात से अनजान थी वो आज अचानक मेरे सामने आ गई तो मेरा दिल भर आया।"

मैंने उसे समझाने की कोशिश करते हुए कहा, "अब तुम वह सब बीती बाते याद करके दु:खी क्यों हो रही हो? उस अतीत को याद ही क्यों करना जो हमें केवल दु:ख देता हो? तुम्हारे सामने तुम्हारा एक सुनहरा भविष्य इंतजार कर रहा है और तुम बीती बातों में खोई हुई हो? बीते वक्त को बह जाने दो। तुम्हे यह भी देखना चाहिए कि विद्यालय के ये सभी छात्र तुमसे कितना प्यार करते है! अब इन छात्रों का विकास ही तो तुम्हारे जीवन का लक्ष्य है, है ना?"

फातिमा बोली, "हां, शायद तुम ठीक कह रहे हो, लेकिन क्या कोई ऐसा व्यक्ति जिसके साथ हमारा खून का रिश्ता हो वो कभी हमारी यादों से मिटता है? वो तो हमेशा से रहता ही है।" 

मैंने कहा, "हाँ, शायद तुम भी तो ये ठीक ही कह रही हो।"

जब मैं फातिमा से ये सारी बाते कर ही रहा था की तभी ममतादेवीने हमारे पास आकर बोली, "अरे! तुम दोनों अभी तक यहीं हो? क्या तुम लोगो को घर नहीं जाना?" 

मैंने कहा, "हाँ, हाँ, जाना है। चलो चलते है।"
फिर ममतादेवी वहा से चली गई और मैं और फातिमा भी वहा से खड़े हो गए।

मैं अपने घर की ओर जाने लगा तभी फातिमाने मुझसे कहा, ""क्या मैं भी आज आपके साथ आपके घर चलूं? इसी बहाने मैं दर्शिनी से भी मिल लूंगी। मैं काफी समय से आंटी से भी नहीं मिली हूं तो मेरा उनसे भी मिलना हो जाएगा।" 

मैंने कहा, "ठीक है तो फिर चलो मेरे साथ।" फातिमा की ये बात सुनकर मुझे बहुत ख़ुशी हुई। मैं यह सोच कर बहुत खुश था कि मुझे फातिमा के साथ कुछ और समय बिताने का मौका मिलेगा।

मैं और फातिमा दोनों अब मेरे घर पहुँच चुके थे। आज फातिमा को मेरे साथ आया देखकर दर्शिनी बहुत खुश हुई। 

मेरी मम्मीने भी फातिमा का स्वागत किया और कहा, "आज तो कई दिनों बाद तुम दिखाई दी हो फातिमा। मुझे बहुत खुशी हुई की तुम्हे अपनी आंटी की याद तो आई।"

फातिमा बोली, "हां आंटी, आज आपकी बहुत याद आई इसलिए तो आपसे मिलने चली आई।" फातिमा शायद मेरी मम्मी में अपनी मम्मी को ढूंढने की कोशिश कर रही थी।

मेरी मम्मीने कहा, "अच्छा किया बेटी! जो तुम मुझसे मिलने यहां आ गई। अब तुम आज रात यहीं रुक जाना। दर्शिनी को भी बहुत अच्छा लगेगा।"

मम्मी की ये बात सुनकर दर्शिनी तुरंत बोल पड़ी, "हाँ, हाँ फातिमा। मम्मी की बात मान लो। आज रात तुम यहीं रुक जाओ। मैं तुमसे बहुत सारी बातें करना चाहती हूँ।"

फातिमा बोली,  "लेकिन आंटी..."

मेरी मम्मीने फातिमा पर अपना हक जताते हुए कहा, "लेकिन वेकिन कुछ नहीं। तुम्हे आज रात यहीं रुकना है अब। मुझे अब और कुछ नहीं सुनना। मैंने बस कह दिया तुमसे। अब और बहस नहीं होगी।"

फातिमा बोली, "ठीक है आंटी। अब मुझमें आपकी बात न मानने की हिम्मत नहीं है.."

फातिमा उस रात हमारे घर ही रुकने वाली थी। मैं भी ये जानकर बहुत खुश था कि फातिमा यहीं रहनेवाली थी। 

शाम होते ही मेरी मम्मी खाना बनाने लगी। फातिमा और दर्शिनी दोनों उनकी मदद में लग गई।

मैं अपने कमरे में गया और थोड़ी देर वही बैठा रहा। मैं कमरे में बैठे बैठे वह गाना सुन रहा था जो हमने कार्यक्रम के लिए तैयार किया था। तैयारी करते वक्त हमने उसकी रिकॉर्डिंग भी कर ली थी और वही मैं सुन रहा था। यह रिकॉर्डिंग सुनकर मुझे बहुत ख़ुशी हुई। सभी छात्र बहुत अच्छा गा रहे थे। परफेक्ट गाना तैयार हो गया था और मैं बहुत ही खुश था।'

रात होने को आई थी। अब हम सब खाने के लिए डाइनिंग टेबल पर बैठे थे। मैं, मेरे मम्मी पापा, फातिमा और दर्शिनी, हम सभी लोग रात के खाने के लिए बैठे थे, तभी अचानक मेरे पापा के फ़ोन पर रईश का वीडियो कॉल आया। मेरे पापाने फोन उठाया और कहा, "ओह! रईश! आज तो तुने बड़े अच्छे वक्त पर फोन किया है। देखो! फातिमा भी आज यहीं रुकने वाली है। तुम बताओ। तुम और नीलिमा कैसे हो? तुम दोनों की नौकरी कैसी चल रही है?"

रईश बोला, "अरे! फातिमा भी यहाँ है? बहुत बढ़िया। फिर तो दर्शिनी आज बहुत खुश होगी है न?" 

मम्मीने कहा, "हाँ! बेटा! वह बहुत खुश है। तुम दोनों कैसे हो?" 

रईश बोला, "नीलिमा और मैं भी बिलकुल ठीक है। मम्मी! और हमारा जीवन भी बहुत अच्छा चल रहा है। एक और विशेष बात है। एक अच्छी खबर है। अगले सप्ताह पूना में एक कॉन्फरंस है, जहां मैं अपना रिसर्च कार्य प्रस्तुत करूँगा। फिलहाल मैं और नीलिमा एक बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं और अगर हम इसमें सफल हो गए तो हमें अमेरिका जाने का मौका मिल सकता है। अगर हमे ये मौका मिल गया तो हम रोशन की आंखो की रोशनी बहुत ही जल्द वापस लाने में सक्षम हो जाएंगे।"

रईश की यह बात सुनकर मेरे मन में एक नई आशा जगी थी। यह सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई और मैंने तुरंत कहा, "रईश! मैं तुम्हारे रिसर्च में सफलता की कामना करुंगा।"

रईशने कहा, "धन्यवाद रोशन। चलो पापा। अभी मुझे कुछ काम है तो मैं फोन रखता हूं। और आप फातिमा को बता देना कि नीलिमाने उसे अपनी याद भेजी है।"

फातिमा भी बोली, "मुझे भी नीलिमा की बहुत याद आती है। वह कहां है? उसे भी फोन दो।"

रईशने कहा, "वह बाहर गई है। मैं उससे कहूंगा कि आने के बाद तुम्हें फोन करे। ठीक है बाय।" इतना कह कर रईशने फोन रख दिया।

अब हम सबने खाना खा लिया था। खाना खाने के बाद हमने कुछ देर तक बातें कीं। उसके बाद हम सब सोने की तैयारी करने लगे। फातिमा दर्शिनी के साथ उसके कमरे में सोनेवाली थी।

दर्शिनी के कमरे के बगल में ही मेरा कमरा था। मैं अपने कमरे में जाकर लेट गया। मैं फातिमा के बारे में सोचता रहा। 

इधर कमरे में फातिमा और दर्शिनी भी बातें कर रही थीं। फातिमा दर्शिनी से पूछ रही थी, "दर्शिनी? अगर तुम बुरा न मानो तो मैं तुम्हे एक बात पूछूं? तुम समीर को पसंद करती हो न?"

फातिमा का अचानक ऐसा सवाल सुनकर दर्शिनी चौंक गई। कुछ देर तक उसे समझ ही नहीं आया कि वह फातिमा को इस बात का क्या उत्तर दे?

(क्रमश:)